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कामवाली बाई - भाग(२३)

गीता की आँखों के सामने ही राधेश्याम को अन्तिम संस्कार के लिए ले जाया गया,गीता के लिए वो क्षण असहनीय था,वो फूट फूटकर रो पड़ी,उसकी माँ ने उसे बहुत समझाया और गीता अपनी माँ के सीने से फूट फूटकर रो पड़ी,वो अपनी माँ से रोते हुए बोली....
आखिर राधे ने किसी का क्या बिगाड़ा था?जो भगवान ने उसे अपने पास बुला लिया,एक सच्चा दोस्त मिला था मुझे,वो भी भगवान ने छीन लिया,
चुप हो जा बेटा!अच्छे इन्सानों की भगवान को भी जरूरत होती है,इसलिए शायद उन्होंने राधे को अपने पास बुला लिया,कावेरी बोली।।
लेकिन क्यों?मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है,जिसे मैं पसंद करती हूँ भगवान उसे मुझसे क्यों छीन लेता है,गीता बोली।।
चुप हो जा बेटी!...चुप हो जा....तेरे रोने से राधे वापस थोड़े ही आ जाएगा,कावेरी बोली....
और उस रात गीता यूँ ही रोती रही और कावेरी उसे यूँ ही समझाती रही,लेकिन कावेरी के समझाने पर भी गीता का दर्द कम ना हुआ,राधे के जाने से उसकी जिन्दगी रूक सी गई थी,उसने फैक्ट्री की नौकरी भी छोड़ दी थी,क्योंकि वहाँ उसे हर पल राधे की याद आती,इसलिए वो अब घर में बैठ गई,उसका अब कहीं और भी नौकरी करने का मन ना करता,घर में बैठकर वो चुपचाप बिस्तर पर लेटी रोती रहतीं,लेकिन ऐसा कब तक चलता भला,आखिर जिन्दगी चलते रहने का नाम है,जब दो महीने वो काम पर नहीं गई तो रूपयों की तंगी पड़़ने लगी क्योंकि अब तो कावेरी ने भी काम पर जाना छोड़ दिया था,उसकी अब तबियत खराब रहने लगी थी इसलिए,घर के खर्चे भी बहुत थे ,ऊपर से जानकी के स्कूल की फीस और किताबों का खर्चा,मुरारी ने भी मदद की लेकिन उसके भी खर्चे थे,उसके भी अब दो बच्चे हो चुके थे,जिससे उसके घर का खर्चा बढ़ चुका था,इसलिए मजबूर होकर गीता को एक घर का काम पकड़ना ही पड़ा....
उसे एक घर मिला जहाँ कैमिला फर्नांडीज अपनी सत्रह साल छोटी बहन एलिस फर्नांडीज के साथ रहती थी,दोनों बहनों में उम्र का काफी फासला था, गीता को ये बात थोड़ी अजीब लगी कि बड़ी बहन लगभग पैतिस साल की और छोटी लगभग सत्रह साल की थी इसलिए उसने एक दिन ये कैमिला से पूछ ही लिया तो कैमिला उससे बोली...
हम दोनों बहनों के बीच में हमारे तीन भाई भी हैं,जो विदेश में माँ बाप के साथ रहते हैं,हम दोनों बहनों को विदेश नहीं जँचा इसलिए हम दोनों बहनें यहाँ इण्डिया में रहते हैं,
ये बात गीता को कुछ जँचीं नहीं लेकिन फिर भी उसने चुप रहने में ही भलाई समझी और फिर उसे क्या लेना देना था दोनों बहनों से, उसे तो केवल वहाँ खाना बनाना था ,अपने पैसे लेने थे जिनकी उसे सख्त जरूरत थी ,कैमिला का बंगला बहुत बड़ा था,उसके घर का एक एक सामान चुनिन्दा था,बड़ा बन ठनकर वो काम पर जाती थी लेकिन गीता को ये कभी पता नहीं चला कि वो काम क्या करती है?एलिस भी स्कूल की पढ़ाई खतम कर चुकी थी और उसने अब काँलेज में एडमिशन ले लिया था.....
लेकिन गीता ने एक बात गौर की थी कि कैमिला से मिलने बड़ी बड़ी गाड़ियों में लोंग आते थे,ऐसा लगता था कि वो कोई कलाकार है या किसी फिल्म की हिरोइन है जो उसके आगें पीछे रईस लोंग चक्कर लगाते रहते थे,उसने अक्सर देखा था कि दोनों बहनों में बात भी बहुत कम होती थी,जब भी बात होती थी तो एलिस या तो कैमिला से रूपए माँगती थीं या तो बाहर किसी पार्टी में दोस्तों के साथ जाने की इजाज़त.....
