रॉबर्ट गिल की पारो - 18 Pramila Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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रॉबर्ट गिल की पारो - 18

भाग 18

निज़ाम हैदराबाद ने बहुत बड़ी-बड़ी तांबे की चमचमाती थालियां भेजी थीं। यह सूर्य की रोशनी से गुफा के अंदर उजाला फेंकने के लिए थीं। अब वह 17 नं. की केव की चित्रकारी ठीक से देख पाएगा। अंधेरे में भले ही दिन का तेज़ उजास हो गुफा के अंदर दिखता ही नहीं था।

निश्चय ही इसी प्रकार गुफाओं में प्रकाश फेंककर अंदर चित्रकारी की गई होगी और मूर्तियां तराशी गई होंगी।

आज सूरज का प्रकाश तांबे की चमचमाती थालियों से भीतर प्रवेश कर रहा था। उसने एक-दो केव्ज़ की और भी चित्रकारी की थी। जब यह रखी जाएंगी तो एक दूसरे से जोड़कर जो सम्पूर्णता का आभास देंगी। अभी तक सत्रह पेन्टिंग्ज़ बनकर तैयार थीं। मेहमूद औरंगाबाद से लौट आया था। कलर्स, आॅइल, कैनवस, ब्रश बॉम्बे से आ चुके थे। पत्र भी वह लाया था।

टैरेन्स का पत्र था। यह दो महीने पहले का था।

रॉबर्ट, हम लोग आ रहे हैं। तुम्हारा प्यानो पैक करवा लिया है। एक माउथ आॅर्गन भी खरीदा है। पुराना शायद तुम ले गए होंगे। और गुमा भी दिया होगा, मैं जानता हूँ। क्योंकि वह यहाँ नहीं मिला। इस माउथ आॅर्गन में स्वर लहरियां बदलती हैं। तुम्हें मजा आएगा। और हां, मैंने एक कैमरा लेटेस्ट मॉडेल का तुम्हारे लिए खरीदा है। यह अमेरिका से आया है। लेकिन पता चला कि फ्लावरड्यू ने भी तुम्हारे लिए कैमेरा लिया है। लेकिन वह अलग ढंग का है। वह दूरबीन और कैमेरा तुम्हारे लिए लाई है। एक संदूक भर उसके पैरेन्टस तुम्हारे लिए ट्राउजर्स, बो, कोट, शर्ट्स, घड़ी आदि भेज रहे हैं। एक संदूक और यहाँ की खाने की चीजों से भरा है, जो तुम्हें पसंद है। वह यह सब मेरे पास भिजवा चुकी है, ताकि मैं पैकिंग देख लूं।

तुम्हारा मनपसंद बेकन पिकल्स के कई डिब्बे हैं। अर्जेन्टिना से आया तंबाखू तुम्हारे लिए ला रहा हूँ। किम अंकल ने यह तंबाखू दिया है। रॉबर्ट तुम लकी हो। अपार सुखों में पली-बढ़ी लड़की तुमसे इतना प्यार करती है। बगैर किसी शिकायत के। क्या बॉम्बे लेने आओगे? तुमने लिखा था केव्ज़ देखने का काम पूरा हो चुका है। क्या पेन्टिंग शुरू कर दीं?

मिलते हैं रॉबर्ट। एल्फिन को खबर कर देना।

-टैरेन्स

’’’

केव्ज़ छह की पेन्टिंग दो पार्ट में पूरी हुई थी। यह एक विशाल पेन्टिंग थी, जिसमें दो बड़े कैनवस लगे थे।

इतनी सुंदर पेन्टिंग... कन्हैया ने चित्र को देखकर जयकिशन से कहा-‘‘ऐसा लगता है मानो पूरी लेणी कागज़ पर उतर आई है। अपने साहब बहुत बड़े कलाकार हैं।’’ वह गर्व से भर उठा।

’’’

रॉबर्ट हिसाब लगाने लगा। डेढ़-दो महीने में बच्चे, फ्लावर, टैरेन्स आ जाएंगे।

’’’

आज महादेव और आसपास के परिवार के सभी स्त्री-पुरुष, बच्चे दौलताबाद गए हैं। वहाँ मेला भरा है। कन्हैया भी गया है। जयकिशन ने बताया।

क्या पता पारो गई है अथवा नहीं। रॉबर्ट ने सोचा दुपहर को खाना खाकर रॉबर्ट पारो के गाँव की ओर चला गया। आज वह अलाउद्दीन घोड़े पर बैठकर गया था। अलाउद्दीन छोटा था, लेकिन दौड़ता बहुत तेज़ था। फैन्टम ने आज हरी दूब खाई थी। उसका पेट खराब था। वह पेड़ की छाया में बैठा था। जयकिशन जानवरों के बारे में सब जानता था। उनके सुख-दु:ख समझता था।

रॉबर्ट एकदम खुश हो उठा, जब उसने देखा कि पारो अपने घर के आँगन में चारपाई पर कुछ सुखा रही है।

उसने घर के सामने आकर घोड़ा रोका। वह घोड़े से कूद पड़ा। पारो मुस्कुराने लगी। रॉबर्ट ने आँगन में ही उसे लिपटा लिया। पारो ने चारोंओर नज़र दौड़ाई। कोई नहीं था।

‘‘यह क्या है?’’ रॉबर्ट ने एक बेर सूखा हुआ उठाकर मुँह में रखा।

‘‘सर, बेर।’’

‘‘बेर?’’ रॉबर्ट हंसने लगा।

‘‘हां! इस बार झाड़ियों में बहुत बेर आए. हमने झड़ा लिए और फिर सूखने डाल दिए। सर, इसको कूटकर हम रख लेंगे। यह करंजी में भरते हैं।’’

‘‘यह करंजी क्या है?’’ रॉबर्ट ने पूछा।

‘‘सर आपको खिलाऊंगी। तब आप देखना। अब आपकी भाषा का नाम नहीं मालूम मुझे।’’ पारो ने कहा।

(महाराष्ट्र में गुझिया को करंजी कहते हैं)

‘‘ओके।’’ रॉबर्ट ने पारो का हाथ पकड़ा और उसे घर के अंदर ले गया।

थोड़ी ही देर में पारो के कपड़े अस्त-व्यस्त थे। और रॉबर्ट गहरी सांसें ले रहा था।

‘‘पारो, आई लव यू।’’ रॉबर्ट ने कहा।

पारो ने आँखें बंद कर लीं।

बाहर लोगों की आवाज़ें आ रही थीं। अर्थात कुछ लोग वापिस आ चुके थे। घर के बाहर घोड़ा बंधा देखकर महादेव वहीं रुक गया। सभी समझ गए कि रॉबर्ट अंदर है। काफी देर बाद रॉबर्ट बाहर निकला।

सीधे घोड़े की ओर गया और बैठकर तेज़ी से घोड़ा दौड़ा दिया। महादेव सिर्फ इतना ही कह पाया-‘‘अरे, साहब आप?’’

