उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

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नमस्कार

स्नेही मित्रों

कहा गया है कि जिस दिन हम इस धरती पर जन्म लेते हैं, अपने लौटने का दिन निश्चित करवाकर आते हैं।

वैसे तो आजकल की ज़िंदगी के बारे में कुछ पता नहीं चलता। कभी कुछ भी हो जाता है। लेकिन यदि हमने जीवन के 50/60/70 वर्ष पार कर लिए है तो अब लौटने की तैयारी प्रारंभ करें....इससे पहले कि देर हो जाये...इससे पहले कि सब किया धरा निरर्थक हो जाये.....।

लौटना क्यों है?,

लौटना कहाँ है?

लौटना कैसे है?

इसे जानने, समझने एवं लौटने का निर्णय लेने के लिए आइये टॉलस्टाय की मशहूर कहानी आज आपके साथ साझा करती हूँ,

'लौटना कभी आसान नहीं होता'

एक आदमी राजा के पास गया कि वो बहुत गरीब था, उसके पास कुछ भी नहीं था, उसे मदद चाहिए थी ...राजा दयालु था.. उसने पूछा कि

"क्या मदद चाहिए..?" आदमी ने कहा.. "थोड़ा-सा भूखंड.." राजा ने कहा,

“कल सुबह सूर्योदय के समय तुम यहाँ आना..ज़मीन पर तुम दौड़ना। जितनी दूर तक दौड़ पाओगे वो पूरा भूखंड तुम्हारा। परंतु ध्यान रहे, जहाँ से तुम दौड़ना शुरू करोगे, सूर्यास्त तक तुम्हें वहीं लौट आना होगा,अन्यथा कुछ नहीं मिलेगा...!"

आदमी खुश हो गया...सुबह हुई.. सूर्योदय के साथ आदमी दौड़ने लगा...आदमी दौड़ता रहा.. दौड़ता रहा..सूरज सिर पर चढ़ आया था..पर आदमी का दौड़ना नहीं रुका था..वो हांफ रहा था, पर रुका नहीं ... थोड़ा और..एक बार की मेहनत है..फिर पूरी ज़िंदगी आराम...शाम होने लगी थी...आदमी को याद आया, लौटना भी है, नहीं तो फिर कुछ नहीं मिलेगा...उसने देखा, वो काफी दूर चला आया था..अब उसे लौटना था.. पर कैसे लौटता..? सूरज पश्चिम की ओर मुड़ चुका था..आदमी ने पूरा दम लगाया..वो लौट सकता था...पर समय तेजी से बीत रहा था.. थोड़ी ताकत और लगानी होगी...वो पूरी गति से दौड़ने लगा...पर अब दौड़ा नहीं जा रहा था..वो थक कर गिर गया...उसके प्राण वहीं निकल गए...!

राजा यह सब देख रहा था...

अपने सहयोगियों के साथ वो वहाँ गया, जहाँ आदमी ज़मीन पर गिरा था...राजा ने उसे गौर से देखा..

फिर सिर्फ़ इतना कहा..."इसे सिर्फ दो गज़ ज़मीन की दरकार थी... नाहक ही ये इतना दौड़ रहा था...!"

आदमी को लौटना था पर लौट नहीं पाया वो लौट गया वहाँ, जहाँ से कोई लौट कर नहीं आता...

अब ज़रा उस आदमी की जगह अपने आपको रख कर हम कल्पना करें, कहीं हम भी तो वही भारी भूल नहीं कर रहे जो उसने की?

हमें अपनी चाहतों की सीमा का पता नहीं होता...हमारी ज़रूरतें तो सीमित होती हैं, पर चाहतें अनंत..अपनी चाहतों के मोह में हम लौटने की तैयारी ही नहीं करते... जब करते हैं तो बहुत देर हो चुकी होती है...फिर हमारे पास कुछ भी नहीं बचता...

अतः आज अपनी डायरी पैन उठाएं, कुछ प्रश्न एवं उनके उत्तर अनिवार्य रूप से लिखें ओर उनके जवाब भी लिखें ।

मैं जीवन की दौड़ में सम्मिलत हुआ था, आज तक कहाँ पहुँचा? आखिर मुझे जाना कहाँ है ओर कब तक पहुँचना है? इसी तरह दौड़ता रहा तो कहाँ और कब तक पहुँच पाउँगा?

हम सभी दौड़ रहे हैं... बिना ये समझे कि सूरज समय पर लौट जाता है...अभिमन्यु भी लौटना नहीं जानता था... हम सब अभिमन्यु ही हैं.. हम भी लौटना नहीं जानते...सच ये है कि

"जो लौटना जानते हैं, वही जीना भी जानते हैं... पर लौटना इतना भी आसान नहीं होता..."

काश टॉलस्टाय की कहानी का वो पात्र समय से लौट पाता...!ईश्वर से प्रार्थना है कि  हम सब लौट पाएँ..! लौटने का विवेक, सामर्थ्य एवं निर्णय हम सबको मिले....

जितना जीवन जीएँ, भरपूर जीएँ।

प्रसन्नता से जीएँ, आँखें, कान खुले रखकर जीएँ। स्नेहपूर्ण जीवन जीएँ क्योंकि पीछे और कुछ नहीं रह जाता।

आपकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती