उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

मित्रो

स्नेहिल नमस्कार

हम सब जानते हैं परिस्थितियाँ कभी एक सी नहीं रहतीं। उनमें बदलाव आना स्वाभाविक है, न आए तब आश्चर्य की बात है। और कभी कभी तो दोस्तों ऐसा अचानक बदलाव आ जाता है कि हम हकबक रह जाते हैं।

यानि अलग-अलग समय पर अलग-अलग बदलाव आते हैं और मज़े की बात यह कि एक ही बात का प्रभाव सब पर अलग प्रकार से पड़ता है।

हम कभी एक तरीके से टूटते हैं तो कभी वैसी ही परिस्थिति से आराम से निकल जाते हैं। फिर कभी बिना किसी गलत प्रभाव के खड़े भी हो जाते हैं या नहीं यह सब कुछ हमारे मस्तिष्क के ऊपर उस समय की परिस्थिति कैसी है? उसकी समझने की स्थिति पर निर्भर करता है।

यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि हम कभी अनजाने में ऐसा व्यवहार कर जाते हैं कि मन का शीशा चटक जाता है। कभी जुड़ता भी है तो दरार तो पड़ ही जाती है। हमारे बहुत प्यारे दोस्त होते हैं लेकिन हमारे बीच में ऐसा कुछ हो जाता है कि किसी के दो शब्दों से दरार इतनी लंबी हो जाती है, इतनी गहरी हो जाती है कि उससे निकलना मुश्किल हो जाता है या नहीं ये आगे के संवादों पर निर्भर होता है। हमने अपने लंबे समय तक अपने जिन रिश्तों को संभाल कर रखा, उनमें पड़ी दरार से हम पीड़ित तो होते ही हैं। कल तक जिससे हमअपने मन की हर बात कर लेते थे उससे ही हम कन्नी काटने लगते हैं।

हम कितने भी करीबी मित्र क्यों न हों कुछ ऐसी अपने अंतर की बातें तो छिपा ही जाते हैं जो शायद हम ख़ुद से भी साझा नहीं करना चाहते।

उदाहरण के लिए - - - एक बहुत अच्छे दोस्त की आर्थिक स्थिति अचानक खराब हो गई दूसरे दोस्तों को मालूम था लेकिन इतनी अधिक खराब है इतना नहीं जानते थे। उस दोस्त ने जितना ठीक समझा साझा किया लेकिन सामने वाले मित्र जब बार-बार किसी चीज को पूछने लगे तब उसके अंदर एक हीन भावना आने लगी और वह सबसे दूर भागने लगा।

बात केवल इतनी सी थी पहले उस घर में कई काम करने वाले थे जब परिस्थितियों में बदलाव आया तब कुक व पूरे दिन घर पर रहने वाले को हटाना पड़ा। इसी बात पर कुछ मित्रों ने बार-बार कहना शुरू किया अब काम कैसे होगा?

उस परिवार में 3 स्त्रियों के होते खाना बनाना इतनी बड़ी समस्या नहीं होनी चाहिए थी किंतु एक मित्र ने इस छोटी सी बात का इतना बड़ा ईशु बना दिया कि परिवार की स्त्रियों में ही मन मुटाव हो गया। जिस परिवार के जुड़े होकर रहने के सब उदाहरण देते थे, उसमें फूट पड़ने लगी। जो मित्र परेशान थी कि अब कैसे होगा? कौन रसोई संभालेगा? उसने ज़रूर बिना सोचे समझे कहा होगा लेकिन उसकी अविवेकशीलता से पूरा वातावरण ख़राब हो गया।

इस बात का ध्यान रखना भी आवश्यक है कि किसी भी विकट परिस्थिति में हमें

बिखरना नहीं है, टूटना नहीं है, क्योंकि वृक्ष से टूटा पत्ता तक अपना महत्व खो देता है। अतः किसी भी परिस्थिति में अपना विवेक खोना नहीं है। विवेक मात्र अपने अनुभवों से ही नहीं अपितु दूसरों के अनुभव से भी विकसित होता है, सुदृढ़ होता है।

आइए, इन छोटे-छोटे कारणों पर दृष्टिपात करें कि हमारे बीच में कोई कड़वाहट न हो।

विवेकवान व्यक्ति अमूल्य होता है। जिस तरह किसी बंजर ज़मीन में मीठे पानी का एक कुआँ सारी जमीन को हरा-भरा कर देता है ठीक उसी तरह किसी में एक समझदार व्यक्ति, विवेकवान व्यक्ति पूरे वातावरण को ऊर्जा से भर देता है।

मित्रों! छोटी सी बात अनजाने में कहकर हम उन अधिकारों का अनुचित प्रयोग कर बैठते हैं जिनका प्रभाव ग़लत ही पड़ता है।

मित्र वही जो बिन शब्दों के सब समझे,

एक बात यदि बार बार समझानी हो, मित्रता नहीं।

सोचें, हम सब विवेकशील बने रहें।

 

आपकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती