ममता की परीक्षा - 78 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ममता की परीक्षा - 78



कक्ष में बिल्कुल सन्नाटा पसर गया था।
जज साहब अब खुद ही जिरह पर उतर आए थे। बिरजू व उसके साथियों के मन में खुशी की लहर दौड़ गई। बिरजू ने मन ही मन अपने ग्रामदेवता व कुलदेवता को याद करते हुए उनका आभार प्रकट किया, लेकिन अगले ही पल बंसीलाल के होठों पर तैर रही कुटिल मुस्कान देखकर उनका कलेजा बैठने लगा।

उसने पता लगाया था बंसीलाल के बारे में। बड़ा घाघ वकील है जिसे झूठ को भी सच बनाने में महारत हासिल है। इसके होठों की मुस्कान बता रही है कि कहीं न कहीं दाल में कुछ काला अवश्य है। दम साधे वह आगे की कार्यवाही देखने लगा।

बंसीलाल ने झुक कर जज साहब का शुक्रिया अदा किया और अपनी फाइल में से एक कागज निकालकर उनकी तरफ बढ़ाने के बाद उसने कहना शुरू किया, "मीलॉर्ड ! ये इस कथित पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट है। जिला अस्पताल के डॉक्टर साहनी ने ही यह रिपोर्ट बनाई है। मेरा मानना है इस लड़की के दावों की पोल खोलने के लिए यह एक ही सबूत पर्याप्त होगा योर ओनर ! कृपया देखें।"

बंसीलाल और उस कर्मचारी के हाथों से गुजरते हुए वह कागज जज साहब के हाथों में जा पहुँचा। उस कागज पर नजरें गड़ाए हुए ही जज साहब बोले, "यस मिस्टर बंसीलाल जी ! यह पेश करके आप क्या कहना चाहते हैं ?"

अदब से झुकते हुए बंसीलाल बोले ,"थैंक यू मीलॉर्ड ! आप देखिए, इस मेडिकल रिपोर्ट में यह साफ साफ कहा गया है कि लड़की के जिस्म पर कहीं कोई जख्म या खरोंच या उसपर अत्याचार के निशान नहीं पाए गए ...."

तभी उसकी बात बीच में ही काटते हुए सरकारी वकील चीख उठा, "योर ओनर ! मेरे मित्र क्या यह बताने का कष्ट करेंगे कि जख्म के निशान नहीं पाए गए तो यह कौन से कानून में लिखा हुआ है कि बलात्कार हुआ नहीं माना जायेगा ?"
और फिर बंसीलाल से मुखातिब होते हुए बोले ,"और फिर इतना ही नहीं है रिपोर्ट में बरखुरदार ! आगे भी पढिये। आगे की पंक्तियों में साफ साफ लिखा है कि पीड़िता के साथ बलात्कार हुआ है।"

मुस्कुराते हुए बंसीलाल ने आगे कहना शुरू किया, "मीलॉर्ड ! बिल्कुल ! मेरे मित्र सरकारी वकील साहब सही कह रहे हैं। मैं भी यही कहना चाहता हूँ, बट पॉइंट टू बी नोटेड मीलॉर्ड ! माननीय डॉक्टर साहब ने जो लिखा है मैं उस लिखे के पीछे उनकी भावना से सहमत हूँ। लेकिन चूँकि डॉक्टर साहब मेडिकल के विद्यार्थी रहे हैं इसलिए शब्द चुनने में उनसे गलती हुई है और मैं उस गलती की तरफ आपका ध्यान दिलाना चाहता हूँ और इसी को साबित करने का प्रयास भी करूँगा। ये तो आप भी मानेंगे मीलॉर्ड कि मामूली से हेरफेर से एक ही शब्द के मायने बदल जाते हैं। अब आप ही गौर फरमाएं मीलॉर्ड कि क्या बिना किसी जोरजबरदस्ती के बलात्कार संभव है ? नहीं न ...? कोई भी लड़की बलात्कारी से बचने के प्रयास में हरसंभव प्रयास करती है और इस छीनाझपटी में उसके जिस्म पर कई तरह के चोटों के निशान की संभावना बनी रहती है। जबकि मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार पीड़िता के जिस्म पर ऐसा कोई निशान नही पाया गया ......"

तभी जज साहब झुँझलाते हुए बोले ,"पहेलियाँ न बुझाइए ! साफ साफ मुद्दे पर बात कीजिये। अदालत का समय जाया न करें।"

बंसीलाल आदर से झुकते हुए बोले ,"यस मीलॉर्ड ! मुद्दे की बात पर ही आता हूँ, और मुद्दे की बात ये है कि मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक पीड़िता से बलात्कार हुआ है मगर कोई छीनाझपटी नहीं हुई। छीनाझपटी नहीं हुई इसका सीधा सा मतलब है कि लड़की की मर्जी से उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए गए। और मनमर्जी से बनाये गए शारीरिक संबंधों को बलात्कार नहीं कहा जा सकता मीलॉर्ड ! दैट्स ऑल !"

तभी सरकारी वकील लल्लन सिंह चीख पड़े,"ये सरासर गलत तथ्य है योर ओनर ! अगर बलात्कार नहीं हुआ तो कोई लड़की क्यों किसी लड़के पर ऐसा झूठा इल्जाम लगाएगी जिसमें उसकी खुद की भी बदनामी होने वाली हो ? मेडिकल रिपोर्ट और लड़की के बयान से साफ हो गया है कि पीड़िता के साथ उसकी मर्जी के खिलाफ दुष्कर्म किया गया है और पीड़िता ने आरोपियों में से एक की अपराधी के रूप में पहचान भी कर ली है।"

बंसीलाल ने पूरे आत्मविश्वास के साथ बोलना शुरू किया, "मीलॉर्ड ! अदालतें लोगों के बयान के साथ ही तथ्यों और सबूतों पर विचार करके ही किसी नतीजे पर पहुँचती हैं। लगता है मेरे मित्र सरकारी वकील साहब ये भूल गए हैं कि यह गाँव की पंचायत नहीं न्याय का मंदिर है जहाँ सिर्फ और सिर्फ तथ्यों, गवाहों और सबूतों पर विचार करके फैसले किये जाते हैं। फैसले भावना के अधीन होकर नहीं किये जाते। पीड़िता के साथ हमारी भी संवेदनाएं हैं और चाहते भी हैं कि उसे न्याय मिले, लेकिन न्याय के नाम पर किसी बेकसूर को तो सजा नहीं दे सकते न .. और मीलॉर्ड ! तथ्य जो फिलहाल संकेत दे रहे हैं उनके मुताबिक ये बलात्कार नहीं आपसी सहमति से किये गए सहवास का मामला है। आगे की सुनवाइयों में मैं सबूतों और गवाहों के जरिये ये साबित कर दूँगा कि इस आपसी सहमति से किये गए सहवास में इन तीनों में से कोई शामिल नहीं था, बल्कि वह कोई और ही लड़का था जिसके बारे में वह तथाकथित पीड़िता ही बता सकती है।"

सरकारी वकील लल्लन सिंह जोर से चीख पड़े ,"ऑब्जेक्शन योर ओनर ! मेरे फाजिल दोस्त सहानुभूति की भी बात कर रहे हैं और पीड़िता पर अनापशनाप आरोप भी लगाए जा रहे हैं, उसके चरित्र हनन का प्रयास भी कर रहे हैं।" क्रोध की अधिकता उनके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई दे रही थी।

तभी जज साहब की गंभीर आवाज गूँजी, "बचाव पक्ष के वकील को अपने मुवक्किल को बचाने के लिए उसकी सफाई में कोई भी तथ्य पेश करने का पूरा हक है। हमारा संविधान इस बात का सदैव ध्यान रखता है कि किसी बेकसूर को सजा न हो।"
फिर बंसीलाल से मुखातिब होते हुए बोले ,"आप पीड़िता पर जो आरोप लगा रहे हैं क्या उसे साबित करने के लिए आपके पास कोई आधार या सबूत है या यूँ ही हवा में तीर चला रहे हैं ?"
बंसीलाल मंद मंद मुस्कुराते हुए धीरे से बोले, " मीलॉर्ड ! मैं जो कह रहा हूँ उसका पुख्ता आधार है, और वो है आपके हाथों में थमा वह मेडिकल रिपोर्ट ! मीलॉर्ड ! कृपया इस रिपोर्ट के अंतिम वाक्य पर ध्यान दें ! साफ साफ लिखा है लड़की सहवास की अभ्यस्त है। मेरा आरोप इसी आधार पर है। अभी तो मेरा कयास ही है जो गलत भी हो सकता है कि यह लड़की अपने किसी प्रेमी से हमेशा मिलने की अभ्यस्त रही है। 25 जनवरी की रात भी यह हमेशा की तरह अपने प्रेमी के साथ अंतरंग अवस्था में रही होगी। किसी करीबी द्वारा देख लिए जाने पर बदनामी से बचने के लिए इसने बलात्कार किये जाने का शोर मचा दिया होगा और गाँववालों के आक्रोश से बचने के लिए पुलिस ने भी तेजी दिखाते हुए उस इलाके में नए नजर आ रहे इन मासूमों को आसान शिकार बना लिया होगा। मीलॉर्ड ! मैं ये नहीं कहता कि ये कहानी सच्ची है, लेकिन सभी तथ्यों पर गौर से विचार करने के बाद अपने अदालती जीवन के 25 वर्षों का अनुभव मुझे इस कहानी पर विश्वास करने को मजबूर करता है। मैं अदालत को यकीन दिलाता हूँ कि आगे की सुनवाइयों में इसकी पड़ताल करके मय सबूतों व गवाहों के मैं अपनी बात को प्रमाणित कर दूँगा।
मीलॉर्ड, अब तक हुई बहस और तथ्यों पर गौरपूर्वक विचार करें। मेरी अदालत से गुजारिश है कि आरोपियों के भले घर से सम्बद्ध होने के साथ ही उनकी निरपराधी छवि, साफ सुथरा रेकॉर्ड और उनके भविष्य पर भी सहानुभूति पूर्वक विचार करते हुए उन्हें बरी करने का फरमान सुनाया जाए। दैट्स ऑल मीलॉर्ड, थैंक्यू !"
अदालत कक्ष में पूरी तरह सन्नाटा छा गया था।

क्रमशः