एक रूह की आत्मकथा - 2 Ranjana Jaiswal द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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एक रूह की आत्मकथा - 2

भाग दो

मेरा मन अब घर -गृहस्थी के ग्लैमर में ही सुख पा रहा था।सच कहूँ तो मेरा आत्मविश्वास कम हो गया था।मुझे नहीं लगता था कि मैं ग्लैमर की दुनिया में सफल हो पाऊंगी,पर मेरे पति रौनक लगातार मुझे प्रोत्साहित कर रहे थे।वे मुझसे किया वादा हर हाल में पूरा करना चाहते थे।सबसे पहले तो उन्होंने मेरे वज़न को कम करने की दिशा में काम किया।शादी के बाद मेरा वज़न बढ़ गया था।वे मुझे अपने साथ जिम ले जाने लगे।खान -पान को कंट्रोल कर दिया।वे मुझे सुबह जॉगिंग पर भी ले जाते।उनके घर वालों को ये सब बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था पर बेटे के आगे सब मजबूर थे।कुछ ही महीनों में मैंने अपना पुराना छरहरा फ़िगर पा लिया।फिर उन्होंने मेरी पोशाक पर काम किया।एक से एक मॉर्डन और फैशनबल ड्रेसेज मुझे पहनाने शुरू कर दिए।साथ ही इंगलिश स्पीकिंग कोर्स भी कराया ताकि मैं ग्लैमर की दुनिया में अपनी मज़बूत पकड़ बना सकूँ।
जब उन्हें पूरी तरह विश्वास हो गया कि अब मैं पूरी तरह से तैयार हूं,तब उन्होंने मेरे जीवन का पहला फैशन विज्ञापन मुझे दिलवाया।उनका प्रिय मित्र समर विज्ञापन की दुनिया का स्थापित नाम था। वे जब मुझे समर से मिलाने उसके स्टूडियों पहुँचे तो वह मुझे देखता रह गया।उसकी आँखों में मेरे लिए प्रशंसा का भाव था।उसने साफ कहा-अरे यार,तुम्हारे पास ऐसा सुपर मॉडल मौजूद था ।ऐसा फोटोजनिक भावप्रवण चेहरा और आकर्षक फीगर कितनों का होता है।देखना एक दिन भाभी फैशन की दुनिया का बड़ा नाम होंगी।
मुझे जो पहला विज्ञापन मिला,वह एक साबुन का विज्ञापन था ,जिसमें मुझे झरने के नीचे नहाते हुए दिखाया जाना था।यह दृश्य मुझे बहुत अटपटा लगा।भीगे हुए कम कपड़ों में मेरा सुंदर सुडौल फीगर निखर आया था।मेरे पति के साथ ही समर मुग्ध भाव से मुझे निहारते रह गए थे।फिर तो जैसे मेरे सामने ऑफरों की ढेर लग गई।मैं व्यस्त होती चली गई।मुझे पैसा,नाम ,शोहरत सब मिल रहा था ,पर मेरे मन को चैन नहीं था।पति और परिवार से मैं दूर होती जा रही थी।शूटिंग के लिए मुझे शहर से बाहर दूसरे शहरों में भी जाना पड़ता था और मेरे पति हर जगह मेरे साथ नहीं जा सकते थे।हाँ,समर हर जगह मेरे साथ होता था और मेरे पति को इस पर कोई एतराज नहीं था।उन्हें मुझ पर तो विश्वास था ही,समर पर मुझसे भी ज्यादा विश्वास था।फिर भी कभी- कभार उन्हें अपने और मेरे दोनों के घर वालों के असंख्य प्रश्नों का उत्तर तो देना ही पड़ता था।साथ ही नात -रिश्तेदार,सभा-समाज से भी जूझना पड़ता था।सभी कहते थे कि इतनी छूट से पत्नी बिगड़ जाएगी।ग्लैमर की दुनिया में नशे को भी फैशन माना जाता है और एक बार यह लत लग गई तो फिर व्यक्ति चरित्र से भी गिर जाता है।मांस -मदिरा,चमक- दमक,और नग्नता की हद तक खुले वातावरण में कोई खुद पर संयम भी कब तक रख सकता है!
पर रौनक पर इन बातों का कोई असर नहीं होता था।उन्हें तो इस बात की भी परवाह नहीं होती थी,जब पीठ पीछे लोग उन्हें बीबी की कमाई पर ऐश करने वाला दल्ला तक कह जाते थे।जाने किस मिट्टी से बने थे वे।मैं उनके जितनी मजबूत नहीं थी।मैं तो इन बातों को सुनकर अपना आपा खो देती थी।कई बार मॉडलिंग छोड़ देने को भी तैयार हो गई,पर रौनक ने मुझे समझा लिया।उन्होंने मुझे अपने प्रेम का वास्ता दिया और मुझसे यह वादा लिया कि किसी भी परिस्थिति में मैं ग्लैमर की दुनिया से वापसी नहीं करूँगी।
वे मुझसे इतना प्रेम करते थे कि अपने पिता बनने की इच्छा को भी उन्होंने मार दिया था।जब कभी मैं माँ बनने की इच्छा जाहिर करती तो कहते--'अभी वह समय नहीं आया।अभी तुम्हें फिल्मों में काम करना है।अपना कैरियर बना लो फिर देखा जाएगा।'
पर फिल्मों में काम मिलना इतना आसान नहीं था।फिल्मी दुनिया में कई खानदान अपना बर्चस्व बनाए हुए थे।वे बाहरी कलाकारों को टिकने ही नहीं देते थे।लम्बा संघर्ष कर कोई पहुंचता भी था तो उसे फ्लॉप करवाने में कोई कोर- कसर नहीं छोड़ते थे।वहाँ बहुत ही गंदी राजनीति होती थी।वहां की गंदी राजनीति का अनुभव होते ही रौनक ने एक राजनीतिक पार्टी ज्वाइन कर ली और उसमें आगे बढ़ते गए।उनकी राजनीतिक पहुंच का मुझे बहुत लाभ मिला।मैं बिना किसी शोषण का शिकार हुए ग्लैमर की दुनिया में बनी रही।फिर भी फिल्मों में मुझे छोटे -मोटे रोल ही मिले ।मुझे लीड रोल कभी नहीं मिला।वहां एक से एक कमसीन,टैलेंटेड और ग्लैमरस हीरोइनें थीं ।स्टार चाइल्ड्स का भी बोलबाला था।
मुझे लगने लगा कि मॉडलिंग की दुनिया ही मेरे लिए सही है।
ज़िंदगी मज़े से गुज़र रही थी।दोनों के परिवार वाले अब खुश थे क्योंकि सबकी स्थिति में पहले से हज़ार गुना ज्यादा बदलाव आ चुका था।पैसे की कोई कमी नहीं थी।नाम,शोहरत,पैसा इंसान को ज़मीन से आसमान तक पहुंचा ही देता है।
पर कहते हैं न कि 'सब दिन होत न एक समान'।हमारे दिन भी बदलने शुरू हुए।ऐसा तब हुआ,जब अचानक रौनक की तबियत खराब हो गई।जाने उन्हें किस रोग ने अपना शिकार बना लिया था कि वे घुलते जा रहे थे। डॉक्टर उनकी बीमारी पकड़ ही नहीं पा रहे थे।बीमारी इतनी बढ़ी कि डॉक्टर ने उन्हें बेडरेस्ट करने की सलाह दी,पर वे मानते ही नहीं थे।जरा- सा तबियत ठीक लगती,वे पार्टी दफ्तर चले जाते और फिर वहां से उन्हें लादकर ही घर वापस लाना पड़ता।उनकी हालत देखकर मैंने सोच लिया कि अब मुझे खुद उनका ध्यान रखना है।मैंने अपना अधूरा काम जल्दी -जल्दी पूरा किया और अपने काम से ब्रेक लेकर तन -मन -धन से उनकी देखभाल करने लगी।अब मैं रात -दिन उनके पास बनी रहती थी ।
एक दिन वे बड़ी मायूसी से बोले--कम्मो,मुझे नहीं लगता कि मैं बचूँगा।क्या मेरे बाद मेरी कोई निशानी इस दुनिया में नहीं रहेगी? मेरा कोई अंश... मेरा कोई प्रतिरूप नहीं होगा?
उनकी आंखों में अपनी संतान देखने की चाह लपटें मार रही थी।मेरा मन जाने कैसा -कैसा होने लगा? एक तरफ मेरा कैरियर था ..सुनहरा भविष्य था दूसरी तरफ मेरा प्यार और उसकी इच्छा!
मैंने सोच लिया कि मैं उनकी इच्छा अवश्य पूरी करूंगी।उस रात मैं दुल्हन की तरह तैयार हुई।कमरे को सुहाग -कक्ष की तरह सजवाया और उनसे जी -भर प्यार किया।वे कमज़ोर थे इसलिए पति की ज्यादातर भूमिका मैंने ही निभाई।उन्हें पूरा सहयोग दिया।हम रात -भर पूरी तरह प्यार में डूबे रहे।सुबह को जाने किस वक्त मेरी आँख लग गई।वे भी बेसुध सो रहे थे।जब मैं जगी तो भी वे गहरी नींद में थे।उनके बाल बिखरे हुए थे।माथे पर पसीने की बूँदें चमक रही थीं और होंठों पर एक मोहक मुस्कान थी ।शायद वे अपने प्रतिरूप के सपने देख रहे थे।मैं मुस्कुराती हुई चुपके से बिस्तर से उतरी और बाथरूम चली गई।नहा- धोकर उनकी पसंद की साड़ी पहनी।पूरा मेकअप किया और सिंदूर लगाने के लिए सिंदूर की डिबिया उठाई।अचानक जाने कैसे मेरे हाथ से सिंदूर की डिबिया जमीन पर गिर पड़ी और सारा सिंदूर फर्श पर बिखर गया।मैं घबराकर जमीन पर बिखरे सिंदूर को उठाकर वापस सिंदूर की डिबिया में रखने लगी।मेरे हाथ लाल हो गए।किसी अनहोनी के होने की आशंका से मेरा दिल कांपने लगा था।