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इंसान


शहर में अचानक दंगे भड़क उठे थे।
दो गुटों में मारपीट के बाद हालात बेकाबू होते देख प्रशासन ने पूरे शहर में कर्फ्यू लगा दिया।
समीर अपने बेटे रोहन के लिए चिंतित था जो शहर के दूसरे छोर पर स्थित अपने स्कूल गया हुआ था और अभी तक घर वापस नहीं लौटा था। अगर उसे जरा भी अंदेशा होता इस तरह दंगे भड़कने का तो वह आज उसे स्कूल ही नहीं भेजता।

चिंता के इसी आलम में वह कई बार स्कूल के नंबर पर संपर्क करने का प्रयास कर चुका था लेकिन कई बार बेल जाने के बाद भी किसी ने फोन नहीं उठाया तो समीर ने कयास लगाया शायद माहौल को देखते हुए सभी बच्चों को घर के लिए रवाना कर दिया गया हो और स्कूल बंद हो गया हो।

जैसे जैसे रोहन के आने में देरी हो रही थी समीर की चिंता बढ़ती जा रही थी।
' बैठने से कुछ हासिल नहीं होनेवाला, कुछ न कुछ प्रयास तो करना ही होगा। कहते हैं भगवान भी उसी की मदद करते हैं जो अपनी मदद स्वयं करने का प्रयास करता है।' यही सोचकर कुछ जानकारी हासिल करने के उद्देश्य से वह सावधानी पूर्वक वहाँ तैनात पुलिस कर्मियों से इस बाबत पूछने लगा।

घर के सामने तैनात एक पुलिस अधिकारी से उसे ज्ञात हुआ कि 'शहर के दूसरे छोर पर बच्चों से भरी हुई एक स्कूल बस को दंगाइयों ने आग लगाने का प्रयास किया था। बस चालक को अपने कब्जे में लेकर दंगाई बस को आग के हवाले करने ही वाले थे कि तभी अचानक बस चल पड़ी। किसी ने बस को दंगाइयों के बीच से निकालकर शहर से बाहर की तरफ जानेवाली सड़क पर मोड़ दिया था। उसे रोकने की कोशिश में दो दंगाई भी बस के नीचे आकर कुचले गए, फिर भी वह अज्ञात शख्स बस को शहर से बाहर की तरफ भगा ले गया।'

खबर सुनकर चिंता में डूबा समीर अभी कुछ सोच भी नहीं पाया था कि तभी उसके फोन की घंटी बज उठी।

फोन पर उसका आठ वर्षीय बेटा रोहन बोल रहा था, "पापा ! आप चिंता नहीं करना। हम सब बच्चे यहाँ बड़े अच्छे से हैं। मेरे साथ चीनू, मोनू, पाखी, ऋषि, नेहा, काजल ,प्रथम, और और भी ढेर सारे बच्चे हैं। ये अंकल बहुत अच्छे हैं। बदमाश हमारी बस को जला ही देते अगर अंकल हमारी बस चलाकर वहाँ से भाग नहीं गए होते। हम लोग इनके फार्म हाउस में हैं जो शहर के बाहर बना हुआ है। ये अंकल बहुत अच्छे हैं। आप पुलिस को लेकर आइये। आप अंकल से बात कीजिये। अंकल आपको पता बता देंगे। मैं फोन रखता हूँ।"

समीर तुरंत ही अपने घर के सामने तैनात पुलिस अधिकारी के पास गया और उसे पूरी बात बताते हुए बच्चों को वहाँ से सकुशल लाने का निवेदन किया।

उस अधिकारी ने समीर से फोन लेकर उसी नंबर पर फोन लगाया जिस नंबर से उसे फोन आया था। फोन किसी व्यक्ति ने उठाया और उसे पता बताते हुए आकर बच्चों को हिफाजत से ले जाने का आग्रह किया। अधिकारी ने पूछा, "अरे भाई, अपना नाम तो बताओ।"

जवाब में उस व्यक्ति ने कहा, " नाम में क्या रखा है साहब ? क्या मेरी इंसान के तौर पर पहचान काफी नहीं ? बस ये समझ लो कि मैं एक इंसान हूँ और इंसानियत ही मेरा मजहब है।"

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