Anuthi Pahal - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

अनूठी पहल - 7

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डी.ए.वी. संस्था की स्वीकृति के पश्चात् कॉलेज निर्माण कमेटी का गठन हुआ, जिसका प्रधान प्रभुदास को बनाया गया। इस प्रकार प्रभुदास की चर्चा दौलतपुर की सीमाएँ लाँघकर ज़िले भर में होने लगी। कमेटी के सभी सदस्यों ने बहुत परिश्रम किया। बहुत शीघ्र ही काफ़ी चन्दा इकट्ठा हो गया तो ‘सरस्वती पूजन दिवस’ पर कॉलेज का ‘भूमि-पूजन तथा शिलान्यास’ किया गया, जिसमें डी.ए.वी. संस्था के प्रान्तीय अध्यक्ष तथा अन्य पदाधिकारियों के अतिरिक्त ज़िला शिक्षा अधिकारी व कई कॉलेजों के प्रतिनिधि भी सम्मिलित हुए। सर्वसम्मति से कॉलेज का नाम रखा गया - ‘पार्वती देवी डी.ए.वी. कन्या महाविद्यालय।’ अन्ततः कॉलेज बन गया। चाहे वह ऐसी शैक्षणिक संस्था का प्रधान बनने के लिए अनिच्छुक था, फिर भी डी.ए.वी. संस्था के प्रान्तीय अध्यक्ष ने प्रभुदास के उल्लेखनीय योगदान के मद्देनज़र उसे कॉलेज के स्थानीय स्तर पर प्रबन्धन का कामकाज देखने के लिए बनाई गई कमेटी का प्रधान नियुक्त किया।

एक दिन प्रभुदास ग्राहकों में व्यस्त था कि एक व्यक्ति दुकान पर आया और पूछने लगा - ‘जनाब, प्रभुदास जी आप ही हैं?’

‘हाँ, क्यों क्या बात है?’

‘जनाब, डी.सी. साहब ने यह पत्र आपको देने के लिए भेजा है?’

ज़िले के इंचार्ज डी.सी. का नाम सुनकर प्रभुदास को हैरानी हुई। उसने पूछा - ‘भाई, कुछ बताओगे, डी.सी. साहब ने यह पत्र किसलिए भेजा है?’

‘जनाब, इस पत्र के ज़रिए आपको 15 अगस्त के फ़ंक्शन के लिए बुलाया गया है। उस दिन आपको सम्मानित किया जाएगा।’

प्रभुदास ने ग्राहक को थोड़ा इंतज़ार करने के लिए कहा और संदेशवाहक को दुकान के अन्दर बुलाकर पानी-वानी पिलाया और धन्यवाद दिया।

स्वतंत्रता दिवस वाले दिन प्रभुदास परिवार सहित समारोह स्थल पर पहुँचा। ध्वजारोहण तथा परेड के उपरान्त जब सम्मान के लिए उसे मंच पर बुलाया गया तो उसने डी.सी. साहब से पार्वती को बुलाने की प्रार्थना करते हुए कहा - ‘सर, इस सम्मान की असली हक़दार मेरी माँ हैं। कृपया उन्हें भी मंच पर बुलाया जाए।’

प्रभुदास तथा पार्वती को सम्मानित करने के पश्चात् डी.सी. ने मंच संचालक से माइक लेकर मंच से कहा - ‘जिस बालक के सिर से उसके पिता का साया चौदह-पन्द्रह वर्ष की आयु में उठ गया था, उसने अपनी लगन, परिश्रम तथा निष्ठा से न केवल अपने परिवार को सँभाला, अपितु बहुत थोड़े-से समय में समाज-सेवा में भी उल्लेखनीय भागीदारी दर्ज की है। लड़कियों की शिक्षा समाज के उत्थान तथा विकास के लिए बहुत आवश्यक है। प्रभुदास जी ने इसकी अहमियत को समझा है और अपनी कमाई से ख़रीदी चार एकड़ ज़मीन लड़कियों के कॉलेज की स्थापना के लिए दान करके छोटी-सी उम्र में एक मिसाल क़ायम की है। इस नेक कार्य के लिए मैं अपनी ओर से प्रभुदास जी और इनकी माता श्रीमती पार्वती देवी जी का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। मैं इन्हें बधाई देता हूँ और ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि प्रभुदास जी भविष्य में समाज-सेवा के अन्य क्षेत्रों में भी बढ़ चढ़कर योगदान दें।’

डी.सी. के सम्बोधन-समाप्ति पर पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा।

उस दिन अनेक परिचितों ने प्रभुदास को बधाई दी। शाम को रामरतन भी जमना सहित उसके घर आया और बधाई दी। अगले दिन कॉलेज की प्रिंसिपल ने प्रभुदास को कॉलेज में बुलाकर सारे स्टाफ़ के साथ चाय-पार्टी का आयोजन किया और उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।

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