कामवाली बाई - भाग(२६) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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कामवाली बाई - भाग(२६)

और फिर अपारशक्ति से दो तीन मुलाकातों के बाद मैं उनकी संगमरमर की मूर्तियों की माँडल बनने को तैयार हो गई,मैनें इस काम के लिए मुँहमाँगें रूपये लिए और उनका कान्ट्रेक्ट साइन कर लिया,अब मुझे काँलेज में काम करने की इजाजत नहीं थी और सच कहूँ तो मैं भी उस काम से ऊब गई थी और रूपये भी कम मिलते थे,जब इन्सान की तरक्की के रास्ते खुल जाते हैं तो वो अपनी पुरानी जिन्दगी भूल जाना चाहता है और मैं भी वही चाहती थी जो मैनें किया......
अब मुझे मूर्तिकारों के समक्ष खड़े होकर अपने पोज देने होते और वें मेरे बदन को संगमरमर में गढ़ते,इस काम के लिए अपारशक्ति सिसौदिया ने कई मशहूर मूर्तिकारों को ना जाने कहाँ कहाँ से बुलाया था,उनमें से एक का नाम माधव था,जो कि जरूरत से ज्यादा मेहनती थी और जब भी वो कोई मूर्ति गढ़ता तो वो उसमें बिल्कुल डूब जाता,वो देखने में भी बहुत खूबसूरत था,लेकिन मेरी कभी भी उससे बात करने की हिम्मत ना हुई क्योंकि उसकी निगाहों में मैने मेरे लिए हमेशा नफरत ही देखी,शायद उसे मैं और मेरा काम दोनों ही पसंद नहीं था.....
तब मुझे लगा कि शायद दुनिया में माधव जैसें और भी लोंग होगें जो मुझसे और मेरे काम से नफरत करते होगें,लेकिन मैं लोगों की ऐसी निगाहों के बारें में क्यों सोचती क्योकिं वें निगाहें मुझे रोटी नहीं दे रही थीं,मुझे ऐसे लोगों की फिक्र करने की क्या जरूरत थी जो कि मुझसे नफरत करते थें,मैनें ये बात सिसौदिया साहब से भी कही तो वें बोलें.....
कैमिला!ये दुनिया केवल चढ़ते सूरज को सलाम करती है,इसलिए तुम केवल कामयाब बनों,ये दुनिया खुदबखुद तुम्हारे पैरों में झुक जाएगी,तुम जितना इससे दबोगी वो तुम्हें उतना ही दबाएगी और औरत दबती इसलिए ही है कि कहीं उसको सामाज से बहिष्कृत ना कर दिया जाएं,लेकिन जो औरत अकेले खड़ा होना सीख जाती है,अपने लिए लड़ना सीख जाती है तो फिर समाज उससे डरने लगता है क्योंकि समाज को ये पता चल जाता है कि वो औरत अब बहिष्कार से नहीं डरती.....
कभी कभी मैं उनकी ऐसी बातें सुनकर अचम्भित हो जाती,क्योंकि चौबीस घंटे हँसी मजाक करने वाला इन्सान आखिर इतनी गम्भीर बातें कैसें कर लेता है,वैसें गम्भीर रहने लायक सिसौदिया साहब की उमर नहीं थी,उस समय उनकी उम्र पैतीस के ऊपर रही होगी,गोरा रंग और अच्छी कद काठी,लेकिन जैसे वें ऊपर से दिखते थे हँसमुँख स्वाभाव के लेकिन उनके भीतर बहुत ही गहरा ग़म छुपा था,जिसे वें किसी से ना कहते थें,मुझे तो ये बात उनके घर में काम करने वाले लक्ष्क्षू काका ने बताई,
लक्ष्क्षू काका सिसौदिया साहब के बहुत पुराने नौकर थे,उनकी माँ के जमाने के,इसलिए वें उनकी जिन्दगी के बारें में सबकुछ जानते थे,सिसौदिया साहब लक्ष्क्षू काका के हाथों में खेले थे,सिसौदिया साहब भी लक्ष्क्षू काका को बहुत मानते थे,एक दिन जब मैं सिसौदिया साहब से मिलने गई तो वें शराब के नशे में थे और मुझसे बोलें...
