ये इश़्क हाय.. Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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ये इश़्क हाय..

रामसखा....ओ...रामसखा....दरवाजा खोल भाई!
रामसखा की नींद खुली और उसने सोचा इतनी रात को कौन आया है? उसने दरवाज़ा खोला तो देखा उसका बचपन का दोस्त चरनदास खड़ा है....
चरनदास को देखकर रामसखा बोला...
क्या हुआ?इतनी रात गए क्या काम पड़ गया?
कैलाशी की तबियत बहुत खराब है उसने तुझे बुलाया है?चरनदास बोला।।
लेकिन क्यों बुलाया है मुझे?रामसखा ने पूछा।।
वो तेरे आखिरी बार दर्शन करना चाहती है,चरनदास बोला।।
लेकिन आज से बीस साल पहले ही तो उसने मुझे धिक्कार कर उस गाँव से निकाला था तो फिर आज मैं क्यों जाऊँ उससे मिलने?रामसखा बोला....
भाई! उसकी मजबूरी थी?चरनदास बोला।।
ऐसी भी क्या मजबूरी थी?रामसखा बोला।।
वो तुझे शायद यही बताना चाहती है इसलिए उसके प्राण अटके है,चरनदास बोला।।
मुझे नहीं जाना,रामसखा बोला।।
तुझे आज चलना ही होगा,उसने मुझसे कहा है कि तुझे लेकर ही लौटूँ,चरनदास बोला।।
फिर मन मारकर रामसखा चरनदास के साथ चल पड़ा,वें नदी किनारे पहुँचें वहाँ से वें दोनों एक नाव पर सवार हो गए,रामसखा नाव में बैठा और नदी के धारा के साथ अपने अतीत में पहुँच गया,जब उसने पहली बार कैलाशी को देखा था,कैलाशी शूद्र जाति की कन्या थी और शूद्रो को किसी भी कुएँ पर पानी भरने की मनाही थी,इसलिए जमींदार ने मंदिर के पास वाले कुएँ से शूद्रों को पानी भरने की अनुमति दे दी थी,वो भी उन्हें कुएँ को छूने का अधिकार नहीं था,मंदिर के पुजारी कुएँ से पानी निकाल निकालकर उनके घड़ो में भरते थे या किसी ऊँची जाति वाले लड़को को ये काम सौंपा जाता था,
रामसखा गाँव के पुजारी का बेटा था,इसलिए एक दिन ये काम उसके हिस्से में आया और उस दिन कैलाशी कुएँ पर पानी भरने आई थी,अब अठारह साल के रामसखा ने जैसे ही सोलह साल की कैलाशी को देखा तो अपनी नींद और चैन दोनों खो बैठा,अब वो जानबूझकर कुएँ पर पानी भरने का काम ले लेता,जब कैलाशी कुएँ पर आती तो उसकी बाँछें खिल जातीं और जिस दिन वो नहीं आती तो वो उदास हो जाता,
और फिर एक दिन वो अपना काम किसी और लड़के को सौंपकर दूर तक कैलाशी का पीछा करता रहा,कैलाशी गाँव के दूसरे छोर पर रहती थी,इसलिए घर पहुँचने में उसे समय लग जाता था,बीच में काफी जंगल भी पड़ता था,जब कैलाशी गाँव से आधी दूर से भी ज्यादा पहुँच गई तो रामसखा बोला....
ए...सुनो!रूको जरा!अपना तो बताती जाओ।।
कैलाशी पीछे मुड़ी और उसने जैसे ही रामसखा को देखा तो बोलीं....
तुम तो बाभन के लड़का हो ना!इहाँ का कर रहो ?
मैं तुम्हारे पीछे पीछे चला आया,नाम क्या है तुम्हारा?रामसखा ने पूछा....
तुम्हें काहे अपना नाम बताएं...और कैलाशी सिर पर मटका रखकर आगें बढ़ने लगी?
अरे!बता दो ना!रामसखा बोला,
नाहीं!हम अपना नाम ना बताऐगें और इतना कहकर कैलाशी अपने घर चली गई....
अब ये रोज का सिलसिला हो गया,कैलाशी आती और रामसखा अपना काम चरनदास को सौंपकर रफूचक्कर हो जाता,वो कैलाशी के पीछे जाता और कैलाशी उसे अपना नाम ना बताती,रामसखा ने कहीं और से कैलाशी का नाम तो जान लिया लेकिन कैलाशी से बात करने में वो अब भी सफल ना हो सका था फिर एक दिन परेशान होकर रामसखा कैलाशी का हाथ पकड़कर बोला.....
क्यों भागती हो मुझसे?प्यार करने लगा हूँ मैं तुमसे?
लेकिन हमें तुमसे प्यार नाहीं है,कैलाशी बोली....
