अनूठी पहल - 17 Lajpat Rai Garg द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अनूठी पहल - 17

- 17 -

दीपक के विवाह के बाद पार्वती ढीली रहने लगी। एक दिन दुकान पर जाने से पहले प्रभुदास पार्वती के पास गया। वह बिस्तर पर लेटी हुई थी। प्रभुदास ने पूछा - ‘माँ, कई दिनों से तेरी तबियत ठीक नहीं। आज तुझे डॉ. प्रतीक को दिखा लेते हैं।’

‘प्रभु, अब तो मैं जितने दिन ज़िन्दा हूँ, मुझे डॉक्टरों के चक्करों में ना डाले तो अच्छा होगा।’

‘माँ, डॉ. प्रतीक तो घर के आदमी जैसा है। वह चक्करों में नहीं डालता।’

‘फिर जैसी तेरी मर्ज़ी।’

‘माँ, घंटा-एक दुकान पर हो आऊँ, फिर डॉक्टर के पास चलेंगे।’

डॉ. प्रतीक ने चेकअप के बाद प्रभुदास को कहा कि माता जी को एडमिट कर लेता हूँ। ब्लड टेस्ट करके देखते हैं कि बॉडी में व्हाइट ब्लड सैल का क्या लेवल है?

प्रभुदास - ‘डॉ. साहब, जो आप ठीक समझते हैं, कर लें। मुझे तो दुकान पर जाना है। मैं घर इत्तला कर देता हूँ। आपकी भाभी माँ के पास आ जाएगी।’

‘प्रभुदास, आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं। आपका अस्पताल है। भाभी नहीं भी आ पाएगी तो कोई बात नहीं, नर्स ध्यान रखेगी।’

‘वो तो ठीक है, लेकिन सुशीला पास होगी तो माँ को अकेलापन नहीं लगेगा।’

पन्द्रह-बीस मिनटों में सुशीला अस्पताल पहुँच गई।

शाम को जब प्रभुदास अस्पताल पहुँचा तो डॉक्टर ने बताया कि टी.एल.सी. बहुत बढ़ा हुआ है, तीस हज़ार के आसपास है।

प्रभुदास - ‘डॉ. साहब, नॉर्मली, टी.एल.सी. कितना होना चाहिए?’

‘एक स्वस्थ व्यक्ति का 4500 से 11000 के बीच होना चाहिए।’

‘फिर तो चिंता की बात है! कितने दिन लगेंगे टी.एल.सी. का लेवल नॉर्मल होने में?’

‘कम-से-कम एक हफ़्ता तो मानकर चलो। हम डेली ब्लड टेस्ट करेंगे और दवाई देंगे। हो सकता है, माता जी जल्दी ठीक हो जाएँ।’

……..

दसवें दिन की टेस्ट रिपोर्ट में जब टी.एल.सी. दस हज़ार के क़रीब आया तो डॉक्टर ने कहा कि अब माता जी घर जा सकती हैं। यह सुनते ही पार्वती के चेहरे पर रौनक़ आ गई। बुजुर्गों को अस्पताल के कमरे में तथा दवाइयों की गंध के बीच रहना कहाँ भाता है?

घर आने के बाद दसेक दिन गुजरे थे कि एक दिन सुशीला पार्वती को सेब के पतले-पतले टुकड़े करके खिला रही थी कि अचानक पार्वती ने खाया हुआ सारा सेब उलट दिया। सुशीला ने दुकान पर फ़ोन किया। प्रभुदास तुरन्त दुकान से उठ लिया। रास्ते में उसने सोचा, क्यों न डॉ. प्रतीक से सलाह कर लूँ और वह डॉक्टर साहब के अस्पताल पहुँच गया। डॉक्टर को जब उसने पार्वती की स्थिति से अवगत कराया तो डॉक्टर ने कहा - ‘प्रभुदास, जैसा तुमने बताया है और दस दिन पहले तक माता जी की शारीरिक स्थिति को मैं ऑबजर्व करता रहा हूँ, उसके अनुसार माता जी का समय पूरा होने वाला है। पाँच-चार दिन सेवा का ही मौक़ा है। मैं तो कहूँगा कि माता जी को घर पर ही ड्रिप के ज़रिए मल्टी विटामिन की ट्रीटमेंट दे दें तो ठीक रहेगा। मेरा अटेंडेंट जब भी फ़ोन करोगे, बोतल बदल आया करेगा। वैसे माता जी को यहाँ लाना चाहो तो भी मुझे कोई एतराज़ नहीं।’

‘डॉ. साहब, आपके तजुर्बे को देखते हुए मैं आपकी बात से सहमत हूँ। किसी अटेंडेंट को मेरे साथ भेजो।’

इस प्रकार पार्वती का इलाज घर पर ही होने लगा। प्रभुदास ने दुकान पर जाना छोड़ दिया। शाम को रामरतन और जमना भी पार्वती का पता लेने आए। कान्हा को देखकर पार्वती बड़ी खुश हुई। उसने उसे अपने पास बुलाया। जमना ने कहा - ‘कान्हा बेटे, दादी जी और चाचा जी के पाँव छूओ।’

कान्हा ने जमना के कहे अनुसार दोनों के पाँव छूए। पार्वती उसके सिर पर हाथ रखने के लिए उठने लगी तो उससे उठा नहीं गया। यह देखकर रामरतन ने उनकी बाज़ू पकड़ कर अच्छे से लिटा दिया। पार्वती को बोलने में भी दिक़्क़त हो रही थी। यह सब देखकर रामरतन ने प्रभुदास को एक तरफ़ ले जाकर पूछा - ‘प्रभु, चन्द्रप्रकाश भाई का कोई अता-पता है कि वह कहाँ है?’

