Robert Gill ki Paro - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

रॉबर्ट गिल की पारो - 9

भाग 9

कल लीसा चली जाएगी। दोनों बेतरह उदास थे। रॉबर्ट ने लीसा का हाथ पकड़ा और दोनों सोने के कमरे में आ गए। खिड़की पर लोहे की जाली लगी थी। काँच की ऐसी खिड़कियाँ थीं, जिनमें से ठंड अंदर नहीं आ पाती थी। रॉबर्ट ने खिड़की के दरवाजे खोल दिए। एक ठंडी सुकून भरी हवा अंदर प्रवेश कर गई। खिड़की के बाजू की दीवार पर चढ़ी सफेद फूलों की बेल की खुशबू कमरे में प्रवेश कर रही थी।

रॉबर्ट ने लीसा के घुंघराले बालों की पोनी खोल दी थी। बारीक जाली से बना चांदी का क्लिप जो अमीर घरानों की स्त्रियां अपने बालों में लगाया करती थीं। उसने फ्लावरड्यू के बालों की पोनी में देखी थी। वैसा ही क्लिप उसने लीसा के लिए खरीदा था। लीसा वही क्लिप लगाकर आज की पिकनिक पर गई थी।

रॉबर्ट ने वह क्लिप तकिए के नीचे रख दिया था। उसने लीसा को चुंबनों से सराबोर कर दिया। लीसा ने अपनी आँखें बंद कर लीं।

बहुत देर बाद जब लीसा ने अपने कपड़े ठीक से पहने तब उसने रॉबर्ट का हाथ पकड़ लिया। रॉबर्ट की हथेलियां पसीने से पसीज रही थीं। वह चौंक पड़ी।

‘‘क्या हुआ रॉबर्ट, तुम ठीक तो हो?’’

रॉबर्ट चुप रहा। कैसे कहे कि उसकी सगाई हो चुकी है। वह फ्लावरड्यू का है। फिर लीसा से संबंध? नहीं मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। सचमुच प्यार करता हूँ। ‘‘मैंने तुम्हें धोखा नहीं दिया, लीसा।’’ वह अचानक बोल पड़ा।

‘‘धोखा! क्या कह रहे हो रॉबर्ट, मैं भी तुम्हें प्यार करती हूँ। हम दोनों एक हो चुके हैं। फिर यह शब्द बीच में क्यों?’’

‘‘नहीं कुछ नहीं।’’ रॉबर्ट शायद उसे कुछ बता नहीं पाएगा। यदि बताया तो भी लीसा उसे सुनकर बर्दाश्त भी नहीं कर पाएगी। लीसा ने इत्मीनान की करवट ली। वह सोना चाहती थी। क्योंकि कल का सफर लंबा था। नहीं उसे बताना ही पड़ेगा। रॉबर्ट ने भूमिका बाँधी।

‘‘लीसा, यदि मैं तुमसे कहूँ कि मेरी ज़िंदगी में बहुत कुछ घटित हो चुका है, अर्थात कोई लड़की तो?’’

लीसा लेटे लेटे कुनमुनाई। ‘‘सोने दो रॉबर्ट।’’ वह असीम सुख में डूब-उतरा रही थी। लेकिन चंद क्षणों बाद वह उठकर बैठ गई। मानो उसका कहा वाक्य अब उसने समझा हो। ‘‘क्या कहा रॉबर्ट?’’ फिर से कहो, लड़की, कौन-सी लड़की?’’

‘‘लीसा मेरी सगाई हो चुकी है। मेरी इच्छा के विरुद्ध। रिकरबाय घराने में फ्लावरड्यू के साथ।’’

‘‘क्या! लगभग चीख उठी लीसा... रिकरबाय घराना यानी वही रिकरबाय जो सेन्ट ल्यूक चेलसिया में रहते हैं, लेकिन तुम तो मुझसे...।’’ एकदम निढाल हो चुकी थी लीसा। यह एक बहुत बड़ा सदमा था उसके लिए। वह डबडबायी आँखों से रॉबर्ट की तरफ देखती रह गई।

‘‘तो तुम मुझे प्यार नहीं करते रॉबर्ट?’’ उसने रॉबर्ट की आँखों में आँखें डाल कर पूछा।

‘‘यही तो त्रासदी है लीसा... मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। फ्लावरड्यू के साथ मेरा रिश्ता चर्च के फादर ने करवाया है, जिन्हें मैं पितातुल्य मानता हूँ। जब रिश्ता हुआ उस समय मेरी ज़िंदगी में कोई लड़की नहीं थी। मैंने तुम्हें देखा और यह जानते हुए भी कि मेरी सगाई हो चुकी है, मैं तुमसे प्यार करने लगा। ’’

‘‘तो अब?’’ लीसा ने बुझे शब्दों में पूछा।

‘‘मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। और करता रहूँगा हमेशा। लीसा मेरा विश्वास करो।’’

लीसा वापिस लेट गई। उसकी गर्दन पीठ सिर उसकी हिचकियों से हिल रहे थे। वह बेहताशा रो रही थी। उसकी पीठ रॉबर्ट की ओर थी। रॉबर्ट ने उसकी तरफ करवट ली और उसके कंधे पर अपना सिर टिकाया। वह भी रो रहा था। लीसा ने उसे हटाने की कोशिश नहीं की।

पता नहीं कितनी देर बाद लीसा सोई होगी। रॉबर्ट भी देर तक रोता रहा। फिर उसकी नींद लग गई। लेकिन जब वह उठी तो रॉबर्ट गहरी नींद में सो रहा था। चाहकर भी वह रॉबर्ट को नफरत की नजर से नहीं देख पाई। जल्दी ही वह जाने को तैयार होने लगी। उसने अपना बैग तैयार कर लिया। उधर ड्राइंग रूम में मि. ब्रोनी अपनी उंगलियों पर से फटे मोजे पैरों में चढ़ा रहे थे। फिर उन्होंने भरनजर से लीसा को देखा। वे देखते ही रह गए। लीसा का रंग पीला पड़ चुका था। आँखों के पपोटे सूज गए थे। जरूर ऐसा कुछ रात को हुआ था, जिससे लीसा ऐसी दिख रही थी। मानो उसके शरीर से सारा खून किसी ने निचोड़ लिया हो।

‘‘क्या हुआ माई चाइल्ड?’’ अपने आपको ब्रोनी पूछने से रोक नहीं पाए। उन्होंने लीसा के कंधे पकड़ लिए।

‘‘मिस्टर ब्रोनी...’’ उनकी छाती पर अपना सिर रखकर लीसा रो पड़ी। उसकी हिचकियां बंध गईं। मि. ब्रोनी ने उसे रो लेने दिया।

‘‘अब बताओ लीसा। क्या हुआ है।’’ लीसा उनसे दूर हटी।

कहा-‘‘ मिस्टर ब्रोनी! रॉबर्ट आॅलरेडी एंगेज्ड है। उसकी सगाई हो चुकी है।’’

मि. ब्रोनी खड़े रह गए। मानो पत्थर के हो चुके हों। उन्हें ऐसे धोखे की उम्मीद नहीं थी। रॉबर्ट ने लीसा के साथ छल किया है।

‘‘हाँ! उसने रात को मुझे बताया। और यह भी कहा है कि वह इस संबंध से खुश नहीं है। वह एक जमींदार घराना है। उनका उसका कोई मुकाबला नहीं।’’

‘‘तुम किस घराने की बात कर रही हो लीसा।’’ मि. ब्रोनी ने पूछा।

‘‘सेन्ट ल्यूक चेलसिया का रिकरबाय घराना। वह राजकुमारी जैसी कम उम्र की बेटी फ्लावरड्यू। कौन नहीं जानता उसे।’’

‘‘तो?’’ मि. ब्रोनी ने पूछा।

‘‘वह मुझे चाहता है। लेकिन यह संबंध चर्च के फादर ने कराया है। चूंकि उन्होंने ही उसे सम्हाला है अत: वह विरोध नहीं कर पाता।’’