क्या कहा तुमने ?तुम मुझसे प्यार नहीं करती,रामसखा बोला।।
नहीं!हमें तुमसे प्यार नहीं है,छोड़ो...हटो...हमारे रास्ते से,खबरदार !जो कभी हमारे पीछे आएं,कैलाशी बोली....
मैं आऊँगा....तुम्हारे रास्ते पर और हाथ भी पकड़ूगा तुम्हारा?बोलो क्या करोगी तुम?रामसखा ने कैलाशी का हाथ पकड़ते हुए कहा...
कैलाशी ने इतना सुना तो रामसखा के गाल पर जोर का थप्पड़ मार कर आगें बढ़ चली,अब रामसखा का दिमाग़ गरम हो गया और उसने कैलाशी के होठों का चुम्बन ले लिया,कैलाशी ने रामसखा को जोर का धक्का दिया और वो जमीन पर गिर पड़ा....
और फिर कैलाशी अपना मटका वहीं फेंककर रोते हुए घर भाग गई....
रामसखा उसे जाते हुए देखता रहा,रामसखा घर पहुँचा और घर पहुँचकर रात भर ये सोचता रहा कि उसने आज कैलाशी के साथ जो किया वो बहुत ही गलत था,उसने मन में सोच लिया कि उसे कैलाशी जब भी मिलेगी वो उससे माँफी माँग लेगा,लेकिन ये हो ना सका क्योंकि उस दिन के बाद कैलाशी कभी पानी लेने कुएँ पर नहीं आई,जब कैलाशी कुएंँ पर नहीं आई तो रामसखा बहुत उदास रहने लगा,उसने खाना पीना भी छोड़ दिया,उसकी बहुत ज्यादा तबियत खराब रहने लगी और कैलाशी के ग़म में उसने बिस्तर पकड़ लिया,अब इस बात से कैलाश के माँ बाप बहुत परेशान हुए,उनके इकलौते बेटे की ऐसी हालत देखकर उनका कलेजा मुँह को आता था,फिर एक दिन उन्होंने चरनदास से पूछा....
तब चरनदास ने उन्हें सब सच सच बता दिया,रामसखा के माँ बाप ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की कि ऐसा नहीं हो सकता,एक शूद्र कन्या को हम अपने घर की बहु नहीं बना सकते,हमें समाज बहिष्कृत कर देगा लेकिन रामसखा कुछ भी समझने को तैयार ना था,फिर एक रोज़ पता चला कि कैलाशी ने अपना मनपसंद वर चुन लिया है और अगली पूरनमासी को उसका ब्याह है,ये खबर सुनकर रामसखा को बहुत धक्का पहुँचा और कैलाशी के ब्याह वाले दिन रामसखा चरनदास के काँधे पर अपना सिर रखकर बहुत रोया.....
अभी कैलाशी के ब्याह को छः महीने ही बीते थे कि उसके पति को एक सर्प ने डस कर काल के गाल में पहुँचा दिया,अब तो रामसखा की खुशी का ठिकाना ना रहा और उसने सोचा कि अब तो कैलाशी विधवा हो गई है और मुझे अवश्य स्वीकार कर लेगी,अभी कैलाशी के पति को मरे तीन रोज़ ही गुज़रे थे कि रामसखा उसके घर पहुँचा,उसका पति अनाथ था इसलिए घर में सिवाय कैलाशी के कोई ना था,उसने घर के किवाड़ खटखटाएं,कैलाशी ने दरवाज़ा खोला,उसने सोचा कि शायद रामसखा उसके पति की मृत्यु का शोक व्यक्त करने आया है किन्तु ऐसा ना था...
रामसखा ने ना उसके पति की मृत्यु का शोक व्यक्त किया और ना ही हमदर्दी के दो बोल बोलें,वो केवल ये बोला.....
कैलाशी!अब तुम आजाद हो गई,अब भी तुम चाहो तो मैं तुमसे ब्याह कर सकता हूँ,
कैलाशी रामसखा के बोल सुनकर अचरज में पड़ गई लेकिन पहले उसने कुछ सोचा फिर बोली....
लेकिन!अभी तो दोपहर है,कोई भी आ सकता है,तुम ऐसी बात करने आज रात को आना,
सच!तो तुम तैयार हो,तुम चिन्ता मत करो मैं रात को जरूर आऊँगा और ऐसा कहकर रामसखा वहाँ से चला गया,
रात हुई,चारों ओर दीप जल चुके थे,आधी रात बीत चुकी थी और ज्यादातर घरों के दीप बुझाएं जा चुके थे,रामसखा चुपके से कैलाशी के द्वार पर पहुँचा उसने किवाड़ खटखटाएं,कैलाशी ने दरवाजा खोला,वो हाथ में दीप लेकर और श्रृंगार करके रामसखा का ही इन्तजार कर रही थी,रामसखा ने कैलाशी का ये रूप देखा तो अन्तर्मन तक खिल उठा लेकिन एक प्रश्न भी पूछ बैठा.....