रॉबर्ट ने कोई उत्तर नहीं दिया।

जेना बाई ने कहा-‘‘बेशरम कहीं का...।’’

अंदर पारो ने जल्दबाजी में कपड़े पहन लिए थे। और इधर-उधर सामान रखते हुए अपनी झेंप मिटा रही थी।

जेना बाई भीतर आई और पारो को देखकर कहा-‘‘कलमुँही।’’

’’’

आज होली की रात है। कल होली खेली जाएगी। रॉबर्ट होली को समझता है।

‘‘रात को गांव में उत्सव होगा।’’ जयकिशन ने बताया।

‘‘अच्छा मैं देखना चाहूँगा, गाँव का फेस्टिवल।’’ रॉबर्ट ने कहा।

‘‘हां सर, महादेव काका ने खबर भिजवाई है। आपको बुलाया है।’’ जयकिशन ने कहा।

वह खुश हो गया। उसने भारतीय लिबास पीला ढीलाढाला कुर्ता पहना। नीचे ट्राउजर पहना। गले में एक लाल रंग का लंबा कपड़ा, जिसे ये लोग ओढ़ना कहते हैं।

रास्ते भर अंधेरा था। रॉबर्ट पैदल ही अजंता ग्राम जा रहा था। पीछे-पीछे लालटेन लिए जयकिशन था उसके पीछे मेहमूद घोड़ा पकड़े चल रहा था।

जाने से पहले उसने अपनी ड्रेस जयकिशन को दिखाई।

‘‘ठीक है फेस्टिवल के हिसाब से?’’

जयकिशन मुस्कुराया। ‘‘सर बिल्कुल ठीक है। लेकिन कपड़ों पर रंग-गुलाल लग जाएगा।’’ रॉबर्ट मुस्कुरा दिया।

जयकिशन ने मेहमूद से कहा-‘‘देखो काली चप्पलों में सर के पांव चाँदी जैसे चमक रहे हैं। यह कुर्ता, यह ओढ़ना कितना जम रहा है उन पर।’’ मेहमूद ने गर्दन हिलाई।

गाँव में रोशनी थी। गाँव के रास्ते स्पष्ट दिखने लगे थे। ढोल की आवाज़ सुनाई दे रही थी। गाँववासी एक ही जगह इकट्ठा थे। बीच चौराहे पर खुली जगह में बहुत सारी लकड़ियां इकट्ठी करके उन पर गोबर के कंडे रखकर होली सजाई गई थी। हर कंडे में एक छेद था, जिसमें रस्सी से माला पिरोई गई थी। बहुत बड़ी रंगोली पर यह सब सजाया गया था। गोबर के ही चाँद-तारे-सूरज बनाए गए थे। गाँव की स्त्रियां सुंदर कपड़ों में नाक में बड़ी-बड़ी नथनी पहने पूजा की थाली हाथ में लिए खड़ी थीं। झंडू के फूलों की माला होली पर चढ़ाई गई थी। शायद रॉबर्ट का ही इंतज़ार था। दूर से रॉबर्ट को आता देखकर महादेव ने एक चारपाई आगे सरकाई और उस पर रंग-बिरंगी सतरंजी (दरी) बिछा दी। रॉबर्ट बैठ गया। उसकी आँखें पारो को ढूंढ़ने लगीं। अजब इत्तेफाक पारो पीली साड़ी में आती दिखी। महावीर और उसके साथियों ने देखा कि दोनों के कपड़े पीले रंग के हैं। वह गुस्से से भर उठा। पारो रॉबर्ट को देखकर ठिठक गई। उसने महावीर को अनदेखा किया। पारो का पूरा श्रृंगार पीले फूलों का था। सफेद और पीले शेवंती के फूलों से वह सजी थी। बाकी उसके साथ की लड़कियां भी हरे कपड़ों से सजी थीं।

ढोल बजने लगे। एक बड़ी पीतल की परात में खाने की सामग्री रखी थी। भजिया, पूरी, पूरन पोली, बेर की करंजी आदि विविध व्यंजन थे। पास ही दोने-पत्तल रखे थे। सभी साथ खाना खाएंगे।

वह पास आई और झुककर बोली-‘‘सर, मालूम था तुम आओगे। लेकिन बहुत सुंदर लग रहे हो इन कपड़ों में। जल्दी मत जाना, अभी होली जलेगी।’’ रॉबर्ट ने पारो के इतने प्यार से कहे शब्दों पर आँखें मूंद लीं।

स्त्रियां होली की पूजा कर रही थीं। चारों ओर घूम रही थीं। होली जल उठी थी। ढोल की थाप पर पारो और अन्य लड़कियां नृत्य करने लगीं। तेज़ आग की लपटों का सुनहरापन रॉबर्ट के चेहरे पर पड़ रहा था। उसने चारपाई को थोड़ा पीछे करने को कहा। बच्चे, युवा सभी चिल्ला रहे थे-‘‘होली है’’ ऐसी होली उसने दिल्ली में भी देखी थी। लड़कियां तेज़ी से नृत्य कर रही थीं। ढोल वाले उत्तेजित होकर ढोल बजाते लड़कियों के पास पहुँच गए थे।

रॉबर्ट मंत्रमुग्ध होकर पारो को देखता रहा। और पारो भी पैरों की हर थाप पर रॉबर्ट को देखती...

चबूतरे पर नृत्य करते हुए समूह में से निकलकर पारो रॉबर्ट के नज़दीक आई और हाथों में गुलाल भरकर ‘‘होली है’’ कहते हुए उसने रॉबर्ट पर गुलाल उड़ाया। रॉबर्ट उठ खड़ा हुआ। थोड़ी देर के लिए सभी डर गए और ढोल बजने बंद हो गए। खामोशी छा गई। रॉबर्ट ने तुरन्त ही माहौल को हल्का बना दिया।

‘‘होली है...’ कहते हुए वह भी नाच उठा। खुशी से सभी नाचने लगे। ढोल बजने लगे, पारो खुशी से गीत के बोल और ढोल की थाप से उछली। यह लावणी नृत्य की ही एक मुद्रा थी। रॉबर्ट पारो की नाक में पहनी बड़ी मोती की नथ को देखने लगा। ऐसी ही नथनी और बेंदा शिमला से लौटने पर फ्लावरड्यू पहने दिखाई दी थी। नाक में नथनी को दबाया गया था। क्योंकि फ्लावर की नाक में नथनी पहनाने का कोई छेद नहीं था। फ्लावर नथनी को बार-बार छू लेती थी और रॉबर्ट को देखकर शरमा-सी उठती थी। सब एक-दूसरे पर गुलाल उड़ा रहे थे। रॉबर्ट अब चारपाई पर बैठ गया था। महादेव ने उसके माथे पर गुलाल का तिलक लगाया और दोने में एक करंजी रखकर उसे दी।

महावीर ने पीछे मुड़कर थूका। फिर अपने दोस्तों से कहा-‘‘महादेव काका अपने फिरंगी बूढ़े दामाद का राजतिलक कर रहे हैं।’’ सभी हंसने लगे। महादेव ने यह वाक्य सुन लिए थे। वह सचमुच शर्मिंदा हो उठा।

रॉबर्ट गुझिया खाने लगा। पारो ने इशारा किया-‘‘मैंने बनाई है, उसी बेर को पीस-कूट कर।’’ यह सब उसने हाथ के इशारे से बताया।

रॉबर्ट खाने लगा। महादेव ने पत्तल में पूरनपोली, सब्जियां, भजे इत्यादि रखकर रॉबर्ट के सामने रख दिया। ‘‘खाएं साहब...’’ वह हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। महावीर ने फिर कहा-‘‘देखो काका कैसी चापलूसी कर रहा है फिरंगी से।’’

लेकिन रॉबर्ट को अपनी ओर देखते पाकर कोई हंसा नहीं।

रॉबर्ट ने कुछ थोड़ा-सा खाया। फिर खड़ा होकर कपड़ों से रंग-गुलाल झटकाए। और घोड़े पर बैठकर बारादरी की ओर घोड़ा दौड़ा दिया। जाने से पहले उसने जयकिशन को कहा-‘‘मैं चला जाऊँगा। तुम लोगों को जब आना हो, आ जाना।’’

‘‘लेकिन सर, रास्ते भर में अंधेरा...’’ वह वाक्य पूरा भी नहीं कर पाया था कि रॉबर्ट तेज़ी से निकल गया। पगडंडी पर कुछ दूर तक उसका पीला कुर्ता चमकता रहा। फिर पगडंडी अंधेरे में डूब गई।

’’’

बारादरी खाली पड़ी थी। अलाउद्दीन उसे देखकर आवाज़ देने लगा। उसने अलाउद्दीन की पीठ सहलाई और फैन्टम को बांधकर अपने कमरे में आ गया।

उतारे हुए कपड़े देखकर वह मुस्कुराने लगा। ‘‘होली है।’’ कपड़े बदलकर वह लेट गया। खिड़कियों से ठंडी हवा आ रही थी। वह सोचने लगा-जीवन के सारे अर्थों में तुम बस चुकी हो पारो...

