जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 4 Sunita Bishnolia द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 4

माँ के गले से लगी शबनम को अब्बू अपने कमरे के बाहर खड़े देख रहे थे। लाडली बेटी इस तरह माँ से लिपटा देखकर उनकी आँखें छलछला आईं थी इसलिए वो फिर कमरे में जाकर आँसू पौंछ कर बाहर आए । उन्हें ऐसा करते सिर्फ अमन ने देखा। अब्बा की आँखों में आँसू देखकर अमन भी थोड़ा भावुक हो गया।
अब्बू का ध्यान शबनम की शादी की बात से हटाने की कोशिश करते हुए अमन बोला - " आइए अब्बू, बहुत अच्छी खुशबू आ रही है लगता है आज कुछ स्पेशल बना है।" कहते हुए डाइनिंग टेबल पर खाना लगाने में अमन भी शबनम और अम्मी उनकी मदद करने लगा।
देश-दुनिया के हालातों पर चर्चा करते, हँसते-मुस्कुराते उन लोगों ने खाना तो खा लिया।पर खाने के बाद अम्मी ने फिर बिलाल पुराण छेड़ दिया। शबनम कुछ बोले इससे पहले अमन ने वहीं पास में रखी दवाई अम्मी को दे दी।
अब अम्मी चुप नहीं रह सकती थी क्योंकि वो जो ठान लेती है वो करके रहती है और उन्होंने अब्बू से कहा- ‘‘देखिए अगले इतवार को आपा, भाभीजान, बिलाल और मेरी भांजी-भांजे आ रहे हैं ’’
‘‘अच्छा! भई कोई खास बात है क्या? ’’
जैसे खान साहब को कुछ पता ही ना हो, वो इस अंदाज में बोले तो तबस्सुम का पारा चढ़ गया और बोली- ‘‘जैसे आपको कुछ पता ही नहीं, फूफी के बेटे आरिफ की शादी है ना, जरीना आपा की बेटी जीनत से।’’
ओ... हो सॉरी मुझे याद था पर.. अचानक दिमाग से निकल गया।’’
‘‘हाँ हमारे भाई - बहनों की बात हमेशा ही आपके दिमाग से निकल जाती है।’’
‘‘ओहो! मम्मी सॉरी बोल रहे है ना अब्बा अब याद आ गया ना।’’ अम्मी का गुस्सा शांत करवाते हुए अमन ने कहा।’’
पर अब अम्मी चालू हो चुकी थी तो चुप नहीं रहने वाली थी क्योंकि दिन भर तो घर में उनकी सुनने वाला कोई होता नहीं था। घर में काम करने वालों के काम में दखलअंदाजी करने की उनकी आदत नहीं।
बिना कुछ कहे ही वो इतना कुछ करते थे उन्हें कुछ कहने की जरूरत ना होती। उनके बच्चे इतने प्यारे और सयाने हैं कि उन्हें अपने बच्चों से ज्यादा अच्छे से रखती थी।
बात यहीं की नहीं बल्कि उनके अच्छे स्वभाव के तो उनके ससुराल में भी उनके चर्चे थे।अपनी तहज़ीब और अच्छे व्यवहार से तबस्सुम ने ससुराल में सबका दिल जीत लिया था। इसीलिए सास की लाडली बहु होने का ख़िताब भी तो तबस्सुम को ही मिला। ससुराल में सब खुले विचारों के थे आस-पड़ोस में सब से मेल-जोल रखने वाले थे इसलिए उसकी भी कभी-कभार पड़ौसियों से बात हो जाया करती थी। वो लोग आज भी तबस्सुम की तारीफ करते नहीं थकते ।एक पाकिस्तानी लड़की होकर भी रच-बस बस गई वो भारत की माटी में सभी ने जिस खुले दिल से उसका भारत में स्वागत किया उसी तरह उसने भी अपना लिया इस देश और देश वासियों को। हाँ जब अपने देश की तरफ कोई अँगुली उठती देखती तो वो जिरह बाज़ी करने से भी नहीं चूकती।
शादी के बाद वो लगभग दस साल हँसी-खुशी ससुराल के छोटे से गांव 'बड़ागांव' में रही। खान साहब के दफ्तर के शहर में अच्छी तरह सैट हो जाने के बाद पिछले बीस-बाईस सालों से वो भी शहर में ही रहने लगी। तब से गाँव तो जैसे पीछे ही छूट गया और बहुत पीछे छूट गया उसका देश पाकिस्तान । तबस्सुम का देश छूटे तीस-बत्तीस बरस हुए पर देश की याद उन्हें आज भी सताती है।वो अपनी मिट्टी की खुशबू आज भी महसूस करती है अपनी माँ के दिए कपड़ों में।