मेरे घर आना ज़िंदगी - 35 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मेरे घर आना ज़िंदगी - 35



(35)

पढ़ते हुए समीर ने घड़ी देखी। अमृता के ऑफिस से आने का समय हो रहा था। उसने किताबें बंद कर दीं और किचन में जाकर अपनी मम्मी के लिए चाय बनाने लगा। उसने अपना चाय बनाने का नियम फिर से शुरू कर दिया था। अमृता के आने पर वह चाय के साथ तैयार रहता था। फ्रेश होने के बाद अमृता उसके साथ बैठकर चाय पीती थी और दिनभर की बातें करती थी।
शोभा मंडल से मुलाकात के बाद बहुत कुछ बदल गया था। समीर में एक आत्मविश्वास पैदा हुआ था। अमृता के मन में अब कोई दुविधा नहीं रह गई थी। वह अपने बेटे के संघर्ष में उसका साथ देने को तैयार थी। नए स्कूल का माहौल भी समीर को पसंद आया था। अभी तक उसके दोस्त तो नहीं बने थे लेकिन उसके साथ पढ़ने वाले उससे बातचीत कर लेते थे। समीर ने भी तय कर लिया था कि कुछ भी हो पर वह अब दूसरों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देगा।
चाय बनाकर समीर ने एकबार फिर समय देखा। रोज़ इतने वक्त तक तो अमृता घर में होती थी। समीर के मन में आया कि एकबार कॉल करके देखे। पर उसने सोचा कि कुछ देर और इंतज़ार कर लेता है। वह अपने कमरे में वापस आया। अपने सोशल अकाउंट पर जाकर मैसेज देखने लगा। उसके दोस्त अजित का मैसेज था। अजित ने लिखा था कि अपने बोलते हुए अटकने की आदत के बावजूद भी उसने अपने स्कूल में एक स्पीच दी। उसकी स्पीच को लोगों ने बहुत पसंद किया। इससे उसका आत्मविश्वास बहुत बढ़ गया है। अजित ने अपनी स्पीच का वीडियो भेजा था। समीर ने उस वीडियो को देखा। दस मिनट की स्पीच में अजित कई बार अटका था। पर इससे निराश होने की जगह वह पूरे आत्मविश्वास के साथ बोलता रहा। बोलते हुए उसके चेहरे पर एक चमक थी। समीर ने अपने दोस्त को एक मैसेज लिखकर उसका हौसला बढ़ाते हुए मुबारकबाद दी।
इस सबमें बीस मिनट और निकल गए थे। अमृता अभी तक नहीं आई थी। समीर ने अपना फोन उठाया और अमृता को फोन किया। अमृता ने बताया कि वह बिल्डिंग के गेट पर है। कुछ ही देर में आ रही है। समीर मेनडोर पर आया। उसने दरवाज़ा खोलकर बाहर झांका। जिस फ्लैट में नंदिता और मकरंद रहते थे वहाँ कोई रहने के लिए आया था। उनका सामान शिफ्ट हो रहा था। समीर ने दरवाज़ा बंद कर दिया।
कुछ देर बाद अमृता ने डोरबेल बजाई। समीर ने दरवाज़ा खोला। अमृता अंदर आई तो उसके हाथ में एक पैकेट और चेहरे पर मुस्कान थी। समीर ने पैकेट की तरफ इशारा करके कहा,
"यह क्या है मम्मी ?"
अमृता ने पैकेट डाइनिंग टेबल पर रखते हुए कहा,
"सेलीब्रेशन के लिए...."
समीर ने पैकेट में झांकते हुए कहा,
"वाओ समोसे......किस चीज़ के सेलीब्रेशन के लिए लाई हैं ?"
