इत्ती सी हँसी, इत्ती सी खुशी Sunita Bishnolia द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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इत्ती सी हँसी, इत्ती सी खुशी

‘‘ इत्ती सी हँसी, इत्ती सी खुशी ’’
‘‘नानी जी आज हम न्यू हाउस में शिफ्ट हुए हैं, मम्मी-पापा घर का सामान जमा रहे हैं। मैं ममा से कह दूंगी वो फ्री होते ही आपको कॉल कर लेंगी।’’- कहते हुए अंशु ने फोन कटा और मम्मी के पर्स में रखकर दौड़ने लगी नए दोस्त मनप्रीत और बड़े भाई सोनू के साथ।
तभी फर्स्ट फ्लोर की बालकनी से झांकते हुए सुमन ने कहा - ‘अंशु, सोना ऊपर आओ जल्दी।" अंशु के हाथ में अपना पर्स देखकर सुमन फिर बोली - "ओहो! अंशु ये पर्स नीचे क्यों लाई ,चलो अब आओ ऊपर।"
सुमन बच्चों को ऊपर बुला ही रही थी कि पार्किंग शेड के नीचे से बाहर निकलते हुए मकान मालकिन आंटी ने कहा - ‘‘हाँ ! बेटा मैं भेजती हूँ बच्चों को..... बड़े प्यारे बच्चे हैं।’’
सुमन ने नहीं देखा था कि बच्चों के साथ आंटी खड़ी है वो अचानक आंटी की आवाज सुनकर अचकचा गई और बोली - "अरे! आंटी जी नमस्ते...! आप हैं बच्चों के साथ फिर कोई बात नहीं।"
आंटी कुछ और बोलती तभी अन्दर से किसी के जोर-जोर से रोने और चिल्लाने की आवाजें आने लगी ।
दरवाजा खुला था इसलिए आवाज़ें बाहर बरामदे तक बिल्कुल साफ सुनाई दे रही थी। आवाज सुनते ही आंटी फटाफट अंदर भागी और पीछे-पीछे मनप्रीत भी दोनों नए दोस्तों को बाय में हाथ हिलाते हुए घर के अंदर चला गया। अचानक हुए इस घटनाक्रम से अंशु और सोनू डर गए और वो दौड़ते हुए ऊपर अपनी मम्मी के पास आ गए।
"फेर कपड्यांच टॉयलेट कर दित्ता.. बता नी सकदी सी तू…!" आंटी की गुस्से में भरी आवाज इतनी तेज थी कि बच्चों को लगा ये आवाज तो पीछे से यानी हमारी रसोई के बाहर से ही आ रही है। आंटी की आवाज के साथ ही रोने और चिल्लाने की आवाजें तेज हो गई।
रोने की आवाज़ घर के पीछे के बरामदे में बने कमरे से आ रही थी और चिल्लाने की घर के अन्दर से। रोने की भारी-भारी आवाज़, बिना रूके आए जा रही थी। कभी वो आवाज तेज हो जाती तो कभी धीरे और कभी लगता जैसे रोने वाला व्यक्ति जिद कर रहा है और उसकी बात मानी नहीं जा रही ।
ये सारी आवाजें सुनकर फर्स्ट फ्लोर पर आज ही रहने आए नए किराएदार राजेश और सुमन बहुत घबरा गए।
दोनों बच्चे तो पहले ही बहुत ही डरे हुए थे और डर के मारे दोनों सुमन से आकर चिपक गए। दोपहर के लगभग तीन बज गए थे बच्चों को बहुत भूख लगी थी। ज्यादा काम और थकान के कारण सुमन खाना बना नहीं पाई। इसलिए राजेश रसोई में जाकर बच्चों के लिए बिस्किट नमकीन ले आया और बोला-"जब तक मैं खाना लेकर आता हूँ तब तक तुम बच्चों को बिस्किट खिला दो।
राजेश ने गाड़ी की चाबी हाथ में ली ही थी कि दरवाजे की घंटी बजी उठी । सुमन ने दरवाज़ा खोला तो देखा नीचे वाली भाभी यानी आंटी की बहू ने सुमन को एक प्लेट से ढ़की हुई थाली और डोंगा पकड़ाते हुए कहा -" भाभी आप लोग बहुत थक गए होंगे और बच्चों को भूख भी लगी होगी। सोचा था जल्दी से खाना बनाकर भिजवा दूंगी पर देर हो ही गई। मैंने 'राजमा-चावल' और सूखे आलू बनाए हैं आप लोग फटाफट खा लीजिए।"
नीचे के माहौल को देखते हुए मकान मालिकों से पानी मिलने तक की उम्मीद नहीं थी और हुआ इसके उलट। जिसके लिए सुमन बिल्कुल तैयार नहीं थी और हो भी कैसे भई मकान बदलते हैं तो काम तो बढ़ता ही है।और किरायेदारों को खाना खिलाने की जिम्मेदारी मकान मालिक की थोड़े ही होती है। इसलिए सर्वजीत के खाना लेकर आने पर सुमन बोली - "अरे! भाभी इसकी क्या जरूरत थी, राजेश जा ही रहे थे खाना लेने।"
'जरूरत क्यों नहीं थी मुझे दिख नहीं रहा था क्या कि आप कितने बिजी हो, खाना कैसे बनाओगे और बच्चों को तो खाना टाइम से खिला देना चाहिए। "
सर्वजीत की आत्मीयता देखकर सुमन गदगद हो गई, उसके पास सर्वजीत को कहने के लिए कोई शब्द नहीं थे। फिर भी वो मुस्कराते हुए बोली - "थैंक्स भाभी! अरे आप बाहर ही खड़ी रहेंगी क्या अंदर तो आइए।"
सुमन की बात सुनकर सर्वजीत भी मुस्करा कर बोली -
" नहीं भाभी फिर आऊंगी अब मैं चलती हूँ मम्मी ने' बाजी' दी को खाना खिला दिया होगा मैं मम्मी का भी खाना लगा देती हूँ। और आप मुझे सर्वजीत कहें तो मुझे ज्यादा अच्छा लगेगा। "
सर्वजीत के आने पर राजेश अंदर वाले कमरे में चला गया था और जैसे ही सर्वजीत नीचे गई वो बाहर आ गया। दोनों को समझ नहीं आ रहा था कि नीचे इतने शोर-गुल का क्या कारण है और ऐसे माहौल में भी में मन में किरायेदारों के लिए इतना प्रेम, इतनी आत्मीयता…..!
चण्डीगढ़ वेल प्लान्ड सिटी है वहाँ सभी मकानों के एक जैसे नक्शे हैं इसलिए सुमन या बच्चों को लगा ही नहीं कि हम किसी दूसरे मकान में शिफ्ट हुए हैं। पिछले फ्लेट की तरह इस फ्लेट में भी तीन कमरे और पीछे टॉयलेट बॉथरूम किचन और छोटा सा बरमदा । बरामदा बहुत छोटा नहीं है वहाँ टी-टेबल के साथ दो-तीन कुर्सियाँ लगाकर बैठा जा सकता है।
सेक्टर बीस स्थित इस फ्लेट की ये खासियत है कि इसके बिल्कुल पीछे बहुत बड़ा पार्क है, पार्क के दूसरी तरफ मठ-मंदिर, एक तरफ लड़कियों का स्कूल और दूसरी तरफ चंडीगढ़ की सबसे बड़ी मस्जिद है जहाँ शुक्रवार को बहुत बड़ा मार्केट लगता है। राजेश और सुमन ने ये फ्लेट यही सोचकर लिया था कि बच्चे पार्क में अकेले भी खेलेंगे तो अपने घर से उन्हें देखते रहेंगे।
राजेश ने बरामदे में टेबल कुर्सी जमा कर रख दी थी कि शाम के समय यहाँ बैठकर पार्क की हरियाली देखते हुए चाय पिया करेंगे।
