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नर्क - 12

"आयु मेरी तुमसे ये अपेक्षा न थी। तुमने उस ग्रह को सिर्फ इसलिए नष्ट किया क्यूँकि तुम प्राचीन जीवन मिटाकर नवीन रचना करना चाह रहे थे??
तुमने ये भी न सोचा कि पिताजी को ठेस लगेगी, एक-एक सभ्यता को आज वाली स्थिति में आने में सहस्रों वर्ष लगे है। रक्त और स्वेद (पसीने) की कितनी बूंदे बही है। प्रतीत होता है कि तुमने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है। अग्रज ( बड़ा) के प्रेम व पिता के संस्कारों का विस्मरण (भूलना) कर दिया है।" आयुध ने सामने खड़े आयु को धिक्कारते हुए कहा।

आयु-" ज्येष्ठ (बड़ा), रक्षराज षड़यंत्र रच रहे थे। जैसे ही मुझे ज्ञात हुआ, मैं उनको समझाने गया था। मैंने उनको ये भी दर्शाया कि मैं रक्षकुमारी (राक्षस राजकुमारी) निशिका से प्रेम करता हूँ। उस प्रेम के कारण ही सही, कृपया ये जिद्द छोड़ दीजिये। परन्तु उन्होंनें मुझ पर आक्रमण करवा दिया। मुझे प्रत्युत्तर (जवाब) में कार्यवाही करनी पड़ी। जब मैं उनके वश में न आया तो उन्होंने मेरे नेत्रों के समक्ष निशिका को अपने विश्वासपात्र द्वारा विष दिलवा कर मृत्यु प्रदान कर दी। मैंने क्रोध में रक्षराज और उनकी सेना का संहार कर दिया और हृदय में पीड़ा के साथ लौट आया।

"ये मिथ्या भाषण बंद करो आयु, तुम्हारा भेद सबके समक्ष आ चूका है। तुमने सिर्फ रक्षराज ही नहीं वरन् (बल्कि) उनकी निर्दोष प्रजा जिसमें जवान, बच्चे, बुजुर्ग, व मादा(फीमेल) राक्षसियाँ भी थी, सबको मार कर ग्रह को विस्फोट कर नष्ट कर दिया। अब तुम स्वयं को बचाने हेतु मिथ्या आवलम्बन (सहारा) ले रहे हो। षड़यंत्र कोई और नहीं वरन् तुमने किया है। तुम्हें इसका दंड भोगना ही पड़ेगा। गिरफ्तार कर लो इसे." आयुध क्रोध में चिंघाड़ा।

स्वर्ग की ताकतवर सेना अकेले आयु की तरफ बढ़ी। आयु चिल्लाता रह गया पर अब उसका जुर्म साबित किया जा चुका था तो कोई उसे सुन नहीं रहा था। अब उसको बंधन में बांधना महज समय की बात थी। परन्तु..............
उसके हाथ में चमका विद्युदभि (परशु)। वो परशु जो स्वयं राम (परसुराम जी) के हाथों की सोभा था, जिसे उन्होंने वापस अपने गुरु (महाकाल) को लौटा दिया था। वो विनाशकारी शस्त्र जिसके आगे किसी भी अस्त्र या शस्त्र की कोई बिशात न थी। जिसने पाप और पापियों में अपना खौफ बिठा रखा था

सब के सब अचंभित से उस फरसे को देख रहे थे। उसकी चमक लपलपा रही थी जैसे वो बहुत प्यासा था। परन्तु फिर भी सब ताकतवर थे। युद्धकुशल थे, क्रोधित थे और सबसे बड़ी बात अमर थे!!! कोई भी हथियार उनको मार नहीं सकता था तो पूरी सेना पियूष की तरफ लपकी। पियूष उन्हें रुकने की चेतावनी ही देता रह गया। और.......
उन सबकी अमरता उस कालजयी परशु के समक्ष कागज साबित हुई। पता नहीं इसमें अधिक आयु का कौशल था या उस परशु की शक्ति कि उन योद्धाओं को अपनी अमरता पर तब संदेह होने लगा जब वो कागज की तरह कटने लगे। आयुध समझ चूका था कि आयु को रोकना आसान नहीं। उसने अपनी भैरवी खड़ग् का आह्वान् किया और परशु के समकक्ष ही एक और शस्त्र आयुध के हाथों में था।

आयुध ने अपनी सेना को रोका और पियूष पर टूट पड़ा। दो समान ताकत वाले शस्त्र जब टकराये तो लगा कि आज स्वयं महाकाल तांडव कर रहे हों। आस-पास के निर्जन ग्रह और तारिकाएं तो उनकी टकराहट से उत्पन्न ऊष्मा से ही भस्म हो गए। ये युद्ध और भी लम्बा चलता अगर इस विनाश को देखकर आयुध ने विचलित होकर अपने हाथों को विराम न दिया होता और आयु को उस पर हावी होने का अवसर न मिला होता।

लाशों के मध्य आयुध घायल होकर पड़ा था और उस पर आँखों में हिंसा और हाथ में परशु लिए आयु खड़ा था। आयुध का अपने ही अनुज के हाथों प्राणांत होने जा रहा था कि आयु की पीठ में एक कटार धंश गयी। पीड़ा से आयु का चेहरा विकृत हो उठा। पीठ में वार करने वाले कायर को देखकर उसे दण्डित करने हेतु वो घूमा तो वो चकित रह गया क्यूँकि सामने निशिका थी जिसके हाथ में वो खंजर और नेत्रों में क्रोध था।