मि. ब्रोनी धम्म से कुर्सी पर गिरे। लीसा ने उन्हें सम्हाला वरना उनका सिर लकड़ी की कुर्सी में लगता कि खून की धारा बहने लगती। उन्होंने आँखें बंद कर लीं। ओह मेरे प्रभु... यह क्या हुआ? उनकी आँखों के समक्ष लीसा की माँ का चेहरा घूम गया। उन्होंने भरोसा करके लीसा को उनके साथ भेजा था। उनका भरोसा रॉबर्ट पर से टूटा... लीसा की माँ का भरोसा मि. ब्रोनी पर से टूटेगा।

वे सुबह की सैर को नहीं गए। सामान पैक हो चुका था। दोनों बैग बरामदे में रखे थे। रॉबर्ट अभी तक सो रहा था।

ब्रिस्टल जाने वाली एक ही बस है। लंदन ट्रांसपोर्ट की जनरल मोटर्स की ओमनी बस (डेल्ल्र इ४२) यदि नीचे जगह नहीं मिली तो ऊपर बैठना होगा। ऊपर चढ़ना कठिनाई भरा होता है। वे जल्दी निकलना चाहते थे।  अब उन्हें बस से ही जाना  होगा। क्योंकि उनकी अपनी फिटन ब्रिस्टल भेज दी गई थी ।

गुस्सा तो इतना था कि रॉबर्ट को बगैर बताए निकल जाएं। लेकिन वे इतने हृदयहीन तो नहीं हैं। जैसा रॉबर्ट है। उन्होंने कमरे के सामने खड़े होकर रॉबर्ट को आवाज दी। रॉबर्ट घबराकर एकदम उठ गया। सामने मि. ब्रोनी खड़े थे। लीसा बाहर बरामदे में थी।

‘‘हमें निकलना है, रॉबर्ट। अच्छा, ज़िंदगी इतनी सरल नहीं है। शायद हम फिर कभी न मिले।’’

रॉबर्ट ने हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया तब तक मि. ब्रोनी पलट चुके थे। उनकी रुखाई देखकर रॉबर्ट समझ गया कि उन्हें सब कुछ लीसा ने बता दिया है। वह पीछे-पीछे बरामदे में आया। जहाँ लीसा रोई सी खड़ी थी। उसका चेहरा पीला पड़ चुका था।  उसने रॉबर्ट की ओर देखा भी नहीं। नीचे झुककर अपना बैग उठाया और बरामदे से नीचे उतरी। रॉबर्ट ने मि. ब्रोनी का बैग उठाना चाहा तो उन्होंने उसका हाथ अलग कर कहा-‘‘नो, इट्स ओके। मैं अपना भार स्वयं ढोता हूँ।’’

‘‘मि. ब्रोनी और लीसा आप दोनों बगैर कुछ ब्रेकफास्ट लिए कैसे जाएंगे। चाय, ड्रिंकिंग चॉकलेट, कुछ स्नैक्स लेना ही होगा।’’ रॉबर्ट ने कहा।

तब तक लीसा बाहर मिट्टी की सड़क पर निकल चुकी थी। मि. ब्रोनी ने कहा- ‘‘नो थैंक्स। हम बाहर कुछ ले लेंगे।’’ उसने लीसा को आवाज दी, लेकिन वह नहीं रुकी। रॉबर्ट पीछे आया भी लेकिन मि. ब्रोनी ने उसे नहीं आने का इशारा किया। वह एक पेड़ के नीचे खड़ा हो गया। लीसा नहीं जानती थी कि वह अपने गर्भ में रॉबर्ट का अंश लेकर यहाँ से विदा हो रही है।

रॉबर्ट बहुत दु:खी था। सही गलत क्या था वह नहीं जानता लेकिन वह लीसा से प्रेम करता था। वह सोने के कमरे में आ गया। देखा टेबिल पर एक बड़ी पेन्टिंग लीसा की रखी है। वह चर्च के सामने एक पत्थर पर बैठी है। पीछे झड़ी पत्तियों का वृक्ष अपनी टहनियां लिए खड़ा है। लीसा के बाल उड़ रहे हैं। उसे याद है बाद में उसने लीसा के बालों की पोनी बनाई थी। वह उदास पलंग पर लेट गया। और तकिए में चेहरा गड़ाकर रो पड़ा। उसके हाथ में तकिए के नीचे रखा चांदी का क्लिप आया, जो लीसा छोड़ गई थी। वह रोते हुए उस क्लिप को देखता रहा। उसने महसूस किया यह प्यार है, जो टैरेन्स ने डोरा स्मिथ के लिए महसूस किया था। उसने लीसा के लिए या लीसा ने उसके लिए। जिसे वह समझ नहीं पाया। आज उसके समक्ष ‘प्यार’ खड़ा था, अपनी सम्पूर्ण परिभाषाएं लेकर।

’’’

 

देर तक रॉबर्ट रोता रहा था, एकदम बच्चों की तरह। उसे रोना नहीं आता था फिर भी वह रोया था। शायद लीसा के बिना उसे सब-कुछ निरर्र्थक लग रहा था। पता नहीं कब उसकी नींद लगी होगी। कितना सोया समझ नहीं पाया। नींद खुली तो टैरेन्स के जगाने से।

‘‘उठो रॉबर्ट, कितना सोते हो दोस्त।’’ टैरेन्स ने कहा।

‘‘नहीं, आँखें तो कब की खुल चुकी थीं। यह नींद का सोना था।’’ रॉबर्ट ऊटपटांग बोल रहा था।

‘‘नींद का सोना? यह कौन-सा सोना होता है। आदमी नींद में ही सोता है।’’ टैरेन्स हँस पड़ा। ‘‘अच्छा अब उठो। लगता है तुमने कोई बड़ा रोमान्टिक सपना देखा है। तभी सोते रह गए।’’

‘‘रोमान्टिक?’’ अब सम्पूर्ण जाग्रतावस्था में था रॉबर्ट।

‘‘तीन दिन रोमान्टिक सपनों में डूबा रहा। अब यहाँ दर्द है। (उसने सीने पर हाथ रखते हुए कहा) टैरेन्स मेरा पहला प्यार बिछुड़ गया है। मैं फिर अकेला हूँ।’’ ऐसा लगा रॉबर्ट फिर से रो पड़ेगा।

टैरेन्स समझ गया, कुछ तो ऐसा हुआ है जिससे रॉबर्ट इतना उद्वेलित है। लेकिन बाद में पूछना होगा। उसने कहा-‘‘रॉबर्ट! उठो, देखो, दादी ने हम दोनों के लिए कितना कुछ भेजा है। नाश्ते हैं, मिठाई है। और तुम्हारे लिए बेकन मीट का अचार। दादी कहती थी कि मैं रॉबर्ट को क्यों नहीं लाया अपने साथ।’’ उसने बैग खोला और टेबिल पर नाश्तों का ढेर लगा दिया। एक बर्नी में अचार, पाइनेपिल की मिठाई और स्वादिष्ट नमकीन नाश्ते।

वे दोनों तैयार हो चुके थे। तब तक टैरेन्स कैंटीन से और भी नाश्ता ला चुका था। दोनों ने नाश्ता किया। रॉबर्ट ने मिठाई की तारीफ की और अपने ट्राउजर के पॉकेट में सूखे मेवे भर लिए। आज आर्मी का हेड आने वाला है। इंडिया भेजे जाने वाले सैनिकों की लिस्ट भी जारी होगी। फिर सभी को जाने की समय सीमा बताई जाएगी। वे दोनों हेडक्वार्टर की ओर बढ़े। रॉबर्ट ने सोचा इन तीन दिनों में जो भी घटित हुआ है वह टैरेन्स को बताएगा। शायद इसका कोई उचित हल वह निकाल सकें।

दोनों ने दोपहर का खाना कैन्टीन में खाया। तब रॉबर्ट ने बताया कि तीन दिन रुके थे मिस्टर ब्रोनी और लीसा। लेकिन फिर लीसा यहाँ से आहत होकर लौटी।

‘‘क्यों?’’ टैरेन्स ने पूछा।

‘‘मैंने उसे सभी कुछ बता दिया फ्लावरड्यू के बारे में भी।’’

‘‘और तुम क्या सोचते थे कि तुम्हारी सगाई की बात सुनकर वह बहुत उत्साहित होकर तुमसे लिपटी रहती। बहुत ही नार्मल ढंग से तुमसे बातचीत करती।’’

रॉबर्ट सिर झुकाए बैठा रहा। टैरेन्स ने कहा-‘‘अच्छा नहीं किया तुमने रॉबर्ट।  एक तरफ तुम सगाई करके आ रहे हो और दूसरी तरफ लीसा से प्यार जतला रहे हो? क्या मतलब हुआ इसका ? सिर्फ धोखा न?’’

