रामलाल शहर में एक मोहल्ले से होकर गुजर रहे थे। उस मोहल्ले से उन्हें खासी नफ़रत थी, इतनी कि वो इधर आना ही नहीं चाहते थे। वजह थी उनकी इकलौती बेटी सीमा जिसने उनकी मर्जी के खिलाफ इसी मोहल्ले में कहीं रहनेवाले एक विजातिय युवक रमेश से शादी कर ली थी। उसकी इस मनमर्जी से रामलाल इतने क्षुब्ध हो गए थे कि उन्होंने सीमा से हर तरह का संबंध ही तोड़ लिया और उसे चेतावनी भी दे दी थी कि अब वह जिंदगी में कभी भी उसे अपना मुँह नहीं दिखाएगी।
इस घटना को पाँच साल हो चुके थे। दोनों बाप बेटी अपने अपने प्रण पर टिके रहे। न कभी एक दूसरे का हालचाल पूछा और न ही कोई खोजखबर ली। रामलाल को तो सीमा के घर का पता भी नहीं मालुम था। समय बीतता रहा और आज उस मोहल्ले में घुसते ही बरबस मन में घुस आये सीमा की यादों को परे झटककर रामलाल पैदल ही अपने गंतव्य की ओर बढ़ने लगे।
उस मोहल्ले की सँकरी सड़क पर अचानक एक चार साल की गोरी चिट्टी खुबसुरत सी बच्ची खेलते खेलते एक घर से निकलकर बाहर की तरफ दौड़ पड़ी। इससे पहले कि सामने से आ रहा स्कूटर उसे ठोकर मार देता, रामलाल ने आगे बढ़ कर उस बच्ची को गोद में उठा लिया।
स्कूटर के ब्रेक की तेज आवाज सुनकर घर में से एक महिला के साथ कुछ और लोग भागते हुए बाहर आए। एक आदमी बच्ची को रामलाल की गोद से लगभग छिनते हुए उसे लेकर बेतहाशा चुमने लगा।
उसके चेहरे को देखकर रामलाल कुछ याद करने की कोशिश कर ही रहे थे कि उस आदमी की गोद से बच्ची को लेकर उसे प्यार से अपने सीने से लगाये उस महिला को देखकर वह सन्न रह गए।
वह उनकी लाडली बिटिया सीमा थी और वह बच्ची शायद सीमा की ही गुडिया थी यानि उनकी नवासी। कुछ देर बाद बच्ची को सीने से लगाये दुलार करती सीमा की निगाहें अपनी बच्ची को बचानेवाले का शुक्रिया अदा करने के लिए उस व्यक्ति की तरफ घूम गईं तो सामने अपने बाबूजी को देखकर सीमा अपने आपको रोक नहीं सकी और उनके सीने से लगकर फफक पड़ी। अपनी लाडली बेटी के प्यार की गर्मी से रामलाल के मन के अंदर भी नफरत की जमी बर्फ पिघल चुकी थी। स्नेह से उसकी पीठ पर थपकी देते उसे चुप कराते रामलाल की आँखें नम हो गईं।
सीमा की गोद से बच्ची को अपनी गोद में लेते हुए रामलाल ने उस बच्ची के नन्हे हाथों में सौ रुपये का एक नोट थमा दिया। उनके बाहर की तरफ कदम बढ़ाते ही सीमा तड़प उठी और कुछ कहती कि तभी रामलाल ठिठके और मुड़कर रमेश से बोले, "जमाई बाबू ! अगले हफ्ते छोटे बेटे सूरज की शादी है। आप सीमा को लेकर जरुर आना !”
रमेश ने दोनों हाथ जोड़ लिए, और सीमा रामलाल के सीने से एक बार फिर लग के रो पड़ी। उसकी आँखें रो रही थीं लेकिन मन मयूर ख़ुशी से नाच उठा था। आज बाप बेटी के रिश्तों के बीच जमी बर्फ पिघल कर आँखों के रस्ते आँसू बनकर निकल रही थी। नफरत की बर्फ पिघल चुकी थी।