सोई तकदीर की मलिकाएँ - 19 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 19

 

सोई तकदीर की मलिकाएँ 

 

19

 

भोला सिंह हर पल जिस सवाल से बचने की कोशिश करता फिर रहा था , अपने मन के सामने भी जिस सवाल को छिपा रहा था , वह सवाल आज उसके सामने चरण सिंह ने फिर से लाकर खङा कर दिया था । पिछले एक साल से लगातार वह इसी सवाल से जूझ रहा था । जब भी वह अपने खेत में जाता तो दूर दूर तक फैली फसलें देख कर उसके आँसू भर आते । कल इन फसलों का मालिक कौन होगा । जिंदगी का क्या भरोसा ? आज है , कल होगी या नहीं होगी , कौन जाने । उसके बाद यह सारे खेत किसी और के कब्जे में होंगे ।

भोला सिंह को याद आया - पांधा उस दिन पाठ करता हुआ कह रहा था कि हर इंसान के ऊपर पैदा होते ही अपने माँ बाप का कर्ज होता है । यह कर्ज तब उतरता है जब उसके घर में औलाद पैदा होती है । चिता को आग उसकी औलाद ही देती है । श्राध्ध और पितरकर्म भी औलाद के हाथों ही होते है । बिना औलाद वाले की गति नहीं होती । उसकी बेबे जी , बापू जी और बाकी पितर स्वर्ग में बैठे उसकी ओर आस लगाए होंगे । कब उसके घर औलाद हो तो वे चौरासी से मुक्त हो जाएं । अब औलाद तो चाहिए , इस लोक के लिए भी और परलोक के लिए भी पर वह करे तो क्या करे । किस मंदिर गुरद्वारे की दलहीज पर उसने माथा नहीं रगङा । किस पीर के मजार पर उसने चिराग नहीं जलाए । कौन कौन से हकीमों , डाक्टरों का दरवाजा नहीं खटखटाया नहीं उन्होंने । हर जाँच करवाई । दोनों की रिपोर्ट में कोई कमी नहीं है पर औलाद को दुनिया में नहीं आना था सो नहीं आई । सोच सोच कर परेशान होने क्या फायदा – उसने अपना सिर झटका ।
चिंता ताकी कीजिए , जो अनहोनी होय ।
या अस्थिर संसार में नानक थिर नहीं कोय ।।
सोचते हुए उसने जेब से चाबी निकाली । चरण सिंह और शरण सिंह तो अपने गाँव जाने वाली बस पर चढ गये लेकिन भोला सिंह को तो अभी बीज खरीदने थे इसलिए वह जीप में चढा और बीज भंडार लौट आया ।
भाई गेहूँ का अच्छा सा बीज चाहिए । बढिया झाङ वाला । फसल भरपूर होनी चाहिए ।
हमारे पास पूसा किरण है , डी बी डब्लयू 147 , और डीबीडबल्यू 47 है । पूसा तेजस भी है । आपको कौन सा बीज चाहिए । बताइए , वही निकलवा देते है ।
ऐसा करो , पूसा तेजस और डीबी डब्लयू 147 दे दो । दो सौ किल्ले खेत के लिए चाहिए ।
अभी लो सरदार जी । अभी निकलवा देते हैं । आपके साथ कोई नहीं आया । बोरियाँ चढाने , उतारने में सुविधा होती ।
कोई नहीं आया भाई । कोई है ही नहीं तो साथ लाता किसे । इस मामले में भगवान का हाथ बहुत तंग है ।
वह फिर से उदास हो गया ।
दुकानदार ने उसकी उदासी देखी तो सांत्वना देते हुए बोला - कोई न जी । आप बेफिक्र रहो । मैं अभी अपने लङकों को कह कर बीज जीप में रखवा देता हूँ । आप बस जीप यहाँ दुकान के सामने ले आओ ।
लङकों ने माल स्टोर से निकाल कर जीप में रख दिया तो वह बिल चुका कर वह वापस गाँव की ओर चल दिया ।