कैमिला ने अभी तक शादी नहीं की थी,वो अकसर गीता से कहा करती थी कि पहले वो अपनी छोटी बहन एलिस को सैटल कर दें तब अपनी शादी के बारें में सोचेगी,गीता को तब लगता कि ऐसी बड़ी बहन सबकी होनी चाहिए जो खुद से पहले अपनी छोटी बहन के बारें में सोचती है,
गीता अब काम में उलझी रहती तो उसे अब राधे कम याद आता था,लेकिन रातों को वो उसके लिए आँसू बहा ही लेती,गीता मन में सोचती एक सच्चा और अच्छा इन्सान मिला था जीवन में,वो भी आधे रास्तें में साथ छोड़कर चलता बना,लेकिन अब धीरे धीरे गीता के मन के घाव भरने लगे थे,तभी कैमिला के घर में उसकी मुलाकात स्वाराज मलिक से हुई जो बहुत बड़ा बिजनेसमैन था,उसने कई बार गीता से बात करने की कोशिश की लेकिन वो उसे अनदेखा कर देती,वैसें भी वो अमीर लोगों से डरती थी.....
फिर एक दिन जब कैमिला घर पर नहीं थी तो उसने गीता से कहा.....
तुम्हारा फिगर बहुत अच्छा है,तुम चाहो तो मैं तुम्हें ऐसी जगह काम दिलवा सकता हूँ ,जहाँ तुम्हें मुँहमाँगें रूपये मिलेगें...
गीता ने जैसे ही स्वाराज मलिक के अल्फाज़ सुने तो उसने उसके मुँह पर जोर का तमाचा मारकर चली गई और स्वाराज उसे जाते हुए देखता रहा,उस दिन जब गीता का करारा थप्पड़ स्वाराज को पड़ा तो फिर उसके बाद उसने कभी भी गीता से कोई भी बात नहीं की,गीता भी ये चाहती थी कि वो जब तक उसके सामने ना पड़ना पड़े तो ही अच्छा है लेकिन स्वाराज की कैमिला से बहुत नजदीकियांँ थीं,दोनों साथ में शराब पीते और जो भी कैमिला काम करती थी उसके बारें में बात करते लेकिन जब कैमिला घर पर नहीं तो उसकी गैरहाजिरी में वो एलिस के साथ नजदीकियांँ बढ़ाने की कोशिश करता,
ये सब गीता को अच्छा ना लगता क्योंकि स्वाराज एलिस से उम्र में बहुत बड़ा था,उसकी जोड़ी तो कैमिला के साथ ही ज्यादा जँचती थी क्योंकि वो ही उसकी हमउम्र थी,वो कभी कभी सोचती कि कैमिला को स्वाराज और एलिस के बारें में बता दे लेकिन फिर वो सोचती कि जाने दो मुझे क्या लेना देना,दोनों बहनों का मामला हैं मैं बीच में क्यों अपनी टाँग अड़ाऊँ?लेकिन फिर वो सोचती कि एलिस तो अभी बच्ची है और वो स्वाराज इन्सान की खाल में भेड़िया,कहीं उस बच्ची को नोंच ना डालें,उसने ये बात अपनी माँ से कही तो माँ बोलीं....
तू किसी के मामले में दखल मत दे,तुझे क्या लेना देना,जो होता है होने दे,तू वहाँ काम करने जाती है तो बस काम कर....
अपनी माँ कावेरी की बात सुनकर फिर गीता ने किसी से कुछ ना कहने का फैसला किया,वो वहाँ चुपचाप अपना काम करते करते तमाशा देखती ,लेकिन कहती कुछ भी नहीं थी,दिन यूँ ही बीत रहे थें,सबकुछ ठीकठाक चल रहा था लेकिन फिर एक दिन ऐसा कुछ हुआ जो किसी ने कभी ना सोचा था.....