तुम्हारे पास से लौटने के बाद यह अहसास दिमाग पर तारी है कि तुम मेरे साथ यहाँ क्यों नहीं आ सकतीं? अब जब सबको हमारे संबंधों के बारे में पता है... वे मान चुके हैं तब? उसे अफसोस हुआ। वह हाथ पकड़कर साथ भी तो ला सकता था। पारो मेरी है... पारो के गाँव में था तो खुश था। अब केवल सूनापन है यहाँ। वह अभिशप्त है ऐसे नितांत अकेले रहने को।

पता नहीं कब नींद आई होगी। सुबह उठा तो जयकिशन के चूल्हे से काले धुएं का अजगर लहराकर चौके से खपरेलों से बाहर निकल रहा था।

वह बाहर आया और टहलने लगा। आज उसे कहीं नहीं जाना है। आज रंग भरा त्यौहार है। उसका पाइप गिरकर टूट गया था। जयकिशन ने नए पाइप में तंबाखू भरी और चूल्हे की लकड़ी से उसे जलाकर रॉबर्ट को दे दी।

रॉबर्ट आरामकुर्सी पर बैठकर पाईप पीता रहा। चाय के साथ नाश्ता मेहमूद आकर रख गया। दोनों बड़ी पेन्टिंग उसे शीघ्र ही पूरी करनी है।

कम से कम 30 पेन्टिंग्ज़ तो उसे इसी वर्ष इंग्लैण्ड भेजनी होंगी।

’’’

कोई ऐसे साधन नहीं थे कि पता चल सके कि दो महीने भी बीत गए टैरेन्स, फ्लावर और बच्चे अभी तक नहीं पहुँचे हैं।

चिंतित तो वह है ही। रिवॉल्विंग रैक से उसने एक किताब निकाल ली। पिछले दिनों जो टैग लगाया था, वह नीचे गिर गया और फिर उसे याद नहीं कि किताब कहां तक पढ़ चुका था। पारो से प्रेम इस कदर बढ़ चुका था कि अब पारो उससे दूर रह नहीं पाती थी और वह यहाँ स्थाई रूप से उसे ला नहीं सकता था।

पिछले दिनों पारो उसे एक आश्चर्यजनक जगह ले गई थी-‘‘तुम चलो तो साब, इतने दिए टिमटिमाते हैं कि...’’ वह जबरदस्ती उसे ले गई। रास्ता पानी के गड्ढों से भरा था। वहाँ एक तालाब था और उस तालाब में जुगनू मानो तालाब सचमुच अनगिनत दियों की रोशनी से भर गया हो। ऐसे जुगनू उसने सचमुच कहीं नहीं देखे थे। वह सोच रहा था कि जब बच्चे आ जाएंगे तो वह इस तालाब में जुगनू दिखाने अवश्य लाएगा।

पूर्णिमा का पूरा चाँद उसके पलंग के पास की खिड़की से झाँक रहा था। चाँदनी बिस्तर पर फैली थी। वह सोच रहा था कि फ्लावर से पारो का परिचय कैसे कराएगा। पूरा वर्ष ही तो बीत गया था उसे बारादरी में अकेले रहते।

उसने और भी पेन्टिंग्ज़ पूरी करनी थीं। वैसे तो उसकी इच्छा थी कि वह 50-60 पेन्टिंग्ज़ शीघ्र ही पूरी कर ले। पत्र से पता चला था कि बेंगलोर से बॉम्बे होते हुए मि. सिम्पसन अजंता आ रहे हैं। वे रॉबर्ट से मिलेंगे।

रॉयल एशियाटिक सोसायटी ही उन्हें इस काम के लिए भेज रही है कि वह रिपोर्ट भेजें कि अजंता का कितना कार्य हुआ है। उसने शुरूआत में करीब 30 मुख्य फ्रेस्कोस तैलचित्र में अजंता गुफाओं की पेन्टिंग्ज़ बनाई थीं, ताकि टैरेन्स, फ्लावरड्यू के आने तक वह काफी पेन्टिंग्ज़ बनाकर लंदन भेजे। उसे बॉम्बे प्रशासन ने और अच्छे रिजल्ट हेतु 8710 इंच का कैमरा प्रदान किया था। वह इस कैमरे को देखकर खुशी से भर उठा था और जी-जान से अजंता केव्ज़ की तस्वीरें और आसपास की तस्वीरें लेने में जुट गया था। पेन्टिंग्ज़ के साथ वह केव्ज़ की तस्वीरें भी भेज देगा। उसने एनी को लिखा था कि प्रदर्शनी की जिम्मेदारी उसकी ही है। जब तक तुम्हें ये पेन्टिंग्ज़ और तस्वीरें मिलेंगी, तब तक मैं और भी भेज दूंगा। सभी पेन्टिंग्ज़, तस्वीरों के बाद तुम प्रदर्शनी लगवाना।

’’’

पिछले दिनों पारो से मिलकर उसने बताया था कि पत्नी, बच्चे और दो दोस्त आने वाले हैं। जयकिशन और मेहमूद ने सभी कमरे उन लोगों के लिए तैयार करवा दिए हैं। पारो भी सभी से मिलने को उत्सुक थी। वह बारबार बारादरी आती थी और सजावट के काम में हिस्सा लेती थी।

सूचना के अनुसार सभी थोड़े दिनों में बॉम्बे पोर्ट पहुँच जाएंगे। एल्फिन से टैरेन्स की बात हो चुकी है। वह उन्हें लेने चला जाएगा। घोड़ा गाड़ी भी तब तक पहुँच जाएगी।

’’’

निज़ाम के दिए कर्मचारियों के साथ वह अजंता केव्ज़ चला गया था। मि. सिम्पसन कभी भी आ सकते हैं। अत: उसने जयकिशन और मेहमूद को घर में ही छोड़ दिया था। कन्हैया साथ ही था।

जब वह शाम को बारादरी पहुँचा तो पता चला मि. सिम्पसन औरंगाबाद से आगे आ चुके हैं, कभी भी पहुँच सकते हैं। वह बाहर टहलने लगा। शाम के झुटपुटे में एक आलीशान गाड़ी उसकी बारादरी के सामने आकर रुकी। ड्राईवर (कोच) ने तुरन्त फिटन का दरवाज़ा खोला। एक लम्बे खूबसूरत अधेड़ वय के व्यक्ति ने तुरन्त बड़ी आत्मीयता से रॉबर्ट से हाथ मिलाया।

भव्य स्वागत के साथ मेहमूद ने तरह-तरह के व्यंजनों से उनका स्वागत किया।

दोनों देर रात तक पीते रहे और कई तरह के नॉनवेज सब्जियों के साथ भारतीय खाना खाया।

सुबह जल्दी ही दोनों घोड़े पर सवार होकर जंगल की ओर निकल गए। मि. सिम्पसन ने बताया उन्हें शिकार का बहुत शौक है और वे रॉबर्ट के इस शौक से भली भांति परिचित हैं।

