मेरे घर आना ज़िंदगी - 12 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मेरे घर आना ज़िंदगी - 12


(12)

समीर के ठीक होने के बाद उसका भी बयान लिया गया। लॉज के कर्मचारी का भी बयान दर्ज़ किया गया। हरीश और मंजीत पर पास्को एक्ट लगाया गया। नमित और चेतन पर जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत मामला दर्ज़ किया गया। सभी ने अपने गुनाह कबूल कर लिए।
समीर के केस की बहुत चर्चा हुई थी। सबको पता चल गया था कि वह ट्रांसजेंडर है। इस बात का समीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था। वह पहले से अधिक उदास रहता था। किसी से भी मिलना या बात करना नहीं चाहता था। स्कूल जाने को तैयार नहीं था।‌ बार बार यही कहता था कि मुझे क्यों बचा लिया। इससे तो अच्छा था कि मैं मर जाता।
अमृता के लिए बहुत मुश्किल स्थिति उत्पन्न हो गई थी। समीर की जो हालत थी उसमें उसे अकेला भी नहीं छोड़ सकती थी।‌ लेकिन कोई ऐसा था नहीं जिसकी निगरानी में समीर को छोड़कर ऑफिस जा सकती। और अधिक छुट्टियां लेने की गुंजाइश थी नहीं। वह बहुत परेशान थी। ऑफिस से फोन आया था कि आने वाले हफ्ते से काम पर वापस आ जाए। कुछ समझ ना आने पर उसने समीर से बात करने का मन बनाया।
उसने समीर के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। अंदर से समीर की आवाज़ आई,
"मम्मी प्लीज़ मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए।"
अमृता ने भी कड़ाई से कहा,
"दरवाज़ा खोलो और बात करो मुझसे। मुझे बहुत ज़रूरी बात करनी है।"
समीर ने उठकर दरवाज़ा खोल दिया। उसकी कलाई पर अभी भी पट्टी बंधी हुई थी। वह वापस जाकर अपने बिस्तर पर बैठ गया।‌ अमृता कुर्सी खींचकर उसके पास बैठ गई।‌ उसने समीर की तरफ देखा।‌ वह अपनी नज़रें झुकाए बैठा था। अमृता ने कहा,
"नज़रें झुकाए क्यों बैठे हो ?"
समीर ने उसी तरह नज़रें झुकाए हुए जवाब दिया,
"तो और क्या करूँ ?"
"तुमको लगता है कि जो कुछ हुआ तुम्हारी गलती थी।‌ तुम खुद को गलत मानते हो।"
अमृता ने उसकी तरफ देखते हुए यह सवाल किया था। समीर को इस सवाल से पीड़ा हुई। उसने कहा,
"यह सब मैं नहीं जानता हूँ। बस इतना जानता हूँ कि मुझे और नहीं जीना है। मैंने कोशिश की थी मरने की। पर आपने बचा लिया।"
समीर ने अमृता की तरफ देखा। उसकी आँखों में पीड़ा थी। उसने सवाल किया,
"क्यों बचाया आपने मुझे ? मैं मर गया होता तो हर चीज़ से मुक्त हो जाता। आप भी चैन से रहतीं।"
समीर का बार बार मरने की बात करना अमृता के दिल को चोट पहुँचाता था। अभी भी उसके दिल में दर्द सा उठा। पर प्रतिक्रिया स्वरूप उसे गुस्सा आ गया। उसने कहा,
"मर गए होते तो तुम इस सबसे मुक्त हो जाते। बाकी किसी को तो फर्क ही ना पड़ता। एक मैं बचती। कुछ महीनों या साल तक तुम्हारी याद में रोती तड़पती। फिर मैं भी शांत हो जाती। तुम्हारी कहानी खत्म हो जाती।"
कहते हुए अमृता भावुक हो गईं। समीर को अपनी मम्मी से इस जवाब की उम्मीद नहीं थी। वह आश्चर्य से अमृता की तरफ देख रहा था। अमृता ने आगे कहा,
"लेकिन मैंने तुमको बचा लिया क्योंकी मैं नहीं चाहती थी कि कहानी शुरू होने से पहले खत्म हो जाए।"
समीर उसकी बात का मतलब नहीं समझ पा रहा था। अमृता ने कहा,
"मरना आसान है। पर जीकर अपनी कहानी को सही दिशा देना मुश्किल है। मर जाते तो इस दुनिया में किसी को कोई मतलब ना होता। लेकिन अभी तुम्हारे पास मौका है कि अपनी ज़िंदगी की कहानी को ऐसी बनाओ कि सबको उसमें दिलचस्पी हो। लोग तुमसे प्रेरणा लेकर अपनी ज़िंदगी संवारें। मैंने जो कहा है उस पर अच्छी तरह सोचना। मैं तुम पर गर्व करना चाहती हूँ। तुम मुझे यह मौका दे सकते हो।"
यह कहकर अमृता कमरे से बाहर निकल गई। समीर अचरज में था। अपनी मम्मी का एक नया रूप देखा था उसने। वह अपनी मम्मी की बात पर विचार करने लगा।
दो दिनों से उसके मन में अपनी मम्मी की कही बात चल रही थी। उसकी मम्मी ने जो कहा था वह जीने के लिए प्रेरित करने वाला था। उसके दिमाग में भी वह तमाम कहानियां घूम रही थीं जो उसने पढ़ी थीं। सब कहानियां आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने वाली थीं। पहले भी उन्हें पढ़कर उसने कुछ कर दिखाने का मन बनाया था। लेकिन उसके साथ जो कुछ भी हुआ था उसने उसके आत्मविश्वास को तोड़कर रख दिया था। वह अपनी मम्मी की बात से प्रेरित होता था लेकिन अपने साथ हुए अपमान जनक व्यवहार को याद करके हतोत्साहित हो जाता था। यह डर उसके मन में बैठ गया था कि आगे भी उसके साथ वैसा ही होगा।
अमृता ने जो कुछ कहा था बहुत सोच समझकर कहा था। वह जानती थी कि उसकी कही बात समीर पर असर करेगी। समीर हताश हो गया था। उसमें जीने की इच्छा नहीं बची थी। अमृता के लिए उसे इस हालत में देखना कठिन हो रहा था। वह चाहती थी कि उसको इस स्थिति से बाहर निकाले। इसलिए उसने वह सब कहा था। पिछले दो दिनों में उसकी समीर से बात तो नहीं हुई थी लेकिन उसने महसूस किया था कि उसकी बात का कुछ असर तो हुआ है। वह चाहती थी कि समीर की सोच सही दिशा में जाए। इसलिए उसने एकबार फिर उससे बात करने का मन बनाया।
समीर ने अपने सोशल अकाउंट पर आखिरी बार तब लॉग इन किया था जब उसकी अजित से बात हुई थी। उसके बाद बहुत कुछ घट गया था। अपनी मम्मी के समझाने के बाद उसका मन कुछ हल्का हुआ था। उसने अपना लैपटॉप उठाया और अपने सोशल अकाउंट पर लॉग इन किया। अजित के तीन मैसेज थे। पहले मैसेज में तो उसने पूछा था कि समीर ने अपनी मम्मी से बात की या नहीं। दूसरे में अपना सवाल दोहराते हुए उसने ऑनलाइन ना आने का कारण पूछा था। तीसरा मैसेज कुछ घंटों पहले का था जिसमें उसने उसकी चुप्पी पर चिंता जताई थी। इस समय वह अजित के साथ मैसेंजर वीडियो कॉल पर बात कर रहा था। उसने अपने साथ जो कुछ घटा था सबकुछ अजित को बता दिया था। साथ ही अपनी मम्मी की कही बात भी बताई थी।
अजित और वह पहली बार एक दूसरे को देख पा रहे थे। बात करते हुए अजित बार बार अटक रहा था लेकिन अपनी बात पूरे मन से समीर को समझा रहा था। अजित ने उससे कहा कि उसके मन में भी एकबार वही खयाल आया था जो समीर ने करने की कोशिश की थी। लेकिन उसने ऐसी कोशिश नहीं की। वह हिम्मत नहीं कर पाया। अजित ने समझाया कि अपनी कमी के बावजूद भी उसे लगा कि वह अपनी ज़िंदगी के साथ कुछ अच्छा कर सकता है। इसलिए उसने मरने की जगह जीने की राह चुनी। अजित ने समझाया कि समीर को दूसरा मौका मिला है। इसलिए उसे अपनी मम्मी की बात पर‌ ध्यान देना चाहिए। समीर ना सिर्फ उसकी बात सुन रहा था बल्की समझ भी रहा था।
कॉल कटने के बाद जब समीर ने लॉग आउट किया तो उसे महसूस हुआ कि अमृता उसके पीछे खड़ी है। उसने दरवाज़ा बंद नहीं किया था।‌ अमृता ने पूछा,
"कौन था ?"
