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दीपक को जब ज़मीन की देखभाल के लिए भेजने का अंतिम निर्णय लिया गया तो दीपक ने प्रभुदास को कहा - ‘पापा, अब जबकि आपने मुझे ज़मीन की देखभाल करने के लिए घर से दूर भेजने का निर्णय ले लिया है तो एक बात मैं आपके सामने स्पष्ट रूप से कह देना चाहता हूँ और वह बात यह है कि मैं वहाँ खेती ही करूँगा, खेती करते हुए कोई अन्य काम-धंधा नहीं करूँगा।’
‘बेटे, यह तू क्या कह रहा है? खेती करने के लिए तो सीरी और मज़दूर ही काफ़ी होंगे, तेरे लिए किसी इज़्ज़तदार काम शुरू करने की मैं सोच रहा हूँ।’
‘तो क्या आप खेती को इज़्ज़तदार काम नहीं मानते?’
प्रभुदास को दीपक के प्रश्न से धक्का लगा। उसने इस तरह तो सोचा ही नहीं था। उसे आत्मग्लानि हुई। साथ ही उसे प्रसन्नता भी हुई कि नई पीढ़ी नये ढंग से सोच रही है। उसने कहा - ‘मेरा मतलब यह नहीं था। लेकिन तू सारा समय खेतों में करेगा क्या?’
‘पापा, मैंने पढ़ा है कि ग्रीन रिवोल्यूशन के बाद से जो हम रासायनिक खादों और कीटनाशक दवाओं का अत्यधिक उपयोग करने लगे हैं, इससे हम लोगों के स्वास्थ्य से तो खिलवाड़ कर ही रहे हैं, ज़मीन की उर्वरा शक्ति को लम्बे समय तक नहीं बनाए रख पाएँगे। यूरिया के अत्यधिक उपयोग से धरती-माँ कुछ ही वर्षों में बंजर हो जाएगी। इसलिए मैंने सोचा है कि मैं हमारे पुराने तरीक़ों को अपनाते हुए नई तकनीक का इस्तेमाल करूँगा।’
‘मैं कुछ समझा नहीं बेटा?’
‘पापा, मैं रासायनिक खादों की बजाय गोबर की खाद और गोमूत्र से बने कीटनाशक पदार्थों का उपयोग करूँगा। गोबर की खाद में 50 प्रतिशत नाइट्रोजन और 20 प्रतिशत फास्फोरस व पोटेशियम होता है। इसके अतिरिक्त गोबर की खाद में सभी तत्व जैसे कैल्शियम, मैग्नीशियम, गंधक, लोहा, मैंगनीज, तांबा व जस्ता आदि भी सूक्ष्म मात्रा में पाए जाते हैं। गोबर की खाद से मिट्टी में हवा का संचार तथा पानी को सोखने की क्षमता बढ़ती है। मिट्टी के कण आपस में अधिक जुड़े रहते हैं, जिससे मिट्टी का कटाव रुकता है। ….. गोबर की खाद के लिए मैं शुरू में पाँच-सात देसी गाएँ खेत पर ही पालूँगा। साथ ही खेती के नये उपकरणों का भी सही ढंग से प्रयोग करूँगा।’
‘बेटे, यह मैंने देखा है कि रासायनिक खादों के बिना फसल का झाड़ बहुत कम होता है। यदि तू रासायनिक खादों का बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं करेगा तो कम फसल से आमदनी भी कम होगी।’
‘नहीं पापा। मैं प्रचार माध्यमों से लोगों को रासायनिक खादों तथा कीटनाशक दवाओं के हानिकारक प्रभावों के प्रति जागरूक करूँगा और बताऊँगा कि इनके प्रयोग से उत्पन्न अनाज और सब्ज़ियों के खाने से स्वास्थ्य पर कितना बुरा असर पड़ता है। धीरे-धीरे जब लोगों में जागरूकता आएगी तो हमारे उत्पादों की अधिक क़ीमत मिलने लगेगी।’
‘वाह बेटा, तूने तो बहुत कुछ पढ़ और समझ लिया है। तेरी ऐसी सोच है तो आमदनी कम भी होगी तो भी मुझे अफ़सोस नहीं होगा। कम-से-कम लोगों को तो अच्छा अन्न और सब्ज़ियाँ खाने को मिलेंगी। परमात्मा तुझे तरक़्क़ी दे।’
…….