रॉबर्ट ने निज़ाम के कर्मचारी और अपने कर्मचारियों के साथ कन्हैया को अजंता केव्ज़ की ओर भेज दिया ताकि जब तक वे दोनों वहाँ पहुँचे तब तक केव्ज़ की सफाई आदि हो सकें। जब वे दोनों अजंता पहुँचे तब तक बहुत सारी केव्ज़ की धूल झटकारी जा चुकी थी और कैनवस लगा दिए गए थे।

मि. सिम्पसन ने दूसरे ही दिन 29 नं. की अजंता केव्ज़ की पेन्टिंग करते हुए रॉबर्ट की पेन्टिंग बनाई। वहाँ पास में ही एक ग्रामीण खड़ा था, जो रॉबर्ट को ब्रश आदि दे रहा था। रॉबर्ट एक लकड़ी के स्टूल (टेबिल) पर बैठा था और सामने कैनवस लगा था।

बारादरी लौटकर मि. सिम्पसन ने जो कलर्स आदि भरे उसमें रॉबर्ट मूर्त रूप हो उठा था। रॉबर्ट यह पेन्टिंग देखकर बहुत खुश हुआ। उसने विभिन्न कोणों से इस पेन्टिंग की तस्वीर ली।

सारी रात जागकर रॉबर्ट ने कैमरे की रील की फोटो धोईं और उन्हें रस्सी पर पिन के सहारे लटका दीं। अब इनका पॉजिटिव निकलेगा और तब यह देखने लायक बनेंगी। फोटो लेने के दौरान तांबे की बड़ी-बड़ी थालियों से सूर्य का प्रकाश गुफा में डाला गया था। रॉबर्ट को उम्मीद थी कि फोटो अच्छी आएंगी और उजली आएंगी।

रॉबर्ट ने मि. सिम्पसन को सभी पेन्टिंग्ज़ दिखाईं। यह भी तय हुआ था कि ये पेन्टिंग्ज़ और फोटोग्राफ मि. सिम्पसन अपने साथ इंग्लैण्ड ले जाएंगे।

उन्हीं के मार्गदर्शन में पेन्टिंग्ज़ की और भी अच्छी पैकिंग शुरू हो गई। ऊपर जूट का कपड़ा भी लगाया गया ताकि आर्द्रता से उनके रंग में कोई प्रभाव न पड़े।

फोटो के रिजल्ट देखकर रॉबर्ट बहुत खुश हुआ। और उससे ज्यादा खुशी मि. सिम्पसन को हुई। पेन्टिंग तो ऐसी थीं मानो गुफाएं कैनवस पर आकर बैठ गई हों। उन्हें इस बात की भी खुशी थी कि उन्होंने जिस नाम की रॉयल एशियाटिक सोसायटी को संस्तुति दी थी, वह उनकी अपेक्षा पर खरा उतरा।

इस बीच दोनों शिकार के लिए भी गए, लेकिन आसपास के जंगलों में उन्हें कोई जानवर नहीं मिला। रॉबर्ट ने उन्हें लेनापू गाँव भी दिखाया और पारो से भी मिलवाया। उस दिन भी पारो ने रॉबर्ट के लाल कोट पर काला गुलाब लगाया तो मि. सिम्पसन मुस्कुरा उठे। आज पंखों की फरवाली हैट रॉबर्ट ने लगाई थी।

दूसरे दिन सुबह चालीस पेन्टिंग्ज़ और एक संदूक में बंद फोटोग्राफ्स और बेमिसाल उपहारों के साथ मि. सिम्पसन रवाना हुए। आखिरी रात को मि. सिम्पसन ने रॉबर्ट की बहुत प्रशंसा की थी और रॉयल एशियाटिक सोसायटी को पत्र भी लिखा था और उसमें दोनों ने अपने हस्ताक्षर किए थे। अपना मोहर रॉबर्ट ने लगा दिया था। मि. सिम्पसन बॉम्बे जाकर मोहर लगा देंगे और पत्र मद्रास पहुँचा दिया जाएगा।

...............

कुछ दिनों के अंतराल के बाद एक दिन रॉबर्ट लेनापू गाँव की तरफ गया। कई दिन से पारो भी नहीं आई थी, वह उससे मिलने को उत्सुक था।

सामने ही पारो थी। वह रॉबर्ट को देखकर बहुत खुश हो गई। ‘‘सर, आपके यहाँ वो साहब आए थे। इसलिए मैं नहीं आई।’’

महादेव ने चारपाई (खाट) बिछा दी। रॉबर्ट ने वहाँ चाय पी और हालचाल पूछता रहा। वह बारादरी वापिस लौटा। लेकिन पारो ने कहा था कि वह कल नहीं आएगी, उसे कुछ काम है।

आज अजंता में उसे देखकर वह बहुत खुश हुआ। वह आकर रॉबर्ट से पीछे से लिपट गई। रॉबर्ट ने उसके झूलते हाथों को पकड़ लिया और अनेक चुंबन ले डाले।

सामने आज की बनाई पेन्टिंग थी। उसे देखकर पारो ने कहा-‘‘सर, यह चित्र तो तुमने बहुत अच्छा काढ़ा है।’’

‘‘काढ़ा नहीं, बनाया है पारो।’’ उसने ब्रश से पारो के गाल पर पीला रंग लगा दिया। वह हंसने लगी।

‘‘मैं तुम्हारे लिए संतरे लाई हूँ।’’ उसने एक थैला सामने कर दिया। रॉबर्ट ने थैले में झाँक कर देखा। ‘‘अच्छा! आॅरेंज मीठे है न।’’

‘‘हां, एकदम मीठे। गपाट भाऊ के बगीचे के हैं।’’

रॉबर्ट ने संतरा छील लिया। वह एक फांक पारो को खिलाता, एक स्वयं खाता। बाहर बैठे कन्हैया और अन्य लड़के आँखों ही आँखों में इशारा करने लगे।

उन लोगों ने अंग्रेजों के साथ के कई रोचक किस्से यहाँ की लड़कियों के सुने थे। अब पारो भी उनमें से एक है।

‘‘सुनो सर, क्या आपको पता है अब हम दोनों दो से तीन होने जा रहे हैं।’’

‘‘वह कैसे?’’ रॉबर्ट ने पूछा।

पारो ने अपने पेट की ओर इशारा किया।

‘‘ओह सचमुच?’’

‘‘हां, सचमुच ही लगता है।’’ पारो ने कहा।

रॉबर्ट उठकर खड़ा हो गया। उसने पारो को भी खड़ा कर दिया। फिर उसे लिपटाकर उसका माथा चूम लिया।

‘‘मैं खुश हूँ, पारो। मैं इसकी केयर करूंगा हमेशा।’’

‘‘मतलब?’’ पारो ने पूछा।

‘‘मैं इसकी देखभाल करूंगा। आखिर यह मेरा बच्चा है।’’ रॉबर्ट ने कहा।

‘‘और आपकी मेम? वह गुस्सा नहीं करेगी?’’