सभी ने अंदर बैठकर खाना खा लिया पर पीछे अभी भी लगातार अवाजें आ रही थी। रसोई में जाने पर राजेश को लगा किसी ने रोने वाले व्यक्ति को जोर से थप्पड़ मारा है इसलिए रोने की आवाजें कम होने की बजाय बढ़ गई।
बच्चों को राजमा-चावल बहुत पसंद आए उन्होंने मम्मी से कहा आप भी ऐसे ही राजमा बनाया करो। सुमन बच्चों को चुप रहने का इशारा करते हुए हाथ धुलाने के लिए वॉश बेसिन तक लाई और उनके हाथ धुलवाकर वापस कमरे में ले गई। वो राजेश से कुछ पूछना चाहती थी परन्तु राजेश ने इशारे से सुमन को बच्चों के सामने कुछ भी पूछने से मना कर दिया। बच्चे थक गए थे इसलिए खाना खाते ही सो गए तब तक नीचे भी शांति हो गई थी। शाम के छह बजे के करीब बच्चे उठे और उठकर अंशु वॉशरूम लिए पीछे गई ।
नीचे पूरी तरह शांति थी अंशु का एक मन तो हुआ कि वो नीचे झाँककर देखे पर पापा ने पहले ही मना कर दिया था कि बिना काम के नीचे नहीं झांकना क्योंकि पीछे के बरामदे में कोई बैठा हो तो अच्छा नहीं लगता। अंशु पापा की हर बात मानती थी इसीलिए वो चुपचाप कमरे में आने लगी पर अचानक उसका मन किया और उसने नीचे झांककर देखा तो मकान मालकिन आंटी सुबकते हुए कपड़े धोती जा रही थी साथ ही बड़बड़ाती भी रही थी-
‘‘इन्नी वारी समझा दित्ता पर फेर वी नी वतादी ,सब कुछ कपड़्यांच करणा है ईने। सारा दिन ई दे कपड़े धोनी रहंनी हां । ओ ‘बाबाजी महर कर ई कुड़ीते.......। ’’
तभी बरामदे में बने कमरे के दरवाजे में व्हील चेयर पर बैठी लगभग पच्चीस - तीस वर्षीय लड़की .... ऊपर देखते हुए हाआ.... आ आ .... म.... म. उ... .हा हा ... हा आ ।’’ करके चिल्लाने लगी।
ये देखकर अंशु जोर से भागी और मम्मी के चिपक कर रोने लगी। उसकी साँसें तेज चलने लगी और वो बहुत घबरा गई थी। सुमन कुछ समझती उससे पहले ही वो रोते-रोते बोली- ‘‘ममा मैंने कुछ नहीं किया। वो.. अपने आप….!" सुमन को समझ नहीं आ रहा था कि अब वो क्या करें।? उसने अंशु से कहा - " आपको पापा ने मना किया था ना नीचे झांकने से। "
माँ की बात के जवाब में अंशु कुछ नहीं बोली।
पर नीचे से लगातार वही ... आ... आ....हा आ की .....आवाजें आ रही थी। तभी नीचे से आंटी की आवाज आई वो नीचे से अंशु और .सुमन को आवाज लगा रही थी । पहले तो सुमन ने - "सोचा क्या करूँ ? क्या कहूँगी आंटी से ये क्या कर दिया अंशु ने ।" पर नीचे से दूसरी बार आंटी को अपने नाम से आवाज लगाते सुना तो वो जल्दी से पीछे बरामदे में गई और-"‘जी आंटी" जी कहते हुए वो थोड़ा मुस्कुराई।
मकान में आने के बाद सुमन ने पहली बार ही नीचे झाँककर देखा है वो यह देखकर हैरान हो गई कि नीचे पूरे बरामदे में तार ही तार बंधे थे और हर तार पर कपड़े सूखे हुए थे। कपड़ों के बीच से निकलती हुई आंटी ने कहा-