दीपक ने सबसे पहले खेत में नया ट्यूबवेल लगवाया, क्योंकि पहले जहाँ ट्यूबवेल लगा था, वह हिस्सा उसके फूफा के हिस्से में आ गया था। ड्रिप इरीगेशन के सेट लगाकर सारे खेत में कम पानी से सिंचाई की व्यवस्था की। साथ ही उसने रहने के लिए दो कमरों का सेट ट्यूबवेल के नज़दीक ही बनवा लिया। सीरी और मज़दूरों के साथ नये अनुबंध किए। स्थानीय गोशाला से गोबर की ट्रॉली का रेट तय किया। स्टेट कैटल फ़ॉर्म से नागौरी और राठी नस्ल की पाँच गाएँ ख़रीदीं। जैविक खाद तैयार करने के लिए खेत के एक कोने में छप्पर डलवाया। गोमूत्र इकट्ठा करने के लिए बड़े मिट्टी के घड़े लिए तथा मज़दूरों को कहा कि उन्हें उनकी मज़दूरी के अतिरिक्त पाँच लीटर की एक केनी गोमूत्र के बदले दो रुपये दिए जाएँगे।
ये सारी व्यवस्थाएँ होने के बाद पहले ही साल उसकी मेहनत रंग दिखाने लगी। खेत आबादी के नज़दीक होने के कारण बिना रासायनिक तत्त्वों के उगाई सब्ज़ियाँ लेने के लिए मण्डी निवासी खेत पर आने लगे। लोगों ने अपनी आवश्यकता अनुसार गेहूँ की फसल आने से पहले ही बुकिंग करवानी शुरू कर दी।
माउथ पब्लिसिटी का इतना असर हुआ कि उसकी गेहूँ की लगभग सारी फसल ही मार्केट रेट से अधिक में एडवांस में बुक हो गई। शीघ्र ही उसकी ख्याति मण्डी की सीमाओं को लाँघकर ज़िला मुख्यालय तक भी पहुँच गई।
मार्च का महीना आधा गुजर चुका था। फसल लगभग पक चुकी थी। गेहूँ की बल्लियाँ धूप में सोने जैसी चमक रही थीं। सँध्या होने में कुछ ही समय की देरी थी कि एक झंडी लगी कार खेत में बने दीपक के घर के बाहर आकर रुकी। ड्राइवर के दरवाज़े पर दस्तक देने से पहले ही वह बाहर आ गया। ड्राइवर ने उसे बताया कि डी.सी. साहब आए हैं। वह फुर्ती से कार के पिछले दरवाज़े के पास पहुँचा। इस दौरान डी.सी. ने कार का शीशा नीचे कर लिया था। उसने नमस्ते की।
डी.सी. ने पूछा - ‘तुम ही दीपक हो, इस खेत के मालिक?’
‘जी साहब, मैं ही दीपक हूँ।’
‘तुम्हारे कृषि करने के ढंग को लेकर चर्चा सुनी थी। मैं इधर से गुजर रहा था तो सोचा, क्यों न स्वयं ही देखूँ?’
‘सर, आपका पधारने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। आइए, घर के अन्दर चलिए। घर में जैसी भी बैठने की व्यवस्था है, उसी में आपकी आवभगत करना चाहूँगा।’
कार आई देख सीरी और एक-दो मज़दूर भी वहाँ आ गए थे। जैसे ही डी.सी. ने कार से बाहर पैर रखे, दीपक ने सीरी मोहने को अन्दर जाकर चाय-पानी का इंतज़ाम करने के लिए कहा और डी.सी. को हाथ जोड़कर अन्दर चलने के लिए प्रार्थना की ।
डी.सी. तो आया ही था दीपक से उसके खेती करने के ढंग पर बातें करने के लिए, इसलिए वह दीपक के साथ घर के अन्दर आ गया।
कमरे में प्रवेश करते ही डी.सी. ने चारों तरफ़ नज़रें घुमाईं। दीवारों पर गोबर का लेप तथा गोबर से लीपा-पुता फ़र्श देखकर डी.सी. ने पूछा - ‘मि. दीपक, दीवारों पर गोबर का लेप क्यों किया हुआ है?’
‘यह लेप गाय के गोबर से किया हुआ है। गाय के गोबर का लेप होने पर मक्खी-मच्छर नहीं आते, सर।’
‘अच्छा!’ डी.सी. को सुनकर आश्चर्य हुआ, किन्तु उन्होंने कोई प्रतिप्रश्न नहीं किया।
मोहने ने साथ-सुथरे बर्तनों में पहले पानी और फिर चाय-बिस्कुट उनके सामने रखे।
चाय पीने के बाद डी.सी. ने कहा - ‘मि. दीपक, मैं खेत और सब्ज़ियों वाले एरिया को देखने के साथ यह भी देखना चाहता हूँ कि तुम जैविक खाद के साथ गोबर और गोमूत्र के घोल का किस तरह इस्तेमाल करते हो?’
