श्राप एक रहस्य - 14 Deva Sonkar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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श्राप एक रहस्य - 14

सदियों पहले की बात है। एक चौड़ी नदी के दोनों तरफ़ दो नगर बसा करते थे। बीच में एक लकड़ियों कि बनी चौड़ी पुल थी, जो दोनों नगरों को आपस में जोड़ती थी। हालांकि व्यक्तिगत रूप से दोनों के संपर्क काफ़ी बेहतर नहीं थे लेकिन, इसके बावजूद दोनों नगरों के बीच सामानों की अदला बदली हुआ करती थी। नदी के दाहिने तरफ़ पड़ने वाले सम्राज्य के एक राजा थे राजा श्रीकांत। वे उनकी बुद्धि और अत्यधिक कोमल हृदय के लिए जाने जाते थे। उन्होंने अपने पूरे सम्राज्य को एक परिवार की तरह बनाकर रखा था। सबकुछ सुखद था वहां। लेकिन वक़्त कभी एक जैसा तो नहीं रहता।

आधी रात का समय था। जब अचानक महल में चीख पुकार की आवाज़ आई। राज्य पर पड़ोसी राज्य ने हमला किया था। नदी के बाई तरफ़ पड़ने वाले राज्य ने आज बहुत दिनों से चली आ रही नराजगियों का दिल खोलकर भड़ास निकाल लिया था। बग़ैर युद्ध का ऐलान किए युद्ध शुरु हो गया। ये रात इन दोनों नगरों के लिए काल बनकर आया था। पूरे चार दिनों तक ये युद्ध चलता रहा। दाहिने दिशा के राज्य के सैनिकों ने अपनी कुशलता का शानदार प्रदर्शन किया। और आख़िरकार जीत उनकी ही हुई। मानना पड़ेगा इस पूरे युद्ध में दाहिने दिशा वाले क्षेत्र के राजा ने सेना के साथ मिलकर जो काम किया था वो काबिले तारीफ़ था। और इसी प्रक्रिया में वे बुरी तरह घायल हो चुके थे। उनके शरीर में अनगिनत घाव बन गए थे। तीर और भालों से बने घाव असहनीय दर्द देते है। क्यूंकि इन तीरों में जहर मिश्रित पावडर लगा होता है जो शरीर के भीतर जाकर धीरे धीरे घावों को बढ़ाता है।

नगर में एक तरफ़ जहां जीतने की खुशी थी वहीं दूसरी तरफ़ राजा जिनका नाम "श्रीकांत" था उनकी तकलीफों से समूचा सम्राज्य ही उदास था। बड़े से बड़े वैध मिलकर भी राजा के तकलीफ़ को कम नहीं कर पा रहे थे। वे अपने बिस्तर में पड़े पड़े कराहते रहते थे। उनके दर्द की कोई सीमा नहीं थी। वे अब अपनी मौत की कामना कर रहे थे। लेकिन ना वे मर रहे थे ना ही दर्द की वजह से जी पा रहे थे।

दूसरी तरह पूरे नगरवासी चाहते थे उनके प्रिय राजा जी उठे। किसी भी तरह उनके दर्द की समाप्ति हो। लेकिन दिन बढ़ते जा रहे थे। राजा के घाव भी अब सड़ने लगे थे उनमें से छोटे कीड़े बाहर आते थे अब और तो और वे कीड़े ही उनके बाकी बचे शरीर को कुतर रहे थे। उनके समीप हर दिन हजारों नगरवासी इकठ्ठे रहते थे,कोई उनके शरीर को गीले कपड़े पोछता तो कोई शरीर से निकलने वाले उन घिनौने कीड़ों को हटाता। हर किसी की आंखों में नमी नज़र आती थी।

कोई शक नहीं था, कि राजा श्रीकांत में पूरे नगर के लोगों की जान बसती थी। उन्होंने कभी प्रजा के साथ भेदभाव नहीं किया। ख़ुद भी वहीं खाते थे जो पूरे नगरवासियों के लिए बनता था। महल में हर दिन वे गरीबों के लिए भोज बनवाते थे। इस तरह वे अपने नेक दिल के लिए सभी में जाने जाते थे। लेकिन इस वक़्त वे जिस असहनीय दर्द को झेल रहे थे उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। आस पास के राज्यों के वैद्य और मुनियों को भी बुलवाया गया लेकिन किसी भी ओषधि से उनका दर्द कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था।

और तब एक दिन नगर में एक महिला आई। वे कोई आम महिला नहीं थी। भले ही उनकी वेशभूषा किसी साध्वी जैसी नहीं थी, लेकिन उनका दावा था कि वे ईश्वर के काफ़ी निकट है। और ईश्वर ने ही उन्हें राजा की मदद करने के लिए भेजा है।

