मौहब्बत बेवफ़ा.. Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मौहब्बत बेवफ़ा..

फतेहपुर सीकरी की दरगाह पर हर जुम्मे ताहिल मिर्जा नवाज़ अदा करने जाते हैं,नवाज़ के बाद वो इधरउधर किसी को खोजते हैं फिर मायूस होकर अपने घर लौट आते हैं,ये सिलसिला बाईस सालों से लगातार जारी है,वें जिसके इन्तज़ार में अपनी आँखों को बिछाएं हुए हैं पता नहीं उसे उनकी बैचेनी का कुछ पता भी या नहीं,लेकिन कभी कभी उनके मन में ख्याल आता है कि कमबख्त ने इतना तरसाया कि अब तो ऐसा लगता है कि शायद उसके आने से पहले मुझे मौत ही आ जाएंगी..
ताहिल मियाँ कभी कभी रातों को चिराग़ के सामने बैठकर यूँ कहा करते हैं....
तू बेवफा है या नहीं,ये मुझे नहीं मालूम मेरी जहाँआरा!ये दुनिया जब स्थिर हो जाएगी, जब सबकुछ पहले से बेहतर हो जाएगा,तब जिन्दगी से कुछ पल निकालकर एक मुलाकात तय करेंगे हम दोनों, एक बार मिलकर फिर अपने-अपने रास्ते एक हो जाएंगे,एक अदद मुलाकात तुझसे और कोई अरमान नहीं...
खुद के बेहद करीब होकर भी, मैं खुदसे कोसो दूर रहा, कहते है जब मौत को बेहद करीब से देख लो तो जिन्दगी की कीमत बढ़ जाती है,तुम्हारे जाने के बाद मैं पल पल केवल अपनीं मौत देख रहा हूँ क्योंकि मेरी जिन्दगी तो तुम थी,इसलिए जब सबकुछ ठीक हो जाएगा तो तुमसे एक आखिरी मुलाकात करनी है, अब यूँ घुट-घुटकर नहीं जिया जाता मुझसे,मन का बोझ, उम्मीदों वाली गठरी और कुछ अधूरी ख्वाइशें, उन चंद लम्हों में दफन करनी है,जिन लम्हों में हम मिले थे कभी, दिल का वो कोना जिसमें किस्से अब भी पूर्ण होने की राह देख रहे हैं, उन पन्नों को खुले आसमाँ में छोड़ आएंगे,एक आखिरी बार मिलकर अपने-अपने रास्ते शायद एक हो जाएं,बस एक मुलाकात की उम्मीद और कुछ नहीं मेरी ख्वाबों की मल्लिका...
और यूँ ही कुछ भी बकते बकते ताहिल मिर्जा सो जाते हैं....
उनकी बीती हुई मौहब्बत का किस्सा कुछ इस तरह से....
बाईस साल पहले जब वें जवान थे,उनकी उम्र यही कोई बीस साल साल रही होगी,तब वें एक दिन जुम्मे की नवाज के लिए दरगाह गए,नवाज अदा करके साइकिल से लौट रहे थे कि उनकी साइकिल के सामने एक पिल्ला आ गया,ताहिल मियाँ उस पिल्ले को बचा पाते उससे पहले ही एक लड़की जो कि बुर्का पहने थी उसने उस पिल्ले को बचा लिया और उधर से ताहिल मियांँ पर चिल्लाते हुए बोली....
क्यों जी? मासूम जानवरों को कुचलने में शायद बहुत मज़ा आता है आपको॥
ना मोहतरमा!हम तो इसे बचाने की कोशिश कर रहे थे,ताहिल मियांँ बोलें....
बेवकूफ किसे बनाते हो जी!हमने देखा कि आपने कितनी नाकाम कोशिश की,मोहतरमा बोली।।
जी!मुझे कोई शौक़ नहीं मासूम जानवरों को कुचलने का,ताहिल मियांँ बोले।।
हाँ...हाँ...सब जानते हैं हम,कितने बेहया हैं आप,जुर्म करते हैं और मानते भी नहीं,मोहतरमा बोली।।
मोहतरमा!अब आप गुस्ताखी कर रहीं हैं,ताहिल मियाँ बोलें...
जी!की हमने गुस्ताखी,कहिए तो क्या करेगें आप?मोहतरमा बोली।।
जी!कुछ नहीं!गलती हो गई हमसे,हम कुबूल करते हैं,बहसबाज़ी में क्या रखा है?ताहिल मियांँ का मिज़ाज कुछ ठण्डा हुआ,
जी!चलिए मुआफ़ किया आपको और वो मोहतरमा पिल्ले को गोद में उठाए चल दी....
अजी!नाम तो बताती जाइएं,ताहिल मियाँ बोलें....
जहाँआरा!नाम है हमारा,उसने अपने चेहरे से बुर्का हटाते हुए कहा....
ताहिल मियांँ ने जैसे ही जहाँआरा का चेहरा देखा तो अपन होश खो बैठे और चले अपनी साइकिल से पीछे पीछे और तब तक जहाँआरा का पीछा करते रहे जब तक कि उसने दूसरे दिन मिलने की हामी ना भर दी....
फिर क्या था दूसरे दिन जहाँआरा ताहिल से मिली ,मुलाकातों ने जोर पकड़ा और मुलाकातें कुछ दिनों बाद मौहब्बत में तब्दील हो गईं,ऐसे ही एक महीने दोनों मिले और फिर जहाँआरा के वापस जाने का वक्त आ गया,वो अपनी फूफूजान के यहाँ घूमने आई थी और अब वापस जा रही थी,लेकिन उसने वादा किया कि वो दोबारा लौटकर आएगी,....तब से ताहिल मियाँ उसका इन्तजार कर रहें हैं और वो अब तक नहीं लौटी....उसने ना तो कोई ख़त भेजा और ना ही अपनी फुफूजान का कोई पता ठिकाना बताया था,जहाँ से ताहिल मियांँ को जहाँआरा की कोई खबर मिल पाएं...
ताहिल मियांँ की अम्मी तो उनके बचपन में ही अल्लाह को प्यारी हो गई थीं,बाद में उनके अब्बाहुजूर का भी इन्तकाल हो गया,रह गए तो ताहिल मियांँ ,वें भी अपनी मौहब्बत के इन्तज़ार में अपने दिन काट रहे हैं........अब तो उन्होंने उम्मीद का दामन भी छोड़ दिया है शायद उनकी मौहब्बत बेवफ़ा निकली,
लेकिन फिर एक दिन ताहिल मियांँ नवाज अदा करके लौट रहे थे,तभी उन्हें किसी ने उसी जगह पुकारा जहाँ सालों पहले उन्हें जहाँआरा मिली थी,उन्होंने आवाज़ सुनकर पहचान लिया वो जहाँआरा थी,ताहिल मियांँ उनके पास जाकर बोलें.....
अब लौटीं हैं आप!मैं तो समझा था मेरे जनाजे पर भी नहीं आएगी आप!
खुदा के लिए ऐसा ना कहें,ताहिल मियांँ!जहाँआरा बोली।।
तो आप क्यों ना लौटी?कम से कम एक पैगाम ही भिजवा दिया होता,ताहिल मियांँ बोलें....
हमारी मजबूरी थी,जहाँआरा बोली।।
क्या मजबूरी थी आपकी?ताहिल मियांँ ने पूछा।।
और फिर जहाँआरा ने अपना चेहरें से बुर्का हटाया,बुर्का हटाते ही ताहिल मियांँ ने जो देखा तो उसे देखकर बोलें....
बस इतना ही भरोसा था हम पर!
मगर हमारा चेहरा जल चुका था,यहाँ से जाने के बाद एक दिन बावर्चीखाने में खाना बनाते समय दुपट्टे ने आग पकड़ ली,हम बेहोश हो गए और जब होश आया तो हमारी ये हालत हो चुकी थी,जहाँआरा बोली....
हमने आपसे मौहब्बत की थी सौदा नहीं,आपके चेहरे से नहीं आपके दिल को देखकर हमने आपको चाहा था,आप अब भी हमारी जिन्दगी में लौट आएं,हमें आपसे कोई शिकवा नहीं ,कोई शिकायत नहीं ,हमारी मौहब्बत बेवफ़ा नहीं है,ताहिल मियांँ बोलें.....
तो इसका मतलब है कि आपकी मौहब्बत बेवफ़ा नहीं...,जहाँआरा बोली....
जी!हमारी मौहब्बत हर्गिज़ बेवफ़ा नहीं थी और ना कभी होगी,ताहिल मियांँ बोलें....
और फिर दो बिछड़े हुए दिल फिर से मिल गए क्योंकि दोनों की मौहब्बत बेवफ़ा नहीं थी....

समाप्त....
सरोज वर्मा....