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जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 8

अपने बचपन और अपने मुल्क के ख्यालों में खिलखिलाती तबस्सुम खानसाहब की बात सुनकर जैसे सुन्न हो गई। खान साहब की उलझी उलझी बातों में वो ऐसे उलझ गई जैसे जैसे कोई उड़ता हुआ हुआ पंछी उलझ गया हो पतंग के धागों में। खान साहब की तीखी बातों से उसके घायल होने लगे थे उसके पंख पर तबस्सुम का ये हाल देखकर परिस्थिति को संभालते हुए खान साहब फिर बोले-
" बेगम सच कहूँ तो जब भी आपको अपने वतन की याद में सिसकते देखता हूँ तो बहुत कोसता हूँ अपने आप को....!क्योंकि मैं दुनिया का हर सुख आपकी झोली में डाल सकता हूँ पर.. नहीं लाकर दे सकता तो बस आपका मुल्क। मुझे हमेशा इस बात का मलाल रहा है कि आप मेरी वजह से अपने मुल्क से दूर हो गईं। खुद को आपका गुनहगार मानता हूँ। "
तबस्सुम को समझाते हुए खान साहब बोले -

" बेगम माना कि हर बेटी को अपने अब्बा का घर छोड़कर दूसरे घर जाना पड़ता है...और एक दिन मेरी शबनम भी चली जाएगी अपने ससुराल।
मैं पूछता हूँ हमारे देश में लड़कों की कमी है क्या जो मैं अपनी बेटी का निकाह दूसरे देश में करूं। आपको पता है ना आपके भाईजान को भारत पसंद नहीं..फिर भी आपके भाई -भतीजे और आपके मुल्क पाकिस्तान से मुझे कोई शिकायत नहीं। चलिए मैं हाँ कर भी देता हूँ तो क्या आप जानती हैं कि शबनम क्यों नहीं जाना चाहती दूसरे मुल्क….! "
इतना कहते-कहते अब्बू रुक गए तो शबनम अम्मी के सामने अपनी बात रखते हुए बोली -
‘‘अम्मी हमें बिलाल से निकाह करने में कोई दिक्कत नहीं.... पर क्या उससे निकाह करके हम इंडिया के न्यूज़ चैनल में एंकरिंग जारी रख सकेंगे। अपना कैरियर बर्बाद करके पाकिस्तान हम जाएंगे नहीं और क्या उसे मंजूर होगा उसे हमारे साथ इंडिया रहना ।’’
अम्मी आज भी आपका अपने मुल्क़ से जुड़ाव देखकर मुझे फक्र होता है। वतन परस्ती आप ही से तो सीखी है मैंने।
आप ही की तरह हम भी अपने वतन से बहुत प्यार करते है और बिलाल अपने वतन को। हमारे और उनके खयाल बिल्कुल अलग हैं अम्मी। हम उनकी हर शर्त और हर बात को नहीं मान पाएँगे। दो अलग ख़यालों के लोगों में टकराव होना लाजमी है । आपको याद है दस साल पहले नानू जान के साथ जब वो आया था तो भाईजान ने उनके देश की क्रिकेट टीम के बारे में कुछ कह दिया था तो कितने जोर से चांटा मारा था उसने भाई जान को….."
" हाँ अम्मी मैंने भी देखा है वो खुद चाहे हमारे देश के लोगों के बारे में कुछ भी कहे पर अपने देश के लोगों की गलती के बारे में सुनना बर्दाश्त नहीं कर सकता। "अमन ने कहा।
अब शबनम थोड़ी रुआँसी होकर बोली - " हर कोई अब्बू जैसा नहीं है और आपके बिलाल का स्वभाव तो हम जानते हैं उसके सामने हम कभी खुलकर देश भक्ति के तराने नहीं गा सकेंगे। अम्मी दोनों मुल्क़ों के बीच बनते-बिगड़ते रिश्तों और गर्माहट के बीच आपको छुप-छुप कर रोते और सबके सामने खुश मिजाजी से दोनों मुल्क़ों के लिए समान भाव देखा है आपके चेहरे पर। "
आज खान साहब और बच्चों की बातों का तबस्सुम के पास कोई जवाब नहीं था। आँखों में आँसू लिए वो चुपचाप उनकी बातें सुन रही थी.......
क्रमशः....
सुनीता बिश्नोलिया

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