मेरे घर आना ज़िंदगी - 33 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मेरे घर आना ज़िंदगी - 33



(33)

सुदर्शन को संस्था से फोन मिला कि उर्मिला फिसल कर गिर गई हैं। उनके सर पर चोट लगी है। उन्हें संस्था के ही अस्पताल में भर्ती कराया गया है। वह फौरन उर्मिला को देखने अस्पताल पहुँचा। वहाँ जाकर पता चला कि उर्मिला गंभीर रूप से घायल हैं। उनका पैर फिसल गया था। गिरते हुए उनका सर बिस्तर के कोने से टकरा गया था। डॉक्टरों का कहना था कि उनकी चोट बहुत गहरी है और बचने की उम्मीद बहुत कम है। ऐसे में उनके पति योगेश को सूचित किया जाना बहुत ज़रूरी है।
योगेश ने कल ही सुदर्शन से उर्मिला के साथ मुलाकात करने की अपनी इच्छा जताई थी। अब उस पर उर्मिला के गंभीर रूप से घायल हो जाने की सूचना देने की ज़िम्मेदारी थी। वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे ? बहुत सोचने पर उसे नंदिता का खयाल आया। उसने नंदिता को फोन करके पूरी बात बताई।
नंदिता मकरंद के साथ फौरन अस्पताल पहुँची। उर्मिला की हालत बहुत नाज़ुक थी। डॉक्टर ने कहा कि कोशिश कर रहे हैं। लेकिन बचने की उम्मीद बहुत कम लगती है। उर्मिला के पति योगेश को इस बात की सूचना दिया जाना बहुत ज़रूरी है। नंदिता ने सुदर्शन से बात की तो उसने कहा,
"मेरी तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा है कि क्या करूँ ? अंकल की तबीयत बिल्कुल भी ठीक नहीं है। अक्सर कहते रहते हैं कि मैं बचूँगा नहीं। उन्होंने मुझसे इच्छा जताई थी कि एकबार आंटी से मिलना चाहते हैं। मैं कुछ करता उससे पहले ही यह खबर मिल गई। अब अंकल को कैसे बताऊँ कि आंटी ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रही हैं।"
सुदर्शन की बात सुनकर नंदिता और मकरंद गंभीर हो गए। मकरंद ने कहा,
"लेकिन अंकल को बताना तो होगा ही। अगर आंटी को कुछ हो गया तो ठीक नहीं होगा। इसलिए तुम उनके पास जाकर सारी बात बताओ।"
नंदिता ने भी मकरंद की बात का समर्थन किया। उन लोगों को वहाँ छोड़कर सुदर्शन फौरन योगेश के पास चला गया।