"बेटा अंशु को बुला तो ज़रा । देख बाजी’’ उसे देखना चाहती है। उससे बात करना चाहती है।"
‘बाजी! " सुमन ने आश्चर्य से कहा।
‘‘हाँ, ये देख ये है मेरी बड़ी बेटी बाजी। बाजी देखो भाभी!" कमरे के दरवाजे से बाहर सूखती हुई बेडशीट को आगे खिसका कर ऊपर हाथ करते हुए आंटी बोली।
बीमारी के कारण चलने फिरने से लाचार, टेढ़े पैर, आगे मुड़े हुए दोनों हाथों को नमस्ते करने के लिए ऊपर उठाने की कोशिश करती बाजी।
लाल रिबन से गुंथी हुई लंबी चोटियों को हिलाकर हँसते हुए अभिवादन में - "न..अ..ते ..बा.. बी" कहती हुई बाजी बड़ी सी मुस्कान बिखेर देती है।
बाजी के भावों और गतिविधियों से ऐसा लगता था जैसे वो बहुत कुछ बोलना चाह रही है पर उसकी जुबान उसका साथ नहीं दे रही। बोलने की असफल कोशिश करती प्यारी सी बाजी को देखकर सुमन ने नमस्ते किया।
बाजी ने सुमन को इशारों से बताया कि वो अंशु और सोनू को बुलाए पर बाजी की कही बातें सुमन नहीं समझ पाई तो आंटी ने उसे बताया कि ये बच्चों और भैया को देखना चाहती है।
सुमन ने राजेश और दोनों बच्चों बाहर बुलाया और बताया कि बाजी दी आप सभी से मिलना चाहती है। राजेश ने बाजी की तरफ हाथ हिलाया तो आंटी ने बाजी को बताते हुए कहा - " देख बाजी भईया। "
राजेश को देखकर बाजी थोड़ा शरमाई और जोर से हँसकर बोली … ब.. ई.. या । सुमन ने बच्चों को भी बाजी से मिलवाया तो उन सभी को देखकर कर वो इतनी खिलखिलाई, इतनी खुश हुई जैसे उसे कोई खजाना मिल गया हो।
अब बाजी ने माँ से ज़िद्द कर ली की अंशु को नीचे बुलाओ।
मम्मी के पल्लू की ओट से झांकती अंशु को देखकर आंटी समझ गई थी कि अंशु अभी डरी हुई है।इसलिए उन्होंने बाजी को समझाते हुए कहा-
‘‘अभी अंशु पढ़ाई करेगी,कल आएगी अपनी दीदी के पास,आएगी ना अंशु ?’’
आंटी जी के पूछने पर सुमन ने अंशु को आगे करते हुए कहा - ‘‘हाँ, आंटी जी कल आ जाएगी । अंशु जाओगी ना दीदी के पास। बोलो दीदी मैं कल आऊंगी ’’
अब अंशु का डर कम हो गया था वो बोली- ‘ हाँ दीदी मैं कल आऊँगी।’’ जैसे ही अंशु ने ये कहा बाजी बहुत खुश हुई...वो एक टक अंशु को देख रही थी जैसे वो अंशु के मुँह से ये शब्द सुनने को ही तरस रही थी।
सुमन को बच्चों को पढ़ाना भी था और खाना भी बनाना था इसलिए वो बच्चों को लेकर अंदर आ गई और राजेश को निर्देश दिया कि बच्चों का होमवर्क करवा दे।
सुमन बच्चों को लेकर जैसे ही अंदर आई नीचे वही चीख ‘चिल्लाहट’ होने लगी।
सुमन को जहाँ तक समझ आया- आंटी अपनी छोटी बेटी नवू और पोते मनप्रीत से कह रही थी- ‘‘मनप्रीत एदर आ पुतर थोड़ी देर बुआ दे नाल बैठ । नवी तू की कर दी पई है एदर आई पुतर।’’.