निशिका के दांत किटकिटाए -" दुष्ट, मेरे ग्रहवाशियों को अपने कुत्षित (घटिया) इरादों के लिए खत्म करने के लिए मेरी मृत्यु का स्वांग रखने की क्या आवश्यकता थी?? तुझे कौन रोकने वाला था और तुम्हे किसी भी बहाने की क्या आवश्यकता थी?? मेरी भूल रही जो मैंने तुमसे प्रेम किया और तुमने मेरे निर्दोष पिता को ही......." कहते कहते उसकी आँखें छलछला आयी।

आयु -" निशिका परे हट जाओ, मेरे मस्तिष्क में हिंसा सवार है। मेरे रास्ते में मत आओ। ये सब मैं तुम्हारे लिए ही कर रहा हूँ।"

परन्तु निशिका न हटी उसने कटार को मजबूती से घुमा दिया जिस से अत्यधिक पीड़ा की वजह से आयु के हाथ से परशु छूट गया। आयु ने निशिका को परे करने के लिए बल प्रयोग किया परन्तु निशिका आज प्रतिशोध की अग्नि में झुलस रही थी तो वो वश में न आ रही थी। इधर आयुध ने मौका पाकर परशु पर झपटा मारा परन्तु परशु उस से हिला भी नहीं। ये देख आयु निशिका को धकेल वहां पहुंचा और उसने लात मार कर आयुध को परे किया और परशु उठाने को झुका परन्तु निशिका वहां आकर आयु पर फिर झपट पड़ी और दोनों गुथ्थमगुथा हो गए। इधर आयुध भी आयु पर मुष्ठिप्रहार (पंचिंग) करने लगा।

निशिका आयु को तजकर (छोड़कर) क्रोध में परशु की तरफ बढ़ी और उसने सहजता से परशु को उठा लिया। आयु के द्वारा दूर उछाला गया आयुध ये देखकर चौंक पड़ा साथ ही जोर से चिल्लाया -"निशिका, अपने हाथ से परशु मुझे दो।"

निशिका आयुध को परशु देने बढ़ी और इधर आयु ने जब देखा की परशु आसानी से आयुध के हाथ में जाने वाला है उसने तुरत ही एक शक्तिशाली मंत्र वार निशिका पर किया जिससे निशिका कणों में विखंडित (बिखर) गयी और वो कण अनंत नभ में कहीं विलीन हो गए। आयुध ये देख आतंक में जोर से निशिका नाम पुकार उठा।

एक साथ दो घटनाएं हुई, आयु ने नीचे गिरा परशु उठा लिया और एक नकाबपोश साया आयुध के पीछे प्रकट हुआ और उसे लेकर गायब हो गया।

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निशा जाग गयी। आज उसे बहुत से सवालों के जवाब मिल गए थे और बहुत से नए सवाल भी उसके मन में जाग गए थे। वो गुस्से और घृणा से कांप रही थी। उसने देखा कि उसको ड्रिप चढ़ी हुई है और एक नर्स उसके पास बैठी ऊंघ रही है। वो उठी तो उसने पाया कि वो होटल में अपने रूम में ही है। उसने ड्रिप को लगभग नोंचकर फेंक दिया और जल्दी से बैड से उतरी। नर्स आवाज से जाग गयी। वो बोली -" अरे मैम, आपको अभी रेस्ट का बोला गया है आपको सदमा लगा था जिस से आप बेहोश हो गयी थी। आप अभी कहीं नहीं जा सकती।"

परन्तु निशा ने गुस्से से उसको घूरा तो उसकी बड़ी आँखों में देख कर पता नहीं क्यों नर्स सहम गयी थी। निशा दनदनाती हुई सीधी पियूष के रूम तक गयी झटके से दरवाजा खोला और अंदर घुस गयी। पियूष कुछ काम कर रहा था वो ये देख के चौंक गया और बोला -" ये क्या बदतमीजी है मिस निशा?? ये कोनसा तरीका है?? आप अभी बीमार है और आपको आराम करना चाहिए न की यूँ पागलपंती करनी चाहिए।"

निशा -" मैं सब जान चुकी हूँ मिस्टर पियूष उर्फ ट्रैटर (गद्दार) सन ऑफ गॉड।"

पियूष -" लगता है सदमे ने आपके दिमाग पर असर किया है मिस निशा. जो आप एक इंसान को भगवान का बेटा बताने लगी। आप बहक गयी हैं। जब तक आपकी मेन्टल कंडीशन क्योर न हो जाए तब तक आप पेड लीव पर हैं और आपके इलाज का सारा खर्च हमारी कंपनी उठाएगी। नाउ यू मे लीव मिस निशिका।"

निशा (व्यंग्य से) -" अच्छा!!!! आप इंसान है??? चलो मान लिया। पर एक बात का जवाब दीजिये आपको मेरा असली नाम निशिका कैसे पता चला जो अभी, जस्ट अभी, आपके मुँह से हड़बड़ी में निकला माय डिअर बॉस पियूष या यूँ कहूं मेरे भूतपूर्व प्रेमी और मेरे पिता के हत्यारे आयु......

To be continued.....

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