‘‘नहीं टैरेन्स, मैंने धोखा नहीं दिया। मैं सचमुच लीसा से प्यार करता हूँ।’’

‘‘तो फ्लावरड्यू?’’

वह जबरदस्ती थोपा हुआ रिश्ता है। फ्लावरड्यू मेरे विचारों की नहीं है। वह अमीर खानदान की है। और घमंडी भी।’’

‘‘तो फिर तोड़ दो रिकरबाय परिवार से रिश्ता।’’

‘‘नहीं! वह मैं नहीं कर पाऊंगा। इस संबंध से फादर रॉडरिक जुड़े हैं।’’ रॉबर्ट ने कहा।

टैरेन्स गुस्से से उठकर खड़ा हो गया। अजीब मजाक बनाकर रखा है तुमने संबंधों को। यह भी नहीं, वह भी नहीं। तो फिर आखिर क्या?’’

‘‘नहीं मालूम।’’ रॉबर्ट भी उठकर खड़ा हो गया। दोनों अबोले से घर की ओर बढ़ने लगे। इंडिया जाना अभी भी अधर में लटका था। आर्मी हेड आज भी नहीं आए थे।

घर पहुंचकर उसने हैट उतारा। हैट में पक्षियों के पर लगे थे। पंपशू के भीतर खौंसा ट्राउजर निकाला और जूते उतारकर वह सिर पकड़कर बैठ गया। अजीब ऊहापोह की स्थिति थी।

‘‘टैरेन्स मैं उलझ चुका हूँ। मुझे लीसा से प्यार है। बहुत-बहुत प्यार। क्या करूं?’’

टैरेन्स ने कुछ नहीं कहा। रॉबर्ट भारी-भारी आँखों से टैरेन्स की ओर देखता रहा। शायद उसके पास कोई हल हो। हम कभी-कभी कैसे उलझ जाते हैं। चाहते हैं हल हमीं निकाल सकते हैं। लेकिन हम वैसा कर नहीं पाते। रॉबर्ट ने अपने आपको जकड़ा हुआ महसूस किया। अगर इस समय लीसा सामने आ जाए तो वह निश्चय ही उसे कहीं दूर लेकर भाग जाना चाहेगा।

ब्रिस्टल में अगले तीन दिन नाटक के शोज हैं। ‘‘क्या मैं ब्रिस्टल जाऊं?’’ फिर वही ऊहापोह की स्थिति है।

वह उसी सैन्य वर्दी में सो गया। सोने से पहले उसे लग रहा था जैसे वह बहुत रो चुका है। लेकिन आंसू नहीं निकलते। बस आँखें भीगती हैं। फिर सूख जाती हैं। कोई उसकी ज़िंदगी का फैसला क्यों नहीं कर देता। बिल्कुल अप्रत्याशित ही सही उसकी हथेली में सुख का टुकड़ा क्यों नहीं रख देता। कितना अकेला हूँ मैं।

न जाने कैसा सपना था। नींद गहरी थी, दु:खों से भरी। लीसा गहरी सांसे ले रही थी। वे दोनों भाग रहे थे। कीचड़ में शरीर लिपट रहा था। शायद बहुत बारिश हुई थी। लीसा आगे थी वह पीछे... रुको तो लीसा... यह कौन-सी दुनिया थी। उसने तो यह आज तक नहीं देखी, न सड़कें, न ऐसे सड़क किनारे मकान। यह कौन-सा शहर था। लीसा एक पेड़ के नीचे बैठी हाँफ रही थी। जब तक वह उसके पास पहुंचा वह दूसरी ओर बैठी दिखाई दी। उसके पास जाने की हर कोशिश नाकाम हो रही थी। और उसने देखा पत्थर पर लीसा नहीं बैठी है, लेकिन सांसों की आवाजें हैं और फिर उन सांसों में सिसकियां सम्मिलित हो गई थीं। वह हड़बड़ाकर जाग गया। यह कोई दु:स्वप्न था। 'लीसा कहाँ हो तुम?' वह चीख उठा। टैरेन्स सो रहा था। उसकी चीख सुनकर भी नहीं आया। लीसा तुम रो क्यों रही हो। मैं तो तुम्हारे पास ही हूँ। इतना पास कि तुम मेरा स्पर्श महसूस कर सकती हो। मैं तुम्हें प्यार करता हूँ लीसा... बगैर यह सोचे कि मेरी सम्पूर्ण ज़िंदगी पर किसी और का हक हो चुका है। न चाहते हुए। जैसे किसी जमीन पर चाहे न चाहे जमीन किसी मकान की दीवारें खड़ी कर देना।

वह कोई सोने का समय नहीं था। लेकिन दोनों ही सो गए थे। क्या टैरेन्स को भी कोई सपना आया होगा। दोनों में अबोला था। टैरेन्स उसकी इस हरकत से नाराज था और वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा था।

वह बरामदे में निकल आया। अरे, सचमुच बारिश हुई थी। वह बरामदे से उतरकर सामने गेट के बाहर चला आया। आसमान में बादल थे। लेकिन सफेद, रुई के बड़े-बड़े टुकड़े और उससे नीचे लेकिन बहुत ऊंचाई पर पक्षी उड़ रहे थे। लीसा ने बहुत सारे पत्ते इकट्ठे किए थे टैरेन्स के बंगलो से। ‘‘ये पत्ते तुम्हें मेरी याद दिलाएंगे।’’ रॉबर्ट ने कहा था। तब उन दोनों के बीच आकर्षण था और आज वह प्यार की गिरफ्त में हैं। उस समय साश्चर्य लीसा ने रॉबर्ट की तरफ देखा था।

‘‘कैसे?’’ लीसा ने पूछा था।

‘‘क्योंकि सम्पूर्ण सुंदर पत्तों को उठाने में मैं तुम्हारी मदद कर रहा हूँ।’’ दोनों हँस दिए थे।

 

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उठो टैरेन्स, हमें ब्रिस्टल चलना है। मुझे लीसा से मिलना है। यूं मुंह छुपाकर मैं जी नहीं पाऊंगा।’’ रॉबर्ट ने कहा। अचानक ही उसने फैसला किया अभी ब्रिस्टल में शोज के दो दिन बाकी हैं। वह ब्रिस्टल जाएगा।

‘‘हमें नहीं तुम्हें। तुम जाओगे ब्रिस्टल।’’ टैरेन्स ने कहा।

फिर न जाने क्या सोचते हुए टैरेन्स उठ बैठा।

‘‘नहीं! मैं भी चलता हूँ। शायद तुम्हारे निर्णय में कोई सहयोग कर सकूं।’’

टैरेन्स झटपट तैयार होने लगा। दोनों ने एक-एक बैग कंधे से लटकाने वाला तैयार कर लिया। अभी मोटर मिलेगी। मुंह में नाश्ता ठूंसते हुए टैरेन्स ने कहा।

दोनों चल दिए। मोटर स्टैण्ड तक जाने के लिए आठ सीटर फिटन भी मिल गया। भेड़-बकरी की तरह उसमें पन्द्रह लोग ठुंसे हुए थे। फिर भी समय से दोनों पहुंच गए।

ब्रिस्टल की मुख्य सड़क पर किसी पेन्टर द्वारा बनाया गया सुंदर पोस्टर लगा था। दोनों खड़े होकर देखने लगे। जिसने भी पोस्टर बनाया था उम्दा था। पूरे पोस्टर पर एक चेहरा निर्विकार-सा था। यह लीसा थी। सांकलों, बेड़ियों में जकड़ा उसका डरपोक प्रेमी और बाकी सैनिक नेपथ्य में थे, जिनके चेहरे स्पष्ट नहीं थे। सैनिक वर्दी में थे तो सैनिकों का आभास था। शाम तीन बजे से पूरे तीन शो थे। अर्थात लीसा, मि. ब्रोनी और सभी कलाकार वहाँ दो बजे तक तो मिल ही जाएंगे।