‘सर चलिए, मैं आपको दिखाता भी हूँ और बताता भी हूँ।’
डी.सी. ने लगभग आधा घंटा खेत पर लगाया। दीपक ने अपनी कार्य-पद्धति की पूरी जानकारी उन्हें दी। डी.सी. के हाव-भाव से लगता था कि वह दीपक की कार्यप्रणाली से बहुत प्रभावित हुआ था। जाते हुए उसने दीपक को शुभकामनाएँ दीं और कहा - ‘दीपक, मुझे यह देखकर बड़ी ख़ुशी हुई है। तुम्हारे जैसे नौजवान जब इस तरह के जज़्बे के साथ जीवन में कदम बढ़ाते हैं तो सफलता खुद-बख़ुद कदम चूमने लगती है।’
…….
तीन-चार दिन से दीपक ने कमरे के अन्दर सोना छोड़ दिया था, क्योंकि गर्मी की वजह से कमरे में घुटन महसूस होती थी। रात को जब वह चारपाई पर लेटा तो आसमान टिमटिमाते तारों से भरा हुआ था, क्योंकि अमावस्या आने वाली थी। वह सोचने लगा कि जब मैंने अपनी योजना पापा के सामने रखी थी, तो उन्होंने पूरी बात सुनकर आशीर्वाद दिया था, किन्तु यहाँ आने पर जब मैंने अपनी योजना पर काम करना शुरू किया तो सबसे अधिक हतोत्साहित करने वाले थे विजय फूफा। उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया था कि इस तरह का जोश ठंडा पड़ते देर नहीं लगती, क्योंकि ये ख़याली पुलाव ज़मीनी हक़ीक़त का सामना नहीं कर सकते। लेकिन, पापा का उदाहरण मेरे सामने था। उन्होंने अपनी लगन और मेहनत से जिस प्रकार से परिवार को आगे बढ़ाया, उसको देखते हुए मुझे यक़ीन था कि मेरी योजना विफल नहीं हो सकती यदि मैं भी पापा की तरह ईमानदारी और परिश्रम से काम करूँगा। और देख लो, इतने कम समय में मेरी सफलता के क़िस्से ज़िले के हुक्मरानों तक पहुँच गए हैं। जैसे-जैसे लोगों में मेरे बारे में चर्चाएँ होने लगी हैं, फूफे के मन में मेरे लिए ही नहीं, हमारे सारे परिवार के लिए जलन की भावना बढ़ती जा रही है। इसी प्रकार की बातें सोचते-सोचते उसकी आँख लग गई, क्योंकि ठंडी हवा चलने लगी थी।
…….
डी.सी. ने अगली सुबह दफ़्तर में आकर पी.ए. को डिस्ट्रिक्ट एग्रीकल्चर डेवलपमेंट ऑफ़िसर से बात करवाने को कहा। डी.सी. ने उसे दीपक तथा उसके कार्यों के बारे में बताकर कहा कि मुझे एक सप्ताह में अपनी रिपोर्ट तैयार करके भिजवाओ।
डिस्ट्रिक्ट एग्रीकल्चर डेवलपमेंट ऑफ़िसर ने आदेशानुसार दीपक से उसके खेत पर जाकर बातचीत की तथा निरीक्षण किया और अपनी रिपोर्ट भेज दी। डी.सी. ने उसपर अपनी टिप्पणी में दीपक का नाम ‘आदर्श कृषक सम्मान’ के लिए अनुमोदित करते हुए केस राज्य के मुख्य सचिव के कार्यालय को प्रेषित कर दिया।
आगामी गणतन्त्र दिवस से पूर्व दीपक के पास प्रान्तीय सचिवालय से पत्र आया जिसके माध्यम से उसे सूचित किया गया था कि 26 जनवरी को जयपुर में मुख्यमन्त्री उसे कृषि के क्षेत्र में उसके उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित करेंगे।
जब यह समाचार दौलतपुर पहुँचा तो प्रभुदास को बधाई देने वालों की लाइन लग गई। उसे तथा सारे परिवार को बहुत प्रसन्नता हुई। पार्वती ने प्रभुदास को कहा - ‘प्रभु, मेरी सेहत तो ठीक नहीं रहती। तू दीपक को यहाँ आने के लिए लिख दे। मैं अपने पोते की कामयाबी पर उसे अपने हाथों से आशीर्वाद देना चाहती हूँ। वैसे भी उसे यहाँ आए हुए साल से ऊपर हो गया है।’
‘माँ, मैं कल ही लिख दूँगा।’
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