अमृता ने मुस्कुराते हुए कहा,
"इन्क्रीमेंट मिला है। बॉस ने तारीफ भी की है।"
समीर ने ताली बजाकर कहा,
"कॉन्ग्रेच्युलेशन मम्मी। इट इज़ रियली अ गुड न्यूज़।"
अमृता फ्रेश होने चली गई। समीर चाय पीने की तैयारी करने लगा।

चाय पीते हुए समीर ने कहा था कि इतनी अच्छी खबर के लिए सिर्फ इतना सा सेलीब्रेशन काफी नहीं है। इसलिए अमृता उसे डिनर के लिए चाइनीज़ रेस्टोरेंट में लेकर आई थी। समीर बहुत खुश था। लगभग एक साल बाद वह रेस्टोरेंट में खाना खाने आया था। अमृता ने उसे मेन्यू कार्ड थमाते हुए कहा,
"तुमको जो अच्छा लगे ऑर्डर कर दो।"
समीर मेन्यू कार्ड देख रहा था तभी उसके कानों में आवाज़ आई,
"हैलो समीर...."
समीर और अमृता दोनों ने नज़रें उठाकर देखा। सामने समीर का ममेरा भाई राहुल खड़ा था। राहुल ने अमृता को नमस्ते करते हुए कहा,
"आप दोनों रेस्टोरेंट में डिनर करने आए हैं। कोई खास बात है क्या ?"
अमृता ने कहा,
"मुझे इन्क्रीमेंट मिला था। इसलिए सोचा कि आज‌ बाहर खाना खाते हैं। तुम बताओ...अकेले आए हो। भैया भाभी नहीं आए।"
राहुल उनके पास बैठ गया। उसने कहा,
"बुआ अब मैं कोई छोटा बच्चा तो रह नहीं गया हूँ कि हर जगह मम्मी पापा की उंगली पकड़ कर जाऊँ।"
यह कहते हुए राहुल ने समीर की तरफ देखा। उसके बाद बोला,
"अपने दोस्तों के साथ आया हूँ। मेरे दोस्त का बर्थडे है। इसलिए ट्रीट देने के लिए लाया था।"
राहुल ने अपने दोस्तों की टेबल की तरफ इशारा करते हुए कहा। फिर समीर से बोला,
"अब क्या ओपन स्कूल से पढ़ाई करोगे। मैंने सुना था कि स्कूल वालों ने तुम्हें निकाल दिया है।"
राहुल ने यह कहकर अमृता की तरफ देखा। अमृता यह सोचकर परेशान थी कि समीर को उसकी बात से चोट पहुँचेगी। पर उसे आश्चर्य हुआ जब समीर ने पूरे विश्वास के साथ राहुल को जवाब दिया। समीर ने मुस्कुरा कर कहा,
"राहुल भाई आप बहुत पुरानी खबर रखते हैं। वह स्कूल तो मैं भी छोड़ना चाहता था। वैसे मुझे नए स्कूल में एडमीशन मिल गया है। बहुत अच्छा स्कूल है।"
राहुल को समीर से इस तरह के जवाब की उम्मीद नहीं थी। लेकिन वह हार मानने वाला नहीं था। उसने भी मुस्कुरा कर कहा,
"बहुत अच्छी बात है। अब बस किसी तरह स्कूलिंग निपट जाए। ऐसा ना हो कि तुम्हारी हरकतों से यहाँ भी समस्या पैदा हो जाए। तुम तो जानते हो कि तुम्हारे जैसे लोगों के साथ दुनिया कैसे पेश आती है।"
राहुल ने तंज़ करने के बाद विजयी मुस्कान के साथ समीर को देखा। समीर को उसका तंज़ चुभा था। पर अपने आप को संभाल कर वह बोला,
"आपको मेरी स्कूलिंग की बहुत फिक्र है। थैंक्यू.....पर आप परेशान मत होइए। मैंने लोगों का सामना करना सीख लिया है।"
अमृता बड़े ध्यान से समीर को देख रही थी। इस सबमें एकबार भी वह कमज़ोर नहीं पड़ा था। ना ही बचाव के लिए उसकी तरफ देखा था। वह अपने स्तर पर राहुल से निपट रहा था। राहुल भी आश्चर्य से उसकी तरफ देख रहा था। समीर ने कहा,
"वैसे तो मैं आपको ज्वाइन करने के लिए कहता। पर आप अपने दोस्तों के साथ आए हैं। सब आपका इंतज़ार कर रहे हैं।"