बरामदे में खड़ी सूखे कपड़ों की तह करती हुई आंटी बोलती जा रही थी और ‘‘बाजी’ घर के अंदर जाने की जिद़ करती हुई चिल्ला रही थी। ’’ पीछे का ये कमरा ही बाजी और आंटी की पूरी दुनिया था। ज्य़ादा ही हुआ तो उसकी व्हील चेयर को कभी-कभी कमरे से बाहर निकाल कर दिया जाता। वो रोज़ घर के अंदर जाने की ज़िद्द करती और आंटी उसे समझाकर चुप कर देती।
छोटी बहन तो फिर भी बाजी की चोटी बनाने, और उसके कपड़े बदलवाने में माँ की मदद के लिए कमरे में आ जाती थी। पर बाकी घर का कोई सदस्य उधर झाँकता भी नहीं था।
सुमन को यहाँ रहते लगभग दो साल हो गए पर उसने बेटा-बहू को कभी पीछे आते नहीं देखा और सात साल का पोता मनप्रीत कभी-कभी पीछे बरामदे में अपना स्कूटर जरूर चला लेता पर बुआ के कमरे में नहीं जाता था।वैसे बाजी के भाई-भाभी परमजीत और सर्वजीत दोनों बहुत ही सुलझे हुए और समझदार थे। दोनों सुमन और राजेश को बड़े भाई भाभी की तरह मानते थे इसलिए सुमन सर्वजीत को समझाती भी थी कि बाजी के पास बैठा करो उससे बात किया करो और मनप्रीत को भी समझाओ कि वो बुआ के पास बैठा करे।अब सुमन तो बस उन्हें समझा सकती थी उनके घर के मामलों में ज्यादा दखल तो नहीं दे सकती थी ना।
इन दो सालों में सुमन ने देखा कि आंटी का आधे से ज्यादा टाइम तो बाजी के कपड़े धोने में ही निकल जाता था क्योंकि ‘बाजी’ को हर एक घण्टे में टॉयलेट-पाॅटी कर कपड़े खराब कर देती थी। उसे पता ही नहीं चलता कि कब क्या करना है। महीने के तीन-चार दिन तो वो स्त्री जनित समस्या से भी परेशान रहती। हालांकि बाजी को इस बारे में कुछ नहीं पता रहता और ये समस्या भी आंटी पर ही भारी पड़ती।
अंदर धँसी आँखों के नीचे गहरे काले घेरे, पिचके गाल, हड्डी के रूप में बाहर निकल आई लम्बी ठड्डी और पतली इतनी कि जरा सी हवा से उड़ जाए। बाजी के साथ उसके दुख और तकलीफ की भोक्ता आंटी अब बस ऐसी ही रह गई थी ।
आंटी की एक विशेषता थी कि वो कभी बीमार नहीं होती या परिस्थितियां उन्हें बीमार होने नहीं देती।सुमन ने महसूस किया जैसे बाजी घर में तिस्कृत थी वैसे ही आंटी का भी घर में सम्मान नहीं था । उन्हें घर के किसी फैसले में में शामिल नहीं किया जाता। ।
रात के समय जब कभी बाजी जिद़ करती या रोती और अगर आंटी उसे चुप नहीं करवा पाी तो अंकल यानि आंटी के पति बहुत गुस्सा करते और आंटी को उसे चुप करने को कहते। और अगर बाजी फिर भी चुप नहीं होती तो अंकल पहले बाजी को थप्पड़ लगाते और बाद में बीच बचाव करती आंटी को।
छोटी बेटी माँ और बहन की बहुत परवाह करती थी पर वो पढ़ाई करती थी इसलिए कम ही समय निकाल पाती थी। अब तक सुमन पहचान गई थी कि बेटे-बहु की अपनी अलग ही दुनिया थी।उन्हें बाजी से कोई लगाव नहीं था। वो दोनों जब भी आंटी से बात करते तो बाजी के कारण नींद आपनी नींद खराब होने कि उलाहने देते या माँ के सामने ही बाबाजी से बाजी की मुक्ति की प्रार्थना।