कैमिला!तुम!आओ तुम भी मेरे साथ पिओ,मैं आज बहुत दुखी हूँ।।
मैनें कहा,क्यों सर?क्या हुआ?
तब वें बोलें,....
आज के ही दिन मेरी माँ मुझे छोड़कर चली गई थी,
ओह....बहुत दुख हुआ मुझे ये जानकर,मैनें कहा।।
दुखी....नहीं तुम्हें खुश होना चाहिए उनकी मौत पर,सिसौदिया साहब बोले...
लेकिन क्यों?वें तो आपकी माँ थी तो उनके जाने का ग़म होना चाहिए ना मुझे,मैनें कहा।।
वो झूठी और मक्कार औरत थी,उसने मेरे बाप को धोखा दिया था और इतना कहकर सिसौदिया साहब ने एक पैग और खतम कर दिया...
तब मैनें कहा,सर!लगता है आपने कुछ ज्यादा पी ली है....
नहीं!वो औरत बेवफा थी तभी तो मुझे भी अब किसी औरत पर भरोसा नहीं रहा,इसलिए मैनें अब तक शादी नहीं की,सिसौदिया साहब बोले....
आप ये क्या कह रहे हैं सर?मैनें कहा....
सच कह रहा हूँ कैमिला!वो औरत मेरी माँ कहलाने के काबिल नहीं थी,इतना कहते कहते उन्होंने एक पैग और खतम कर दिया....
मैनें कहा,सर!अभी आप होश में नहीं हैं,आपने कुछ ज्यादा ही पी ली है,अब आप पीना बंद करके अपने कमरें में जाकर आराम कीजिए।।
नहीं!...कैमिला!...मैं पूरे ......होश में हूँ,सिसौदिया साहब ने लड़खड़ाती जुबान में कहा...
नहीं!सर!अब पीना बंद कीजिए,मैनें कहा।।
आज मुझे कोई भी पीने से नहीं रोक सकता,मैं आज जीभर के पिऊँगा,ताकि ऊपर बैठी मेरी माँ की आत्मा को कष्ट हो,जैसे मुझे हुआ था,वो औरत मेरी माँ कहलाने के काबिल ही नहीं थी,सिसौदिया साहब बोले।।
ऐसा मत बोलिए,ऐसी बातें करना आपको शोभा नहीं देतीं,मैनें कहा।।
वो बहुत ही बुरी औरत थी,उसने अपने स्वार्थ के आगें किसी के बारें में नहीं सोचा,सिसौदिया साहब ये कहते कहते एक पैग और खतम कर गए,लेकिन पैग खतम होतें ही वें धड़ाम से फर्श पर गिर पड़े,मैं बहुत डर गई और मैनें फौरन ही लक्ष्क्षू काका को बुलाया,वें भागकर आएं और उन्होंने पूछा....
का हुआ बिटिया?
मैनें कहा,इन्होंने बहुत ज्यादा पी ली, खुद को सम्भाल नहीं पाए और फर्श पर गिर गए....
कोई बात नहीं बिटिया!ये सालों से होता आ रहा है,ये मालकिन की बरसी वाले रोज़ ऐसे ही पीते हैं और ऐसे ही बेहिसाब पीकर बेहोश हो जाते हैं,बिटिया!तुम जरा मेरी मदद करो तो इन्हें इनके कमरें तक लिटा आएं,लक्ष्क्षू काका बोले....
हाँ...हाँ....चलिए मैं आपकी मदद करती हूँ और फिर मैनें लक्ष्क्षू काका की मदद करके सिसौदिया साहब को उनके कमरें तक पहुँचाया और फिर लक्ष्क्षू काका से पूछा....
काका!आखिर क्या बात है जिसने उन्हें इतना परेशान कर रखा है...,
तब काका बोलें.....
बिटिया!अब क्या बताएं?कहीं छोटे बाबू को कुछ पता चल गया तो उनका हम पर से भरोसा उठ जाएगा,
आप चिन्ता मत कीजिए काका!मैं उन्हें कुछ नहीं बताऊँगी,मैने कहा...
तो फिर सुनो बिटिया!लेकिन कभी भूल कर भी छोटे बाबू से इस बात का जिक्र मत करना,काका बोलें...
