इश़्क का इजहार... Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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इश़्क का इजहार...

रेलवें स्टेशन पर शमा परवीन अपनी सहेली का इन्तजार कर रही है तभी ट्रेन आकर प्लेटफार्म पर रूकी और उसमें से मेहरून्निसा अपने सामान के साथ उतरी,मेहरुन्निसा को देखते ही शमा बोली.....
तो मैडम मेहरुन्निसा !आप आ ही गई इस बार के मुशायरें,मैं तो सोच रही थी कि मेरी सहेली को फुरसत ही ना मिलेगी,
कैसें ना आती तूने जो इतनी मिन्नतें की थी,मेहरुन्निसा बोली...
अब क्या करूँ?मेरे शौहर इतने बड़े शायर हैं उन्होंने ही मुशायरें का बंदोवस्त किया है और अगर मैं अपनी शायरा सहेली को मुशायरें में शामिल ना करती तो मुझे लगता कि ये मेरी ही तौहीन हो गई,शमा बोली...
अच्छा!चल अब ज्यादा बातें ना बना और बता क्या चल रहा है तेरी जिन्दगी में,मेहरून्निसा ने पूछा...
बस,और क्या,बड़ा बारहवीं में हैं और छोटा दसवीं में तो दोनों की पढ़ाई के चक्कर में पड़ी रहती हूँ,शौहर डाक्टर है तो उन्हें अपने मरीजों से फुरसत नहीं,साथ में शायर तो अगर उन्हें डाक्टरी से फुरसत मिल जाती है तो निगोड़ी शायरी को वो अपना वक्त दे देते हैं,अल्लाह कसम! उनकी शायरी तो जैसे मेरी सौत बन गई है....शमा बोली।।
चल....चल..मतलब तेरी जिन्दगी मज़े से कट रही है,एक हम हैं कि कोई फिकर करने वाला ही नहीं,मेहरून्निसा बोली।।
अभी भी ज्यादा वक्त नहीं बीता है तू दोबारा निकाह क्यों नहीं कर लेती?शमा बोली....
तब मेहरून्निसा बोली....
सब इतना आसान नहीं होता मेरी जान! एक बार इश्क़ किया था तो अब्बाहुजूर की खातिर उसे छोड़ दिया,फिर अब्बाहुजूर की खातिर निकाह किया तो वो छोड़कर चला गया,मेरी किस्मत में तो केवल तनहाई ही लिखी है.....

हम सनम दम तेरे इश्क़ का भर गए
जल गए भुन गए कट गए मर गए ....

ऐसा मत बोल,इतनी उदास मत हो,हो सकता है कि तुझे अब भी कोई चाहने वाला मिल जाएं,शमा बोली....
तब मेहरून्निसा बोली....
तूने ग़ालिब का वो श़ेर नहीं पढ़ा.....

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

बस...बस....रहने दें,अब जो भी बात करनी है घर चलकर करते हैं,तू खुद तो रोती ही है और मुझे भी रूलाती है,शमा बोली....
और फिर दोनों घर पहुँची,शमा ने मेहरून्निसा को अपने शौहर और बच्चों से मिलवाया,फिर शमा ने मेहरून्निसा से कहा कि तू नहाधोकर खा पीकर आराम कर,मुशायरा शाम को ही है इसलिए तुझे तरोताज़ा नज़र आना चाहिए और फिर मेहरून्निसा शमा के कहे अनुसार नहाने चली गई.....
शाम हुई तो शमा,शमा के शौहर और मेहरून्निसा तीनों कार से मुशायरें के लिए रवाना हो गए,शमा के शौहर ताहिल ने सभी शायर और शायराओं से मेहरून्निसा का ताअरूफ़ कराया,मेहरून्निसा सबके साथ तसल्ली से मिली लेकिन एक शख्स को देखकर वो बेचैन हो उठी,उनका नाम साजिद अली था,उन्होंने जैसे ही मेहरून्निसा को देखा तो एक शेर पढ़ा....

आरज़ू है कि तू यहाँ आए
और फिर उम्र भर न जाए कहीं ....