बाजी कई बार अंशु अपने पास बुलाने की ज़िद किया करती तो थी पर ऐसे माहौल में अंशु का उसके पास भेजना सुमन को अच्छा नहीं लगता था। फिर भी कभी-कभी वो उसे भेज ही दिया करती थी। अंशु के अपने पास आने पर बाजी जैसे उसकी माँ ही बन जाती। बाजी जो बोलती वो तो अंशु समझ नहीं पाती । पर उसके इशारे उसकी भावनाएँ वो पूरी तरह समझती थी। बाजी अपनी माँ को समझाती कि छोटी बच्ची आई है इसे कुछ खिलाओ । दूर बैठकर बात करती अंशु को अपने पास बुलाकर उसे अपने हाथों से छूने की कोशिश करती ।
अंशु को भी बाजी दीदी बहुत अच्छी लगती थी इसलिए वो ऊपर के बरामदे से झाँककर भी उनसे बातें करती रहती थी।
इस मकान में आने के बाद राजेश या उसके परिवार को लगा ही नहीं कि वो यहाँ किराएदार हैं। यहाँ उन्हें इतना सम्मान और प्रेम मिला कि पता ही नहीं कैसे समय पंख लगाकर उड़ गया और राजेश के ट्रांसफर के ऑर्डर आ गए। उन्होंने पूना शिफ्ट होने की पूरी तैयारी कर ली थी। संडे को निकलने का प्रोग्राम था पर संडे को ही मकान मालकिन की छोटी बेटी नवू की शादी थी। राजेश से परमजीत ने साफ कह दिया था कि वो शादी के बाद ही पूना जाएंगे। सरदारों में शादी दिन में ही होती है इसलिए राजेश को कोई दिक्कत नहीं थी। वो लोग उन लोग चंडीगढ़ से पूना मंगलवार को जाने वाले थे और दो दिन अपने दोस्तों के साथ रहने वाले थे।
शनिवार तक घर शादी की कोई खास चहल-पहल नहीं लगी पर संडे को सुबह ही गीतों की आवाज़ आने लगी। सुबह नौ-दस बजे के लगभग घर के सारे सदस्य और आए हुए मेहमान होटल चले गए जहाँ शादी थी।
पर माँ-बेटी के कमरे से आज भी वही कपड़े धोने की आवाजें आ रही थी। सुमन को बहुत आश्चर्य हुआ कि रोज चीखने चिल्लाने वाली बाजी आज इतनी चुप कैसे है।
‘‘ममा आज बाजी दीदी ने बिल्कुल शोर नहीं किया।
अंशु ने सुमन के मन की बात ही कह दी थी। सुमन ने उसे समझाते हुए कहा- हाँ बेटा आंटी जी ने समझा दिया होगा कि घर में मेहमान आए है शोर नहीं करना।’’
‘ममा दीदी समझती है क्या? ’’
‘‘हाँ...... हाँ क्यों नहीं, समझती है तभी तो तुम्हें इतना प्यार करती है।’’
‘ममा हम यहाँ से चले जाएंगे तो क्या दीदी मुझे याद करेगी। ‘‘हाँ क्यों नहीं करेगी, क्या तुम्हें दीदी की याद नहीं आएगी।’’ ‘‘ममा मुझे भी दीदी की बहुत याद आएगी, घर मुझे कैसे पता चलेगा कि दीदी मुझे याद करती है।’’
"जब भी तुम्हें दीदी से बात करने का मन होगा हम सर्वजीत आंटी के मोबाइल पर विडियो कॉल करेंगे।"

दोनों माँ-बेटी बातें कर रही थी और उधर सोनू टी.वी. पर पोकेमोन देखने में व्यस्त था। पर अचानक आकर बोला- ‘‘ममा भूख लगी है कब चलेंगे शादी में।’’
"बेटा पापा आतें ही होंगे उनके आते ही चलते है। तब तक कपड़े बदल लो। "
सुमन ने अधिकतर कपड़े पैक कर के रखदिए थे बस सबके लिए शादी में पहनने के हिसाब से एक-एक अच्छी ड्रेस बाहर रखी थी।
पिछली साल सुमन ने अपनी ननद की शादी में अंशु को लहंगा बनवा कर दिया था। वो लहंगा अंशु को बहुत पसंद था इसलिए अंशु अड़ गई कि मैं तो वही लहँगा पहनूंगी नहीं तो शादी में नहीं जाऊँगी।
सुमन जानती थी अंशु की जिद को इसलिए उसने पैक करके रखे हुए कपड़ों में से अंशु को लहँगा निकालकर पहनाया। तब तक राजेश भी आ गया था और सब तैयार होकर निकल ही रहे थे कि बाजी के चीखने चिल्लाने की आवाजें आने लगी।
