श्राप एक रहस्य - 19 Deva Sonkar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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श्राप एक रहस्य - 19

...." क्या कहा गुड़िया खो गयी है..?.."

सनसनी मामले की खबरों से न्यूज़ चैनल भर गए थे। जहां देखो बस हर जगह घाटी की ही खबरें चल रही थी। आख़िर बात ही इतनी बड़ी थी। प्रेस रेपोर्टसर्स का कहना था लगभग सत्तर लोग मारे गए थे, और अनगिनत लोग घायल। सबसे ग़ौर करने वाली बात थी, घायल लोगों का घाव अजीब तरह से बढ़ रहा था। जैसे घावों में कोई लगातार आहिस्ते आहिस्ते तेज़ाब डाल रहा हो और घाव अपना आकार बढा रहा था।

शहर का सरकारी अस्पताल लोगो से और रिपोर्टरों से खचाखच भरा हुआ था। लोगों की चिल्लम पुकार से अस्पताल का माहौल खासा मनहूसियत से डूबा लग रहा था। लाशों को पास के ही मोर्ग में रखा जा रहा था, लगातार पोस्टमार्टम जारी थी वाबजूद इसके मोर्ग में और लाशें रखने की जगह नही बची थी। लाशें लेकर जाता ही कौन...? घाटी में परिवार बचे ही कहा थे अब...! पास के शराब की दुकान में भी आज काफ़ी भीड़ थी। ऐसा लग रहा था जैसे एक ही रात में पूरी घाटी बर्बाद हो गयी। वो स्कूल का टीचर जिसे दोपहर के वक़्त ही लिली ने चेताया था वो भी इस वक़्त अपने घावों के दर्द से अस्पताल के एक किनारे पड़ा कराह रहा था, और पछता रहा था.....काश...काश उसने लिली की बातों पर ग़ौर किया होता।

घाटी में बचे खुचे लोगों को पुलिस ने बाहर निकाल दिया था,और किसी भी दूसरे का घाटी के आस पास भी जाना वर्जित था। लेकिन सोमनाथ चट्टोपाध्याय तो आज ही अखिलेश बर्मन के साथ घाटी में जाने की योजना बना रहे थे.... उन्हें अब उस से सीधे बात करनी है। लेकिन क्या ये इतना आसान था..? क्या वो बेवजह लोगों की जान लेने वाला इतनी आसानी से सोमनाथ चट्टोपाध्याय की बात मानेगा..? उसे घिनु कहना भी अब उसकी ताकतों का अपमान करने जैसा ही था , किसी को अंदाजा नहीं था उसकी ताकतें अब किस कदर बढ़ गयी थी।

वो अब एक ऐसी चीज़ बन गया था , जिसे ना कोई दर्द होगा ना कोई घाव, न ही मौत का डर। वो हवा की तरह आज़ाद था और आग की तरह डरावना। उसका अब ना कोई रूप ना कोई रंग था। ना कोई स्थायी आकार ना आवाज़। वो कभी पारदर्शी था तो कभी काली रात की तरह गहरी काली परछाई जैसा था।

हर तरफ़ पुलिस का पहरा था। पुलिस जो भुत प्रेतों में और अप्राकृतिक शक्तियों पर यक़ीन नही करता। पुलिस जो सिर्फ़ विज्ञान की भाषा समझता है। वो पूरी तैयारी से पहरे पर था, उनका मानना था ये काम किसी जंगली जानवरों के समुदाय का था, जो घाटी में जा घुसी है। दिन में तो वे नहीं मिले लेकिन रात जरूर वे सब एक बार और शिकार पर निकलेंगे। पुलिसिया दल अपने साथ विस्फोटक समान और बन्दूकों के साथ आया था। लेकिन काश की ये काम तब हुआ होता जब वो महज़ घिनु हुआ करता था, जब उसकी ताकतें सीमित हुआ करती थी। तब उसे वाक़ई एक जंगली जानवर समझा जा सकता था। लेकिन अब....अब उसको पकड़ पाने की उम्मीद करना ही बेवकूफ़ी भर थी।