समीर ने उसके दोस्तों की टेबल की तरफ इशारा किया। राहुल उसका इशारा समझ गया। वह चुपचाप उठकर अपने दोस्तों के पास चला गया। उसने अमृता से नमस्ते भी नहीं किया। समीर ने वेटर को बुलाया और ऑर्डर दे दिया।

योगेश अस्पताल से छुट्टी लेकर घर आए थे।‌ इस बीच उनकी तबीयत में कुछ सुधार हुआ था। अस्पताल में रहते हुए उन्होंने कुछ निर्णय लिए थे। अब वह उन पर ही अमल करना चाहते थे। सुदर्शन अपने कॉलेज गया हुआ था। घर पर योगेश अकेले थे। उन्होंने अपने एक दोस्त माथुर साहब को घर बुलाया था। इस समय वह माथुर साहब के साथ बात कर रहे थे। माथुर साहब ने कुछ सोचकर गंभीर आवाज़ में कहा,
"योगेश तुमने अच्छी तरह सोच लिया है ना। अभी भी वक्त है। कल हो सकता है कि तुम पूरी तरह ठीक हो जाओ।"
योगेश ने कहा,
"अच्छी तरह सोचकर ही फैसला किया है माथुर। फिर मैंने भी तो अपने जाने के बाद सबकुछ देने का फैसला किया है। जीते जी तो सब मेरा ही रहेगा।"
"लेकिन अपने रिस्तेदारों को छोड़कर एक पराए लड़के को सब देकर जाना ठीक रहेगा क्या ?"
"माथुर तुम तो इतने सालों से मुझे जानते हो। तुमने मेरे किस रिस्तेदार को मेरी मदद करने के लिए आते हुए देखा। जिसे तुम पराया कह रहे हो वह सुदर्शन हर मुश्किल वक्त में बेटे की तरह मेरे काम आया है। मेरे मन में कोई दुविधा नहीं है। अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए बहुत सोचा है मैंने। जाना तो सब छोड़कर ही है। तो उसे क्यों ना दे जाऊँ जो अपनों की तरह काम आया है।"
योगेश अपनी बात कहकर चुप हो गए। माथुर साहब अभी भी कुछ सोच रहे थे। योगेश ने आगे कहा,
"माथुर भगवान की भी यही इच्छा है। तभी उसने तबीयत में कुछ सुधार किया है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि तबीयत बिगड़े उससे पहले यह काम निपटा दूँ। तुम मेरे कहे अनुसार वसीयत बनवा दो। जमा पूंजी का एक हिस्सा मेरे मरने के बाद उस संस्था को जाएगा जहाँ उर्मिला थी। बाकी यह फ्लैट और बचा हुआ पैसा मैं सुदर्शन को देकर जाना चाहता हूँ। मेरी बात मानो। जल्दी से यह काम करवा दो।"
माथुर साहब ने उठते हुए कहा,
"ठीक है योगेश। मैं तुम्हारी इच्छा अनुसार पेपर बनवाता हूँ। उसके बाद वकील के ज़रिए विल रजिस्टर करवा देंगे।"
माथुर साहब चले गए। योगेश दीवार पर लगी उर्मिला की तस्वीर के पास जाकर खड़े हो गए। उन्होंने कहा,
"उर्मिला.....सुदर्शन भले ही विशाल की जगह ना हो पर उसने उसकी जगह हमारी सेवा की है। सोचा तुम्हारे पास आने से पहले उसका कर्ज़ भी उतार दूँ। फिर निश्चिंत होकर तुम्हारे पास आता हूँ।"
योगेश उर्मिला की तस्वीर देख रहे थे। उनके दिल में बहुत सुकून था।
माथुर साहब ने योगेश की इच्छा के अनुसार उनकी वसीयत तैयार करवा दी थी। योगेश उनके साथ वकील के दफ्तर गए। आवश्यक स्थानों पर अपने हस्ताक्षर किए। माथुर साहब ने भी गवाह के तौर में पर दस्तखत किए। वसीयत तैयार होने के बाद उसे रजिस्टर कर दिया गया।
वसीयत तैयार होने के बाद अचानक फिर योगेश की तबीयत बिगड़ गई। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। दो दिनों के भीतर ही जैसा योगेश ने वादा किया था सबकुछ छोड़कर उर्मिला के पास चले गए।
सुदर्शन ने एक बेटे की तरह उनके सारे अंतिम संस्कार निभाए।