‘‘मैं वह सब देख लूंगा।’’

गुफा के बाहर रखे चित्र, कैनवस, स्टैण्ड, रंगों को उठाने का इशारा रॉबर्ट ने किया। कन्हैया ने सब समेट लिया। मुख्य सड़क पर आकर रॉबर्ट ने पारो का हाथ छोड़ दिया। यहाँ तक का रास्ता ऊंचा-नीचा और पत्थरों के कारण पारो के लिए खतरनाक भी हो सकता था।

‘‘क्या तुम घोड़े पर चलोगी पारो। मैं तुम्हें छोड़ दूंगा।’’ रॉबर्ट ने पारो से पूछा।

‘‘नहीं, मैं चली जाऊंगी।’’

‘‘टेक केअर।’’ रॉबर्ट ने कहा और तेज़ी से घोड़ा दौड़ा दिया।

पारो मुस्कुरा उठी।

’’’

फ्लावर ड्यू, चारों बच्चे, टैरेन्स, एल्फिन सभी बारादरी आ चुके थे। रॉबर्ट बेहद खुश था। उसने पहली ही रात फ्लावरड्यू को अपनी बाहों में जकड़ लिया और चुंबनों से सराबोर कर दिया था। वे रात भर मोम की तरह पिघलते रहे। बच्चों के लिए केअर टेकर आ चुकी थी। यह एक मुस्लिम महिला थी और बहुत सुंदर थी। बच्चे भी शहनाज़, शहनाज़ चिल्लाते रहते। रॉबर्ट एल्फिन और टैरेन्स के साथ दूर-दूर तक घूमने निकल जाता। सभी ने अजंता केव्ज़, एलोरा केव्ज़, दौलताबाद का किला, बीवी का मकबरा देखा। मद्रास से तुलनास्वरूप इन सभी को यहाँ का मौसम और यहाँ के लोग पसंद आए। हां, ये लोग मराठी बोलते थे, जिससे बातचीत में तकलीफ तो होती थी।

पूरा एक महीना रहकर वे दोनों लौट गए थे। रॉबर्ट ने अजंता में बहती नदी के किनारे सबको माऊथ आॅर्गन सुनाया था और फोटो भी ली थीं। फ्लावरड्यू का लाया कैमरा आधुनिक तकनीक से युक्त था। रॉबर्ट ने दोनों को पारो से भी मिलवाया। और टैरेन्स को संबंधों के बारे में भी बता दिया था। यह भी कि पारो गर्भवती है।

’’’

विलियम और फ्रांसिस की पढ़ाई को लेकर रॉबर्ट चिंतित था। विलियम आठ वर्ष का हो रहा था। इंग्लैण्ड में तो वह स्कूल जाता ही था। यहाँ क्या होगा? क्या इन दोनों बच्चों को बॉम्बे भेजा जाए। इसी बहस में दोनों उलझे रहते थे।

फ्लावरड्यू ने बताया कि वह फिर गर्भवती है। रॉबर्ट चौक पड़ा... उधर पारो भी गर्भवती है।

’’’

‘‘पारो पेट से हैं।’’ मौसी जेना बाई ने अपने जीजा महादेव को बताया।

महादेव सिर पकड़कर बैठ गया।

‘‘अब क्या होगा जेना बाई?’’

‘‘कुछ नहीं। उस फिरंगी के पास चलते हैं। ’’ जेना बाई ने गाँव के 8-10 घरों के स्त्री-पुरुषों को फिरंगी के पास जाने को तैयार कर लिया।

फ्लावरड्यू बारादरी के बाहर आरामकुर्सी पर बैठी थी। बाहर हरी घास पर चारों बच्चे खेल रहे थे। शहनाज़ आज नहीं आई थी।

जयकिशन ने भीतर कमरे में जाकर रॉबर्ट से कहा-‘‘सर, गाँव के स्त्री-पुरुष आए हैं। पारो का बाबा और मौसी जेना बाई भी हैं। आपसे मिलने का कह रहे हैं।’’

तब तक भीड़ बारादरी के सामने बैठी फ्लावरड्यू के पास आकर खड़ी हो गई।

रॉबर्ट बाहर निकला।

‘‘क्या प्रॉब्लम है जॉय?’’

जयकिशन बात कर चुका था। उसने कहा-‘‘सर, पारो पेट से हैं।’’

‘‘तो?’’ रॉबर्ट ने कहा।

‘‘ये लोग कहते हैं, पारो से शादी करनी पड़ेगी।’’ जयकिशन ने कहा।

‘‘मैरिज?’’ रॉबर्ट ने कहा।

तब तक फ्लावरड्यू उठकर खड़ी हो गई। उसे टूटी-फूटी हिन्दी आती थी।

‘‘जॉय मैरिज किसकी मैरिज?’’ उसने पूछा।

जयकिशन चुपचाप खड़ा रॉबर्ट की तरफ देखता रहा।

फ्लावरड्यू के सामने रॉबर्ट कुछ न कह सका। वह महादेव के पास गया। उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा-‘‘अभी तुम लोग जाओ। कल मैं तुम लोगों के गाँव की तरफ आऊँगा।’’

वे लोग कुछ नहीं कह सकें और लौट गए।

’’’

गाँव वाले लौट आए थे। सामने ही महावीर अपने मित्रों के साथ खड़ा था।

उनमें से एक ने कहा, जिसका नाम नंदू कामड़े था-‘‘काका, कितने जूते मारे फिरंगी ने? पहले ही लड़की की शादी करा देते तो यह नौबत न आती। नहीं, अभी तो साखरपुड़ा करेंगे। शादी अगले साल... हो गई अगले साल? अब फिरंगी के पिल्लों के नाना बनना तुम...। ’’ यह बात सुनकर सभी हंसने लगे।

महादेव अपमानित होकर सिर झुकाकर वहाँ से हट गया। लेकिन पारो की मौसी जेनाबाई ने उन लड़कों को खरी-खरी सुनाई। ‘‘जाओ दम है तो सीना ठोक कर कहो उस फिरंगी से कि हमारे गाँव की लड़की है। है हिम्मत?’’

‘‘हिम्मत की ना कहो मौसी, जब अपना ही सिक्का खोटा है तो क्या कहें। काला गुलाब का फूल लेकर कौन जाता था उसके द्वार।’’ महावीर ने कहा। ‘‘अब लूंगा हर्जाना... साखरपुड़ा करके मुकरने का... या पिहू की शादी मुझसे करो।’’ महावीर पुन: गुर्राया।

नंदू ने कहा-‘‘सम्हल जा मौसी वरना पिहू भी फिरंगी के पिल्ले लेकर घूमेगी। अब तू महादेव काका से कहकर पिहू की शादी महावीर से कर दे।’’

महावीर की टोली ने गाँव की सड़क के किनारे पड़े छोटे-छोटे पत्थरों को महादेव के घर के आँगन में फेंका। और हँसते हुए वहाँ से चले गए।

दो दिन बाद रॉबर्ट जयकिशन और कन्हैया के साथ पारो के गाँव गया। घोड़े की टापों की आवाज़ दूर से आने लगी थी। कन्हैया पहले ही पारो के घर पहुँच गया था। सारे गाँव वाले अपने घरों से निकलकर पारो के आँगन में इकट्ठा हो गए थे।

यह गाँव पाँच सौ परिवारों का हुआ करता था। लेकिन 3-4 साल पहले गाँव में प्लेग फैला था। कई परिवार तो मौत के मुँह में चले गए थे। और कई परिवार अपने मकान छोड़कर उन्हें बंद करके भाग गए थे। उनके घरों के बंद दरवाज़ों पर अभी भी कड़वी नीम की शाखाएँ लटक रही थीं। जिनकी पत्तियाँ गिर चुकी थीं। किसी-किसी के दरवाजे पर साबुत कुम्हड़ा कपड़े में बाँधकर लटक रहा था। वह भी सूख चुका था। कहीं-कहीं से कपड़ा फट चुका था।

गाँव वालो का मानना था कि कुम्हड़ा लटकाने से बीमारी घर में नहीं घुसती। कड़वी नीम से जीवाणु मरते हैं। कई घरों में कुम्हड़े गिरकर फूट चुके थे। और काले छिलके सूखी पत्तियों के कचरे के ढेर से झाँक रहे थे। गाँव वाले डरते थे। इन बंद घरों की ओर जाने से कि कहीं यह भयानक बीमारी उस घर से निकल कर दूसरे घरों में न चली जाए। जबकि बीमारी अब ठीक हो चुकी थी।

इस समय गाँव में 300 परिवार ही रह रहे थे। दूर-दूर रहने वाले खबर न मिलने से नहीं आ सकें। लेकिन पारो के घर के आसपास रहने वाले कई परिवार वहाँ आकर खड़े हो गए। रॉबर्ट ने महादेव से कहा-‘‘ बोलो, क्या कहना चाहते हो?’’