यानी पूरे तीन घंटे इधर-उधर घूमना है। दो बार तो वे थियेटर हो आए थे। जो बंद था। गेट पर बताया गया था कि कलाकार एक बजे तक आएंगे।

दोनों देर तक चाय पीते रहे थे। रॉबर्ट को अजीब सी उत्तेजना थी। कैसा व्यवहार करेगी लीसा। क्या मि. ब्रोनी उसे लीसा से मिलने देंगे? लेकिन फिर दिमाग सभी बातों को पीछे धकेल देता था। मि. ब्रोनी में एक इंसानियत थी। लेकिन क्या बोलकर वह उनके समक्ष जाएगा। चाय का आखिरी घूंट पीकर रॉबर्ट खड़ा हो गया। एक बजने में पंद्रह मिनिट बाकी है।

‘‘टैरेन्स तुम मिस्टर ब्रोनी को सम्हाल लोगे न?’’ बहुत असमंजस से टैरेन्स ने रॉबर्ट की ओर देखा। दोनों चल पड़े। यह तीसरी बार था जब वे थियेटर की ओर जा रहे थे। अच्छा खासा दूर था थियेटर। लेकिन रॉबर्ट मजबूर कर रहा था। पहली बार गये कि थियेटर किस जगह है। दूसरी बार कब खुलेगा यह पता लगाने और अब तीसरी बार उन लोगों से मिलने।

ग्रीन रूम की खिड़की से एक जोड़ी आँखें झाँक रही थीं। रॉबर्ट ठिठका, फिर बुदबुदाया-‘‘लीसा... टैरेन्स देखो लीसा...’’ लेकिन जब तक टैरेन्स ने देखा वे आँखें हट चुकी थी। ‘क्या लीसा को मालूम था कि मैं आऊंगा’ रॉबर्ट बुदबुदा रहा था। उसी समय ग्रीन रूम से बाहर की ओर मि. ब्रोनी आते दिखे।

निश्चय ही लीसा ने उन्हें भेजा होगा। वह दूर से ही रॉबर्ट को पहचान गई थी।

मि. ब्रोनी नजदीक आए तो रॉबर्ट मुस्कुरा दिया।

‘‘मि. ब्रोनी...’’ उसने उनको अभिवादन किया।

फिर चहकते हुए खुशी से बोला-‘‘मिस्टर ब्रोनी, ये टैरेन्स है... यही है, जिसके बंगले में आप ड्रामे की रिहर्सल करते हैं।’’

‘‘ओह! टैरेन्स।’’ उन्होंने सिर से पैर तक टैरेन्स को निहारा। मि. जॉन एफ पीटर और टैरेन्स में कहीं साम्य नहीं था। अगाथा पीटर को ‘धूप में जला सांड’ कहती थी। जबकि टैरेन्स सफेद रंगत का, लम्बा, दुबला, पतली नाक, चौड़े माथे वाला आकर्षक युवक था।

‘‘तुम अपनी माँ अगाथा से मिलते-जुलते हो।’’ मि. ब्रोनी ने कहा। फिर टैरेन्स को आश्चर्य करते देखा तो कहा-‘‘मैं तुम्हारी नानी मिसिज जोसेफ का पड़ोसी रहा हूँ। बल्कि मिस्टर जोसेफ मेरे खास फ्रेंड रहे हैं। इसलिए अगाथा, जी़निया और सभी बातों से बहुत अधिक परिचित हूँ। बल्कि तुम मुझे अपने परिवार का सदस्य ही समझ सकते हो।’’

फिर वे रॉबर्ट की ओर मुड़े। ‘‘मि. रॉबर्ट, तुम यहाँ क्यों आए हो? क्या उसे चोट पहुंचाने में लंदन के वे दिन काफी नहीं थे। लीसा तुमसे मिलना नहीं चाहती।’’

‘‘मिस्टर ब्रोनी।’’ भरे गले से इतना ही कह पाया रॉबर्ट।

‘‘उसे मालूम था तुम आओगे, लेकिन फिर भी वह तुमसे नहीं मिलना चाहती।’’ मि. ब्रोनी ने कहा। लेकिन तब तक रॉबर्ट ग्रीन रूम के अंदर दाखिल हो चुका था। पीठ थी लीसा की दरवाजे की ओर। आईने के समक्ष खड़ी वह अपनी पतली-पतली कलाईयों में कई तरह के मोटे-मोटे कड़े पहन रही थी। न जाने किस धातु के कड़े थे। लेकिन उनमें रंगबिरंगे चमकीले पत्थर जड़े थे। कई कड़े एकदम पतले थे। जब उसने अपने बालों को पोनी में लेने के लिए हाथ ऊपर किए तो कड़े झंकार उठे। रॉबर्ट ने एकदम कंधे के पास जाकर कहा-‘‘लीसा।’’ लीसा सिहर उठी।

‘‘मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ लीसा। लेकिन मैंने तुम्हें धोखा देना नहीं चाहा। मैं तुमसे प्रेम करता हूँ लीसा।’’

‘‘प्रेम?’’ वह पलटी। रॉबर्ट ने देखा कि दो दिनों में ही उसकी आँखों के नीचे काले घेरे आ गए हैं। नाक लाल है, शायद इस बीच वह बहुत अधिक रो चुकी है। मानो उसके प्रेमी को सचमुच मौत की सजा मिल चुकी है। इसीलिए वह भयभीत है। वह भयभीत है कि अब रॉबर्ट कभी नहीं मिलेगा और मिलेगा तो टुकड़ो-टुकड़ों में बंटा हुआ... नहीं उसे ऐसा जीवन नहीं जीना।

‘‘जानते भी हो रॉबर्ट प्रेम क्या होता है। क्या हथेली पर रखे धूल के कण जिन्हें जब चाहा उड़ा दो। जब चाहे  मुट्ठी में बंद करके उसे सहेज लो। जाओ रॉबर्ट, मैं तुम्हें माफ करती हूँ और यह अपेक्षा भी कि आज के बाद हम कभी नहीं मिलेंगे। औरत जितनी नम्र होती है, उतनी कठोर भी।’’ उसने सचमुच कठोरता से मुंह मोड़ा। रॉबर्ट नहीं देख पाया कि लीसा का चेहरा आंसुओं से भरा था। लेकिन टैरेन्स देख पाया। वह लीसा के सामने खड़ा था।

‘‘मैं टैरेन्स मिस लीसा।’’

‘‘हलो! तुमसे मिलने की सारी चाहत रॉबर्ट ने खतम कर दी।’’ लीसा ने कहा। और अपनी हथेलियों से गालों पर बहते आंसू पोछ डाले। तभी थियेटर की पहली घंटी बजी। सभी कलाकार उठ खड़े हुए। थियेटर का भारी भरकम नीला पर्दा उठ रहा था।

मि. ब्रोनी ने कहा-‘‘अच्छा टैरेन्स, रॉबर्ट हमारा शो शुरू होने वाला है। टैरेन्स, थियेटर की सारी टिकटें बिक चुकी हैं। अत: मैं तुम्हें शो देखने को आमंत्रित नहीं कर सकता। तुम लोग जा सकते हो। और रॉबर्ट, वह तुम्हें भुलाने का प्रयत्न करेगी। यूं उसकी ज़िंदगी में क्षमायाचना लेकर मत घुसो। तुम जानते हो, इससे कुछ फायदा नहीं होगा। न ही तुम लीसा को अपनाओगे। न ही उस रईस परिवार की लड़की को तुम छोड़ोगे। तो जाओ, मेरी तुमसे प्रार्थना है। मेरी लड़की तो टूट चुकी है। उसे जीने दो।’’

‘‘और सुनो टैरेन्स, अपनी नानी से कहना तुम मुझे मिले थे।’’ टैरेन्स ने ‘‘हाँ’’ में सिर हिलाया।

‘‘और तुम्हारी आंट जी़निया कहाँ है आजकल?’’