सुदर्शन योगेश को लेकर अस्पताल आया था। उर्मिला के बारे में जानकर योगेश परेशान हो गए थे। उनका अपना स्वास्थ ठीक नहीं था पर वह उर्मिला के बारे में सुनते ही खुद को रोक नहीं पाए। इस समय वह आईसीयू में उर्मिला के पास बैठे थे। उनके सामने उर्मिला अचेत पड़ी थीं। योगेश टकटकी लगाए उन्हें देख रहे थे। उनकी आँखों में लाचारी थी। वह बेबसी से उन्हें देख रहे थे। उन्होंने कहा,
"यह हमारी किस्मत में क्या लिखा है उर्मिला। अंत समय में एक दूसरे का साथ भी नहीं दे सकते हैं। अभी तक तुम खोई खोई रहती थीं। पर कभी कभी मेरी तरफ देख लेती थीं। अतीत की गलियों में ही सही पर मैं तुम्हारा हम सफर तो था। आज तो तुमने एकदम ही मुंह मोड़ लिया। खोई खोई नज़रों से भी मेरी तरफ नहीं देखा। मुझे छोड़कर जाने की तैयारी कर रही हो।"
योगेश भावुक हो गए‌। उनकी आँखों से आंसू बहने लगे। कुछ सोचकर वह बोले,
"मैं शायद गलत सोच रहा हूँ। तुम मेरे बारे में ही सोच रही हो। अपनी बेखयाली में भी तुम मेरी तकलीफ को समझ गई हो। जानती हो कि अब मेरा शरीर पूरी तरह टूट चुका है। ज़िंदगी के प्रति लगाव पूरी तरह से खत्म हो गया है। सिर्फ तुम्हारा खयाल आता है तो मरने की बात सोचकर तकलीफ होती है। इसलिए तुम खुद ही जाने की तैयारी में हो ताकी तुम्हारे जाने के बाद मैं आराम से यह शरीर छोड़ सकूँ।"
वह रुके। अपने आप को संभाल कर बोले,
"ठीक है। अब अगले जन्म में मिलते हैं। इस बार एक दूसरे का पूरा साथ निभाएंगे। तुम्हारे साथ के लिए बहुत तरसा हूँ उर्मिला। साथ रहकर भी तुम दूर रहती थी। तब दिल तड़प कर रह जाता था। कितनी बार ऐसा होता था कि किसी मुद्दे पर तुम्हारी राय लेने का बहुत मन करता था। पर तुम तो हर एक चीज़ से बेखबर अपने में खोई रहती थी। इस बार ऐसा कुछ नहीं चलेगा। अगले जन्म में सुख हो या दुख अंत तक दोनों मिलकर जिएंगे।"
उन्होंने अचेत पड़ी उर्मिला के हाथ पर हल्के से अपना हाथ रखा। कुछ देर उर्मिला को देखने के बाद बोले,
"अब मेरा मन भी इस सबसे ऊब गया है। यहाँ से विदा लेकर एक नई शुरुआत करते हैं। पहले तुम चलो फिर मैं आता हूँ।"
योगेश ज़ोर ज़ोर से रोने लगे। उर्मिला के लाइफ सपोर्ट सिस्टम में कुछ हरकत हुई। आईसीयू में मौजूद नर्स फौरन डॉक्टर को बुलाकर लाई। डॉक्टर ने जांच करके कहा कि उर्मिला इस दुनिया को छोड़कर जा चुकी हैं। कई सालों के बाद एकबार फिर उर्मिला ने योगेश की बात सुन ली थी।
योगेश फूट फूटकर रो रहे थे। नंदिता उन्हें तसल्ली देने की कोशिश कर रही थी। मकरंद और सुदर्शन उर्मिला के अंतिम संस्कार की तैयारी के लिए गए थे।

उर्मिला की तेरहवीं की पूजा और हवन अभी कुछ समय पहले ही खत्म हुई थी। लोग प्रसाद लेकर अपने अपने घर चले गए थे। नंदिता और मकरंद अभी वहीं थे। योगेश ने पास के अनाथालय में बच्चों के भोजन की व्यवस्था की थी। दोनों उस काम में मदद के लिए साथ जाने वाले थे। योगेश के चेहरे पर एक शांति थी। वह उर्मिला की फोटो को निहार रहे थे। नंदिता ने उनके कंधे पर हाथ रखकर कहा,
"आंटी की बहुत याद आ रही है।"
योगेश ने गंभीर आवाज़ में कहा,
"उसकी याद तो मेरे साथ ही जाएगी। लेकिन सच कहूँ तो मन बहुत हल्का है। उसे छोड़कर जाना मेरे बस का नहीं था। इसलिए खुद मुझे उस तकलीफ से मुक्त कर गई। अब अगले जन्म में फिर साथ होंगे। मैंने कह दिया है कि इस बार भरपूर साथ निभाना।"
मकरंद ने कहा,
"आप आंटी को बहुत चाहते थे।"
उर्मिला की फोटो देखते हुए योगेश हल्के से मुस्कुरा कर बोले,
"बहुत अधिक। पर मुझे लगता है कि जब तक वह बीमार नहीं पड़ी थी उसका प्यार मुझसे ज्यादा था।"
योगेश ने नंदिता और मकरंद की तरफ देखकर कहा,
"तुम दोनों भी पति पत्नी हो। एक बात याद रखना। जीवन में कैसा भी वक्त आए पर एक दूसरे पर प्यार और विश्वास कम मत करना। कोशिश करना कि हर हाल में एक दूसरे का साथ निभाओ।"
योगेश की बात सुनकर नंदिता और मकरंद ने एक दूसरे की तरफ देखा। उन्हें ऐसा लगा जैसे कि योगेश उनके रिश्ते के बीच आई दरार को समझ गए हों। उसी समय सुदर्शन कमरे में आया। उसने कहा,
"अंकल केटरर ने खाना पहुँचा दिया है। अब हम लोग चलकर बच्चों को खाना खिलाते हैं।"
योगेश सबके साथ अनाथालय के लिए चले गए।

