नाजायज रिश्ते का अंजाम--पार्ट 3 Kishanlal Sharma द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • द्वारावती - 73

    73नदी के प्रवाह में बहता हुआ उत्सव किसी अज्ञात स्थल पर पहुँच...

  • जंगल - भाग 10

    बात खत्म नहीं हुई थी। कौन कहता है, ज़िन्दगी कितने नुकिले सिरे...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 53

    अब आगे रूही ने रूद्र को शर्ट उतारते हुए देखा उसने अपनी नजर र...

  • बैरी पिया.... - 56

    अब तक : सीमा " पता नही मैम... । कई बार बेचारे को मारा पीटा भ...

  • साथिया - 127

    नेहा और आनंद के जाने  के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई...

श्रेणी
शेयर करे

नाजायज रिश्ते का अंजाम--पार्ट 3

सुधीर रेस्तरां जाने के लिए तैयार हो रहा था।उसने भी उस पत्र को पढ़ा था।
इटारसी में उसके दूर के रिश्ते के मौसा रहते थे।मौसाजी के जिगरी दोस्त मोहन का लड़का था राजेन्द्र।वह मुम्बई में एक कम्पनी में एक साल के लिए अप्रेंटिसिप करने के लिए आया था।मौसाजी ने राजेन्द्र के रहने की व्यस्था करने के लिए पत्र लिखा था।
"अभी तुम खाना पीना खाकर आराम करो।मैं शाम को लौटूंगा तब हम बात करेंगे।
सुधीर रोज की तरह अपने काम पर चला गया।राजेन्द्र तैयार होकर जॉइन करने के लिए कम्पनी चला गया।
रात को सुधीर लौटा तब राजेन्द्र बोला,"भाई साहब मेरे लिए कमरा।"
सुधीर कुछ देर सोचकर बोला,"माया अपना ऊपर वाला कमरा खाली है।यह उस मे रह लेगा।इसे भी परेशानी नही होगी और तुम्हारा भी मन लगा रहेगा"
"तुम जानते हो राजेन्द्र को।'
" नही।"
"फिर किसी अनजान,अजनबी को घर मे"
"डरने की कोई बात नही है।वह मोसजी का पत्र लाया है।"
माया ने शंका जाहिर की थी।पर पति ने उसे समझा दिया था।और राजेंद्र ,सुधीर के घर मे पेइंग गेस्ट की तरह रहने लगा।
राजेन्द्र को कम्पनी में दस बजे जाना पड़ता और शाम को पांच बजे लौट आता।शनिवार और रविवार को उसकी छुट्टी रहती थी।पहले पति के दुकान और बच्चों के स्कूल चले जाने पर माया घर मे अकेली रह जाती और उसे पूरी तरह अकेले पन का एहसास होता।पर अब ऐसा नही होता था।पति और बच्चों के चले जाने पर राजेन्द्र काफी देर तक उसके साथ रहता था।
सुधीर और बच्चों के घर से चले जाने के बाद माया दो कप चाय बनाती और सुधीर के कमरे में चली जाती।चाय पीते हुए दोनों बाते करते।पहले माया पति और बच्चों के लिए खाना बनाती तब ही अपने लिए चार रोटी बनाकर रख लेती थी अब जब राजेन्द्र जाता तब उसके लिए खाना बनाती तब ही अपने लिए बनाती।
कुछ ही दिनों में माया और राजेंद्र घुल मिल गए।एक दूसरे के काफी करीब आ गए।न जाने कब अकेले में घण्टो इधर उधर की बाते करते करते प्यार की बातों पर आ गये।
माया इकहरे बदन की गोरे रंग और तीखे नैन नक्स की सुंदर युवती थी।वह दो बच्चों की माँ बन चुकी थी फिर भी अभी कम उम्र की कुंवारी युवती लगती थी।राजेन्द्र लंबे कद का आकर्षक व्यक्तित्व का सुंदर सजीला नवयुवक था।वह हंसमुख स्वभाव का बातूनी नवयुवक था।
माया का पति सुधीर सांवले रंग का साधारण युवक था।माया और सुधीर की जोड़ी बेमेल थी।यह बात दुसरो ने ही नही कही उसके मन में भी आई थी।फिर भी उसके मन मे यह ख्याल कभी नही आया कि सुधीर उसे पसन्द नही है।जैसा भी था,वह उसका पति था।शादी के बाद पतिव्रता धर्म का पालन करते हुए वह तन मन से पति के प्रति समर्पित रही।उसने पराये मर्द की तरफ देखना तो दूर उसका ख्याल तक कभी मन मे नही आने दिया।
लेकिन राजेन्द्र के सम्पर्क में आने के बाद पहली बार माया के मन मे ख्याल आया कि दहेज के अभाव में माता पिता ने उसकी शादी बेमेल लड़के से कर दी।
और मन मे यह विचार आने पर माया को पराया मर्द राजेन्द्र अच्छा लगने लगा।वह उसे चाहने लगी।पहले अकेले में वे प्यार भरी बातें ही करते थे।