टैरेन्स का चेहरा जी़निया के नाम से बुझ गया। रॉबर्ट और मि. ब्रोनी दोनों ने एक साथ देखा।

टैरेन्स ने कोई उत्तर नहीं दिया।

टैरेन्स ने पीछे मुड़कर देखा मि. ब्रोनी ने अपनी गीली आँखें गोल काँच के चश्मे के पीछे छुपा ली हैं। वे आहत हैं लीसा के लिए।

थके कदमों से रॉबर्ट थियेटर के बाहर निकलने लगा। टैरेन्स भी बहुत उदास था।

......

दोनों वापिस घर लौट चुके थे। दैनिक जीवन में अपने को खपा देने की जी-तोड़ कोशिश दोनों ने की। टैरेन्स के मन पर डोरा छाई थी। वह एकांत में बैठकर दर्द भरे गाने गाता। और आँखों को भिगो लेता। वह डायरी लिखना चाहता था। लेकिन दो पंक्तियों से आगे वह नहीं लिख पाता। इससे तो अच्छा था कि जब वह मन की व्यथा लिखता तो माँ के पढ़ने के लिए डायरी टेबिल पर छोड़ देता था और उसका विश्वास था कि माँ डायरी पढ़ ही लेती हैं।

जबसे डोरा ज़िंदगी में आई थी उसने माँ से डायरी छुपानी शुरू कर दी थी। माँ पढ़ेंगी तो सब जान लेंगी। अब लगता है कि वही ठीक था। माँ को सब जान ही लेना था उसका दिल कहता था माँ सदैव उसके साथ थीं। अब वह क्यों अकेला महसूस करता है, उसने स्वयं ही तो माँ को अलग करना चाहा था।

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दिन फिसलने शुरू हो गए थे। टैरेन्स के स्वर में गुस्सा स्पष्ट दिखता था। एक दिन टैरेन्स ने कहा-‘‘रॉबर्ट चलोगे रोमन स्ट्रीट? वहाँ पर डोरा ने मिलने को कहा है।’’

‘‘लेकिन मैं, मैं क्यों? ...तुम जाओ न।’’ रॉबर्ट ने कहा।

‘‘नहीं! उसे समझाना होगा। तुम्हारे बगैर मैं आगे नहीं बढ़ पाता।’’

‘‘ठीक है चलूंगा, जैसे मैं स्वयं बहुत सफल व्यक्ति हूँ।’’

‘‘तुम निर्णय नहीं ले पाते रॉबर्ट... इसीलिए। किसी भी जगह रुके रहना तुम्हारी फितरत है। मुझे शक है तुम इंडिया जाओगे तो कभी वापिस भी लौटोगे?’’

रॉबर्ट सिर्फ देखता रह गया। क्यों अनिर्णित रह जाता है वह। क्या वह फादर रॉडरिक को सब कुछ बता नहीं सकता। कन्फेस तो कर ही सकता है।

पता नहीं कब डोरा स्मिथ से मिलने जाना होगा। बीच में कई दिन गुजर चुके थे। वैसा ही आकाश था, वैसे ही पेड़ थे। वैसा ही तारों भरा आकाश, जिसे लीसा भी देखती होगी। कैसे मिलेगी लीसा। क्या हम कभी नहीं मिलेंगे? अब तो ब्रिस्टल में भी शो हो चुके होंगे। वे लोग दूसरे शहरों में आगे बढ़ चुके होंगे। ऐसा लगता है। तारे अब ज्Þयादा नहीं चमकते। पेड़ भी खामोश खड़े रहते हैं। पत्तों ने झड़ना बंद कर दिया है। नई-नई कोंपलें दिखाई देती हैं पेड़ों पर। अर्थात नई ज़िंदगी की शुरूआत ...

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एक सुबह टैरेन्स ने कहा-‘‘कल खबर आई है। हम आज जा रहे हैं डोरा से मिलने। कई घंटों के बाद वे लोग डोरा के समक्ष खड़े थे। सफर इतना लंबा नहीं था, लेकिन कोई वाहन नहीं मिला था। अत: दोनों भूखे और थके महसूस कर रहे थे। ‘‘चलो कहीं बैठते हैं।’’ डोरा ने ही कहा था। टेम्स के किनारे-किनारे चलते हुए यही निर्णय हुआ था कि पहले कुछ खाएंगे, फिर बैठेंगे। खाने का जो कोन खरीदा, वह बहुत स्वादिष्ट था। उसमें उबली सब्जियाँ थीं। और अन्य मसाले। तीनों खामोशी से खा रहे थे। मानो कोई जरूरी काम कर रहे हों।

‘‘स्टॉक ब्रोकर ने मेरी शादी कहीं और तय कर दी है।’’ खाना समाप्त करते हुए डोरा ने कहा। वह अपने पिता को ऐसे ही बुलाती थी। क्योंकि वह एक सनकी और कंजूस व्यक्ति था। बस वह अपने बेटे को प्यार करता था, जो डोरा से छोटा था। और चुगलखोर भी था। पिता पत्नी और डोरा के लिए सख्त था। हमेशा कड़वा बोलता था। डोरा पर सख्त पाबंदियां थीं। पिता अपने बेटे को खर्च के लिए रुपए देता था। लेकिन डोरा को कभी नहीं देता था। पता नहीं वह यहां तक कैसे आई होंगी।

‘‘अपने ही जैसा कोई ढूंढ़ा है मेरे लिए स्टॉक ब्रोकर। शायद मुझसे उम्र में भी काफी बड़ा है।’’

‘‘मतलब?’’ टैरेन्स ने पूछा।

‘‘मतलब क्या?’’ स्टॉक मार्केट के दमघोटू वातावरण से वह अधिक कुछ जानता भी नहीं। एक दूसरा स्टॉक ब्रोकर मेरी ज़िंदगी में आ जाएगा। जो मुझ पर, मेरी भावनाओं पर हुकूमत करने लगेगा।’’ डोरा ने कहा।

‘‘और उम्र में बड़ा...।’’ टैरेन्स ने कहा।

‘‘तो क्या करूं मैं?’’

‘‘ऐसा मत कहो डोरा। कल ही हम दोनों तुम्हारे पिता से मिलेंगे। निश्चय ही कुछ हल निकलेगा।’’ रॉबर्ट ने कहा।

‘‘‘हल क्या? केवल ‘‘ना’’ या ‘‘हां’’। आर या पार। जानते हो रॉबर्ट, स्टॉक ब्रोकर मानने वाला नहीं। वह अपने विचारों से दुनिया को देखता है। कहेगा, क्या तुम्हारे घर में कोई बड़ा नहीं है, जो अपना विवाह स्वयं लगाने आ गए।’’ बहुत निराशा से डोरा ने कहा।

‘‘तुम्हारी माँ क्या कहती है?’’ रॉबर्ट ने पूछा।

‘‘क्या कहेंगी? वे एक हारी हुईं महिला हैं। स्टॉक ब्रोकर ने कभी उनकी इच्छा पूरी नहीं की। यहां तक कि किचिन में कब क्या पकेगा, यह भी वही बताएगा।’’

‘‘ओह! फिर भी हम कल उनसे मिलेंगे।’’ टैरेन्स ने कहा।

‘‘देख लो, क्या तुम्हारे डैड नहीं आ सकते, इस रिश्ते के लिए?’’ डोरा ने पूछा।

‘‘डोरा! वे यहां से 500 मील की दूरी पर हैं।ं खबर भिजवाना, उनका आना, क्या यह सब इतना सरल है? तब तक तो तुम्हारे डैड तुम्हारी सगाई भी कर चुके होंगे।’’ टैरेन्स ने कहा।

‘‘तो तुमने अपनी दादी से क्यों नहीं बात की? अभी ही तो तुम गए थे वहां।’’ डोरा ने पूछा।

‘‘हां! की थी।’’ टैरेन्स के चेहरे पर झूठ स्पष्ट था, जिसे रॉबर्ट देख पाया।

‘‘क्या कहा उन्होंने?’’ डोरा ने पूछा।

‘‘यही कि पहले मैं बात करूं, समझूं कि वे क्या चाहते हैं। फिर मैं आउंगी बात करने। माँ होती तो...।’’ रॉबर्ट ने टैरेन्स के घुटने पर हाथ रख दिया। टैरेन्स माँ के नाम से द्रवित हो उठता है।