महादेव ने मराठी में उत्तर दिया। उसके पैर काँप रहे थे। जेना बाई भी इस अंग्रेज के सामने कुछ न कह सकी।

कन्हैया ने हिन्दी में बताया-‘‘सर, काका कहते हैं इनकी बेटी पेट से है। वह कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रहा। कहते हैं आप पारो से विवाह कर लो।’’

रॉबर्ट हँसने लगा-‘‘मैरिज! क्या मज़ाक है। लेकिन पारो मेरी वाइफ की तरह ही रहेगी। मेरी मिस्ट्रेस... मैं उसका खर्च उठाऊंगा। बच्चों को भी अच्छी परवरिश दूँगा। लेकिन यह यहीं रहेगी।’’

कन्हैया ने मराठी में महादेव को समझाया। महादेव ने हाथ जोड़ दिए। तभी रॉबर्ट ने पिहू की ओर देखा। पारो की छोटी बहन...। साफ रंगत, तीखे नाक-नक्श वाली सुंदर लड़की...। रॉबर्ट को पिहू की ओर देखते हुए जेनाबाई और महादेव ने एक दूसरे को देखा। मानो उनके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई हो।

‘‘यह कौन है?’’ जानते हुए भी रॉबर्ट ने पूछा।

‘‘पिहू है सर, पारो की छोटी बहन।’’

‘‘ओह?’’

‘‘पिहू की शादी कर दो, बोलो कनाई महादेव से, मैं शादी का खर्चा उठाऊंगा।’’ रॉबर्ट ने कहा।

कन्हैया मराठी में अनुवाद करके महादेव को समझाता रहा। जबकि महादेव अच्छे से समझ चुका था। उसे हिन्दी आती थी।

तभी रॉबर्ट ने देखा पारो दरवाजे के पीछे से झाँककर रॉबर्ट को देख रही थी। फिर वहीं आँखें... आँखें उसका पीछा नहीं छोड़तीं... लीसा की ग्रीन रूम की खिड़की से झाँकती आँखें। लीसा रूम की खिड़कियों की कांचों को आँसुओं के साथ अपने नखों से खुरच रही थीं। कितनी असहाय थी लीसा... बरसों गुजर गए।

तभी एक बड़ा पत्थर घोड़े के पैर के पास आकर गिरा। रॉबर्ट ने चारोंओर निगाह दौड़ाई। कहीं कोई नहीं दिखा।

रॉबर्ट ने घोड़े को एड़ लगाई। घोड़ा दौड़ने लगा। दरवाजे से झाँकती पारो की आँखें उसका पीछा कर रही थीं।

लीसा की आँखें प्यार, याचना और अपार सुख पाने की लालसा लिए... नहीं मैं अब इन प्यार भरी आँखों को अपने से दूर नहीं करूंगा... पारो मेरी है।

जब घोड़ा दौड़ने लगा तो घने पेड़ के पीछे से महावीर निकला और रॉबर्ट को जाते देखता रहा।

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सारे लेनापू अजंता गाँव को बल्कि दूर-दूर तक दौलताबाद, औरंगाबाद, साखर खेड़ा, हलदा, वसई जलाली उकला तक के गाँववासियों को पता चल चुका था कि फिरंगी ने एक कोली जाति की लड़की को अपनी रखैल बनाया है। यह कोई नई बात नहीं थी। लेकिन रॉबर्ट एक ऐसा इंसान साबित हो रहा है जो गाँव वालों के समक्ष उस लड़की की सारी जिम्मेदारी उठाने को तैयार है। बल्कि उस लड़की की छोटी बहन की शादी का खर्च भी वही करेगा। कई गरीब परिवार तो महादेव की किस्मत को सराह रहे थे कि उसकी दोनों बेटियों का घर बस गया।

उस दिन जब वह घर पहुँचा था तब तक उसके घर में एक तूफान ने प्रवेश कर लिया था। मेहमूद से फ्लावरड्यू दबाव डालकर पूछ चुकी थी-‘‘क्या हुआ है?’’ मेहमूद ने डर से सारी कहानी सुना दी थी।

‘‘रॉबर्ट सर की बंजारा कोली लड़की से गहरी दोस्ती है। वह माँ बनने वाली है।’’

यह सुनते ही फ्लावरड्यू ने आसमान सिर पर उठा लिया था। वह स्वयं भी गर्भवती थी। और ऐसे समय जब उसको क्रोध नहीं करना चाहिए, वह क्रोध से हाँफ रही थी।

रॉबर्ट जब घर पहुँचा था, उसके घोड़े के पैरों की आवाज़ फ्लावरड्यू तक पहुँच गई थी। वह गुस्से में चीज़ें उठा-उठाकर फेंक रही थीं। रॉबर्ट के पैरों के पास आकर एक काँच की बोतल गिरी और काँच के टुकड़े कमरे में फैल गए।

‘‘यह क्या है फ्लावर?’’ रॉबर्ट ने कहा।

तभी मेहमूद बच्चों को लेकर बारादरी से दूर चला गया। क्योंकि लड़ाई होना तो लाज़िमी था।

‘‘क्या है? तुम बताओ रॉबर्ट???’’ तुम मुझे चीट करते हो। मुझे वहाँ से बुलाते रहे कि तुम्हारे बिना मैं रह नहीं पा रहा हूँ। और मेरी एबसेन्स में... तरह-तरह के संबंध बनाते हो। क्या यह मेरे प्रति तुम्हारी फेथफुलनेस है?’’

‘‘हाँ है... मैं तुम्हारे प्रति फेथपुल हूँ। जहाँ तक अन्य स्त्रियों से मेरे संबंध रहे या हैं तो हैं। मैं तुम्हें कोई सफाई नहीं दूँगा। मैं पारो से भी प्यार करता हूँ। मैं लोनली फील करता था तब हम एक दूसरे के नज़दीक आ गए। ड्यू अंडरस्टैंड... मैं तुम्हें प्यार करता हूँ ड्यू।’’ कहते हुए वह फ्लावरड्यू के नज़दीक जाने लगा।

‘‘डोन्ट टच मी...।’’ फ्लावर गुर्राई। कहा-‘‘मैं क्यों आई तुम्हारे पास... तुम तो अन्य स्त्रियों को पसंद करते हो। मुझे कहाँ पसंद करते हो? मैं लौट जाऊँगी।’’ कहते हुए वह रो पड़ी। रॉबर्ट ने इसी भावुक समय को पकड़ते हुए, जाकर उसे लिपटा लिया।