तुम तो विधवा हो फिर इतना श्रृंगार?
सब तुम्हारे लिए है,तुम्ही तो मुझे ऐसे देखना चाहते थे और मुझे अपना बनाना चाहते थे,कैलाशी बोली।।
हाँ!ये इच्छा तो कब से थी मेरे मन में कि तुम कब मेरी होगी?रामसखा बोला।।
तो लो आज मुझे अपना बनाकर अपनी इच्छा पूरी कर लो,कैलाशी ने अपने वक्षस्थल से अपनी साड़ी का पल्लू हटाते हुए कहा....
कैलाशी की इस हरकत पर रामसखा ने जोर का थप्पड़ कैलाशी के गाल पर धरते हुए कहा.....
मैं तुम्हारा प्रेम चाहता हूँ ,तुम्हारा बदन नहीं....छीः....छीः....तुम मुझे कितना गिरा हुआ समझती हो कैलाशी!उस दिन मुझसे भूल हुई थी जो मैनें तुम्हारे अधरों को चूम लिया लेकिन मेरी ऐसी इच्छा कभी नहीं थी,तुम मेरे प्रेम को वासना समझीं....
अगर तुम्हारा प्रेम सच्चा है तो ये गाँव छोड़कर चले जाओ,फिर कभी भी मुझे अपना मुँह मत दिखाना,कैलाशी के ऐसे शब्द सुनकर उस रात के बाद रामसखा ने वो गाँव छोड़ दिया और आज वो इतने सालों बाद कैलाशी के बुलाने पर गाँव आया है,
रामसखा से चरनदास ने कहा....
रामसखा!उतरो गाँव आ गया,चरनदास के ऐसा कहने पर रामसखा का ध्यान टूटा,फिर दोनों नाव से उतरे और गाँव पहुँचें और थोड़ी ही देर में दोनों कैलाशी के घर के द्वार पर थे.....
रामसखा और चरनदास कैलाशी के घर के भीतर पहुँचे देखा तो कैलाशी एक बिस्तर पड़ी थी और उसकी पड़ोसन उसे पंखा झल रही थी,रामसखा और चरनदास पहुँचे तो कैलाशी ने पड़ोसन से चले जाने का इशारा किया,पड़ोसन चली गई तो कैलाशी ने रामसखा से कहा....
तो आ गए तुम!
तुमने मुझे क्यों बुलाया?रामसखा ने पूछा।।
ये बताने के लिए कि मैनें शादी क्यों की थी?कैलाशी बोली...
मुझे पता है कि तुम मुझसे प्यार नहीं करती थी इसलिए तुमने शादी की थी,रामसखा बोला।।
तब कैलाशी बोली...
बस इतना ही भरोसा था मुझ पर तो सुनो जब चरनदास ने तुम्हारे पिता जी को तुम्हारी उदासी का कारण बताया तो वें बहुत डर गए,एक बाभन लड़के का एक शूद्र कन्या से प्रेम और विवाह की बातें उन्हें स्वीकार ना थीं,समाज क्या कहता उन्हें,उनकी जीवन भर की इज्जत मिट्टी में मिल जाती इसलिए वें एक रात मेरे घर आएं और मुझसे विनती की कि ....
बेटी!मुझे क्षमा करना,मैं तुमसे ये कहने आया हूँ कि तुम ब्याह कर लो ताकि रामसखा तुमसे घृणा करने लगें,ये मेरी मर्यादा का प्रश्न है,मैं समाज में रहता हूँ और ऐसी बातें मुझे स्वीकार नहीं,मैं ब्राह्मण और शूद्र में भेद नहीं करता लेकिन मैं समाज से भी डरता हूँ,अगर तुम मेरी बात मान लोगी तो ये तुम्हारा एहसान होगा मुझ पर,मुझे वचन दो कि तुम ब्याह करोगी...
तो तुम्हारे पिता ने जो वचन लिया था मुझसे ,मैनें उसी वचन को निभाते हुए विवाह कर लिया,मेरे पति के मरते ही तुम्हें लगा कि मैं तुम्हें अपना लूँगीं,लेकिन मैनें तुम्हारे पिता को वचन दिया था कि समाज में मेरी वजह से उनकी इज्जत पर बट्टा नहीं लगेगा,इसलिए उस रात मैनें तुम्हें इस गाँव से जाने को कहा,लेकिन सच तो ये है कि मैं भी तुम्हें चाहने लगी थी और अब भी चाहती हूँ,इस जन्म में तो हम ना मिल पाएं शायद अगले जन्म में मिल पाएं,मुझे माँफ कर देना और इतना कहकर कैलाशी ने अपने प्राण त्याग दिए,रामसखा कैलाशी के जाते ही रो पड़ा और तब चरनदास बोला...
ये इश्क़ हाय......

समाप्त.....
सरोज वर्मा...