राजेश उन्हें जल्दी आने की कह कर नीचे जाकर गाड़ी में बैठ गया पर सुमन और अंशु का मन नहीं माना वो बालकनी की तरफ भागी और नीचे झाँककर देख तो देखकर डर गई। उन्होंने देखा कि बाजी बैड से नीचे गिर गई है और उसके चोट लगी है। आंटी उसे उठाने की कोशिश कर रही है पर उसने आंटी के हाथ पर जोर से काट लिया। ये देख सुमन से रहा नहीं गया। उसने कहा- ‘‘आंटी गेट खोलों मैं आती हूँ।’’
आंटी के गेट खोलते ही सुमन, अंशु और सोनू को गाड़ी में बैठने का कहकर ‘बाजी’ के कमरे की ओर दौड़ी।
सोनू तो जाकर गाड़ी में बैठ गया। परन्तु अंशु सुमन के पीछे-पीछे अंदर चली गई। जोर से गिरने से बाजी के सिर में चोट लगी थी। सिर से खून बह रहा था और टॉयलेट कर देने के कारण कपड़े भी गंदे हो गए थे।उसने बाल बिखेर लिए थे और वो लगातार चिल्लाए जा रही बाजी का रौद्र रूप देखकर पहले तो माँ-बेटी घबरा गई कि कहीं बाजी उन्हें भी कोई नुकसान ना पहुँचा दे। क्योंकि बाजी ने आंटी के हाथ पर बहुत ही बुरी तहर काटा था। पर अंशु ने जैसे ही ‘बाजी दीदी’ कहा बाजी बिल्कुल शांत हो गई जैसे जलती हुई आग शीतल पानी गिरने पर बुझ जाती है।
अंशु को देखकर बाजी खिल खिलाकर हँस दी और बोली -‘आ….जू. आ..आ.. ओ’’
बाजी के मुँह से अपना नाम सुनते ही माँ का हाथ छोड़कर अंशु बाजी के पास आ गई। बाजी अंशु को आ…….. ऊ और भाभी को बा.. बी कहती थी।
एक तरफ बाजी के सिर से खून निकल रहा था और दूसरी तरफ आंटी दर्द से तड़प रही थी। सुमन ने सामने टेबल पर रखे फर्स्ट एड बॉक्स से डिटॉल लगाकर खून बाजी के सिर से खून साफ किया और बैंडेज लगाई।
आंटी ने बाजी के कपड़े बदलते हुए कहा - "इन्नी सोणी ड्रेस खराब कर दित्ती, आज दे दिन पहनाण वास्ते नवू बड्डे प्यार नाल लेकर आई सी ।’’
सुमन और आंटी ने मिलकर बाजी को बिस्तर पर सुलाया। अंशु ने भी बाजी को बिस्तर पर सुलाने के लिए अपने छोटे-छोटे हाथों से थामा। अंशु के हाथों का स्पर्श पाकर बाजी जैसे निहाल हो गई थी।
बाजी को सुलाकर सुमन ने कहा- ‘‘आंटी ये बाहर हमारा वेट कर रहे हैं अब हम जाते है।’’
‘‘हाँ पुतर छेती जाओं, साडे कारण तुसी वी लेट हो गए।’’ कहती हुए आंटी की आँखों में अपनी बेटी की शादी ना देख पाने का दर्द साफ दिख रहा था। सुमन और अंशु ने बाजी को बाय कहा और जाने लगी। जाती हुई अंशु और सुमन को बाजी ने पीछे से आवाज लगाई और मुस्कुराती हुई उन्हें देखती रही। उसकी आँखों से आँसुओं का सैलाब बह रहा था पर ना जाने आज वो चिल्ला नहीं रही थी।
तभी अंशु ने कहा - ‘‘ममा आप शादी में जाओ, मैं बाजी दीदी के पास रुक जाऊँ क्या? ’’
ये सुन कर सुमन घबरा गई... कही.... ना बाबा. पर वो कुछ कह नहीं पाई।’’
‘‘प्लीज़ ममा।’’
अंशु के बार-बार कहने पर सुमन उसे बाजी के पास छोड़ तो गई पर उसका मन शादी में बिल्कुल नहीं लगा। वो अपना फोन, अंशु को दे आई थी कि कोई बात हो तो पापा को फोन करना।
लगभग दो ढाई घंटे बाद वो लोग लौटे तो घर में शांति थी। सोनू और राजेश ऊपर फ्लेट में गए और सुमन नीचे आंटी के पास।
