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नर्क - 17

"निशा क्या तुम मुझे मेरी बार कहने का एक मौका भी नहीं देना चाहती??" पियूष ने ऑफिस में निशा को कहा जो उस से अब दूर-दूर ही रह रही थी। इस्तीफा देने की कोशिश फ्लॉप होने के बाद वो और भी ज्यादा चिढ़ गयी थी। उसका बस चलता तो शायद वो पियूष को मार ही डालती। पर पहले चाहे जो भी हुआ हो, अभी वो उसका बॉस ही है और निशा एक साधारण इंसान, जिसमें कोई शक्ति नहीं थी या अगर थी तो जगी हुई नहीं थी।

निशा -" मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी पियूष।" अब निशा जब अकेले में थी तो वो अब 'सर' या 'आप' जैसे शब्दों को त्याग चुकी थी। "तुम निहायत ही घटिया और धोखेबाज इंसान हो। तुमने अपने पिता और भाई को भी नहीं छोड़ा।

मैंने तो तुमसे सच्चा प्यार ही किया था, मेरे पिता भी हम दोनों की शादी कराने के लिए तैयार हो गए थे, फिर भी तुमने उनको और मेरी निर्दोष प्रजा को इतनी बेरहमी से...... छीऽऽ...... शर्म आती है मुझे कि कभी तुमसे मैने प्रेम किया। आखिर क्या कमी रह गयी थी मेरे प्यार में???" कहते-कहते निशा की आँखे छलछला आयी, उसका गला रुंध गया था।

जैसे ही निशा ने मुँह फेरा, पियूष उसके सामने आ गया। उसके चेहरे पर कठोर भाव देख कर निशा सकपका गयी। पियूष ने उसकी आँखों में देखते हुए उसके चेहरे को दोनों हाथों से थमा। निशा ने अपना चेहरा छुड़ाने की कोशिश की परन्तु पियूष ने अपने हाथ और कस लिए। निशा को दर्द होने लगा। उसकी आँखों में देखते हुए, कठोरता से बिना चेहरे पर भाव लाये पियूष बोला -" विश्वास की..... विश्वास की कमी रह गयी तुम्हारे प्यार में। तुमने कभी भी मुझपर विश्वास किया ही नहीं। अपनी जिद्द के चक्कर में तुम इतनी अंधी हो गयी थी कि तुम मेरा शस्त्र मेरे भाई के हाथ में देने लगी थी। तुम्हें तो ये भी एहसास नहीं है कि तुम क्या करने वाली थी।"

पियूष उसको छोड़ देता है फिर आगे कहता है -" मैंने जो भी किया अपने दिल की सुनकर किया। तुम्हें बार-बार समझाता रहा पर तुम बदले और जिद्द की आग में कुछ भी सुनना नहीं चाहती थी। सब कुछ जो भी हुआ है तुम्हारी वजह से हुआ है। मेरा भाई भी तुम्हें चाहने लगा था। जब उसे पता चला कि हम दोनों एक-दूसरे से प्रेम करते हैं तो उससे ये बर्दाश्त नहीं हुआ और......."

निशा -" एक और झूठ, तुम अपने गुनाह अपने भाई 'आयुध' पर डाल कर खुद बचना चाहते हो?? चलो माना उस वक्त तुम दोषी न थे, परन्तु अभी शहर में जो हत्याएँ हो रही है उनका क्या?? हाँ...पियूष कुमार... मैं अच्छे से जानती हूँ कि 'नीला हत्यारा' तुम ही हो। मैंने कई बार तुम्हारा पीछा किया है और हर बार तुम वारदात वाली जगह पर थे। तुमने ही उस दिन क्लब में मार-काट मचाई थी और मेरे आने के बाद वहाँ से चले गए थे।"

"इस बात का एक और सबूत है मिस्टर पियुष कि तुम्हारे पास 'विद्युदभि' न होकर एक साधारण परशु है, क्यूँकि अपने पिता और भाई को धोखा देकर तुम उस परशु को हाथ लगाने के योग्य नहीं रहे। मैं ये भी जानती हूँ कि तुम अभी 'विद्युदभि' को अपने किसी मकसद के लिए ढूंँढ़ रहे हो। पर तुम अपने मकसद में कभी सफल न हो पाओगे।" इतना कहकर निशा वहाँ से तेजी से निकल गयी। पियूष बिना कोई भाव चेहरे पर लाये बस उसे जाते हुए देखता रहा।

आयुष, मधु और निशा अब पियूष पर नजर रखने लगे। अब उनकी तलाश को एक दिशा मिल चुकी थी। कई दिन गुजर गए कोई घटना नहीं हुई। अब पियूष के पीछे हर वक्त कोई न कोई साया लगा ही रहता था। जब वो तीनों नहीं होते थे तब आयुष का कोई आदमी उनकी जगह ले लेता था। कुल मिला कर अब सबकी धड़कनें उसी में अटकी हुई थी। निशा के मन में पियूष से अंतिम बात करने के बाद कुछ सवाल आ गए थे। जिनका जवाब भी ढूंढना जरुरी था परन्तु उनका जिक्र उसने किसी से किया नहीं था।

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कंपनी से एक रात अँधेरे में कोई साया निकला, उसने अपने शरीर पर कम्बल लपेट रखा था। वो साया चुपचाप सावधानी रखते हुए वहाँ के क्रिकेट स्टेडियम की तरफ जाने लगा। जहाँ पूरे शहर में हत्यारे का खौफ था और सड़के सुनसान थी, वहीं इस सुनसान सड़क पर वो साया बेखौफ बढ़ा चला जा रहा था।

