मेरे घर आना ज़िंदगी - 34 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मेरे घर आना ज़िंदगी - 34



(34)

खाना बनाने के बाद नंदिता ने एक टिफिन में भरकर कोफ्ते कुक के हाथ नीचे भिजवा दिए थे। वह अब बेसब्री से मकरंद के आने की राह देख रही थी। आज मकरंद को लौटने में रोज़ से बहुत अधिक देर हो गई थी।‌‌ नंदिता ने उसे फोन किया था तो उसने मैसेज करके कह दिया था कि ज़रूरी काम है इसलिए आने में देर हो जाएगी।
नंदिता बालकनी में खड़ी थी। उसकी निगाहें गेट पर थीं। उसे मकरंद की बाइक की लाइट दिखाई पड़ी। मकरंद ने बाइक गेट पर रोकी। गेट खोलकर बाइक अंदर की। बाइक खड़ी करके गेट बंद किया और सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया। नंदिता भागकर दरवाज़े पर आई और दरवाज़ा खोलकर मकरंद के ऊपर आने की राह देखने लगी।
कुछ ही क्षणों में मकरंद सीढ़ियां चढ़कर ऊपर आया। दरवाज़े पर नंदिता को इंतज़ार करते हुए देखकर उसने कहा,
"कोई खास बात है क्या ? दरवाज़े पर खड़ी हो।"
नंदिता ने उसका बैग लेते हुए कहा,
"नहीं....बस तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी।"
मकरंद को आश्चर्य हुआ पर उसे अच्छा लगा कि नंदिता उसका इंतज़ार कर रही थी। इधर तो ऐसा होता था कि जब वह आता था तो नंदिता नीचे अपने मम्मी पापा के पास होती थी। उसके घर आने के कुछ देर बाद ही ऊपर आती थी। अंदर आकर मकरंद लॉबी में बैठते हुए बोला,
"दरअसल आज हम लोग बिल्डर के पास गए थे। एक अच्छी खबर सुनने को मिली।"
अच्छी खबर की बात सुनकर नंदिता खुश हो गई। उसके पास बैठते हुए बोली,
"अच्छी खबर.....क्या बिल्डर काम शुरू करने को तैयार हो गया।"
"हाँ....ज़मीन के मालिकों के साथ जो झगड़ा था वह सुलझ गया है। बिल्डर ने कहा है कि अगले हफ्ते से काम शुरू हो जाएगा। एक दो महीनों में फ्लैट्स पज़ेशन देने के लिए तैयार हो जाएंगे।"
नंदिता ने अपने पेट पर हाथ फेरते हुए कहा,
"इसके आने तक हमें हमारा फ्लैट मिल जाएगा। यह तो सचमुच बहुत खुशी की बात है।"
मकरंद ध्यान से नंदिता के चेहरे की तरफ देख रहा था। उसके चेहरे पर फ्लैट मिलने की खुशी साफ झलक रही थी। मकरंद यह देखकर बहुत खुश हुआ। उसने कहा,
"भगवान ने चाहा तो हम अपने बच्चे को अस्पताल से अपने घर लेकर चलेंगे।"
नंदिता उठी। लॉबी में बने मंदिर में दिया जलाकर भगवान को धन्यवाद दिया। मकरंद ने भी हाथ जोड़कर सबकुछ ठीक हो जाने की प्रार्थना की। मकरंद फ्रेश होने चला गया। कुछ देर में लौटकर आया तो उसने नंदिता से कहा,
"अब तो बहुत ज़ोर से भूख लग रही है। खाना खा लेते हैं।"
दोनों डाइनिंग टेबल पर बैठ गए। नंदिता ने अपने हाथ से प्लेट लगाकर मकरंद के सामने रखी। कोफ्ते देखकर मकरंद के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने पहला कौर खाया तो नंदिता की तरफ देखकर बोला,
"कोफ्ते कुक ने तो नहीं बनाए हैं।"
नंदिता ने कहा,
"अच्छे नहीं बने हैं क्या ?"
"बहुत अच्छे बने हैं। तुमने बनाए हैं।"
नंदिता के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने कहा,
"हाँ....आज लगा कि मैं कुछ बनाऊँ। तुम्हें कोफ्ते पसंद हैं तो यही बना लिए।"
"बहुत टेस्टी हैं। पर तुम्हें आराम करना चाहिए। यह सब क्यों करती हो ?"
