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नंदिता कुछ समय पहले ही योगेश के शांति हवन से लौटकर आई थी। वह उदास थी। उसे योगेश और उर्मिला से एक लगाव था। पहले अक्सर शाम को जब योगेश उर्मिला के साथ नीचे पार्क में आते थे तो उसकी मुलाकात उनसे होती थी। तब उनके बीच बातचीत भी होती थी। इससे उनके बीच एक रिश्ता बन गया था। लेकिन कुछ ही समय के फासले में उर्मिला और योगेश दोनों दुनिया छोड़कर चले गए थे। इस बात से नंदिता दुखी थी। उसने मकरंद से कहा,
"योगेश अंकल बहुत अच्छे इंसान थे। जाते हुए अपना फ्लैट सुदर्शन को दे गए।"
मकरंद ने कहा,
"उनका उठाया गया कदम सचमुच तारीफ के लायक है। अक्सर लोग अपने पराए के चक्कर में पड़ जाते हैं। लेकिन उन्होंने अपना होने का सही मतलब समझा।"
नंदिता योगेश को याद करते हुए बोली,
"मुझे उन्होंने हमेशा अपनी बेटी की तरह ही समझा था। उनके जाने से बहुत बुरा लग रहा है।"
मकरंद उसकी हालत समझ रहा था। उसकी योगेश से बहुत अधिक बातचीत नहीं होती थी। पर उसे भी उनके जाने का दुख था। उसके मन में कुछ और भी चल रहा था। कल रात से नंदिता के पापा की तबीयत कुछ ठीक नहीं थी। वह उनके बारे में सोच रहा था। उसने नंदिता से कहा,
"नंदिता तुमने पता किया कि पापा की तबीयत कैसी है ?"
नंदिता हवन से लौटकर आई तो उसने सोचा था कि वह नीचे जाकर पापा का हालचाल पूछे। पर योगेश के घर से लौटने पर एक अजीब सी उदासी उसके मन में छा गई थी। वह अपने पापा का हालचाल नहीं ले पाई। उसको अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने कहा,
"सुबह पापा का हाल लिया था। तब बुखार था। योगेश अंकल के हवन से लौटने के बाद तो नहीं पूछा। मैं अभी मम्मी को फोन करती हूँ।"
मकरंद उठकर खड़ा हो गया। उसने कहा,
"फोन मत करो। चलो नीचे चलकर पापा के पास बैठते हैं। मम्मी अकेली हैं। उन्हें तसल्ली होगी।"
नंदिता को उसकी बात अच्छी लगी। वह फौरन उसके साथ नीचे चली गई। जब मकरंद और नंदिता नीचे पहुँचे तो नंदिता की मम्मी बहुत परेशान थीं। नंदिता के पापा का बुखार उतर ही नहीं रहा था। वह बार बार ठंडे पानी की पट्टी रख रही थीं। मकरंद ने खुद नंदिता के पापा के माथे को हाथ लगाया। तवे की तरह गर्म था। वह समझ गया कि मामला गंभीर है। उन्हें डॉक्टर के पास ले जाना होगा। उसने बिना देर किए डॉक्टर के पास जाने के लिए कैब बुक करा दी। नंदिता से कहा कि वह घर पर रुके। वह नंदिता की मम्मी के साथ उसके पापा को डॉक्टर के पास ले जाता है।
डॉक्टर ने चेक किया और उन्हें फौरन भर्ती कराने के लिए कहा। नंदिता के पापा को डॉक्टर के नर्सिंग होम में भर्ती करा दिया गया। डॉक्टर ने कुछ टेस्ट लिखे। वह टेस्ट किए जाने लगे। यह सब देखकर नंदिता की मम्मी घबरा कर रोने लगीं। मकरंद ने उन्हें दिलासा देते हुए कहा,
"मम्मी आप इस तरह रोइए मत। हम लोग हैं ना। सही समय पर पापा को यहाँ ले आए। इलाज शुरू हो गया है। सब ठीक हो जाएगा।"