जल्दी ही वो साया स्टेडियम में पहुँच गया। वो साइड में बने स्टैंड की तरफ बढ़ा। वहाँ पहुँच कर उसने कम्बल हटाया। उसकी लम्बी काया से कम्बल हटते ही उसकी नीली काया सामने आ गयी। उसके हाथ में एक परशु था, जो सामान्य से काफी बड़ा था। लगभग एक वयस्क आदमी के आकार का। उस परशु के फल पर बन रखी आकृतियाँ साफ जाता रही थी कि वो बहुत पौराणिक है। उसने पहले वो परशु स्टैंड की तरफ वार करने के लिए उठाया परन्तु फिर रुक गया। उसने परशु को जमीन पर टिकाया फिर आँखें बंद की और उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी। वो बोला -" सामने आ जाओ, छुपने का कोई लाभ नहीं रक्षकुमारी।"

निशा और मधु दोनों जहाँ छुपे थे वहाँ से बाहर आये। वो उसका पीछा कंपनी से ही कर रहीं थी। रास्ते में एक बार वो साया उनकी आँखों से ओझल हुआ था तब उसने शायद अपना रूप बदल लिया था। अब जब उसको पता था कि वो दोनों उसका पीछा कर रही है, तो अब खुद को छुपाने का कोई फायदा नहीं था।

" आपको ज्ञात है!!! भगवान् परशुराम का महान परशु, जिसपर मेरा अधिकार था, मुझसे छीन लिया गया और इस स्थान पर छुपा दिया गया, क्यों?? मेरे पिता ने मेरे ही साथ अन्याय किया, क्यों?? ....कोई कष्ट नहीं, जो मेरा अधिकार है वो अब मैं प्राप्त कर लूँगा।" ऐसा कहते हुए उसने पूरा जोर लगाकर अपना परशु पूरा ऊपर उठाया और पुरजोर से उसे सामने की तरफ धरती पर मार दिया।

अद्भुत नजारा हो गया था वहाँ। उस परशु से कोई ऊर्जा सी निकल कर जमीन के अंदर-अंदर ही स्टैंड की तरफ बढ़ी और पूरा स्टैंड, जो हजारों लोगों के बैठने के लिए बना हुआ था, एक झटके में टूट कर बिखर गया। फिर वहाँ नीली सी लपटें उठी और उस मलबे को घेरती चली गयी। पूरा मलबा कुछ ही पलों में राख में बदल गया।

निशा ने सवाल किया -" तुमने इतना वक्त क्यों लगाया?? क्या पहले तुम्हे पता नहीं था कि ये यहाँ है??"

हत्यारे ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया -" प्यारी निशिका, 'विद्युदभि' कोई निर्जीव हथियार नहीं बल्कि एक साकार ऊर्जा है इसकी एक महत्त्वपूर्ण बात है कि ये जहाँ स्थित रहता है वहाँ आस-पास एक विशेष किस्म का पौधा लगता है। जिसकी खुशबू जब वातावरण में फैलती है तब आस-पास जो कोई भी जीव हो, उसकी कोई भी रुग्णता (बीमारी) हो या घाव हो बहुत जल्दी उनका उपचार हो जाता है।"

"मैंने कुछ नराधम और अपराधी प्रवृत्ति इंसानों को ढूँढा। उन्हें ढूँढने हेतु मैंने उसके कुछ सहयोगी इंसानों को ब्रह्मलीन किया। ताकि उनका मुखिया इस शहर में प्रविष्ट हो और मैं उस से संपर्क कर लूँ। मैं इतने वक्त से इसे ढूँढ़ रहा हूँ पर अकेला ढूँढ़ने में अधिक समय व्यतीत हो रहा था और दूसरी बात इस शहर को प्रतिबंधित भी तो करना था ताकि मेरे कार्य में अकारण और अनावश्यक व्यावधान न उत्पन्न हो। चलो रक्षकुमारी, बातें बहुत हो गयी अब कार्य की तरफ मस्तिष्क का सञ्चालन करते है।"

निशिका -" परन्तु कुछ लाशें ऐसी भी तो मिली थी जिनका मांस और नशें ही गायब हो गयी थी। मैं समझ गयी थी कि उनकी एनर्जी खींच ली गयी थी, ऐसा क्यों??"

हत्यारा -" ओह्ह्हो, प्यारी रक्षकुमारी जी, आप तो बहुत जिज्ञाशु और सरल प्रवृति की है। अभी तक नहीं समझी आप!!!!! ये तो बड़ी विडम्बना हो गयी। कोई कष्ट नहीं, समझा दिया जायेगा पर पहले जो अमूल्य मुहूर्त्त की घडी़ आयी है उसका सदुपयोग तो कर लें फिर आपके समस्त प्रश्नों के उत्तर भी आपको मिल जायेंगे।" कहते हुए वो राख हो चुके मलबे पर एक जगह गया वहाँ निशान लगाया और फिर से एक और वार जमीन पर किया और..... निशा समझ गयी कि अब क्या होने वाला है और मधु तो जैसे कुछ समझ ही नहीं पा रही थी वो तो डरी सहमी बस ये सब अद्भुत घटनाएं देख रही थी.......

To be continued......

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