"प्लीज़ मकरंद.....आजकल तो घर पर ही रहती हूँ। इधर तबीयत भी ठीक चल रही है। दिनभर खाली बैठकर क्या करूँ। वैसे भी कुक ने मेरी पूरी हेल्प की थी।"
आज बहुत समय के बाद मकरंद बहुत खुश था। फ्लैट को लेकर अच्छी खबर मिली थी। इधर नंदिता में बदलाव दिखाई पड़ रहे थे। लेकिन आज तो उसका व्यवहार एकदम ही अलग था। उसके मन में एक खयाल आया। उसने कहा,
"डिनर के बाद कहीं बाहर चलें।"
नंदिता ने उसकी तरफ देखा। मकरंद ने कहा,
"जैसे पहले चलते थे। थोड़ा बहुत घूम फिरकर लौट आते थे।"
"ठीक है। खाना खाने के बाद मैं चेंज कर लेती हूँ।"
नंदिता भी इस सुखद बदलाव से बहुत खुश थी। खाना खाकर वह तैयार होने चली गई।

मकरंद के ऑफिस जाने के बाद नंदिता नीचे अपने मम्मी पापा के पास आ गई थी। उसके पापा ने उसके बनाए कोफ्ते की तारीफ करते हुए कहा,
"कल तुमने बहुत अच्छे कोफ्ते बनाए थे। मज़ा आ गया।"
नंदिता ने खुश होकर कहा,
"थैंक्यू पापा....मैं सोच रही हूँ कि आज लंच में भरवां भिंडी बनाऊँ। सब्ज़ी वाला आएगा तो उससे भिंडी ले लूँगी।"
नंदिता ने अपनी मम्मी की तरफ देखकर कहा,
"सब्ज़ी वाला आए तो याद रखिएगा।"
उसकी मम्मी ने कहा,
"मैं भिंडी खरीद लूँगी और बना भी लूँगी। तुम इन सब चक्करों में मत पड़ो। बस आराम करो।"
"अब मम्मी कितना आराम करूँ। ऐसे भी कौन सा भारी काम करती हूँ। डॉ. नगमा सिद्दीकी ने भी कहा था कि एकदम से बैठ मत जाना। हाथ पैर चलाती रहना। नहीं तो दिक्कत हो जाएगी।"
नंदिता की बात उसकी मम्मी को बुरी लगी। उन्होंने नाराज़गी जताते हुए कहा,
"मुझे तो जो ठीक लगता है वही कहती हूँ। बाकी तुम समझो। लेकिन कल अगर कुछ गलत हो गया तो सब यही कहेंगे कि ससुराल में तो कोई था नहीं। माँ बाप ने भी ध्यान नहीं दिया।"
नंदिता की मम्मी अब बात बात पर उसे एहसास कराती थीं कि उसकी ससुराल में कोई उसकी देखभाल करने वाला नहीं है। केवल उन्हें और उसके पापा को उसकी चिंता है। बात सच भी थी‌। लेकिन उसकी मम्मी अब यह कहने लगी थीं कि नंदिता उनकी देखभाल की कोई कद्र नहीं करती है। नंदिता को यह बात ठीक नहीं लगती थी। उसने कहा,
"मम्मी आप ऐसा क्यों सोचती हैं ? किसे हक है आपसे ऐसी बात करने का। आप और पापा मेरा इतना खयाल रखते हैं। कुछ गलत क्यों होगा ?"
जवाब नंदिता के पापा ने दिया,
"बेटा हम तो अपना फर्ज़ निभा ही रहे हैं। लेकिन अगर तुम और मकरंद लापरवाही करोगे तो कुछ भी हो सकता है। तब सब लोग हम दोनों पर ही उंगली उठाएंगे।"
नंदिता के पापा ने उस पर और मकरंद पर लापरवाही बरतने का इल्ज़ाम लगाया था। नंदिता को अच्छा नहीं लगा। उसने कहा,
"पापा मैं और मकरंद तो बहुत सावधानी बरतते हैं। कोई लापरवाही नहीं करते हैं। मकरंद मेरा पूरा खयाल रखता है।"
उसकी मम्मी ने कहा,
"क्या खयाल रखता है ? कल रात तुम दोनों कितनी देर में घर लौटे। इस हालत में यह ठीक है क्या ? पर उसे केवल अपनी फिक्र रहती है। उसके दिमाग में यह बात आई ही कहाँ होगी।"
एकबार फिर उसकी मम्मी ने मकरंद को गैरज़िम्मेदार बताने की कोशिश की थी। नंदिता ने सफाई देते हुए कहा,
"मम्मी हम लोग बस पास के पार्क तक टहलते हुए गए थे। वहाँ बातें करते हुए कुछ देर ज़रूर हो गई थी। पर ग्यारह बजे तक तो हम लोग लौट आए थे। मकरंद को मेरी चिंता रहती है। तभी उसने मेरे ज़िद करने पर भी आइसक्रीम खिलाने से मना कर दिया था। डॉ. नगमा सिद्दीकी ने मुझे ठंडा खाने से मना किया है क्योंकी मुझे जल्दी सर्दी लग जाती है। मेरी वजह से उसने खुद भी आइसक्रीम नहीं खाई।"
नंदिता का मकरंद की तरफदारी करना उसके पापा को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने चिढ़कर कहा,
"मैं देख रहा हूँ कि इन दिनों तुम मकरंद का पक्ष कुछ ज्यादा ही लेने लगी हो। उसकी हर गलत बात पर पर्दा डालने की कोशिश करती हो। हम दोनों के किए को नकार देती हो। यह ठीक नहीं है।"
नंदिता ने कभी नहीं सोचा था कि उसके पापा इस तरह से बात करेंगे। उसने समझाने की कोशिश की। इससे उसके पापा और गुस्सा हो गए। उन्होंने कहा,
"नंदिता तुम्हारे मम्मी पापा होने के नाते हमने ज़रूरत से ज्यादा ही किया है। सोचा था कि इस हालत में उस छोटे से फ्लैट में अकेली कैसे रहोगी। इसलिए अपने पास बुला लिया। इतना बड़ा पोर्शन रहने को दिया। दिन रात तुम्हारी मम्मी तुम्हारी चिंता करती हैं। मुझे लगता है कि तुम्हें कोई तकलीफ ना हो। मकरंद ने आराम से हर ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है। बेवजह लड़ता झगड़ता है। पर तुम्हें यह सब दिखता ही नहीं है। तुम्हें तो इतने के बावजूद भी मकरंद की अच्छाइयां ही नज़र आती हैं।"
नंदिता के पापा चुप हो गए। उसकी मम्मी ने कहा,
"हम तो अपना फर्ज़ निभाएंगे। बाकी तुम जानो और मकरंद। पर तुम्हारे पापा ने एकदम सही कहा है। इतना सबकुछ मिलने पर मकरंद ने अपनी जिम्मेदारियों से मुक्ति पा ली और किसी चीज़ का एहसान भी नहीं मानता है।"
नंदिता की आँखों में आंसू आ गए थे। वह महसूस कर रही थी कि उसके मम्मी पापा चाहे कुछ भी कहें पर उन लोगों ने मकरंद को कभी भी दिल से नहीं अपनाया था। उससे अब वहाँ बैठा नहीं जा रहा था। वह उठी और ऊपर चली गई। ऊपर आकर बहुत देर तक वह बिस्तर पर लेटी रोती रही। उसे एहसास हो रहा था कि मकरंद किन बातों की तरफ इशारा करता था। उसे अफसोस था कि तब उसने मकरंद की हर बात का गलत मतलब निकाला। उसकी बेइज्जती की। उसने मकरंद का दिल दुखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
आज जो कुछ उसके मम्मी पापा ने कहा वह इशारा कर रहा था कि मकरंद एकदम सही था। वह अक्सर कहता था कि भले ही तुम्हारे मम्मी पापा हैं। पर ज़रुरत से ज्यादा उन पर आश्रित मत रहो। लेकिन उसे लगता था कि इसमें हर्ज़ ही क्या है। उसके पापा मम्मी अपनी इच्छा से सब कर रहे हैं। आज उसे समझ आया कि उनकी अपनी अपेक्षाएं थीं। दोनों चाहते थे कि वह उनके हिसाब से जिए। मकरंद से दूर हो जाए।
वह सोच रही थी कि जल्दी ही उन्हें उनका फ्लैट मिल जाए तो वह यहाँ से चली जाए।