‘‘तुम कहीं नहीं जाओगी फ्लावर। मैं अकेला हो जाता हूँ।... मुझे तुम चाहिए फ्लावर। बच्चे चाहिए।’’ वह रॉबर्ट के सीने में मुँह गड़ाकर रोती रही। क्यों असहाय हो जाती है वह। वह भी तो रॉबर्ट से प्रेम करती थी। रॉबर्ट ने ड्यू के चेहरे को गले-गर्दन को अपने चुंबनों से भर दिया।

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लेकिन फिर वह रॉबर्ट के प्रति सहज नहीं हो पाई। ढलते सूरज की सुरमई शाम में बाहर आराम कुर्सी पर बैठी फ्लावर सोच रही थी। यह पुरुष की कैसी मानसिकता है, घर में पत्नी है, बच्चे हैं। लेकिन मिस्ट्रेस भी चाहिए। हर खूबसूरत लड़की उसे अपनी बाँहों में चाहिए... यहाँ के जमींदार... सामंतीशाही घराने के पुरुष भी तो अनेक शादियाँ करते हैं, मिस्ट्रेस रखते हैं... यह सब क्या है? और क्यों है? उसने आँखें मूंद लीं। लुढ़कने वाले आँसू बंद पलकों में कैद हो गए।

फ्लावरड्यू लगातार उदास होती जा रही थी। लगता था कि वह अवसाद की स्थिति में जा रही है।

उसे अपना यहाँ आना निरर्थक लग रहा था। रॉबर्ट तो अपने नए संबंधों में सुखी था। लेकिन वह? यदि उसका परिवार इतना अमीर नहीं होता तो वह रॉबर्ट के सहारे हार-हार के ज़िंदगी जी रही होती। क्या किसी पत्नी को यह सब बर्दाश्त होता है? सगाई के बाद लीसा, उसकी स्वयं की प्रेगनेन्सी के समय जालना जाना, एनी से संबंध और अब पारो... ओह! उसकी जगह कहाँ थी। उस दिन रॉबर्ट ने उसे मना तो लिया लेकिन वह पूरी तरह से टूट गई थी। वह अब रॉबर्ट के कमरे में नहीं सोती थी। रात शहनाज़ का बच्चों के साथ रुकना उसने बंद करवा दिया था। अब वह स्वयं बच्चों के साथ उनके कमरे में सोती थी। रॉबर्ट फिर अकेला था।

वह रात-रातभर जागता रहता और टैरेन्स के लाए सिगार और विशेष प्रकार के कागज़ में तंबाखू भरकर पीता रहता।

ड्यू रॉबर्ट की बातों का उत्तर ‘हूँ’, ‘हाँ’ में देती और सामने से हट जाती।

कितने अधिकार से पारो बारादरी आती होगी। जिस दिन वह लोग यहाँ आए थे तो बारादरी के वरांडे में एक बड़ी सुंदर रांगोली बनी हुई थी। जो बच्चों के जूते से खराब हो रही थी। रॉबर्ट ने कहा था-यह महाराष्ट्र का वेलकम का तरीका है।

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उसको गर्भावस्था के 11 हफ्ते पूरे हो गए थे। वह बिल्कुल खुश नहीं रह पाती थी। कि... एक दिन सहसा शहनाज़ चिल्ला पड़ी-‘‘सर, जल्दी आएँ, बाथरूम से बेहताशा खून पानी के साथ बाहर आ रहा था। अंदर फ्लावर थी, जो नहाने गई थी।

रॉबर्ट दरवाज़ा खटखटाने लगा-‘‘क्या हुआ फ्लावर?’’

वह आशंकित हो उठा। फ्लावर ने कोई उत्तर नहीं दिया। खून, पानी वैसा ही बहता रहा। थोड़ी देर बाद दरवाज़ा खुला। फ्लावरड्यू गाउन पहने खड़ी थी। रॉबर्ट ने हाथ दिया परन्तु फ्लावर ने शहनाज़ को पकड़ा। अपने बिस्तर पर वह आई। शहनाज़ ने जल्दी-जल्दी कई सारे चादर उसके बिस्तर पर डाल दिए। गाऊन फिर खराब, खून से भरा हो चुका था। तब तक रॉबर्ट जयकिशन को चिकित्सक को बुलवाने और दाई (बच्चा पैदा करवाने वाली स्त्री) को भी लाने को कहा। फ्लावर ने आँखे बंद कर लीं और तकिए से सिर टिका लिया।

चिकित्सक ने आते ही रॉबर्ट से कहा-‘‘सर, गर्भपात है।’’

उसने कई दवाईयां दीं और लिक्विड डायट लेने को कहा। दाई ने भी कहा गर्भपात है और तीन महीने के लगभग का दिखता है। उसने अंदरूनी जाँच की और माँस के टुकड़े बाहर खींच लिए। वह एक अनुभवी उम्रदराज़ दाई थी। उसके बाद फ्लावरड्यू के पेट का दर्द कम हो गया।

दाई ने कहा-‘‘सर, घबराने की ज़रूरत नहीं है। आपकी मेम ठीक हैं।’’

शहनाज़ और दाई बाहर बैठ गईं। फ्लावर ने रॉबर्ट से कोई बात नहीं की। रॉबर्ट उसके बाल और माथा सहलाता रहा। फ्लावर की आँखों से दो बूँद आँसू टपके, जिसे रॉबर्ट ने अपने रूमाल में ले लिए।

वह वहाँ से उठ गया। शायद फ्लावर सोना चाहती थी। उसने कमरे से बाहर आकर शहनाज़ और दाई को रात वहीं रूकने का आदेश दिया। वह उदास था, बच्चे के लिए, जिसने जन्म लेने से पहले आँखें मूंद लीं।

अपने कमरे में आकर उसने रूमाल टेबिल की दराज़ में रख दिया।

आधी रात तक वह शराब पीता रहा। वह फ्लावर की दु:खद मन:स्थिति का अपराधी था।

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शहनाज़ ने आकर दूसरे दिन सुबह बताया कि मेम ठीक है। दवा दी है और सब्जियों का सूप पिलाया है। उनके कपड़े बदल दिए हैं। उन्होंने कहा है वो आराम करना चाहती हैं कोई कमरे में न आए। वह शाम को आ जाएगी। उसने घर जाने की इजाज़त माँगी। रॉबर्ट ने दाई को भी घर जाने को कहा।

रॉबर्ट फ्लावर के कमरे में गया तो वह आँखें खोले तकिए से टिकी दिखी। उसके अंदर पहुँचते ही उसने आँखें बंद कर लीं। रॉबर्ट ने पास पहुँचकर उसके माथे का चुंबन लिया। फ्लावर ने कोई विरोध नहीं किया। रॉबर्ट बाहर निकल गया।

चारों बच्चे बाहर ही थे। शहनाज़ के आने तक मेहमूद और जयकिशन लूसीएनी को सम्हाल रहे थे, जो डेढ़ वर्ष की हो रही थी।

कुछ ही दिन बीते थे जब विलियम ने लाकर एक पर्ची रॉबर्ट के हाथ में दी-लिखा था, ‘हम लोगों के लंदन जाने का प्रबंध कर दो। तुमने अपने सुख खोज लिए हैं। रॉबर्ट मुझे जाने दो। यहाँ मुझे घुटन होती है। वैसे इस बार मैं यहाँ रहने ही आई थी। खुश भी थी। लेकिन सहसा सभी कुछ बिखर गया। कोई एक्सप्लेनेशन नहीं देना। सुनने की स्थिति में नहीं हूँ।’