मम्मी के आते ही अंशु ने मम्मी को बाजी के पास बुलाकर दिखाते हुए कहा - ‘‘ममा देखा, मैंने बाजी दीदी के हाथों में मेहंदी लगाई और देखो नेल पेंट भी।’’
हाथों में मेंहदी, नेल पेंट और सिर पर अंशु का दुपट्टा ओढ़ कर निश्चिंत होकर सोती बाजी को देखकर आंटी की आँखों में आँसू आ गए और वो बोली- ‘‘ आज पहली बार बिना नींद की दवाई के सोई है बाजी। सुबह तो ज्यादा डोज देने पर भी ठीक से नहीं सोई थी।’’
आज अंशु और सुमन हमेशा के लिए यहाँ से चली जाएगी। ये सोचकर आंटी का दिल बहुत उदास था। अंशु का दुपट्टा बाजी के पास रह गया था इसलिए आंटी बाजी से छिपाकर अंशु का दुपट्टा देने आई और दोनों को गले लगाकर खूब रोई।
जाते समय वो लोग सभी से मिल कर आए । सुमन और अंशु बाजी के पास गई और अंशु ने चुपचाप पीछे से बाजी को दुपट्टा उढ़ा दिया ओर बाजी के गले लग गई। सुमन ने इस पल को अपने मोबाइल में कैद कर लिया।
अंशु ने कहा- ‘बाजी दीदी’ मैं जब भी फोन करूं तो ये दुपट्टा ओढ़कर दिखाना। अंशु रास्ते भर सुमन को वीडियों दिखा रही थी। जो उसने बाजी के साथ बनाए थे।
पूना पहुँच कर दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला। वो काम में इतनी बिजी हो गई कि पहुंचने की खबर देने के बाद किसी को फोन ही नहीं कर पाई। एक दिन सुमन शाम के खाने की तैयारी कर रही थी तभी सर्वजीत का वीडियो कॉल देखकर घबरा गई कि सब तो ठीक है ना।’
सुमन के फोन उठाते ही सर्वजीत बोली -‘‘भाभी मैंने सोचा आप बिजी हो इसलिए मैं ही फोन कर लेती हूँ’- बाजी दी और मनप्रीत बहुत याद कर रहे हैं आपको सबको ये देखिए।
कहते हुए सर्वजीत ने कैमरा बाजी की तरफ कर दिया। वो ये देखकर हैरान थी कि बाजी बुआ से दूर भागने वाला मनप्रीत आज उनके पास बैठा है। अंकल जी भी बाहर बरामदे में कुर्सी पर बैठे चाय पी रहे है।
तभी सर्वजीत बोली - "भाभी’ अंशु और सोनू को बुलाइए ना।"
‘हाँ... अभी बुलाती हूँ-कहकर सुमन ने बच्चों को आवाज़ दी।
अंशु फोन हाथ में लेकर बोली ‘‘ बाजी दीदी’’
अंशु को देखते ही चहकते हुए दुपट्टे को सिर पर ओढ़े बाजी बोली - ‘‘आ. चू.....’’
अपने दिए दुपट्टे को बाजी दीदी के सिर पर देखकर खुश होती हुई अंशु बोली ‘ ‘बाजी दीदी’
सबसे बात होने के बाद - सर्वजीत ने सुमन से कहा - भाभी अब मनप्रीत नहीं डरता अपनी बाजी बुआ से। वो आपके भेजे हुए सारे वीडियो दिखाता है बाजी दी को और अंशु और बाजी की दोस्ती देखकर खुद भी उनका दोस्त बन गया है। । थैंक्स भाभी आप लोगों की, खासकर अंशु की इत्ती सी हँसी को देख बाजी दी जी भरकर हँसती है और बाजी दी की इत्ती सी हँसी और इत्ती सी खुशी से घर में सब खुश रहते हैं। आप लोगों से बहुत कुछ सीखा है हमने…। कहती हुई सर्वजीत बाजी के पास जाकर उसके सिर पर हाथ फेरने लगी उसने देखा कि पास वाले बेड पर आंटी आराम से सो रही है…इस घर में इत्ती सी हँसी से इत्ती खुशी देखकर सुमन और अंशु के चेहरे भी खुशी से चमक उठे।
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