वे अकेले में राजा से काफ़ी देर तक बातें करती रही। फ़िर एक निश्चित दिन में उन्होंने पूरे नगर के सामने कुछ ऐलान करने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि इस दिन पूरे नगरवासी के साथ साथ राजा के पूरे परिवार के सभी सदस्यों का होना अनिवार्य होगा। इसलिए तय किए दिन में सभी को बुला लिया जाएं।

राजा के सभी दूर दराज तथा निकट के रिश्तेदारों को बुलावा भेजा गया। राजा ने एक ही शादी कि थी लेकिन उनकी पत्नी काफ़ी पहले ही मर चुकी थी लेकिन उनके एक पुत्र थे। इन दिनों वे नगर से काफ़ी दूर एक गुरुकुल में शिक्षित होने गए थे। उन्हें भी बुलवाया गया लेकिन किसी अभ्यास में व्यस्त होने के वजह से उनके गुरु ने उनकी जगह अपने एक दूसरे शिष्य को भेज दिया। नियत दिन में सभी उपस्थित थे।

वे ज्ञानी महिला भी आ गई थी...उन्होंने कहा ..." देखिए मैं चाह कर भी इस जन्म में आप सबके राजा के दर्द को कम नहीं कर सकती लेकिन इनके नेक कर्मों की वजह से ईश्वर इन्हें एक वरदान देना चाहते है। भले ही राजा इस जन्म में अपने असहनीय दर्द से तड़प तड़प कर ही मरेंगे लेकिन आगे के तमाम जन्मों में राजा श्रीकांत को कोई भी दर्द छु नहीं पाएगा। वे चाहे कितने ही युद्ध लड़े, चाहे कितनी भी उन्हें शारीरिक चोटें आए, दर्द का जरा सा कतरा भी उन्हें छु नहीं पाएगा। लेकिन....वो दर्द किसी और के उपर श्राप बनकर गिरेगा। इस जनम में को भी राजा श्रीकांत के साथ दगाबाजी करेगा आगे के तमाम जन्मों में उसका जन्म भी राजा के जन्म के दिन एक साथ होगा। बिल्कुल एक समय में एक दिन में, और राजा के सम्पूर्ण जीवन का दर्द वहीं दगाबाज झेलेगा। वो ना इंसान होगा ना जानवर। लोग चाहकर भी उसकी मदद नहीं कर सकेंगे...वो इतना घिनौना होगा कि इंसान तो क्या भूत पिशाच भी उसके पास नहीं आएंगे। इसलिए आज मैंने राजा से जुड़े सभी लोगों को यहां बुलवाया है, ताकि कोई भी इस भयंकर श्राप के बारे जानकर ही सही राजा के साथ बेईमानी ना करें। ये जन्म फ़िर से लेंगे एक तय वक़्त में जब इंसानी फितरत बेईमानी,छल और कपट पर उतर आएंगे। तब इनका जनम होगा, मानव जाती को मिसाल देने के लिए की कभी कभी किसी को ठगना आपको कितने बड़े श्राप का भागीदार बना देता है।...""

ये सब बोलकर वे ज्ञानी महिला राजा से विदा लेकर चली गई। राजा श्रीकांत बेहद चिंतित थे, वे ख़ुदको मिलें वरदान से ज्यादा किसी को मिलने वाले श्राप से परेशान थे। ना जाने उनका ही कौन अपना इस श्राप के चंगुल में जा फसेगा। राजा जानते थे....धोखे अक्सर अपनों से ही तो मिलते है।

उस दिन सभी अपने अपने घर लौट गए। राजा के कुछ बेहद करीबी थे जो राजा के इन अंतिम दिनों में उनके साथ ही रहना चाहते थे,और फ़िर उनकी प्रजा और समस्त नगरवासी तो थे ही राजा के लिए जान लुटाने वाले। राजा के पुत्र की जगह गुरुकुल का जो एक दूसरा छात्र आया था वो भी वापस गुरुकुल लौटने के लिए निकल गया था। वो जाकर राजा के पुत्र को ये सारी जानकारी देने वाला था। लेकिन.....बीच रास्ते में उसे कोई मिला। कोई ऐसा जो राजा के बेहद करीबी थे। उसने उस शिष्य की झोली अशर्फियों से भर दी थी। और बो दिया था उसके भीतर बेईमानी का बीज। काश उस दिन दूसरे शिष्य की जगह राजा का बेटा ख़ुद ही अपने पिता से मिलने आ जाता। लेकिन पिता की ऐसी स्तिथि की ख़बर ही कहां थी उसे।....!!!

क्रमश :_Deva sonkar