लेकिन तूने कुछ सोचा तो होगा कि उससे कैसें मिलेगा,छलिया ने पूछा।।
मैं सोच रहा था कि क्यों ना हम दोनों रात को उस कोठे में जाएं,मैनें कहा...
तू पागल हो गया है क्या?पता है कितना रुपया माँगती है रमाबाई एक लड़की से मिलने का जो शायद हमारी एक महीने की कमाई हो,छलिया बोला।।
तो क्या हो गया?ना सही एक महीने की बचत,मैनें कहा।।
तू तो सच में दीवाना हो गया है,भाई!मेरे पास तो ना है इतने रूपए,तेरे पास हो तों तू चला जा,छलिया बोला।।
यार!मैं तेरे भी रूपए दे दूँगा,तू बस मेरे साथ चलने के लिए हाँ कह दे,मैनें कहा।।
कहाँ से लाएगा इतने रूपए,अपनी किडनी बेंचकर,छलिया बोला।।
इतनी बचत मैनें करके रखी है,मैनें कहा।।
और कभी बाद में रूपयों की जरूरत पड़ी तो फिर कहाँ से लाएगा?छलिया ने पूछा।।
तू भविष्य की छोड़ बस अभी की चिन्ता कर,मैं बोला।।
तू पगला गया है उस सारंगी के पीछे और कुछ नहीं,तेरी मति भ्रष्ट हो गई है,कुछ भी कर रहा है कुछ भी बोल रहा है,छलिया बोला।।
यार!प्यार हो गया है उससे,मैं उसे उस नरक से आजाद करवाना चाहता हूँ,मैनें कहा।।
भाई!वो धन्धेवाली है एक बदनाम लड़की,तू उसे वहाँ से नहीं छुड़वा सकता और फिर एक बदनाम लड़की को अपनी दुल्हन बनाएगा तो लोंग क्या कहेगें?छलिया बोला।।
कुछ ना कहेगें,जब उस लड़की को उस दलदल में घसीटा गया था तो तब कहाँ थे ये लोंग,मैनें पूछा।।
भाई!तुझे समझाना बड़ा मुश्किल है,मैं तो हार मानता है तुझसे,छलिया बोला।।
और इसी में तेरी भलाई है,मैनें कहा।।
ठीक है भाई!तू जीता ,मैं हारा,तो अब कब चलना है सारंगी से मिलने?छलिया ने पूछा।।
आज रात ही चलते हैं ना!मैनें कहा।।
तुझमें धीरज नाम की कोई चींज हैं या नहीं,आज ही जाएगा तू,छलिया बोला।।
हाँ! और तू भी मेरे साथ चलेगा,मैनें कहा...
चल भाई !तू ही चला ले अपनी,मेरा क्या है जहाँ तू बोलेगा वहाँ चल पड़़ूगा तेरे साथ,छलिया बोला।।
और फिर उस बहस के बाद खाना पीना खाकर उसी रात को हम दोनों रमाबाई के कोठे पर पहुँचे,छलिया तो वहाँ पर पहले ही सभी को जानता था,इसलिए मुझे वहाँ जाने में कोई दिक्कत नहीं,छलिया ने रमाबाई से कहा....
मौसी!इस छोकरे को लड़की चाहिए।।
तो जाकर पसंद कर ले,रमाबाई बोली।।
ना!मौसी!इस छोकरें को तो सारंगी के पास जाने का है,छलिया बोला।।
उस छोकरी के पास जाने का रोकड़ा है तेरे पास,क्योंकि उस छोकरी के मैं ज्यादती पैसें लेती,रमाबाई बोली।।
है....है ना!मौसी रोकड़ा इसके पास,छलिया ने रूपये दिखाते हुए कहा।।
तो रोकड़ा ला और चला जा उसके पास ,रमाबाई बोली।।
फिर तू जा भाई!छलिया बोला।।
और तुझे किसके पास जाने का है,रमाबाई ने छलिया से पूछा।।
मैं...मैं...मीना के पास चला जाऊँगा,छलिया बोला।।
दोनों अपना अपना रोकड़ा दो और जाओ यहाँ से,मेरा माथा मत खाओं....रमाबाई बोली।।
और फिर रमाबाई ने मुझसे रूपये लेकर सारंगी का कमरा नंबर बताया जोकि मुझे पहले से मालूम था, छलिया भी चुपचाप रूपये देकर मीना के कमरें की ओर बढ़ गया और मैं भी चुपचाप सारंगी के कमरें में चला गया,मैनें पहले दरवाज़े पर दस्तक दी तो वो बोली.....
नाटक क्या रहा है?चुपचाप भीतर चला आ।।
मैं दरवाजा खोलकर जैसे ही उसके कमरें में दाखिल हुआ तो वो अपने कपड़े सम्भालते हुए बोली....
