तमाचा - 17 (आजादी) नन्दलाल सुथार राही द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तमाचा - 17 (आजादी)

"पापा , आज तो मजा आ गया। थैंक यू वेरी मच। आज आपने मुझे सबसे अच्छा गिफ्ट दिया है।" घर लौटने के पश्चात बिंदु अपना पूरा प्यार अपने पिता के प्रति उड़ेलते हुए कहती है और चाय बनाने के लिए रसोई की तरफ जाने लगती है। आज उसके अन्तस् की खुशी उसके मुख से साफ़ झलक रही थी । जिसे देखकर विक्रम का हृदय भी पुलकित हो उठा ।

विक्रम अपने मालिक का कॉल आने के बाद होटेल चला गया और बिंदु घर के कार्यो को निपटाकर पलंग पर जाकर लेट गयी। उसकी देह तो अभी घर आ गयी थी परंतु उसका मन अभी भी रेतीले धोरों और कुलधरा के खंडहरों में भटक रहा था। उसने केवल फिल्मों में ही किसी पति-पत्नी अथवा प्रेमी - प्रेमिका को हाथों में हाथ डालकर चलते हुए देखा था, पर आज जब उसने गणेश और आर्या को ऐसे प्रेम की बातें करते हुए देखा,सुना और साथ ही ऐसे अनेक जोड़ो को देखा तो उसके मन में कुछ अजीब सा रोमांच उत्पन्न हो गया। उसका अभी तक एक भी कोई लड़का मित्र नहीं बना था। और बने भी कैसे उसके पिता ने इतने प्रतिबंध जो लगाए हुए थे। साथ ही उसकी भी कभी ऐसी इच्छा नहीं हुई लेकिन आज दिल के किसी गहरे कोने में इस इच्छा ने अपना प्रवेश कर लिया था।
जब कोई व्यक्ति अत्यधिक खुश होता है अथवा अत्यधिक दुःख में तब उसका मन कहीं भी नहीं लगता है। उसका मन उस खुशी अथवा ग़म की याद में हिलोरे मारने लगता है। यही हाल बिंदु का भी था। उसको कभी अपनी खूबसूरती पर इतनी ख़ुशी कभी नहीं मिली थी ,जो आज तब मिली जब आस - पास वाले सारे लड़के उसको घूर रहे थे। उस समय तो उसको इतना अच्छा नहीं लगा ,पर अब अकेले में वही बात ,उसे मन ही मन प्रफुल्लित कर रही थी।


पहले जब विक्रम घर से बाहर होता तो बिंदु टीवी अथवा मोबाइल द्वारा जैसे - तैसे समय गुज़ार लेती थी पर अब उसका मन बाहर जाने के लिए छटपटाने लगता। घर उसको किसी कारागृह की तरह लगने लगता। जब वह अपने पापा को बाहर जाने का कहती तो विक्रम उसको मना कर देता और बोलता "हम एक दिन फिर घूमने जाएँगे अभी थोड़े दिन रुक। "

एक दिन रविवार की शाम को जब वह घर पर अकेली थी और विक्रम सैलानियों को लेकर कहीं बाहर गया हुआ था और उसने बिंदु को बोला कि तुम खाना खाकर सो जाना मैं देर से आऊँगा। तब बिंदु का मन बाज़ार जाने का हुआ उसने पहली बार पिता की इच्छा के विरुद्ध और उसको बिना बताए कुछ करने का सोच लिया।
बिंदु शीशे के सामने जाकर खड़ी हो गयी । उसके मन में अभी भी अंतर्द्वंद्व चल रहा था। उसने हल्का सा मेक अप करके अपना बैग साथ में ले लिया । घर पर लॉक लगाकर वह बाज़ार की तरफ़ चल दी । आज उसकी चाल में अजीब सी मादकता थी। जब वह किसी लड़के के पास से गुज़रती तो कोई भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। कुछ दुकानों का मुआवना करने के पश्चात वह एक पानी पुरी वाले के पास जा पहुँची। पानी पुरी वाला भी उसकी खूबसूरती से आकृष्ट होकर प्लेट देने के बहाने उसके हाथ का स्पर्श कर लेता है । बिंदु पहली बार खुद को आज़ाद महसूस कर रही थी और पानीपुरी का आनंद लेने लगी।
कभी - कभी ज़िंदगी में ऐसी घटनाएं होती है जो हमारी कल्पना से भी कोसों दूर होती है और वही आज हुई बिंदु के साथ । जब वह वहाँ खड़ी गोलगप्पे खा रही थी तभी उसने कुछ ऐसा देखा कि वह स्तब्ध हो गयी। उसको अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था कि उसके पिता सामने के रेस्टोरेंट में एक महिला के साथ बैठे थे और विक्रम अपने हाथों से उसे कुछ खिला रहे थे।

क्रमशः...