रास्ते भर वह चरण सिंह और शरण सिंह की बातों को याद करता रहा – ठीक ही तो कह रहा था चरण । शहर में तो लङके बूढे होने तक पढते रहते हैं ।
उसने खुद देखा है , बङी बङी दाढी मूँछ वाले आदमियों जैसे लङके हाथ में रजिस्टर और एक दो किताबें पकङे कालेज जा रहे होते हैं । पता नहीं क्या पढते रहते हैं इतनी उम्र तक ।
उसने अपने दिमाग में चरण के बोल दोहराये -
आपकी उम्र कौन सा ज्यादा हुई है । एक इशारा करो , लोग अपनी लङकियां लेकर दरवाजे पर लाईन लगा लेंगे । मर्द तो सत्तर साल तक भी जवान होता है । आप तो अभी पचास के भी नहीं हुए ।
और वह शरण क्या कह रहा था –
हमारी बात सोचना जरूर ।
नहीं , नहीं वैसे ही मेरा मन रखने के लिए कह रहे होंगे । वरना इस उम्र में शादी कौन करता है ।
करता क्यों नहीं , उसके अपने दिमाग ने जवाब दिया – वह मेरे साले का साला है न विसाख सिंह , उसने पचपन साल की उम्र में दूसरा ब्याह किया था न पिछले साल । उसके तो चार बच्चे भी थे ।
उसकी तो बीबी मर गयी थी । बीबी के बिना रोटी से परेशान हो रहा था बेचारा इसलिए उसने यह होले खाए थे । खाए क्या खाने पङ गये थे ।
हमारी बात सोचना जरूर – दोनों भाइयों की आवाज उसके कानों में गूंजी ।
और वह अपने गाँव का निर्मल सिंह , उसका भी छियालीस सैतालीस साल की उम्र में ब्याह हुआ था कि नहीं ।
उसका तलाक हुआ था भले आदमी ।
तो क्या हुआ , शादी तो दोनों की पक्की उम्र में हुई थी । नही बनी तो तलाक लेकर अलग हो गये । अब अकेला आदमी क्या करता , इसलिए उसे नयी पत्नि लानी पङी ।
तेरी तो बसंत कौर जीती जागती है । तू कैसे शादी करवाएगा ?
तू सोचना इस बारे में – शरण सिंह की आवाज उसके अपने कानों में गूंजती लगी । इस आवाज से बचने के लिए उसने गाने लगाने के लिए जैसे ही हाथ बढाया , उसका ध्यान रास्ते पर गया । ओह , ख्यालों की उधेङबुन करते करते वह अपनी हवेली की पगडंडी पर चढ चुका था । मुश्किल से दो चार मिनट लगेंगे , उसे हवेली पहुँचने में । हवेली जहाँ बसंत कौर उसका इंतजार कर रही होगी । केसर उसकी ओर दिलखिंचवी नजर से देखेगी । और वह घर में तीसरी जनानी लाने की स्कीमें बना रहा है ।
इसी तरह की बातें सोचते सोचते वह हवेली पहुँच गया । जीप आँगन में खङी की और नलके पर हाथ मुँह धोया । तब तक बसंत कौर लस्सी का गिलास ले आई थी – ले पी ले । इतनी धूप में बाहर से आया है ।
उसने गौर से बसंत कौर का चेहरा देखा । इस उम्र में भी कितनी सुंदर और दिलकश है । अब औलाद परमात्मा ने नहीं दी तो इस बेचारी का क्या कसूर । वह और ब्याह नहीं करेगा ।
ऐसे घूर घूर कर क्या देख रहा है ?
कुछ नहीं । सोच रहा था , तू हर रोज पहले से भी खूबसूरत और जवान होती जा रही है ।
धत , बसंत कौर शर्मा कर गिलास छोङ कर चौबारे चढ गयी । भोला सिंह ने एक घूंट में लस्सी का गिलास खाली किया और वह भी सीढियाँ चढ कर ऊपर चला गया ।

बाकी फिर ...