नहीं करूँगी उनसे जिक्र आप बस मुझे उनकी तकलीफ़ बता दीजिए,मैंने कहा....
फिर लक्ष्क्षू काका ने बोलाना शुरू किया.....
बात उस समय की है,हम इस घर में तब नए नए काम पर लगें थे और तब हमारा भी नया नया ब्याह हुआ ,हम अपने गाँव से अपनी मेहरारू धनिया के साथ यहाँ आएं थें,तब मालिक यानि कि छोटे बाबू के पिता मालकिन को ब्याहकर इस घर में लाएं,मालकिन के आने से इस घर में रौनक आ गई,अब मालिक की जिन्दगी ब्यवस्थित हो गई थी,मालिक मालकिन दोनों के बीच बहुत प्यार था,इस घर में खुशहाली छा गई थी,तब कुछ महिनों बाद पता चला कि मालकिन उम्मीद से हैं,तब मालिक मालकिन का और भी ख्याल रखने लगें,
और हम सब नौकरों को सख्त हिदायत दीं कि मालकिन का हमेशा ख्याल रखा जाएं,उन्हें अब कोई काम ना करने दिया जाएँ,हमारी मेहरारू धनिया दिनरात मालकिन के साथ रहती,इससे दोनों के बीच बहुत अच्छी दोस्ती हो गई थी,इस तरह कुछ महीने बाद मालकिन ने छोटे बाबू को जन्म दिया,मालिक बहुत खुश हुए, वहाँ अस्पताल में और यहाँ घर में हम सबकी झोलियाँ रूपयों से भर दीं.....
अब धीरे धीरें छोटे बाबू बड़े होने लगें,इसी बीच धनिया भी उम्मीद से हुई और मैने उसे गाँव भेज दिया,इधर छोटे बाबू बड़े होने लगें और मालिक अपने व्यापार में ज्यादा ब्यस्त रहने लगे,वें मालकिन को अब समय नहीं दे पाते थे,जिससे मालकिन उदास रहने लगी,तब भी उन्होंने अपना मन छोटे बाबू में लगाएं रखा,लेकिन औरत जात थी,कोई रिश्तेदार नहीं ,कोई सम्बन्धी ,कोई दुख दर्द पूछने वाला नहीं,तो कब तक मन मारकर घर में बैठतीं,इसलिए जब छोटे बाबू तीन साल के हो गए तो उन्होंने शाम को क्लब जाना शुरू कर दिया,तब तक धनिया फिर से गाँव से लौट आई थी,हमारा भी एक बेटा था जो छोटे बाबू से छोटा था,अब मालकिन के घर में ना रहने पर धनिया दोनों बच्चों का ख्याल रखती,
अब घर की खुशहाली ना जाने कहाँ चली गई,मालिक अपने व्यापार में डूबे रहते और मालकिन क्लब में,अब तो मालकिन ने शराब पीना भी शुरू कर दिया था,वें जब भी घर लौटती तो नशे में धुत्त रहतीं,छोटे बाबू उनके पास जाते तो वें उन्हें दुत्कार कर भगा देतीं,जिससे छोटे बाबू दुखी हो जाते,फिर धनिया ही छोटे बाबू को सम्भालती,इस तरह मालिक और मालकिन के बीच दूरियाँ बढ़ती जा रहीं थीं और मालकिन अपने दिल से मालिक को दूर करतीं जा रही थीं,उन्होंने छोटे बाबू का भी ख्याल रखना बिल्कुल से छोड़ दिया था,उन्होंने क्लब में कई दोस्त बना लिए थे,जिनमें कुछ पुरूष भी शामिल थे,लेकिन आप मालकिन खुश रहने लगी थी,शायद अब वें उतना अकेलापन महसूस नहीं कर रही थीं,
इसी तरह वक्त बीत रहा था,अब छोटे बाबू पाँच साल के हो चले थे,इसी बीच धनिया दोबारा उम्मीद से हुई और मैने उसे फिर से गाँव भेज दिया,इसी बीच मालकिन के कोई जान पहचान वाले व्यक्ति पकिस्तान से आएं,शायद वें उनके पुराने मित्र थे जो उनके साथ काँलेज में पढ़ा करते थे,उन्हें मालकिन ने घर में रहने की इजाजत दे दी,मालिक को भी उनके आने से अच्छा लगा,उन्होंनेसोचा कि वें मालकिन को वक्त नहीं दे पाते तो अब मालकिन उनसे कोई भी शिकायत नहीं करेगीं,
