सेहरा में मैं और तू - 7 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

सेहरा में मैं और तू - 7

आज आते - जाते हर एक की नज़र मेन गेट पर ही थी। कुछ मेहमान वहां आए थे जिन्हें गेट के चौकीदार ने बाहर ही रोक रखा था।

मैदान में दौड़ते हुए लड़के हर चक्कर में एक निगाह उधर ज़रूर डाल लेते थे मगर तभी प्रशिक्षक की एक ज़ोरदार झिड़की सुनाई पड़ती और सब उधर से ध्यान हटा कर दौड़ने लग जाते।

मेहमानों को गेट पर रोक रखने का मुख्य कारण यह था कि मेहमानों में दो महिलाएं भी थीं। बल्कि एक तो कम उम्र की लड़की ही थी पर उसने ग्रामीण ढंग की पोशाक इस तरह पहन रखी थी कि वो घूंघट में लिपटी खड़ी किसी नववधू सी दिखाई दे रही थी। दूसरी महिला शायद उसकी मां थीं। साथ वाले पुरुष के बारे में यह अनुमान ही लगाया जा सकता था कि वह शायद लड़की के पिता होंगे।

मेहमानों को अहाते के भीतर तो नहीं आने दिया गया था पर शिष्टाचार के नाते गेट के साथ बने छायादार पेड़ के तले उनके लिए कुर्सियां डाल दी गई थीं। पुरुष और महिला के बैठ जाने के बावजूद युवती खड़ी ही हुई थी पर उसका मुंह घूंघट के कारण किसी को दिखाई नहीं देता था।

चौकीदार की भागदौड़ के बावजूद इन मेहमानों को भीतर आने की अनुमति तो नहीं मिली थी मगर एक ट्रेनर साहब को उनसे बातचीत करने और उनके आने का कारण जानने के लिए गेट पर ही ज़रूर भेजा गया था।

कुछ देर बाद जब अनमने से होकर मेहमान वापस चले गए तब भीतर कुछ हलचल सी हुई और यहां के रहवासियों को ये पता चला कि वो कौन लोग थे और उनके आने का मकसद क्या था।

असल में ये लोग वहां काम कर रहे उन प्रशिक्षक महाशय के ससुराल से आए हुए उनके रिश्तेदार थे जिनका बाल विवाह कभी बरसों पहले हो चुका था। इस बारे में वहां रहने वाले सभी लोग जानते थे और ये भी जानते थे कि ट्रेनर प्रशिक्षक के रूप में वहां काम कर रहे साहब जिन्हें लड़के छोटे साहब कहते थे, अपनी इस विवाहिता पत्नी और उसके परिवार से कोई संबंध नहीं रखते थे। वे अपने आप को अविवाहित ही बताते थे।

यही कारण था कि इतने समय से गांव में अलग- अलग रह रहे उनके ससुराल वालों को कहीं से उड़ती हुई ये खबर मिली थी कि उनके दामाद को जल्दी ही विदेश भेजा जा रहा है।

ये सुनकर वो भोले ग्रामीण लोग अपनी लड़की को साथ लेकर दामाद को यही समझाने आए थे कि वो अब अपनी पत्नी को समझौता कर के अपने साथ ही रखे। उन लोगों को ये अंदेशा था कि उनका दामाद कहीं लड़की को हमेशा के लिए यहीं उनके पास छोड़ कर बाहर न चला जाए।

सारा मामला और भी हास्यास्पद हो गया था जब ट्रेनर साहब ने उन लोगों से मिलने तक से इंकार कर दिया था। उनका कहना था कि उनका विवाह बहुत छोटी उम्र में हुआ एक बाल विवाह था जिसे वो अब नहीं मानते हैं और उनका अपने इन तथाकथित रिश्तेदारों से कोई संबंध नहीं है।

लड़की के पिता ने पहले समझा बुझा कर फ़िर थोड़े तल्ख लहजे में धमकी सी देकर उन्हें समझाने की कोशिश की थी पर वो टस से मस नहीं हुए थे। उल्टे उन्होंने ही लड़की के पिता को ये कह कर धमका दिया कि वो गैर कानूनी बाल विवाह के लिए पुलिस और प्रशासन में शिकायत दर्ज़ करा कर उनके ऊपर केस करेंगे कि उन्होंने लड़की की आयु छिपा कर धोखे से उनसे ब्याह रचाया।

वहां कोई अप्रिय स्थिति न पैदा होने देने के ख्याल से वो लोग वापस लौट गए थे।

पूरे परिसर में छोटे साहब की ये कह कर खिल्ली उड़ाई जा रही थी कि अभी किसी का भी कहीं जाने के लिए चयन तक हुआ भी नहीं है पर उनका ये नया बना परिवार इस बहाने उन्हें घेरने के लिए अभी से यहां चक्कर लगाने लगा। सब लड़के उनकी पीठ पीछे ही हास- परिहास करते हुए बात कर रहे थे।