अंधेरा कोना - 15 - श्मशान का रास्ता Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अंधेरा कोना - 15 - श्मशान का रास्ता

अनंतगढ़ का वो विरान सा पड़ा रास्ता! वो रास्ता आगे जाकर शहर से दूर आए श्मशान घाट की ऑर जा रहा था, उसी रास्ते पर तीन दोस्त अपनी बाइक पर सवार होकर उसी श्मशान की ऑर जा रहे थे l अनंतगढ़ का वो रास्ता जहा आगे श्मशान था उस रास्ते पर सूर्यास्त होने के बाद कोई भी नहीं जाता था दरअसल अनंतगढ़ के लोगों का कहना था कि उस रास्ते पर भूत प्रेत का साया था वहाँ श्मशान होने के कारण पेरानॉर्मल ऐक्टिविटीस होती है l उन तीन दोस्तों का नाम हिमेश , जॉन और अमन था वो तीनों 24-25 साल के नौजवान थे, उनको ये सब भूत प्रेत पर यकीन नहीं था इसलिए उन्होंने उसी रास्ते पर जाकर एक वीडियो शूट करना था और फिर उसे यू ट्यूब पर डालना था l वो सब स्कूटर चलाते चलाते अंदर अंदर बाते कर रहे थे :

हिमेश : अपने शहर वाले डरपोक है सभी!!

अमन : हाँ सही है, अरे भूत प्रेत जैसा कुछ होता ही नहीं है, और अगर मिला तो उसे हमारे साथ कैरम खेलने बिठा देंगे l

जॉन ( आँख मारते हुए) : और उसके साथ पार्टी भी करेंगे, वो भी अपनी वाली!!

अमन : ये आर. डी भी बड़ा डरपोक है, खुद हॉरर कहानिया लिखता है मगर यहा आने से मना कर दिया!

जॉन : छोड़ न उसे, वो तो बचपन से ही ऐसा है l

हिमेश :हाँ लेकिन अगर उसे नहीं आना था तो हम फोर्स भी नहीं कर सकते अगर जबरदस्ती करते और उसे कुछ ही जाता तो हम पर इल्ज़ाम लग सकता था l

अमन : सही कह रहा हैं समीर तू, अपना शर्मा तो है ही ऐसा l


ये लोग जो आर. डी. की बात कर रहे थे उसका नाम राकेश दलाल था, वो उनका चौथा दोस्त था, वो उस दिन आया नहीं था क्युकी उसे भूत प्रेत से डर लगता था, वो अमन का करीबी दोस्त था और इसलिए अमन उसे 'शर्मा' कहकर बुलाता था l ये सब बाते चल रही थी कि उतने मे श्मशान आ गया, वे तीनों उतर गए और श्मशान के अंदर चले गए, वहां शांति थी, हाल मे उधर किसीका भी अंतिम संस्कार नहीं किया गया था, ये सब देखकर वो तीनों हंसने लगे और समीर ने कहा

हिमेश : भूत!! देख आ गए हैं हम, आजा हमसे आके मिल चल l

जॉन : हाँ चल आजा l

अमन : यारो सुनो, हम लोग यहा से आगे की ओर चलते हैं क्युकी यही से आगे भूत प्रेत होंगे एसा लोग कहते हैं l

फिर उन लोगों ने आगे जाने का सोचा, वे अपने स्कूटर पर आगे बढ़ गए, रास्ते में उन्होंने देखा कि कोई इंसान उनकी ओर चला आ रहा है, स्कूटर पर नजदीक जाते हुए उन्होंने देखा तो उसने हाथ खड़ा करके उनको रुकने का इशारा किया उन तीनों ने अपने स्कूटर रोक दिया, हेड लाइट मे उन्होने देखा कि वो एक अस्सी साल का बुढ़ा था, उसने सफेद कुर्ता और पायजामा पहना हुआ था, कमर से वो थोड़ा सा झुका हुआ था उसने आगे आके उनलोगों से बोलना शुरू किया,

बुढ़ा आदमी : सुनिए मुजे मदद चाहिए l

हिमेश : क्या हुआ अंकल? क्या मदद कर सकते हैं हम?

बुढ़ा आदमी : यहा नजदीक ही ,थोड़ा आगे ही जाना है, आप मुजे, क्या आप पहुचा सकते हैं?

अमन : हाँ लेकिन आगे तो श्मशान है l

बुढ़ा आदमी : हाँ मुजे वहीं जाना हैं l

जॉन : लेकिन इतनी रात को उधर क्यु जाना हैं?

(वो आदमी अब रोने लगा, उसने कहा)

बुढ़ा आदमी : दरअसल मेरे भाई की मौत हो चुकी है, हम सब उसके अंतिम संस्कार करने के लिए श्मशान आए हैं मैं पीछे छूट गया l

हिमेश : ओह, सो सॉरी अंकल, हमे आपके भाई की मृत्यु का खेद है, आइए हम आपको छोड़ देते हैं l

वो आदमी को हिमेश की बाइक के पीछे बिठाया, हिमेश ने कहा

हिमेश : जॉन, अमन, मैं बाइक को थोड़ा धीरे चलाउंगा, क्युकी इनको सही-सलामत श्मशान पहुंचाना है, हाँ अगर तुम लोग आगे निकलो तो मेरी चिंता मत करना l

उन तीनों ने बाइक को आगे बढ़ाया अमन और जॉन भी धीरे से ही बाइक चला रहे थे, वो रास्ता बड़ा ही शांत था वहाँ इंसान तो क्या कोई जानवर भी नहीं, चौदस की रात थी, आकाश में काले घने बादल छाए हुए थे, चांद भी बादल के पीछे छिपा हुआ था, ठंडी हवा चल रही थी, वो रास्ता भी कच्चा था, वो वातावरण ही भूत जैसा लग रहा था, 5-7 मिनट के बाद श्मशान घाट आ गया l श्मशान के दरवाजे के बाहर ही अचानक उस आदमी ने कहा,

बुढ़ा आदमी : सुनो भाई, मुजे यहा दरवाजे पर ही उतार दो, मैं चलकर अंदर आऊंगा l

हिमेश : ठीक है अंकल, जैसी आपकी मर्जी l

वो तीनों अंदर गए, वे थोड़े ही आगे गए कि उन्होंने कुछ अजीब देखा, उन्होंने देखा कि किसकी अर्थी पडी हुई थी, लेकिन वहां पूरे श्मशान मे कोई नहीं था, उन्होंने थोड़ा आगे जाकर देखा तो वो लाश और किसकी नहीं बल्कि उसी अस्सी साल के बूढे आदमी की थी l वो देखकर उन तीनों के होश उड़ गये, पैरों के नीचे से पानी बहने लगा, मानो उनके पैर जमीन से चिपक गए थे l वो तीनों 3 मिनट तक बिना बोले उस लाश को देखकर खड़े रहे, फिर 3 मिनट के बाद अमन सिर्फ एक ही शब्द बोला,

अमन : भागो.. यहा से!!

ये सुनकर तीनों वहां से चिते की रफ्तार से भागे, तीनों ने बाइक स्टार्ट की और वहां से गांव की ओर भागे, उन्होंने न ही कहीं पर बाइक रोका और न ही आपस में कुछ भी बात की, वे आधे घंटे के बाद सीधा अपने अपने घर ही गए , घर पे कमरे में सो गए l दूसरे दिन सुबह वो लोग जिंदा तो थे लेकिन उठ नहीं पाए, न ही वो कोमा में थे, न ही उनकी मौत हुई थी लेकिन उन्हें इतना बड़ा सदमा लगा था कि वो दोपहर तक उठ नहीं पाए, जब वो तीनों उठे तब उन्हें बुखार आ चुका था, उनको हॉस्पिटल मे एडमिट करवाना पड़ा, वहां उन्होंने सब कुछ सच बता दिया l आर. डी भी हॉस्पिटल मे तीनों को मिलने गया l अभी भी उन्हें श्मशान मे रखी वो लाश दिख रही थी, अब सबसे बड़ा प्रश्न ये था कि वो लाश थी किसकी, और उसे उधर रखने कौन आया था?