नंदिता की मम्मी आज सुबह से बहुत परेशान थीं। उन्हें लग रहा था कि इस मुश्किल समय में वह अकेली हैं। लेकिन जिस तरह से मकरंद उनके पति को डॉक्टर के पास लेकर आया था और अब उन्हें तसल्ली दे रहा था उन्हें अच्छा लगा। उन्होंने कहा,
"मैं तो परेशान थी कि अकेले कैसे संभालूँगी। पिछली बार जब बीमार पड़े थे तो अकेले में बहुत मुश्किल हुई थी। इस बार कुछ तसल्ली है कि तुम और नंदिता साथ हो।"
"आप किसी भी बात की फिक्र मत कीजिए। मैं सब संभाल लूँगा। आप बस हिम्मत रखिए। सब ठीक हो जाएगा।"
नंदिता की मम्मी को उसका इस तरह दिलासा देना बहुत अच्छा लगा। मकरंद उन्हें तसल्ली दे रहा था तभी नंदिता का फोन आ गया। वह नंदिता को सारी बात बताने लगा।
एक दिन अस्पताल में रहने के बाद नंदिता के पापा की हालत में बहुत सुधार हुआ था। डॉक्टर ने जो टेस्ट करवाए थे उनमें परेशानी वाली कोई बात नहीं थी। डॉक्टर का कहना था कि उन्हें वाइरल फीवर हुआ था। शाम तक उन्हें ऑब्ज़र्व करेंगे। अगर स्तिथि ठीक रही तो अगले दिन डिस्चार्ज कर देंगे।
नंदिता के पापा का बुखार नियंत्रण में था। वह अब बहुत अच्छा महसूस कर रहे थे। इस समय अस्पताल में नंदिता और मकरंद उनके साथ थे। नंदिता की मम्मी को उन लोगों ने ज़िद करके घर भेज दिया था। नंदिता के पापा ने कहा,
"तुम लोगों ने अच्छा किया कि अपनी मम्मी को घर भेज दिया। कुछ देर आराम करना ज़रूरी था। नहीं तो उसकी भी तबीयत बिगड़ जाती।"
नंदिता ने कहा,
"पापा....मकरंद तो सुबह से पीछे पड़े थे। पर मान ही नहीं रही थीं। मैं आई तो मैंने जबरदस्ती की। तब जाकर मानीं। वैसे भी डॉक्टर ने कहा है कि कल सुबह आपको डिस्चार्ज कर देंगे।"
नंदिता के पापा ने मकरंद की तरफ देखा। उसे पास आने का इशारा किया। मकरंद उनके पास चला गया। नंदिता के पापा ने कहा,
"थैंक्यू बेटा....तुम ना होते तो तुम्हारी मम्मी परेशान हो जातीं। मैं बुखार में कुछ बोल नहीं पा रहा था। लेकिन उसकी परेशानी समझ आ रही थी। वह सोच रही थी कि अगर मेरी तबीयत ज्यादा खराब हो गई तो वह अकेले क्या करेगी। लेकिन तुमने बिना कहे सब संभाल लिया।"
मकरंद ने उनका हाथ पकड़ कर कहा,
"मैंने आप दोनों में अपने मम्मी पापा को देखा है। फिर बेटे के रहते माँ परेशान क्यों होती। बेटे को थैंक्यू नहीं कहते हैं।"
नंदिता के पापा की आँखें नम हो गई थीं। नंदिता ने उनका माथा चूमकर कहा,
"अब आप एकदम ठीक हैं। कल घर चलेंगे। उसके बाद पहले की तरह महफिल जमाएंगे।"
यह सुनकर नंदिता के पापा के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
डिनर के बाद देर तक नंदिता और मकरंद नीचे मम्मी पापा के पास बैठे रहे। आज मम्मी बहुत खुश थीं। पापा की तबीयत पूरी तरह से ठीक थी। उन्होंने पूरे मन से खाना खाया था। लेकिन सबसे अच्छा रहा था डिनर के बाद बातचीत का दौर। बीते दिनों में जो कुछ हुआ उसने दिलों के बीच आई दूरियों को मिटा दिया था।