डोरा उठकर खड़ी हो गई। ‘‘चलूंगी मैं। देर हो गई तो स्टॉक ब्रोकर मुझे फाड़कर दो डोरा बना देगा।’’ ऐसा लगा जैसे डोरा जानती थी कि स्टॉक ब्रोकर के समक्ष कुछ होने वाला नहीं है, कर लो कोशिश। डोरा आकर टैरेन्स से लिपट गई। उसके रूखे रेशमी बाल टैरेन्स की कमीज पर उड़े। रॉबर्ट आगे बढ़ गया। बाद में टैरेन्स रॉबर्ट के बराबर आ गया और दोनों साथ-साथ चलने लगे।

कितने उलझे रिश्ते थे सभी तरफ। एक दु:ख जो रॉबर्ट पर तारी था, एक दु:ख जो टैरेन्स की ओर मुड़ने को मुंह बाए खड़ा था। डोरा भी दु:खी थी। क्या डोरा को उसकी खुशियां मिल नहीं सकतीं।

एक तरफ डोरा के डैड स्टॉक ब्रोकर... दूसरी तरफ रिकरबाय खानदान... अपने-अपने दु:ख... मुट्ठीभर हवा... हथेली भर सुख। टैरेन्स पेड़ के नीचे से गुजरता हुआ जोर से उछला। उसने हाथ भर के पत्ते तोड़ लिए। टहनियों पर बैठे पक्षी भय से क्रांय-क्रांय करते उड़ गए। टैरेन्स ने पत्ते इतने जोर से मसोड़े कि उनके तीखे किनारों से उसकी हथेलियों में लाल निशान पड़ गए।

’’’

दूसरे दिन दोनों ही डोरा के मकान के सामने खड़े थे। टैरेन्स तो डर ही रहा था कि पता नहीं कैसा सलूक किया जाएगा उसके साथ। तभी मकान के पीछे से एक व्यक्ति वहां से निकला। उसके हाथ में उखाड़े हुए कुछ पौधे और कांटे वाली झाड़ियां थीं। टैरेन्स बुदबुदाया-‘‘यही है रॉबर्ट डोरा का स्टॉक ब्रोकर।’’

रॉबर्ट भी कसमसाया।

तभी अख्खड़ दिखता वह व्यक्ति गेट की तरफ बढ़ा। उन दोनों को वहां देखकर पूछा-‘‘क्या बात है, घर में जवान लड़की रहती है तो गेट पर खड़े रहकर इशारेबाजी करोगे?’’

‘‘नहीं, मि. स्मिथ, हम आपसे बात करने आए हैं।’’ रॉबर्ट ने कहा।

‘‘क्यों? मेरी उम्र के हो, मुझसे दोस्ती करोगे?’’

और भी चिढ़कर मि. स्मिथ ने कहा।

‘‘बिल्कुल नहीं। हमें आपसे अलग ही कुछ बातें करनी हैं।’’ रॉबर्ट ने पुन: कहा।

उन्होंने दोनों को ऊपर से नीचे तक देखा।

‘‘आओ।’’ वे मकान के पिछवाड़े की तरफ चलने लगे। वे दोनों भी साथ हो लिए। मकान के पीछे जमीन खुदी पड़ी थी। अनावश्यक पौधे निकाले जा चुके थे और कई तरह के बोए जाने वाले बीजों के पैकेट वहां रखे थे। उन्होंने खुरपी उठा ली। और जमीन को पुन: खोदने लगे। ‘‘बोलो।’’ उन्होंने बगैर उन दोनों की तरफ देखते हुए कहा।

‘‘जी! टैरेन्स की दादी स्वयं आकर बात करना चाहती थीं। लेकिन उनके घुटनों में बहुत दर्द रहता है। छड़ी लेकर चल पाती हैं...’’ रॉबर्ट की बात को आगे न सुनते हुए मि. स्मिथ ने कहा-‘‘क्या सोचा हम दो चले जाएं, कहें कि आपकी लड़की पसंद है, मेरी शादी कर दो।’’

‘‘हां! हां! वही।’’ रॉबर्ट ने खुश होकर कहा। लेकिन वे क्रोध में उठकर खड़े हो गए। ‘‘इसको मैं जानता हूं। मेरे घर के सामने से पहले निकला करता था। टैरेन्स नाम है इसका। लेकिन नौजवानों इतना स्पष्ट जान लो कि मेरी बेटी तुमसे हरगिज विवाह नहीं करेगी। कल रात ही उससे बात हो चुकी है। वह वहीं विवाह करेगी, जहां मैं चाहूंगा। मैंने उसकी शादी तय कर दी है। मेरे जैसे अमीर स्टॉक ब्रोकर के बेटे से। वह तुमसे शादी करके दिन भर तुम्हें सैल्यूट मारेगी? और न जाने कब तुम इंडियन आर्मी में भरती किए जाओ, तो क्या वह उन काले लोगों के बीच जाकर अपने सुनहरे दिन बिताएंगी। नो... हरगिज नहीं... अब तुम लोग जा सकते हो। और अपनी बूढ़ी दादी को यहां मत भेजना। जब मेरी ‘नो’ है तो यहां आकर उनके घुटने और भी दुखेंगे।

वे खड़े हो गए। उन्होंने रॉबर्ट के हाथ में कई कंटीली झाड़ियां थमा दीं। इन्हें बाहर जाते हुए गेट के एक ओर फेंक देना। टैरेन्स रुआँसा हो चुका था। रॉबर्ट ने झाड़ियों की एक डंडी पकड़ी और घसीटता हुआ गेट की तरफ ले जाने लगा। वरांडे में लकड़ी की जाफरी से डोरा झांक रही थी। टैरेन्स रुका, उसने देखा कि डोरा की आँखें लाल हैं, चेहरा भी लाल है। शायद कल रात उसे लेकर दोनों में लड़ाई हो चुकी है। तभी तो बुड्ढे को मालूम है कि वह सेना में है। टैरेन्स कुछ देर रुका, लेकिन डोरा ने उसे जाने का इशारा किया। टैरेन्स और रॉबर्ट दोनों ही मकान की ढलवां पगडंडी पर चल रहे थे। पहले वे डोरा के मकान के आसपास ही रहते थे। बाद में आर्मी क्वार्टर में रहने चले गए। तभी जब टैरेन्स डोरा के मकान के सामने से निकलता था तभी मिस्टर स्मिथ ने उसे देखा होगा।

मकान से दूर जानकर वे दोनों पेड़ के नीचे बनी पत्थर की पुलिया पर बैठ गए।

‘‘रॉबर्ट! मैंने ऐसे व्यवहार की आशा नहीं की थी। बुड्ढा बहुत सख्तमिजाज है।’’ फिर घोर निराशा में डूबते हुए उसने कहा-‘‘मैं तो सब कुछ हार गया रॉबर्ट... जो प्रिय है वह दूर चला जाता है, रॉबर्ट... ऐसा क्यों? मेरी माँ... फिर डोरा और अब तुम... तुम भी इंडिया चले जाओगे। रॉबर्ट ने उसका हाथ दबाया। मानो कह रहा हो चुप रहो टैरेन्स... कभी-कभी चुप्पी भी बहुत कुछ कह देती है।

काफी देर वे लोग वहां बैठे रहे चुपचाप। कहने को कुछ नहीं था दोनों के पास। दोनों की प्रेम-कहानियों पर भारी-भरकम पर्दा गिर चुका था।

अचानक सामने से मिस्टर स्मिथ आता दिखा। रॉबर्ट ने देखा जब वह पास आया तभी टैरेन्स ने भी देखा। दोनों उठकर खड़े हो गए। वह दोनों के पास आकर रुका।

‘‘तुम लोग अब तक यहीं हो। आखिर क्या चाहते हो?’’ मिस्टर स्मिथ ने कहा।

अचानक टैरेन्स बोल पड़ा-‘‘मिस्टर स्मिथ, मैं डोरा से प्रेम करता हूं। बहुत ज्यादा। मैं उसके बगैर कैसे रहूंगा। वह भी मुझे प्रेम करती है।’’

वह हंसने लगा। एक कुटिल हंसी। जो टैरेन्स के सीने के भीतर तक धंस गई।

मिस्टर स्मिथ ने कहा-‘‘प्रेम? क्या होता है? वह तो हो ही जाता है। वह भी प्रेम करेगी उससे, जहां उसका विवाह होगा। देखो, मि. टैरेन्स, व्यर्थ की भावनाओं में मत बहो। मेरा फैसला कोई बदल नहीं सकता।’’ कहते हुए वह चला गया।

