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दमयंती प्रभुदास को कई बार कह चुकी थी कि वह उसके ससुराल आए, किन्तु दुकान पर अकेला होने की वजह से वह जा ही नहीं पाता था। इस बार रक्षाबंधन के अवसर पर चन्द्रप्रकाश घर पर था, इसलिए उसने दुकान की ज़िम्मेदारी उसे सौंपी और एक रात के लिए दमयंती को मिलने चला गया। प्रभुदास बहन के ससुराल वालों के लिए बहुत-से उपहार लेकर गया। बहन और उसके ससुराल वालों ने उसका खूब स्वागत किया। दमयंती के सास-ससुर ने उसे ज़िला प्रशासन द्वारा सम्मानित किए जाने पर बधाई दी। दूसरे दिन सुबह उसका बहनोई विजय उसे सैर कराने ले गया। इसी दौरान उसने प्रभुदास को रेल-लाइन पार की ज़मीन दिखाई तथा कहा कि यह ज़मीन ख़रीद लेनी चाहिए। प्रभुदास ने ज़मीन देखने के बाद कहा - ‘विजय जी, यह ज़मीन तो बंजर है। दूसरे, इतनी दूर ज़मीन लेकर मैं क्या करूँगा?’
‘भाई साहब, आज यह ज़मीन बंजर है, इसलिए बहुत सस्ती मिल रही है। सरकार ने भाखड़ा का पानी राजस्थान तक पहुँचाने के लिए राजस्थान नहर को मंज़ूरी दे दी है। इस नहर के पूरा होते ही यह ज़मीन सोना उगलेगी। एक बात और, ज़मीन आबादी से बहुत दूर नहीं है। इसलिए आने वाले समय में इसकी क़ीमत आसमान छूने लगेगी। जहाँ तक दूरी का सवाल हैं, हम हैं ना यहाँ! हम ज़मीन की देखभाल कर लेंगे। ….. आपके पास पैसे की कमी नहीं। यदि हमारे पास पैसा होता तो मैं कब का इस ज़मीन का सौदा कर चुका होता!’
‘विजय जी, मैं माँ से सलाह करके आपको बतलाऊँगा।’
‘जैसा आप ठीक समझें। मैंने तो ज़मीन बाबत बात इसलिए चलाई थी कि यह फ़ायदे का सौदा है।’
वापस आकर प्रभुदास ने जब पार्वती से ज़मीन के विषय में बात की तो उसने कहा - ‘बेटा, ज़मीन-जायदाद वही फ़ायदा देती है, जिसपर अपना क़ब्ज़ा हो। माना कि आने वाले समय में वह ज़मीन बहुत क़ीमती हो सकती है, किन्तु तब तक उसकी देखभाल……?’ पार्वती ने प्रभुदास की प्रतिक्रिया जानने के लिए अपनी आशंका अधूरी छोड़ दी।
‘माँ, ज़मीन अभी कौड़ियों के भाव मिल रही है। अभी विजय जी उसकी देखभाल करने को तैयार हैं।
पवन और दीपक दोनों को तो मैं इस छोटी जगह बाँध कर रखूँगा नहीं। पवन पढ़ाई पूरी करने पर मेरे साथ यहाँ का काम सँभालेगा और आठ-दस सालों में दीपक को गंगानगर में घर ले देंगे, तब तक ज़मीन के लिए पानी का बन्दोबस्त भी हो जाएगा। वह वहीं रहकर शहर में कोई काम-धंधा भी कर लेगा और ज़मीन की सँभाल भी होती रहेगी।’
पार्वती को प्रभुदास की समझदारी पर कोई संदेह नहीं था, किन्तु ज़मीन को दामाद की देखरेख में रखने पर उसका मन पूरी तरह से तैयार नहीं था। फिर भी उसने प्रभुदास को ज़मीन ख़रीदने के लिए अपनी स्वीकृति दे दी। हफ़्ते बाद प्रभुदास ज़मीन का सौदा कर आया और इस प्रकार परिवार की सम्पत्ति में पचास बीघे ज़मीन जुड़ गई।
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