मकरंद और नंदिता ऊपर चले गए थे। दोनों पति पत्नी अपने कमरे में लेटे थे। दोनों ही अपने विचारों में खोए हुए थे। दोनों ही मकरंद के प्रति किए गए बर्ताव के बारे में सोच रहे थे। पापा ने कहा,
"मकरंद को लेकर हम दोनों कितने गलत थे। हमने हमेशा यही सोचा कि उसे रिश्तों की कद्र नहीं है। अपने अलावा किसी के बारे में नहीं सोचता है। लेकिन उसने हमको गलत साबित कर दिया।"
मम्मी के मन में भी यही बातें चल रही थीं। उन्होंने कहा,
"हमने शुरू से ही मकरंद के बारे में गलत राय बना ली थी। यही कारण था कि कभी भी उसे मन से नहीं अपना पाए। हमने तो नंदिता को भी उसके खिलाफ करने की कोशिश की। लेकिन मकरंद ने साबित कर दिया कि हम गलत थे। हमारे रूखे व्यवहार को उसने बड़ी समझदारी के साथ सहा। मन में कोई मैल नहीं रखा। एक बेटे की तरह हमारी मदद की।"
"सही कह रही हो तुम। अपनी सोच के चलते हमने ना सिर्फ मकरंद को गलत समझा बल्कि अपनी बेटी को भी बहुत सी बातें कहीं। लेकिन बच्चों ने उसके बावजूद भी मन में कोई मैल नहीं रखा। यह सोचकर मुझे अफसोस हो रहा है कि हम बड़प्पन क्यों नहीं दिखा पाए।"
"अब तो ईश्वर से प्रार्थना है कि सब ऐसे ही ठीक बना रहे। बच्चे खुश रहें।"
दोनों पति पत्नी एकबार फिर अपने विचारों में खो गए।
मकरंद थका हुआ था इसलिए सो गया था। लेकिन नंदिता को नींद नहीं आ रही थी। वह अपने मम्मी पापा के बारे में सोच रही थी। उसने महसूस किया था कि इधर उन दोनों का व्यवहार मकरंद को लेकर बदल गया है। दोनों अब इस बात का खयाल रखते हैं कि मकरंद को पूरा प्यार और सम्मान दें। आज डिनर के समय पापा बार बार मम्मी को मकरंद का ध्यान रखने के लिए कह रहे थे। मकरंद कह रहा था कि आप परेशान ना हों। मुझे जो चाहिए होगा मैं मांग लूँगा। फिर भी पापा का ध्यान उसकी तरफ ही था।
बात खुश होने वाली थी। नंदिता इस बात से खुश भी थी। लेकिन मन में एक बात का डर भी था। मकरंद ने बताया था कि फ्लैट का काम ना सिर्फ शुरू हो गया है बल्कि तेज़ी से चल रहा है। जैसा सोचा था उससे भी पहले फ्लैट मिल जाने की संभावना थी। वह जानती थी कि मकरंद की दिली इच्छा है कि वह अपने फ्लैट में जाकर रहे। उसकी भी इच्छा यही थी कि नए फ्लैट में नए सिरे से गृहस्ती बसाए। पर साथ ही इस बात की भी फिक्र थी कि अपने मम्मी पापा को अकेला छोड़कर कैसे जाएगी। उसके मम्मी पापा को उन दोनों का जाना अच्छा नहीं लगेगा।
नंदिता अपनी उलझन में थी तभी उसे पेट के अंदर बच्चे की हरकत महसूस हुई। उसने अपने पेट पर हाथ फेरा। इस बात से एक नया खयाल उसके मन में आया। मम्मी पापा अक्सर उसके होने वाले बच्चे के बारे में बात करते थे। बच्चे को लेकर अलग अलग तरह के प्लान बनाते थे। जब बच्चा हो जाएगा तब तो उनका लगाव उससे बहुत अधिक बढ़ जाएगा। उस वक्त अगर वह और मकरंद बच्चे को लेकर नए फ्लैट में जाने की बात करेंगे तो उसके मम्मी पापा को बहुत बुरा लगेगा।
इस नए खयाल ने उसकी चिंता को बहुत बढ़ा दिया था।