एक सुबह गीता जब कैमिला के घर में काम करने पहुँची तो उसने दरवाज़े पर देखा कि स्वाराज मलिक की कार अभी खड़ी है इसका मतलब है कि वो रातभर अपने घर नहीं गया,लेकिन कैमिला मेमसाब कल रात बाहर जाने वालीं थीं कह रहीं थीं कि उन्हें कोई जरूरी काम है तो क्या स्वाराज के साथ पूरी रात एलिस थी,तब गीता ने सोचा वो पहले अन्दर जाएगी तभी सारा माजरा उसे समझ में आएगा और डरते डरते वो दरवाज़े के पास गई और उसने घण्टी बजाई लेकिन किसी ने भी बहुत देर तक दरवाजा नहीं खोला,जब उसने दरवाजे पर दस्तक देनी चाही तो तभी दरवाजा खुदबखुद खुल गया और गीता घर के भीतर चली गई...
वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि फर्श में एक तरफ स्वाराज की लाश पड़ी है,उसके बदन पर केवल नाइट गाउन था, शायद उसके सिर पर चोट आई थी क्योंकि उसके सिर के पास बहुत सारा खून पड़ा है,साथ में एक पीतल का भारी सा फूलदान पड़ा था,ऐसा लग रहा था कि शायद उसी फूलदान से उस पर हमला किया गया है,वो थोड़ा और आगें बढ़ी तो सोफे के पीछे अर्धनग्न सी एलिस की लाश पड़ी थी,उसके तो पेट में छुरा घुपा था वो थोड़ा और आगें बढ़ी तो उसने किचन की ओर अपनी नज़र दौड़ाई तो वहाँ दीवार से टिकी कैमिला बैठी रो रही थीं,गीता डरते हुए आगें बढ़ी और कैमिला के पास जाकर बोली....
मेमसाब!ये सब किसने किया और आपने अभी तक पुलिस को टेलीफोन क्यों नहीं किया?
तब कैमिला बोली....
ये सब मैनें किया है और मैनें पुलिस को टेलीफोन कर दिया है,पुलिस कुछ ही देर में यहाँ पहुँचती ही होगी?
आप....आपने किया ये सब.....लेकिन क्यों?गीता ने पूछा।।
तब कैमिला बोली....
ये सब मैं पुलिस को ही बताऊँगीं,मैनें जो गुनाह किया था उसकी सजा तो मुझे मिलनी ही थी और वो आज मिल ही गई,एलिस और स्वाराज ने मुझे धोखा दिया.....स्वाराज तो पराया था लेकिन एलिस तो अपनी होकर भी पराई निकल गई....
लेकिन मेमसाब!आपको दोनों को मारने की जरूरत क्यों पड़ गई?आप दोनों को छोड़कर कहीं दूर चली जातीं,एलिस अब बड़ी हो चुकी थी वो अपना भला बुरा समझ सकतीं थीं ना!,गीता बोली।।
वो कैसें अपना भला बुरा समझ सकती थीं,वो अभी बच्ची थी,मैं उसे बहुत अच्छी तरह जानती थी क्योंकि मैं उसकी बड़ी बहन नहीं उसकी माँ थी,कैमिला बोली....
गीता ने जैसे ही ये वाक्य सुना तो वो बिल्कुल से हिल गई,उसके पैरों तले की जमीन खिसक गई,गीता इसके आगें कैमिला से कुछ पूछ पाती उससे पहले ही पुलिस वहाँ पहुँच गई और कैमिला को गिरफ्तार करके अपने साथ ले गई ,दोनों की लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और बंगले को भी सील कर दिया गया,थोड़ी बहुत पूछताछ पुलिस ने गीता से भी की,लेकिन जब मुजरिम ने अपना जुर्म खुद ही कूबूल कर लिया तो और किसी पर शक़ की कोई गुन्जाइश ही ना बची थी,पुलिस की पूछताछ के बाद गीता अपने घर को लौट गई और अपनी माँ कावेरी से उसने सब बता दिया,लेकिन गीता को अभी पूरी बात जानने की जिज्ञासा थी कि आखिर कैमिला ने एलिस को अपनी बहन बनाकर क्यों रखा था?और वो भी अदालत में कैमिला का बयान सुनने गई,फिर कैमिला की अदालत में जब पेशी हुई तो उसने पूरे राज से पर्दा उठाते हुए जज से कहा.....
जजसाहब!मैनें ही बिजनेसमैन स्वाराज मलिक और एलिस का कत्ल किया है।।
तब जजसाहब ने कैमिला से अपनी पूरी कहानी कहने को कहा कि क्यों वो अपनी बेटी को बहन बताकर लोगों की आँखों में धूल झोंक रही थीं,आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी जो उसे ये कदम उठाना पड़ा,तब कैमिला बोली.....