रात के अंधेरे में घाटी ख़ुद एक दानव की तरह नज़र आ रहा था। झिलमिलाते झालरों से डूबे,लोगों की हंसी ठिठोली से लबरेज़ वहीं घाटी आज मरघट सा सन्नाटा ओढ़े बैठा था। लेकिन सोमनाथ चट्टोपाध्याय की हिम्मत को दाद देनी चाहिए। इतने कड़े पाबंदियों के वाबजूद वे घाटी में जाने के लिए तैयार थे। हालांकि चारों तरफ़ से कड़ा पहरा था लेकिन झरनों के नीचे से जाया जा सकता था। पहाड़ी सुरंगे भी मदद करेंगी घाटी तक जाने के लिए। अखिलेश बर्मन भी उनके साथ कदम से कदम मिलाने को तैयार थे....दोनों थे तो आम इंसान ही लेकिन समझिये आपके भीतर बसी अच्छाई आपको कितना हिम्मत दे सकती है।

झरनों के ठंडे पानी से भींगते हुए और पहाड़ो के उबड़ खाबड़ रास्तों को पार करते हुए दोनों घाटी की सीमा में आ पहुंचे थे। दूर उन्हें चहलकदमी करते पुलिस टीम दिखाई दे रहे थे। सोमनाथ चट्टोपाध्याय वैसे तो उम्र में बुजुर्ग थे लेकिन उनकी फुर्ती देखने लायक़ थी।

अभी उन्होंने घाटी के पतले संकरे रास्तों चलना शुरू ही किया था कि अजीब सा कुछ महसूस होने लगा। एक बेहद सड़ी हुई गंध उनके नथुनों तक पहुँची। अखिलेश बर्मन अपने फ़ोन का टोर्च जलाकर आस पास कुछ खोजने लगे। लेकिन तभी एक झटके में उनके हाथों से फ़ोन छीनकर सोमनाथ चट्टोपाध्याय ने उसे बिल्कुल ही बंद कर दिया। और बड़े आराम से बोले :-

" हमें जो भी करना है अंधेरे में ही करना होगा। "

अखिलेश बर्मन :- "लेकिन इतने घुप्प अंधेरे में हम उसे ढूंढेंगे कैसे..?"

सोमनाथ चट्टोपाध्याय :- " उसे ढूंढने की जरूरत नही, वो ख़ुद हमें ढूंढता हुआ आएगा। अभी फ़िलहाल माहौल को समझने की कोशिश करो।"

दोनों फ़िर खेतो के किनारे से चलने लगे। लेकिन तभी अखिलेश जी किसी चीज़ से फिसलकर निचे गिर पड़े। उनके धप्प से गिरने की आवाज़ इतनी ज़ोर से हुई कि पास के कैम्प में बैठे पुलिसकर्मी एक बार घाटी में छापा मारने के लिए आने लगे। वो तो सोमनाथ चट्टोपाध्याय ने किसी तरह अखिलेश जी को घसीटकर गन्ने के लंबे घने खेतों में छिपाया। अखिलेश जी अपने जूतों में एक उंगली फेरकर उस चिपचिपे चीज़ को छुआ और बोले... .:- "पैरों के नीचे गोबर आ गया था, इसलिए फिसल गया।"

सोमनाथ चट्टोपाध्याय ने अखिलेश जी की उसी उंगली को अपने नाक के पास लगाया और मुस्कुराने लगे। अखिलेश जी को हैरानी हुई। सांसे थमने वाले इन भयानक पलों में वे कैसे मुस्कुरा सकते है? उन्होंने उनसे मुस्कुराने की वजह पूछ ही ली।

पहले तो वे काफ़ी देर तक उनके सवाल को टालते रहे वे जवाब नहीं देना चाह रहे थे। लेकिन बार बार अखिलेश जी के पूछने पर उन्होंने आखिरकर बता ही दिया जिसे सुनकर अखिलेश जी के होश ही उड़ गए।

उन्होंने बताया। अभी अभी जिस चिपचीपे चीज़ से फिसलकर अखिलेश जी गिर पड़े थे, और अंधेरे में जिस चीज़ को वे गोबर समझ रहे थे वो असल में एक मरे हुए इंसान का "दिमाग़" था। जो उसकी खोपड़ी से निकलकर सड़क पर आ गिरा था....।।

उधर मरे हुए लोगों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स में एक चीज़ सभी मे समान देखें जा रहे थे....सभी लाशों के भीतर से उनका दिमाग़ गायब था....!!!!

क्रमश :-Deva sonkar