वे दोनों उसे दूर जाते देखते रहे। टैरेन्स ने कहा-‘‘रॉबर्ट हम एक बार डोरा के पास चलते हैं। देखें कि वह क्या कहती है। एक आखिरी कोशिश।’’

‘‘ठीक है।’’ रॉबर्ट ने कहा।

दोनों डोरा के घर पहुंच गए. ऐसा लगा मानों डोरा जानती थी कि हम आएंगे। वह बाहर वरांडे में लकड़ी की जाफरी के पास माँ के साथ खड़ी थी।

माँ ने ही दरवाजा खोला। ‘‘मैं टैरेन्स और यह रॉबर्ट है।’’ टैरेन्स ने डोरा की माँ को परिचय दिया।

‘‘मैं जानती हूं। मैंने पीछे की ओर तुम लोगों को मि. स्मिथ से बातें करते देख लिया था। बच्चे। (उन्होंने बहुत प्यार से टैरेन्स की ओर देखा) कल रात डोरा में और उसके पिता में खूब लड़ाई हुई है। मि. स्मिथ ने गुस्से में फूलदान भी तोड़ दिया था। जिसका मुझे दु:ख है। लेकिन वह हठी और गुस्सैल इन्सान है। कुछ नहीं हो सकता। जितनी जिद हो सकती थी डोरा ने की। अब वह असमर्थ हो गई है। मुझे तो शुरू से ही इस घर में बोलने का हक नहीं मिला।

‘‘हक मिलता नहीं माँ, लिया जाता है।’’ डोरा ने कहा।

‘‘अब छोड़ो इन बातों को डोरा, सब कुछ हाथ से फिसल चुका है।’’ वे अपनी हथेलियां देखने लगीं। मानो अभी ही कुछ फिसला हो उनके हाथों से।

‘‘टैरेन्स तुम्हें डोरा को भूलना होगा। जितना आसान किसी की ज़िंदगी में दाखिल होना होता है, उतना ही कठिन ज़िंदगी से निकलना होता है। मैं जानती हूं, यह सब बहुत मुश्किल है, लेकिन तुम लोगों को करना होगा।’’ डोरा की माँ ने कहा।

डोरा चुप खड़ी थी। नीचे जमीन को देखती हुई। उसके आँसू बहकर गालों में चिपक गए थे। रॉबर्ट ने बहुत बेचारगी से डोरा को देखा, फिर टैरेन्स को। उसने टैरेन्स का हाथ पकड़ा, कहा-‘‘चलो टैरेन्स।’’

‘‘हां! तुम लोग जाओ। वो कभी भी आ सकता है। आज तो वह जरूर ही इधर-उधर होगा कि कहीं तुम लोग डोरा के घर न पहुंच जाओ।’’

जब दोनों बाहर निकले तो गेट के बाजू में पड़ी कंटीली झाड़ियों में टैरेन्स का पैर उलझा। वह गिरते-गिरते बचा। बोला-‘‘रॉबर्ट, अपना व्यक्तिगत युद्ध तो मैं हार ही गया।’’

..........

 

तो तुम मुझे प्यार नहीं करते रॉबर्ट?’’ लीसा ने उस दिन पूछा था।

‘‘प्यार! चार अक्षरों का एक शब्द कितनी जल्दी तय हो जाता है कि तुम मुझे प्यार करते हो या नहीं... कैसे कहूं लीसा... कि तुम्हारे साथ ही मैंने जाना है कि प्यार क्या होता है। और आज मैं उस प्यार की जबरदस्त गिरफ्त में हूं। सोचता है रॉबर्ट, क्या उसने कोई गलती की थी, धोखा दिया था। अगर वह लीसा के साथ आगे बढ़ा था तो उसके भीतर एक मासूमियत थी। लीसा को हासिल कर लेना उसका ध्येय नहीं था। परिस्थितियां ऐसी सामने आती गईं कि वे दोनों बगैर सोचे-समझे आगे बढ़ते गए। यह सच है कि फादर मान जाएं तो वह फ्लावरड्यू का रिश्ता भी तोड़ सकता है। जिस घराने से रिश्ता होना समाज की नज़र में एक बड़ी बात थी वह घराना लीसा के समक्ष उसके लिए कोई मायने नहीं रखता था। सचमुच टैरेन्स में एक साहस तो था कि वह डोरा के पिता के सम्मुख जा खड़ा हुआ था। उसके भीतर तो इतना साहस भी नहीं कि वह फादर रॉडरिक्स के सम्मुख जा खड़ा होए और कहे कि उसे फ्लावरड्यू से विवाह नहीं करना है। रॉबर्ट चाहता है कि फादर आएं और उसकी हथेलियां खोलकर उसमें लीसा को रख दें। लो मेरे बच्चे... अब तुम लीसा के साथ रहो। फादर उसके अंतर्मन में सदैव झांकते रहे हैं तो इस बार क्यों नहीं उन्होंने झांका।

‘‘तुम फादर रॉडरिक्स को बता क्यों नहीं देते कि तुम लीसा से प्यार करते हो।’’ सामने टैरेन्स खड़ा था और उसके विचारों के उथल-पुथल को शब्दों का रूप दे रहा था।

‘‘पता नहीं! टैरेन्स मुझमें शायद साहस नहीं है।’’ उसने उदासी से भरकर कहा।

‘‘तो फिर छोड़ो! लीसा को उसके हाल पर छोड़ दो। तुमने रिकरबाय घराने के वैभव के समक्ष अपने घुटने टेक दिए हैं।’’ आक्रोश से भर उठा टैरेन्स।

‘‘नहीं! बिल्कुल नहीं, लेकिन फादर मेरा अंतर्मन क्यों नहीं पढ़ पाते।’’ रॉबर्ट ने कहा।

‘‘काश! ऐसा होता रॉबर्ट, फादर रॉडरिक्स प्रभु होते।’’

उसके चेहरे पर व्यंंग्यात्मक हंसी थी। वह बाहर निकल गया। रॉबर्ट पुन: तकिए के सहारे लेट गया। टैरेन्स वापिस लौटा तो इस कदर उखड़ा हुआ था कि उसने दीवार पर कई घूंसे मारे। उसका चेहरा पसीने से भीगा हुआ था। बाल बिखरे हुए थे।

‘‘क्या करते हो? टैरेन्स...’’ रॉबर्ट ने उसके हाथों को पकड़ लिया।

‘‘मैं बुजदिल हूं... कायर हूं... मैं डोरा को लेकर भाग क्यों नहीं सकता? क्या हम अपनी ज़िंदगी अपने अनुसार नहीं जी सकते?’’ टैरेन्स चीख रहा था।

‘‘नहीं जी सकते। हम सेना के लिए वचनबद्ध हैं। लड़की को लेकर भागना सैनिक नियमों के विरुद्ध है। हम ट्रेनिंग पर हैं टैरेन्स।’’

‘‘और जब तक ट्रेनिंग खत्म होगी, डोरा किसी दूसरे से विवाहित हो चुकी होगी।’’ टैरेन्स फिर चीखा।

‘‘कहा न हम वचनबद्ध हैं।’’ शांति से रॉबर्ट ने कहा।

‘‘वचनबद्ध... वचनबद्ध... तुम इतने शांत कैसे रह सकते हो रॉबर्ट?’’ कहते हुए टैरेन्स पैर पटकता हुआ दूसरे कमरे में चला गया।

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‘‘तुम इंडिया जाने से पहले एक बार रिकरबाय घराने से मिलने चले जाओ।’’ फादर रॉडरिक्स ने रॉबर्ट से कहा।

दोनों चर्च के सामने पड़ी लाल बजरी की पगडंडी पर खड़े थे। बड़े-बड़े दरख्तों की छाया से मरी हुई धूप छनकर जमीन पर आ रही थी। न ठंड, न गर्मी... लेकिन हवा में तीखी चुभन थी।