इस तरह मालकिन और उनके मित्र के बीच नजदीकियांँ बढ़ने लगी,वे उनके साथ ही घूमने जातीं और देर रात को घर लौटतीं,हंगामा तो उस दिन खड़ा हो गया जब मालिक और मालकिन की शादी की सालगिरह थी,उस दिन मालिक जल्दी घर आ गए और साथ में उनके लिए बहुत सारे उपहार लाएं और घर के रसोइयों से बढ़िया बढ़िया खाना बनाने को कहा,मालिक ने उस दिन घर में पार्टी रखी थी और कुछ मेहमानों को भी बुलाया था,बड़ा सा केक आया,घर की सजावट हुई लेकिन देर रात तक मालकिन घर नहीं लौटीं,धीरे धीरे सारे मेहमान जाने लगे और मालिक मायूस हो गए,मालकिन तब लौटीं जब सब मेहमान चले गए,वें जब अपने पुरूष मित्र के साथ शराब के नशे में धुत्त घर लौटीं तो मालिक का पारा चढ़ गया और वें जोर का थप्पड़ मालकिन के गाल पर देते हुए बोलें....
शरम नहीं आती तुम्हें,मेरे पीठ पीछे ऐसे काम करते हुए,तुमने तो आज मेरी इज्जत को सर-ए-बाजा़र नीलाम कर दिया,कहीं का नहीं छोड़ा मुझे.....
उस रात तो मालकिन नशे में थीं,इसलिए वें ज्यादा कुछ बोल पाईं नहीं क्योंकि उनकी हालत कुछ भी बोलने लायक नहीं थीं,लेकिन फिर दूसरे दिन दोनों में बहुत झगड़ा हुआ,मालकिन बोली....
आपको क्या लगता है कि मैं कोई संगमरमर का मुजस्समा हूँ जिसे आपने घर में सँजा रखा है,मेरे कोई जज्बात नहीं हैं,मुझे जीने की आरजू नहीं है,मैने आपसे मौहब्बत इसलिए नहीं की थी कि आप मुझे दरकिनार कर दें..मुझ में भी जान है,कुछ ख्वाहिशें हैं...कुछ अरमान हैं जिन्होंने आपकी मसरूफियत ने कुचल कर रख दिया है,क्या मेरा जी नहीं चाहता कि आप मेरे साथ दो पल बैठें और मैं आपसे दो चार मौहब्बत की बातें करूँ,कभी सोचा है आपने कि रातों को जब मैं तनहा होती हूँ तो मुझे आपकी जरूरत होती है,मुझे भी डर लगता है,मुझे भी औरों की तरह अपने शौहर की खिदमत का मौका चाहिए,मुझे भी लगता है कि मेरा शौहर शाम को घर लौटें और मेरे साथ खाना खाएं लेकिन नहीं,ऐसा तो कभी होता ही नहीं है,मेरे शौहर के पास तो अपनी बीवी को देने के लिए जरा भी वक्त नहीं है,तो मैं क्या करूँ,घुट घुटकर मर जाऊँ इस चारहदिवारी में,....बोलिए.....बोलिए...ना....हैं जवाब आपके पास मेरे सवालों का....
तब मालिक ने अपनी नजरें झुका लीं और बोलें....
आज के बाद मैं तुम्हें कभी भी शिकायत का मौका नहीं दूँगा....
और फिर उस दिन के बाद फिर से उनकी जिन्दगी ठीक से चल पड़ी,मालकिन ने अपने उस पुरूष मित्र को भी घर से दफा कर दिया और फिर सबकी जिन्दगी में फिर से खुशियाँ आ गईं,लेकिन ये सिलसिला भी कुछ दिनों तक ही चला क्योंकि मालिक फिर से ब्यस्त रहने लगें,लेकिन अब मालकिन ने क्लब वगैरह जाना भी बंद कर दिया था,अब वें पूरे समय घर पर ही रहतीं,अब धनिया भी लौट आई थी इसलिए मालकिन को बोरियत महसूस नहीं होती...

क्रमशः....
सरोज वर्मा....