रॉबर्ट ने पर्ची पढ़ी और पॉकिट में रखकर बाहर निकल गया। देर शाम तक एक चट्टान पर बैठा माउथ आॅर्गन बजाता रहा। दूसरे दिन बॉम्बे पत्र भिजवाया, सभी के लिए टिकिट बुक करानी थी। वह जानता था, नहीं रुकेगी फ्लावर ड्यू। क्या बच्चों से दूर हमेशा रहना होगा? वह भीतर से बहुत दु:खी था। लेकिन शायद जानता था इस संबंध का यही अंत है।

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फ्लावर जा रही है। उसने खास कोई सामान नहीं लिया। लम्बे सफर में ज़रूरतभर का सामान लिया। रॉबर्ट चाहता था मेहमूद को बॉम्बे तक भेजे। लेकिन फ्लावर ने मना कर दिया। इतना उदास हारा हुआ चेहरा फ्लावर का पहली बार उसके समक्ष था। विलियम आठ वर्ष का हो चुका है, शायद वह समझ गया है, माता-पिता के मतभेदों को... फ्रांसेस एलिजा भी उदास हैं। ऐसा लगता है मानो दोनों बच्चे बहुत बड़े हो गए हैं।

फिटन में बैठते समय फ्लावर ने रॉबर्ट से कोई विदाई नहीं ली। न लिपटी, न हाथ मिलाया। उसकी गोद में एनी थी। विलियम और फ्रांसेस दूर तक उसे पीछे मुड़कर देखते रहे। फिर घोड़ों के पैरों के धूल की गुबार में फिटन आँखों से ओझल हो गई। रॉबर्ट गहरी उदासी में बैठ गया।

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कुर्सी पर टिककर वह बैठा था, तभी पीछे से दो बाँहें उसके गले के इर्द गिर्द आ गईं। उसने हाथ पकड़ लिए. यह चूड़ी वाले हाथ थे। पारो थी। संभवत: जयकिशन ही उसके दु:ख को देखते हुए पारो को बुला लाया था। दोनों खामोश थे। पारो ने बहुत मुश्किल से एक रोटी रॉबर्ट को खिलाई। रॉबर्ट उसका हाथ पकड़कर अपने सोने के कमरे में पारो को ले गया। उसने पारो के उभरे पेट पर एक नज़र डाली और उसे लिपटाकर नींद का इंतज़ार करने लगा।

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कुछ दिनों से पारो नहीं मिली थी। वह अजंता केव्ज़ से लौट रहा था तो उसने सोचा आज लेनापू गाँव जाना होगा। पारो की डिलीवरी कभी भी हो सकती है। लेकिन जब वह पारो के घर के सामने पहुँचा तो देखा वहाँ भीड़ लगी थी। महादेव ने उसे देखते ही हाथ जोड़ें।

‘‘साहब, पारो को बचा लीजिए। यहाँ की औरतें कह रही हैं कि उसके पेट में बच्चा मर चुका है।’’

रॉबर्ट घबरा गया। उसने कन्हैया को तुरन्त दौड़ाया दाई और चिकित्सक को लाने के लिए। लेकिन कन्हैया सिर्फ दाई को लेकर लौटा। चिकित्सक औरंगाबाद गया था। दाई ने भरपूर प्रयत्न करके शिशु जचकी करवाई। कुछ सांसें शेष थीं शिशु की। लेकिन दुनिया में आकर वह कुछ ही पल जीवित रह सका। अंदर से खबर आई कि बच्चे को नहीं बचा सकें। रॉबर्ट अचंभित-सा वहाँ पड़ी खाट पर बैठा था। घंटों बीत रहे थे। लेकिन रॉबर्ट ने एक गिलास चाय तक पीने से मना कर दिया था। भीड़ जा चुकी थी। रॉबर्ट अंदर गया। देखा, पारो पीली पड़ चुकी है। जैसे किसी ने उसका सारा रक्त निचोड़ लिया हो। वह रॉबर्ट को देखकर रो पड़ी। रॉबर्ट उसके सिरहाने बैठा रहा। महादेव अंदर आया। उसने कहा-‘‘साहब, शिशु को देख लें।’’ लेकिन रॉबर्ट ने इन्कार में सिर हिला दिया। रॉबर्ट ने महादेव की हथेली में रुपए रखे।

‘‘देखो लगातार पारो का ध्यान रखना है। उसे पौष्टिक चीज़ें खिलानी हैं। मैं आता रहूँगा।’’ महादेव ने सिर हिलाया।

उसने पारो के माथे का चुंबन लिया। सांत्वना के शब्द नहीं थे उसके पास। नींद में पारो की आँखें मुंद-मुंद जाती थीं। रॉबर्ट के जाते ही वह सो गई।

’’’

अब अक्सर पारो बारादरी आती थी। रात को भी रुक जाती थी। रॉबर्ट उसकी जिम्मेदारी अच्छे से संभाल रहा था। पिहू की शादी महावीर के साथ हो चुकी थी। अब घोड़े पर सवार होकर दोनों ही जंगलों में घूमते। अजंता केव्ज़ जाते, जहाँ रॉबर्ट अपनी बाकी पेंटिग्ज़ को पूरा करने में जुटा था।

पारो लगातार उसके साथ रहती। दोनो ंएक-दूसरे की ज़रूरत बन गए थे।

विभिन्न कोणों से रॉबर्ट ने अजंता की अनेक तस्वीरें लीं, जो इतनी सुंदर आईं कि मानो रॉबर्ट ने इतिहास रच दिया।

बीच-बीच में पारो के अविकसित भ्रूण अपने आप गिर जाते थे। रॉबर्ट चाहता था उसका अच्छे से इलाज हो। लेकिन चिकित्सक असमर्थ हो रहे थे। पारो माँ नहीं बन पा रही थी। इस बात को लेकर वह उदास तो रहती थी। लेकिन रॉबर्ट को पता नहीं लगने देती कि वह उदास है।

समय ऐसा ही बीत रहा था। अब तक पाँच शिशु, जिनमें तीन अविकसित भ्रूण और दो शिशु का आकार-प्रकार लेकर गर्भपात हो चुका था। टैरेन्स, एल्फिन, फ्लावर ड्यू, एनी सभी के पत्र आते थे। एनी बाकी पेन्टिंग्ज़ और फोटोग्राफ का इंतज़ार कर रही थीं प्रदर्शनी लगाने के लिए। फ्लावरड्यू के पत्रों में ऐसा कुछ नहीं होता था कि वह रॉबर्ट को याद कर रही है बल्कि वह अपनी ज़िंदगी अच्छे से जी रही थी। अधिकतर समय वह अपनी दादी के पैतृक हवेली फ्रांस में रहती थी। बच्चे अपनी नानी नाना के पास रह ही रहे थे।

1855 का अंतिम महीना था। रॉबर्ट को मद्रास जाना था। वहाँ से उसे तुरन्त बुलवाया गया था। अब तक रॉबर्ट ने 105 पेन्टिंग्ज़ (लाइन ड्राइंग और आॅईल) तैयार करके लंदन भेज दी थीं। पारो गर्भवती थी। शायद दूसरा या तीसरा महीना चल रहा था। रॉबर्ट नहीं जाना चाहता था। लेकिन आॅर्डर आया था तो उसे जाना ही पड़ा। उसने जयकिशन और मेहमूद को कहा कि पारो का ध्यान रखना। उसके खाने आदि का भी ध्यान रखना।

पारो और उसके संबंध इतने प्रगाढ़ थे कि दोनों एक दूसरे को छोड़ने के लिए अत्यंत भावुक हो गए थे। रॉबर्ट को वह दूर तक जाते देखती रही। रॉबर्ट भी हाथ हिलाता रहा।

पारो बारादरी से अपने घर लौट गई। हाँलाकि मेहमूद और जयकिशन ने बहुत मना किया था।

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