‘राम भाई, उसका तो रमता योगी वाला हाल है। वह एक जगह तो टिकता नहीं। हाँ, उसने कह रखा है कि कोई इमरजेंसी हो तो ख़त करनाल के पते पर भेजा जा सकता है। ख़त पहुँचने के एक-दो दिन में उसे सूचना मिल जाएगी।’

‘तो भाई, आज ही उसे सूचित कर दो। माँ का साथ बहुत दिनों तक रहने वाला नहीं।’

‘राम भाई, यही बात डॉ. प्रतीक ने कही है। मैं कल ही चन्द्रप्रकाश को ख़त लिखता हूँ।’

‘प्रभु, मैं तो कहूँगा कि ख़त की बजाय तार दे दो। लिख देना कि माँ की तबियत गम्भीर है। वह समझ जाएगा।’

‘यह ठीक है। तार तो अब भी दी जा सकती है।’

‘इस वक़्त तार देने से चन्द्रप्रकाश को गम्भीरता का भी अहसास हो जाएगा।’

जब दोनों वापस आए तो पार्वती ने अटकते-अटकते कहा - ‘प्रभु, चन्द्र को भी बुला ले बेटा। मेरा तो अंत समय आ गया है।’

प्रभुदास ने हँसते हुए कहा - ‘माँ, तुम तो अन्तर्यामी हो। मैं और रामरतन भी चन्द्रप्रकाश को इत्तला देने की सोच रहे थे।’

‘बेटे, जब अंत समय नज़दीक होता है तो ऐसा ही होता है। …. बेटे प्रभु, एक बात और सुन, तूने  अपने पिता के मरने के बाद परिवार को सँभालने में मेरी मदद करके, मेरी सेवा करके तथा लोगों का भला करके माँ का ऋण चुकता कर दिया है। तू मेरा शरीर भी मेरे साँस रुकने के बाद हस्पताल वालों को दे देना, किसी के विरोध की परवाह मत करना।’

प्रभुदास इतना भावुक हो गया कि माँ से लिपट गया। रामरतन ने उसे अलग करते हुए कहा - ‘माँ को साँस लेने में तकलीफ़ हो रही है भाई। इन्हें आराम से लेटने दे, इस तरह तंग मत कर।’

‘राम, मैं तंग नहीं हो रही, आ तू भी मेरे गले लग जा, मैं बहुत खुश हूँ कि दोनों भाई मेरे पास हो।’

……..

संयोग कहिए या कुछ और, चन्द्रप्रकाश तार करने के तीसरे दिन पहुँच गया। पार्वती की हालत क्षण-प्रतिक्षण बिगड़ती जा रही थी। कृष्णा पास बैठी गीता-पाठ कर रही थी। सुशीला ने जैसे ही मुँह में चम्मच से गंगा-जल डाला, पार्वती की गर्दन एक तरफ़ को लुढ़क गई।

कृष्णा ने गीता को कपड़े में लपेटा, मन्दिर में रखा और आकर सुशीला के कान के पास मुँह करके आगे की कार्रवाई के बारे में पूछा। इस दौरान पार्वती के पार्थिव शरीर को भूमि पर उतार लिया गया था। सुशीला और कृष्णा को सुबकते देखकर प्रभुदास ने कहा - ‘तुम रोने की बजाय राम नाम का जाप करो,’ और स्वयं अस्पताल में फ़ोन करने के लिए दूसरे कमरे में चला गया।

मण्डी में जैसे-जैसे लोगों को पता लगने लगा, लोग शोक जताने के लिए आने लगे। कुछ ही देर में घर के बाहर काफ़ी भीड़ एकत्रित हो गई। प्रभुदास ने बाहर आकर भीड़ को सम्बोधित करते हुए कहा - ‘मित्रो! आप सभी का माता जी के निधन पर शोक जताने के लिए आने पर हम आभार व्यक्त करते हैं। आपमें से बहुत से लोगों को पता है कि मैं मृत-शरीर का दाह-संस्कार करने की बजाय उसे अस्पताल में डॉक्टरों की मदद के लिए दान देने के हक़ में हूँ। इसलिए मैंने अस्पताल में इत्तला कर दी है। एम्बुलेंस आती ही होगी। माता जी को श्रद्धांजलि यहीं दे सकते हैं, श्मशान तक नहीं जाना है।’ बहुत करीबी लोग पंक्ति बनाकर दिवंगत को श्रद्धांजलि देने हेतु घर के अन्दर जाने लगे, शेष हाथ जोड़कर प्रस्थान करने लगे।

दसेक मिनटों में एम्बुलेंस में दो डॉक्टर आए। उन्होंने बैठक में बैठकर आवश्यक लिखा-पढ़ी की और उसपर प्रभुदास और चन्द्रप्रकाश के हस्ताक्षर करवा कर रामरतन और जगन्नाथ की गवाही दर्ज की।

इधर मन्दिर से आए पुजारी जी ने दीपक से अंतिम संस्कार की विधिपूर्वक पूजा करवाई और मृत-शरीर डॉक्टरों को सौंप दिया गया।

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