जजसाहब!आप नहीं जानते कि हम औरतों की जिन्दगी कैसीं होती है,एक बार बदनामी का दाग़ दामन में लग जाएँ तो उसे सारी जिन्दगी मुँह छुपाकर बितानी पड़ती हैं और वही मेरे साथ हुआ,मैं अपने छोटे से गाँव में अपनी माँ मारिया और पिता एन्थनी के साथ रहा करती थी,तब मेरी उम्र लगभग सोलह वर्ष रही होगी,मैं देखने में सुन्दर थी और पढ़ी लिखी भी थी....
हम ज्यादा अमीर नहीं थे,हमारी चर्च के पास फूलों की दुकान थी,चर्च से थोड़ी ही दूर कब्रिस्तान भी पड़ता था,इसलिए फूलों की बिक्री अच्छी हो जाती थी,हम तीनों का खर्चा आराम से चल जाता था,हमारी मदद चर्च के पादरी भी कर दिया करते थे,वें लोगों को हमारी दुकान से ही फूल खरीदने को कहते,हमारी जिन्दगी बहुत अच्छे से चल रही थी,तभी चर्च के पादरी बदल गए,उनकी जगह एक नवजवान पादरी आ गए,उनका नाम डेविड था,वें पादरी भी पुराने पादरी की तरह दयालु थे और हमारी मदद कर दिया करते,एक रोज़ उन्होंने मेरी माँ से कहा कि उन्हें खाना बनाना नहीं आता,अगर आप उनका खाना बना दिया करें तो बड़ा एहसान होगा उन पर...
मेरी माँ ने बिना समय गवाएँ और बिना कुछ सोचें खाना बनाने के लिए फौरन हाँ कर दी,उन्हें लगा कि ये पुण्य का काम है,माँ पादरी के घर पर खाना बनाने जाने लगी,फिर एक रोज़ माँ की तबियत खराब हो गई तो उन्होंने मुझसे कहा कि मैं पादरी के घर पर खाना बना आऊँ और मैं खुशी खुशी उनके घर खाना बनाने चली गई,उस दिन पादरी ने मुझे देखा तो पूछा कि तुम क्यों आई हो?
तब मैनें कहा कि माँ की तबियत खराब है इसलिए वो नहीं आ पाईं....
उस दिन मैनें खाना बनाकर पादरी के सामने परोसा तो उन्हें खाना बहुत पसंद आया और वें बोलें कि तुम ही कल से खाना बनाने आ जाया करो....
और उनके कहने पर मैं उनके घर खाना बनाने जाने लगी,एक रोज़ उन्हें मेरा बनाया खाना इतना पसंद आया कि उन्होंने मेरा हाथ चूम लिया,मुझे उनका यूँ हाथ चूमना कुछ अच्छा नहीं लगा और मैं उसी वक्त चुपचाप उनके घर से चली आई ,फिर मैनें अपनी माँ से कहा कि तुम ही उनके घर खाना बनाने चली जाया करो मैं नहीं जाऊँगी.....
तब मेरी माँ ने मुझसे पूछा कि कोई बात हो गई क्या?
मैनें कहा,नहीं!बस ऐसे ही ,मेरा मन नहीं करता खाना बनाने को।।
माँ ने कहा कोई बात नहीं अगर तेरा मन नहीं करता तो तू मत जाया कर खाना बनाने,मैं ही चली जाया करूँगीं और फिर माँ ही वहाँ खाना बनाने जाने लगी,तब एक दिन पादरी हमारी दुकान पर आए़ं,उस वक्त मैं दुकान पर अकेली थी,तब उन्होंने मुझसे पूछा....
तुम खाना बनाने क्यों नहीं आती?
मैनें कहा,मुझे अच्छा नहीं लगता।।
तब वें बोलें,लेकिन तुम तो मुझे बहुत अच्छी लगती हो।।
मैनें कहा,आप ये कैसीं बातें कर रहे हैं आप चर्च के पादरी हैं,आपको ऐसी बातें शोभा नहीं देतीं।।
तब वें बोलें.....पादरी तो मैं बाद में हूँ पहले एक इन्सान हूँ और जिसके सीने में भी दिल धड़कता है,जब से तुम्हें देखा है तो मैं अपना चैन और नींदें दोनों गँवा चुका हूँ और इतना कहकर पादरी चले गए....
और मैं उनके बारें में सोचती रह गई....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....


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