तू!यहाँ पर,बाज़ार में तो बड़ा भोला बन रहा था,ये शौकध भी पाल रखा है तूने।।
जी!नहीं!मैं तो केवल आपसे मिलने आया था,मैनें कहा।।
लेकिन क्यों?मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी,तुम जाओ यहाँ से,किसी ने देख लिया तो तुम्हारी शामत आ जाएगी,सारंगी बोली।।
जी!आपसे बात करने के पैसें मैनें रमाबाई को दे दिए हैं,मैनें कहा।।
तू पागल है क्या?मुझसे मिलने के पैसें चुकाकर आया है तू,सारंगी बोली।।
जी!आपसे प्यार जो हो गया,इसलिए आपसे बातें करने का जी किया और मैं यहाँ चला आया,मैनें कहा...
तू सच में पागल है,ऐसा कोई करता है भला!सारंगी मुस्कुराते हुए बोली।।
तो अब तो आपको मुझसे बातें करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए,मैनें कहा...
ये क्या आप...आप...लगा रखा है,मैं इतनी इज्जतदार नहीं हूँ कि तू मुझे आप कहकर पुकारें,तू मुझे तू बोला कर,सारंगी बोली।।
ठीक है !जैसी तुम्हारी मर्जी,मैनें कहा।।
तो जल्दी से बोल, जो बोलना है और फूट यहाँ से,सारंगी बोल।।
बस,यही कहना था कि तुम मुझे अच्छी लगती हो और मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ,मैनें उससे कहा।।
ऐसा तो कई बार कहा है लोगों ने मुझसे,लेकिन कोई भी अपनी ब्याहता नहीं बनाना चाहता मुझे,बस सब बिस्तर पर ही बुलाकर अपनी हवस मिटाना चाहते हैं,सारंगी बोली।।
मैं ऐसा नहीं हूँ सारंगी!मैं तुम्हें अपनी ब्याहता बनाना चाहता हूँ,मैनें कहा।।
लेकिन मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ,तुम किसी शरीफ़ लड़की को अपनी ब्याहता बनाओ,सारंगी बोली।।
सारंगी!तुम ही मेरा प्यार हो और तुम्हीं मेरी ब्याहता बनोगी,मैनें कहा।।
लेकिन मैं ही क्यों?सारी दुनिया में तुम्हें और कोई नहीं मिला,सारंगी बोली।।
बस,दिल आ गया है तुम पर,तुम हाँ कर दोगी तो ठीक ,नहीं तो सारी उम्र कँवारा ही रह जाऊँगा पर ब्याह ना करूँगा,मैनें कहा।।
तो फिर तुम्हारे नसीब में सारी उम्र कँवारा रहना ही लिखा है,सारंगी बोली।।
तो तुम नहीं मानोगी,मैनें कहा।।
नहीं!मुझे तुम्हारा प्यार मंजूर नहीं,सारंगी बोली।।
लेकिन क्यों?क्या मैं सुन्दर नहीं हूँ या फिर अमीर नहीं हूँ इसलिए तुम मेरा प्यार ठुकरा रही हो,मैनें कहा...
मैं तेरे लायक नहीं हूँ समझा!सारंगी बोली।।
तुम्हें ऐसा क्यों लगता है?मैनें पूछा।।
क्योंकि मैं एक धन्धेवाली हूँ और हर रात मेरे बिस्तर पर एक नया मर्द होता है और तू मुझसे ब्याह करके मुझे दुनिया के किसी भी कोनें में ले जाएगा ना तब भी मेरी बदनामी मुझे वहाँ आकर ढूढ़ ही लेगी,कभी सोचा है जब तुझे सब धन्धेवाली का पति कहकर पुकारेगें तो तुझे कैसा लगेगा,तू जीते जी मर जाएगा,अभी है तुझे सब सावन का हरा हरा नज़र आ रहा है,मुझसे ब्याह के बाद तेरी दुनिया में सिवाय काली रातों के और कुछ ना होगा,सारंगी बोली।।
मुझे तब भी सब मंजूर है,मैनें कहा।।
तू सच में मुझसे इतना प्यार करता है,सारंगी बोली।।
हाँ!सच में,बहुत प्यार करता हूँ,मैनें कहा।।
ये तेरा प्यार नहीं कुछ और ही है,अभी तू नया नया जवान हुआ है इसलिए जोश कुछ ज्यादा है तुझमें,ये तेरा दोष नहीं है तेरी उम्र में ऐसी कशिश होना आम बात है,सारंगी बोली।।
ये कशिश नहीं है,केवल प्यार है,मैनें कहा।।
एक रात मेरे साथ गुजारने के बाद ये तेरा सारा प्यार छू हो जाएगा और तू भी,ना हो तो आजमा कर देख ले,सारंगी बोली।।
तुम फालतू की बातें कर रही हो अब,मैं तुम्हें प्यार का एहसास दिलाने आया था लेकिन तुम तो ना जाने अपने आप को क्या समझ रही हो?मैं जा रहा हूँ यहाँ से ,कल फिर आऊँगा और कल मुझे कोई गोल गोल बात नहीं चाहिए,सीधा सीधा हाँ या ना में जवाब चाहिए,मैनें कहा...