नंदिता मकरंद के आने की राह देख रही थी। बार बार नीचे झांककर गेट की तरफ देखती थी। फिर वापस आकर बैठ जाती थी। उस दिन उर्मिला की तेरहवीं के दिन योगेश ने जो कुछ भी कहा था उसने उस पर असर किया था। वह अपने और मकरंद के रिश्ते के बारे में सोचने लगी थी। धीरे धीरे उसे उन गलतियों का एहसास भी होने लगा था जो उससे हुई थीं।
उसने उन सारी घटनाओं पर ध्यान दिया था जिनके कारण उसके और मकरंद के बीच दूरियां पैदा हुई थीं। उसकी समझ में आ गया था कि भले ही मकरंद पूरी तरह से निर्दोष ना रहा हो पर सारी गलती उसकी नहीं थी। उनके बीच तल्खी आने के लिए वह भी उतनी ही ज़िम्मेदार थी। दरअसल एक बात उसके मन में बैठ गई थी कि मकरंद का परिवार नहीं है इसलिए वह रिश्तों के महत्व को नहीं समझता है। जबकी अब उसे महसूस हो रहा था कि यह बात पूरी तरह से गलत थी। मकरंद ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी कि रिश्ते सही तरह से चलते रहें।
नंदिता यह सब सोच रही थी तभी दरवाज़े की घंटी बजी। उसे लगा कि शायद मकरंद आ गया। उसने दरवाज़ा खोला तो कुक आई थी। अंदर आकर कुक किचन की तरफ बढ़ने लगी। नंदिता के मन में एक खयाल आया। उसने तय किया कि आज वह मकरंद के पसंदीदा लौकी के कोफ्ते की सब्जी खुद बनाएगी। उसने कुक से कहा कि वह खाना खुद बनाएगी। वह बस उसकी मदद करे। कुक के साथ वह किचन में चली गई।
नंदिता कुक की मदद से कोफ्ते बना रही थी तभी उसकी मम्मी ऊपर आ गईं। उसे किचन में काम करते हुए देखकर वह बोलीं,
"जब कुक लगी है तो तुम क्यों काम कर रही हो ? तुम्हें आराम करना चाहिए।"
नंदिता ने समझाते हुए कहा,
"मम्मी ऑफिस तो जा नहीं रही हूँ। दिन भर आराम करने के अलावा करती क्या हूँ। आज सोचा कि मकरंद के मनपसंद कोफ्ते अपने हाथ से बनाकर खिलाऊँ।"
उसकी मम्मी ने कुछ नाराज़गी के साथ कहा,
"तो यह बात है। मकरंद ने शिकायत की होगी कि कुक के हाथ का पका अच्छा नहीं लगता है। इसलिए इस हालत में तुम किचन में खाना बना रही हो।"
अपनी मम्मी की बात नंदिता को अच्छी नहीं लगी। उसने कहा,
"ऐसा नहीं है मम्मी। मकरंद मुझसे किसी चीज़ की शिकायत नहीं करता है। वह तो मुझे छोटे छोटे काम भी नहीं करने देता। कुछ करने को था नहीं इसलिए मैंने अपनी मर्ज़ी से कोफ्ते बनाने का निर्णय लिया था।"
नंदिता की मम्मी को उसका मकरंद की तरफदारी करना पसंद नहीं आया। उन्होंने कहा,
"जो तुम्हारी मर्ज़ी हो करो। मैं तो तुम्हारे बारे में सोचती हूँ इसलिए टोंक देती हूँ। पर तुम्हें लगता है कि मैं बेवजह दखल दे रही हूँ।"
"मम्मी ऐसी बात नहीं है। मैं जानती हूँ कि आप मेरे बारे में सोचती हैं। वैसे कोफ्ते तो पापा को भी अच्छे लगते हैं। बन जाने पर मैं नीचे लेकर आऊँगी।"
नंदिता की मम्मी ने कुछ नहीं कहा। वह चुपचाप नीचे चली गईं। नंदिता सोच रही थी कि मम्मी पापा के मन में मकरंद के लिए बहुत गलतफहमी है। उसे कोशिश करनी पड़ेगी कि उस गलतफहमी को दूर कर सके।