जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 2 Sunita Bishnolia द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 2

भाग - 2
मालिकों के गाड़ी से उतरते ही ब्राउनी और टाइगर ने कूं-कूं करते हुए उन्हें घेर लिया और वो दोनों तब तक चुप नहीं हुए जब तक कि मालिकों ने उन्हें प्यार से सहलाया नहीं।
" बालू भाई रमन कहाँ है, भई उसका पर्चा कैसा हुआ ।" खान साहब ने माली काका से पूछा।
"आपका आशीर्वाद लेकर गया था पर्चा ठीक कैसे ना होता.. …" माली काका ने इतना कहा ही था तब तक रमन आ गया और बोला -"हाँ अंकल आपके आशीर्वाद से मेरे सारे पेपर अच्छे गए।"
इस पर अमन हँसते बोला - " तो अब्बा मान लीजिए घर में एक और सी. ए हो गया। बेटा अमन संभल जा अब कंपटीशन टफ हो गया एक तरफ अब्बा का शागिर्द है और दूसरी तरफ बेटा। "
अब तक लॉन में बैठी तबस्सुम भी वहाँ आ गई और रमन को बहुत आगे बढ़ने की दुआएँ दी।
चौकीदार भी गेट बंद कर मालिक के पास आ गया। इसपर खान साहब ने कहा -" और रईस मियां साजिदा बिटिया की पढ़ाई ठीक चल रही है ना।"
" जी मालिक कहती तो ठीक ही है, मुझे तो कुछ पता नहीं पर वो अभी-अभी शबनम बिटिया को बता रही थी।"
सबसे बात करने के बाद खान साहब , तबस्सुम और अमन कोठी की ओर बढ़ जाते हैं, माली काका आउट हाउस में और चौकीदार दरवाजे के पास कुर्सी पर जाकर बैठ गया।
लॉन में जाते समय तबस्सुम कोठी के दरवाज़े को बाहर से बंद करके गई थी इसलिए उसी ने आगे बढ़ते हुए कोठी का दरवाजा खोला। शबनम के होते हुए घर में इतनी शांति! न टी.वी. की आवाज़, न ताबड़तोड़ एंकरिंग की प्रेक्टिस, ना ही रसोई से बर्तन गिरने की कोई आवाज़। इतनी जल्दी सो सकती नहीं क्योंकि अभी तो सामने की दीवार पर लगी घड़ी सिर्फ आठ ही बजा रही थी ।
इसलिए अंदर आते ही अमन ने पूछा - ‘‘शब्बों कहाँ है अम्मी, उसकी गाड़ी तो खड़ी है।’’
‘‘अरे! हाँ भई हमारी जान कहाँ है ? ना आज टेलीविजन की आवाज़ ना किसी के गाने की, फोन ना पर बातें करने की आवाज।’’ खान साहब के पूछने पर तब्बस्सुम ने जबाव दिया -
‘‘ऊंह..... सोई है अपने कमरे में, ज्यादा ही छूट दे दी आपने उसे ।’’
‘‘ओहो क्या हुआ... आज फिर…...ब्राउनी, टाइगर जाओ शब्बों को बुलाकर लाओ।’’ -कहते हुए खान साहब सोफे पर बैठ गए। अमन ऊपर अपने कमरे में जा रहा था लेकिन अम्मी की बात सुनकर वो वापस मुड़ गया और अम्मी के पास आकर बोला-
‘‘अम्मी फिर.... ऐसे छोटी-छोटी बातों पर वो नाराज़ नहीं होती आपने फिर उसके निक़ाह की बात छेड़ दी होगी।’’
अमन की बात सुनकर तबस्सुम को गुस्सा आया पर खुद को बेचारा बनाते हुए बोली... ‘हाँ... मैं ही हूँ रोग की जड़, तुम और तुम्हारे अब्बू तो लगे रहो पैसा कमाने में।निकाह की उम्र हो गई है तुम दोनों की। अब तुम्हारे बारे में मैं ना सोचूं तो कौन सोचेगा।’’
खान साहब समझ गए आज शांति से खाना मिल जाए तो बहुत बड़ी बात होगी इसलिए उन्होंने अमन से कहा- ‘‘अमन आप जल्दी कपड़े बदलकर आइए। ठीक ही तो कह रहीं हैं आपकी आखिर अम्मी आप दोनों के बारे में ये नहीं सोचेंगी तो फिर कौन सोचेगा? ’’