"सोशल मीडिया पर मेरा सबसे अच्छा दोस्त है। इसका नाम अजित परेरा है और श्रीलंका का रहने वाला है।"
"बहुत अच्छा दोस्त है तुम्हारा। वैसे मुझे इस तरह सुनना नहीं चाहिए था पर जब मैं आई तो वह बहुत अच्छी बात कर रहा था। इसलिए खड़े होकर सुनने लगी। बेटा मेरी और उसकी बात पर विचार करो। मैं यह नहीं कहती हूँ कि आगे मुश्किलें नहीं आएंगी। पर तुमने अपने टीचर्स के गंदे व्यवहार के लिए लॉज में जो हिम्मत दिखाई थी। उसी तरह हिम्मत से काम लेना। ज़िंदगी से हार मानकर कुछ नहीं मिलता है। पर हिम्मत से आगे बढ़ने पर बहुत कुछ मिल सकता है।"
समीर के मन में अब एक उम्मीद जगी थी। उसने उठकर अपनी मम्मी को गले लगा लिया।

समीर ने अपने आप को जीने के लिए प्रेरित करना शुरू कर दिया था। यह एक अच्छा संकेत था। अमृता निश्चिंत थी कि अब वह भी काम पर जा सकेगी। लेकिन समीर अभी घर से बाहर निकलने को तैयार नहीं था। उसके मन का डर कि बाहर जाने पर उसके साथ फिर गलत होगा बरकरार था। वह घर पर रहकर ऑनलाइन ट्यूशन के माध्यम से पढ़ाई कर रहा था। उसका कहना था कि आगे की पढ़ाई वह ओपन स्कूल से पूरी करेगा।
अमृता जानती थी कि इस तरह दुनिया के डर से घर में बंद रहने से वह सही तरह से तरक्की नहीं कर सकता है। उसका यह डर मिटाना ज़रूरी था। उसने डॉ. संतोष त्रिवेदी से बात की। उन्होंने सुझाव दिया कि वह समीर को काउंसिलिंग के लिए किसी अच्छे मनोचिकित्सक के पास ले जाए। उन्होंने एक मनोवैज्ञानिक का नाम भी सुझाया था। अमृता ने उनसे मिलकर अप्वाइंटमेंट फिक्स कर लिया था।

सुदर्शन खुद उर्मिला से मिलकर आया था। उसने योगेश को समझाया कि वह उनकी बिल्कुल भी फिक्र ना करें। उर्मिला की देखभाल सही तरह से हो रही है। लेकिन योगेश का मन उर्मिला से मिलने के लिए बेचैन हो रहा था। जीवन में पहली बार था जब वह इतने दिनों तक उर्मिला से दूर रहें थे। उर्मिला की बीमारी के बाद तो एक भी दिन ऐसा नहीं गया था जब वह उर्मिला से दूर रहे हों। उन्हें उर्मिला से अलग रहने की आदत ही नहीं थी। अब इतने दिन हो गए थे वह उर्मिला को देख भी नहीं पाए थे। उन्हें ऐसा लग रहा था कि जैसे उनके वजूद का अहम हिस्सा उनसे अलग हो।
उन्होंने डॉक्टर से इस विषय में बात की। डॉक्टर ने कहा कि अगली कीमियोथैरिपी से पहले वह कुछ देर के लिए उर्मिला से मिलकर आ सकते हैं। यह सुनकर योगेश के मन में एक स्फूर्ति सी छा गई।