‘‘नहीं फादर मैं वहां नहीं जा पाऊंगा। आर्मी की बहुत सारी फार्मेलिटीज पूरी करनी है।’’ उसने अपनी नज़रें नीची करते हुए कहा। सअबवत: यह पहली बार था जब रॉबर्ट ने फादर को कुछ मना किया था। वे चुप रहे। ‘‘ठीक है माई सन गॉड ब्लेस यू।’’ कहते हुए वे चले गए। बजरी पर वह अकेला खड़ा रह गया।

अपने क्वार्टर में अंदर जाते समय उसने सोचा - हां फ्लावरड्यू को इसकी सूचना अवश्य भिजवा दूंगा कि कब उसे यहां से जाना है।

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टैरेन्स अपने दु:ख अपने सुख डायरी में लिख लेता है। उसका मन शांत हो जाता है। हो ही जाता होगा ऐसा रॉबर्ट सोचता है। क्योंकि डोरा स्मिथ से संबंध टूटने के बाद भी टैरेन्स का चेहरा इतना उदास नहीं दिखता, जितना उसका। शायद इसलिए कि लीसा, से उसके संबंध घनिष्ट हो चुके थे। जबकि डोरा प्रेमिका थी। देह का रिश्ता उसका डोरा के साथ नहीं हुआ था। लेकिन तराजू के दोनों पलड़ों को वह समानान्तर पाता था।

टैरेन्स दो गिलास और रेड रम की बोतल लेकर रॉबर्ट के सामने आकर बैठ गया। दोनों गिलासों में रम भरी थी। कोई अफसाना नहीं था, जो दोनों के सामने खोला जाए। दो अध्याय थे, जो तकरीबन एक साथ ही बंद हो चुके थे।

‘‘रॉबर्ट! लीसा तुम्हें बहुत प्यार करती है।’’

रॉबर्ट सिर झुकाए बैठा रहा। फिर उसने ‘स्वीकृति’ में सिर हिलाया और सामने रखा रम का गिलास एक ही सांस में खाली कर दिया। रॉबर्ट की आँखों में दूसरे गिलास को खाली करते तक लाल डोरे चमकने लगे थे।

उसने गिलास जोर से पटका-‘‘मैं बेवफा हूं टैरेन्स। और अब मैं इंडिया जाना चाहता हूं।’’

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फादर रॉडरिक्स से मिलने वह गया था। ‘‘फादर नहीं मिल पाऊंगा फ्लावरड्यू से। सारे रिश्ते उलझ गए हैं। बस 15 दिन में इंडिया के लिए निकलना है।’’ उसने फादर से आशीर्वाद लिया। सामान भी पैक करना है। इंडिया जाने वाले सैनिकों की लिस्ट सेना मुख्यालय के हॉल की दीवार पर लगा दी गई थी।

उसमें एक नाम रॉबर्ट का भी था।

‘‘गॉड ब्लेस यू रॉबर्ट।’’ फादर की आँखें डबडबा आई थीं। न जाने क्यों उन्हें अहसास हो रहा था कि अब रॉबर्ट नहीं लौटेगा। और कभी लौटेगा भी तो वे नहीं होंगे इस दुनिया में।

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अमीरों के पास ही होती है ऐसी फिटन आकर आर्मी के क्वार्टर के सामने खड़ी हो गई थी। रॉबर्ट बाहर बरामदे में ही था। उसने देखा तो चौंक पड़ा। फिटन में से फ्लावरड्यू उसके दोनों छोटे भाई और माँ उतरीं। वह खुश था या सकपकाया हुआ समझ नहीं पाया। तब तक टैरेन्स भी आ गया था। उसने सभी का परिचय टैरेन्स से करवाया। टैरेन्स ने देखा फ्लावरड्यू हालांकि उम्र में काफी छोटी है, लेकिन उसके चेहरे पर न मासूमियत है न ही कम उम्र का कोई चिह्न... लड़कपन कुछ भी नहीं।  चेहरे पर एक कठोरता है, जो इतनी कम उम्र में नहीं पाई जाती। जबकि तुलना की जाए तो फ्लावरड्यू के सामने लीसा काफी भोली-भाली लड़की है। उसके चेहरे पर मासूमियत है, जबकि लीसा आर्थिक रूप से सशक्त नहीं है।

‘‘फादर रॉडरिक्स का संदेश आया था कि तुम कुछ ही दिनों में इंडिया चले जाओगे। और यह भी कि तुम्हें मिलने आने का समय नहीं है। अत: हम ही आ गए।’’ फ्लावरड्यू की माँ ने कहा।

‘‘थैंक्स! मिसिज रिकरबाय। मैं सचमुच आने में असमर्थ था। लेकिन आप लोग आ गए तो बहुत अच्छा लगा। वैसे भी मैं अकेलापन महसूस कर रहा था।’’ रॉबर्ट ने कहा।

‘‘मैं पूछ सकती हूं मि. रॉबर्ट कि तुम इंडिया क्यों जा रहे हो? एक पिछड़ा देश, काले लोगों का देश, जहां ईश्वर के रूप में नदी, तालाब, पहाड़, सांप, गायों की पूजा की जाती है। कितनी निरर्थक ज़िंदगी हो जाएगी हमारी। क्या वहां हमें अच्छा लगेगा।’’ फ्लावरड्यू ने पूछा।

‘‘यह फैसला तुमसे विवाह करने के पहले का फैसला है। मैं इंडिया जाना चाहता हूं... बस। इसलिए।’’ वह फीकी हंसी हंस दी। रॉबर्ट चिढ़ गया। वह हंसा नहीं।

‘‘कब आओगे विवाह करने?’’ माँ ने पुन: पूछा।

‘‘जैसे ही पहली छुट्टियां मिलेंगी तब।’’ रॉबर्ट ने कहा।

‘‘और यदि कोई बंगाली लड़की पसंद आ गई तो वहीं विवाह कर लोगे?’’ फ्लावरड्यू ने कहा।

‘‘नहीं ड्यू, मैं मद्रास जा रहा हूं। वह बंगाल के एक छोर पर है। और इंडियन लड़की से शादी नहीं करूंगा। तुमसे सगाई हुई है, तुमसे ही विवाह करूंगा। यह फादर रॉडरिक की इच्छा है।’’ रॉबर्ट ने उन्हें आश्वस्त किया।

माँ ने निश्चय ही सुख की सांस ली होगी।

‘‘हो सके तो अपने संदेश भिजवाते रहना।’’ माँ ने कहा।

‘‘हां! मैं टैरेन्स को भेजूंगा। वह आप लोगों को भेज दिया करेगा।’’ रॉबर्ट ने कहा।

तभी कमरे में एक बड़ा-सा बैग लिए फिटन के ड्राइवर के बाजू में बैठने वाले व्यक्ति ने प्रवेश किया।

‘‘हां! इधर रख दो।’’ उन्होंने टेबिल की ओर इशारा किया।

‘‘क्या है इसमें मिसिज रिकरबाय?’’ रॉबर्ट ने पूछा।

तुम्हारे लिए कपड़े हैं। कुछ खाने का सामान है, ऐसा जो 2-3 महीने खराब नहीं होगा। जहाज में तुम्हारे काम आएगा।

‘‘थैंक्स।’’ रॉबर्ट ने कहा।

वे लोग 2 घंटे बैठे रहे। टैरेन्स ने भी बातचीत में खूब हिस्सा लिया। टैरेन्स की फ्लावरड्यू से खूब पटी। दोनों खुलकर बातचीत करते रहे और हंसते रहे।

बाद में मिसिज रिकरबाय के इशारे पर टैरेन्स और वे स्वयं बाहर आ गए। फ्लावरड्यू के दोनों भाई तो पहले ही बाहर खेल रहे थे। रॉबर्ट मुस्कुराया... उसने फ्लावरड्यू को लिपटाया। फिर एक दीर्घ चुंबन लेकर बोला-‘‘ड्यू, इंतजार करना मैं जल्दी आऊंगा।’’

फ्लावरड्यू की आँखें भीगी हुई थीं। दोनों बाहर आ गए। सभी ने एक-दूसरे को विदाई दी। जहां तक फिटन और रॉबर्ट का क्वार्टर दिखाई देता रहा फ्लावरड्यू हाथ हिलाती रही। फिटन जब आँखों से ओझल हो गई तो टैरेन्स और रॉबर्ट घर के भीतर आ गए।

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