तू कल भी पूछेगा तो भी मेरा जवाब ना ही होगा,सारंगी बोली।।
देखते हैं....मेरा प्यार जीतता है या तेरी ना!देखना मेरी याद आज तुझे रातभर सोने नहीं देगी,सच्चा आश़िक हूँ कभी हार नहीं मानूगा और फिर मैं सारंगी के माथे को बड़े प्यार से चूमकर रमाबाई के कोठे से बाहर आ गया...
मैं अपने कमरें में पहुँच चुका था और मेरे पीछे पीछे छलिया भी आ पहुँचा और कमरें में घुसते ही छलिया ने मुझसे पूछा...
भाई!कैसी रही महबूबा से मुलाकात?
बस,ठीक ही थी,मैनें कहा।।
क्यों?ऐसे क्यों बोल रहा है भाई?छलिया ने पूछा।।
यार!मानती ही नहीं,कहती है कि तुम किसी शरीफ़ लड़की से ब्याह कर लो,मैनें कहा।।
भाई!उसे यकीन नहीं हो रहा होगा कि कोई उसकी सच्चाई जानने के बावजूद भी उससे ब्याह करना चाहता है,इसलिए ऐसा कह रही होगी,छलिया बोला।।
पता नहीं यार!क्या बात है कुछ समझती ही नहीं,अच्छा!तू मेरी छोड़ अपनी सुना,तेरी मुलाकात कैसी रही,मैनें छलिया से पूछा।।
तब छलिया बोला....
हालातों की मारी है बेचारी मीना,जिससे प्यार करती थी उसी ने बेच दिया फिर वापस ही नहीं जा पाई,बहुत रो रही थी,कह रही थी माँ बाप की बहुत याद आती है,मेरी भी आँखें छलक पड़ी उसके ग़म में....
चल मीना तुझे समझी तो लेकिन सारंगी तो कुछ भी नहीं बोलना चाहती,मैनें कहा....
समझ जाएगी भाई!उदास मत हो,उसे थोड़ा वक्त दे,छलिया बोला।।
और कितना वक्त चाहिए उसे,मैनें कहा।।
भाई!प्यार कोई दाल रोटी थोड़े ही कि पका ली और खा ली,थोड़ा वक्त दे उसे,छलिया बोला।।
तू कहता है तो ठीक है,मैनें कहा।।
भाई!थोड़ी सी रात बाक़ी है अभी,मुझे तो बहुत नींद आ रही है चल थोड़ा सो लेते हैं,सुबह काम पर भी तो जाना है,छलिया बोला।।
और फिर हम दोनों चादर तान कर सो गए...
दूसरे दिन सुबह जागे और हमारा दिन यूँ ही काम में निकल गया,नींद पूरी ना हुई थी इसलिए शरीर बेज़ान सा था तो हमने उस रात रमाबाई के कोठे पर जाने का इरादा छोड़ दिया और खा पीकर दोनों सो गए,दूसरे दिन काम पर निकल गए.....
दोपहर के समय मैं अपने सेठ की कपड़ो की दुकान पर बैठा ग्राहकों को कपड़े दिखा रहा था तभी दो महिलाएं बुर्के में आईं और मुझसे कपड़ो के थान दिखाने को कहा,मैं उनके सामने थान के थान खोलता चला जा रहा था,लेकिन उन दोनों को कुछ भी पसंद नहीं आ रहा था,मैं अब कपड़ें दिखा दिखाकर थक चुका था,तब उन में से एक बोली.....
क्या हुआ?थक गए क्या?इतनी जल्दी हार मान ली।।
मैनें तब उनसे पूछा,
क्या मतलब है आपका?मैं कुछ समझा नहीं।।
तब उनमें से एक धीरे से बोली....
परसों रात तो बड़ी बड़ी बातें कर रहे थें,कल रात मिलने क्यों नहीं आएं?
वो कोई और नहीं सारंगी थी,सारंगी की वहाँ पर मौजूदगी ने मुझे ये सुबूत दे दिया था कि उसके दिल में मेरे लिए जगह है....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....