आख़िर वह कौन था - सीजन 2 - भाग 6 Ratna Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आख़िर वह कौन था - सीजन 2 - भाग 6

१०-१२ वर्ष पहले उसकी माँ भी मुझसे यही पूछने आई थीं, यह सुनते ही श्यामा चौंक गई। उसके मुँह से निकल ही गया, “यह तुम क्या कह रही हो?”

“जी हाँ मैडम, मैं बिल्कुल सच कह रही हूँ। मैंने जैसे आज आपको सब कुछ बताया है वैसे ही माँजी को भी सब बताया था।”

“फिर…?”

“फिर उन्होंने मेरे सर पर हाथ फिराया और कहा, बेटा तुम चाहो तो मैं तुम्हें पैसे देकर तुम्हारी मदद कर सकती हूँ। इसके अलावा मैं और कुछ नहीं कर पाऊंगी, मुझे माफ़ कर देना। मेरा बसा बसाया परिवार है, डर लगता है कहीं टूट ना जाए। बेटा यदि तुम अपना मुँह खोल दोगी तो मेरा परिवार टूट जाएगा। मैं तुमसे भीख माँगती हूँ, इस राज़ को राज़ ही रहने देना। तुम डरो नहीं तुम जितना कहोगी मैं उतना पैसा देने को तैयार हूँ।”

“मैडम जी मैंने अपने आप को बेचा थोड़ी ही था, जो उसकी क़ीमत लेती।”

पैसे के लिए मना करने के साथ ही मैंने उनसे कहा था, “माँ जी आप मुझे यहाँ से जाने के लिए मत कहना। मैं कभी भी अपना मुँह नहीं खोलूंगी, यह राज़, राज़ ही रहेगा। मैं ना कोर्ट जा सकती हूँ ना थाने पर यहाँ रहकर उसे उसकी नज़रों में गिरा सकती हूँ।”

श्यामा अपने आप को संभालने की कोशिश कर रही थी। आँखों को मना कर रही थी कि प्लीज़ आँसू मत टपकाना।

वह उठ कर खड़ी हो गई और कहा, “तुम्हें कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है। तुम यहीं रहोगी, तुम ने जो कुछ किया सही किया। यह सज़ा उसके लिए ज़रूरी थी अब उसे एक सज़ा और मिलेगी जो उसे मैं दूंगी। यह तो तुम्हारे बेटे की शक्ल हू बहू उससे मिलती है इसलिए यह राज़ मुझे पता चला वरना तो कभी मालूम ही नहीं पड़ता। मैं तो उसे एक अच्छा और सच्चा जीवन साथी ही मानती रहती  और जीवन भर इसी ग़लतफ़हमी में जीती कि मैं कितनी भाग्यशाली हूँ जो मुझे आदर्श जैसा आदर्श पति मिला है।”

कुछ देर चुप रहने के बाद श्यामा ने कहा, “सुशीला लेकिन माँ को इतने पहले कैसे मालूम…?”

“मैडम राजा का बचपन भी बिल्कुल अपने बाप की ही तरह होगा। वैसा ही दिखता होगा मेरा राज जैसा वह बचपन में दिखता होगा। इसीलिए माँजी समझ गई होंगी। लेकिन मैडम आप अब इतने वर्षों के बाद अपना परिवार क्यों तोड़ना चाहती हैं? आपका बसा बसाया घर है, बच्चे हैं। जाने दो मैडम जी।”

“तुम अपना ख़्याल रखना,” कह कर श्यामा वहाँ से चली गई।

कार में बैठकर श्यामा सोच रही थी माँ सुशीला से मिलकर आईं पर कभी भी बताया नहीं। फिर वह सोचती क्या बताती बेचारी। अपने ही बेटे के बारे में उनकी जीभ यह सब कुछ कैसे कह देती। मैं जिस पर सबसे ज़्यादा विश्वास करती थी, प्यार करती थी, उसने मुझे धोखा दिया। आख़िर क्या कमी थी मुझ में, जो उसे बाहर मुँह मारना पड़ा। मैंने तो उसे इतने प्यारे-प्यारे बच्चे दिए। हँसता खेलता सुखी परिवार दिया। कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। उसके हर दुख सुख में उसके साथ रही। उससे छिपकर कभी कुछ नहीं किया। मैंने मेरा सब कुछ पारदर्शी रखा और उसने हमारे बीच धोखे और विश्वासघात की एक बड़ी मोटी दीवार बना दी जिससे मैं दीवार के उस तरफ क्या चल रहा है कुछ भी ना देख पाऊँ।

सुशीला बेचारी का तो जीवन ही बर्बाद कर डाला आदर्श ने। यदि मैं सुशीला को उसका हक़ दिलवा दूं तो? यह सोचते ही श्यामा के पाँव ब्रेक पर जा टिके उसने कार को वापस यू टर्न देकर मोड़ दिया, उसी तरफ़ जहाँ से वापस आ रही थी।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात) 

स्वरचित और मौलिक  

क्रमशः