उन साहब का शेर सुनकर मेहरून्निसा और भी बैचेन हो उठी उसके माथे पर सिकन और चेहरे पर उदासी छा गई,मेहरून्निसा के चेहरे की उदासी को शमा ने बखूबी पढ़ लिया और उसने उस शख्स को ध्यान से देखा तब शमा को याद आया ये तो वही साजिद है जो मेहरून्निसा को चाहता था लेकिन वो कभी इजहार नहीं कर पाया मेहरून्निसा भी कभी उससे अपने इश़्क का इजहार नहीं कर पाई और मेहरून्निसा ने अपने अब्बाहुजूर के कहने पर किसी और से निकाह कर लिया था....
उस रात मेहरून्निसा ने गैर मन से मुशायरा पढ़ा,मुशायरा जैसे ही खतम हुआ तो साजिद अली मेहरून्निसा के पास आएं ,शमा भी वहीं थी इसलिए साजिद ने शमा से पूछा....
क्या मैं आपकी सहेली का थोड़ा सा कीमती वक्त ले सकता हूँ अगर आपको कोई एतराज ना हो तो?
तब शमा बोलीं...
साजिद मियाँ!भला हमें क्या एतराज़ हो सकता है?
और फिर साजिद ने मेहरून्निसा से पूछा.....
तो कैसीं हैं आप?अब तो खुदा के फ़ज़्ल से बहुत बड़ी शायरा बन गईं हैं आप।
जी!आप भी तो बहुत बड़े शायर बन चुके हैं,मेहरून्निसा बोली।।
कितनी मीठी है आपकी आवाज़ आज पहली बार मुशायरे में सुनी और दूसरी बार यहाँ,साजिद बोला।।
जी...बहुत शुक्रिया,मेहरून्निसा बोली।।
तो क्या आप मुझसे कल मिल सकतीं हैं....रेस्टोरेन्ट ब्लू स्टार में,कुछ पुरानी यादों का पुलिंदा खोलना चाहता हूँ,एक पुराने बेनाम रिश्ते को सुलझाना चाहता हूँ,कुछ सवाल हैं जिनके जवाब चाहता हूँ,ये नहीं कहूँगा कि आप बेवफा थीं क्योंकि जिस इश्क़ का कभी इजहार ना हुआ हो तो उस सख्श को बेवफा का नाम नहीं दे सकते,साजिद ने पूछा....
तब मेहरून्निसा कुछ नहीं बोली लेकिन शमा ने तपाक से कहा...
हाँ....हाँ...साजिद मियाँ....शायरा साहिबा जरूर तशरीफ़ लाएगी,वक्त बताएं कि कब आना हैं?
जी!शाम छः बजे,मैं इन्तजार करूँगा और फिर साजिद ने एक शेर कहा.....

माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख

और इतना कहकर साजिद चला गया...
अब मेहरून्निसा ने शमा से कहा....
तूने हाँ क्यों की?मुझे कहीं नहीं जाना?
वाह....जी....वाह....मन में तो जैसे लड्डू फूट रहे हैं और मैडम जी मिलने से मना कर रहीं हैं,शमा बोली...
तूने मुझे फँसा दिया,मेहरून्निसा बोली....
मैनें बिल्कुल ठीक किया,जो इजहार सालों पहले नहीं हो पाया वो अब हो जाएगा ,शमा बोली...
फिर सब कार से घर आ गए,घर पहुँचकर शमा ने सबके लिए खाना परोसा जो वो पहले से ही तैयार करके गई थी,खाना खाने के बाद शमा और मेहरून्निसा दोनों एक ही कमरें में सोने के लिए आ गईं क्योकिं उन्हें बहुत सारी बातें करनी थीं,तब शमा मेहरून्निसा से बोलीं....
मेहर!अपना ले साजिद को,
लेकिन वो शादीशुदा हुआ तो ये कैसें मुमकिन होगा,मेहरून्निसा बोली।।
हाँ....ये बात भी है तो कोई बात नहीं कल बातों बातों में सब पता कर लेना,फिर सोचते हैं कि क्या करना हैं और दोनों ही इसी तरह बातें करते करतें लेट गईं,शमा तो सो गई लेकिन मेहरून्निसा की आँखों से नींद गायब थी और वो अपने गुजरे हुए कल में पहुँच गई,जब वो बारहवीं में पढ़ती थीं,उसके अब्बा चाहते थे कि वो साइंस पढ़े इसलिए उन्होंने मेहरून्निसा का एक जगह ट्यूशन लगवा दिया,वहीं शमा भी ट्यूशन पढ़ती थी,मेहरून्निसा और शमा की दोस्ती वहीं पर हुई थी जो अभी तक कायम है, मेहरून्निसा वहाँ ट्यूशन जाने लगी,वहाँ के सर बच्चों को ग्रुप में पढ़ाते थे जिसमें लड़के और लड़कियांँ दोनों शामिल थे,अभी मेहरून्निसा को वहाँ जाते हुए दो महीने ही हुए थे कि वहाँ पढ़ने वाले लड़को में एक लड़का साजिद था जो कि मेहरून्निसा को घूर घूर कर देखा करता था,ये बात शमा ने गौर फरमाई तो उसने मेहरून्निसा से कहा,तब मेहरून्निसा बोली...
मुझे ऐसे फालतू के लफड़े में नहीं पड़ना,नहीं तो अब्बाहुजूर मेरी पढ़ाई बंद करवा देगें,अम्मी भी नहीं हैं इस दुनिया में और तुझे तो पता ही है कि वें ज्यादातर बीमार रहते हैंं...
सर का घर पहली मंजिल पर था,ऊपर जाने के लिए जो सीढ़ियाँ इस्तेमाल की जातीं थीं तो वो हरदम खाली रहतीं थीं और वहाँ पर अँधेरा भी रहता था,जब मेहरून्निसा ने साजिद को भाव ना दिया तो साजिद की जुर्रत अब इतनी बढ़ गई कि वो मेहरून्निसा के आने के पहले सीढ़ियों में चिट्ठी लेकर खड़ा हो जाता और जब मेहरून्निसा वहांँ से गुजरती तो उसके होश गुम हो जाते और हर दिन वो चिट्ठी देना भूल जाता और मेहरून्निसा मुस्कुराते हुए आगें बढ़ जाती,ये खेल काफी दिनों तक चलता रहा,सच बात तो ये है कि मेहरून्निसा को भी इसमें मज़ा आने लगा था वो इसलिए कि पहली बार कोई लड़का उसे इतनी तवज्जोह दे रहा था,अब साजिद बार बार अपने मिशन में नाकामयाब हो रहा था और मेहरून्निसा साजिद को पसंद करने के बावजूद कोई पहल नहीं कर रही थी और फिर एक दिन साजिद ने मन बना लिया कि वो आज अपने मिशन में कामयाब होकर रहेगा ,मेहरून्निसा को चिट्ठी जरूर देगा और अपने इश्क का इजहार करेगा....
उसने उस दिन अपनी चिट्ठी लिखी और सीढ़ियों पर खड़ा हो गया,मेहरून्निसा आई और आज उसने पहल की फिर उसने अपने निकाह का कार्ड साजिद को थमाया और निकल गई,उसने बाद में मुड़कर देखा था तो साजिदवहीं रोते हुए बैठ गया था.....
मेहरून्निसा के अब्बाहुजूर बहुत बीमार थे इसलिए वें जल्द से जल्द चाहते थे कि मेहरून्निसा का निकाह हो जाएं, इसलिए मेहरून्निसा का निकाह हो गया,मेहरून्निसा के निकाह के दो महीने बाद ही उसके अब्बाहुजूर अल्लाह को प्यारे हो गए,उसके शौहर ने उसके अब्बा से उसे आगें पढ़ाने का वादा किया था जो उन्होंने पूरा भी किया,लेकिन वो भी दो साल बाद एक एक्सीडेंट में चल बसें,मेहरून्निसा को उनके बीमे का बहुत पैसा मिला,जिससे उसने अपनी पढ़ाई जारी रखी,उसके बाद वो एक काँलेज में फिजिक्स की प्रोफेसर हो गई,वो शायरियाँ अच्छी करती थी इसलिए उसने अपने इस शौक को बरकरार रखा,
मेहरून्निसा सोच रही थी कि दोनों के बीच कभी कोई बात नहीं हुई,कभी इश़्क का इजहार नहीं हुआ,तब भी अब तक दोनों के दिलों के तार जुड़े हैं,ये कैसीं मौहब्बत है?और फिर यही सोचते सोचते मेहरून्निसा नींद के आगोश में चली गई....
दूसरे दिन मेहरून्निसा को शमा ने शाम के वक्त ठीक से तैयार करके साजिद से मिलने भेजा,मेहरून्निसा रेस्टोरेंट पहुँची तो उसने देखा कि साजिद उसका पहले से इन्तजार कर रहा है,वो चुपचाप उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई और शरमाते हुए अपना दुपट्टा ठीक करने लगी,कभी इधर देखती तो कभी उधर देखती और साजिद की निगाहें केवल उस पर थी इसलिए वो और ज्यादा शरमा रही थी,तब साजिद बोला.....
और तो कैसी निभ रही है शौहर के संग....
जी!वें तो निकाह के दो साल बाद ही चल बसें,तब से अकेली ही हूँ....और आपकी बेग़म कैसीं हैं?कितने बच्चे हैं.....मेहरून्निसा ने पूछा।।
जी आपके बाद कोई जँचा नहीं इसलिए निकाह नहीं किया,पढ़ाई और प्रोफेसरी में ही सारी उम्र बीत गई,अकेलापन दूर करने के लिए शायर बन बैठा या ऐसा कह सकते हैं कि किसी की मौहब्बत और उसकी जुदाई ने शायर बना दिया...

इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के ,

फिर साजिद बोला.....
पता है मेहरून्निसा उस दिन जब आप मुझे अपने निकाह का कार्ड थमाकर गई तो मैं वहीं बैठकर बहुत रोया,उस दिन मेरी दुनिया लुट चुकी थी,मैं खुद को बहुत बेबस महसूस कर रहा था...
मैनें आपको रोते हुए देखा था,मेहरून्निसा बोली।।
एक बात पूछूँ सच सच बताएगीं,साजिद बोला....
जी पूछिए,मेहरून्निसा बोली।।
आप भी मुझसे मौहब्बत करतीं थीं ना!मैं जब चिट्ठी लेकर सीढ़ियों पर खड़ा होता था तो आपको यूँ मेरा इन्तजार करना अच्छा लगता था ना!साजिद बोला।।
जी!मेहरून्निसा बोली।।
बस मैं यही सुनना चाहता था,आज मैं वर्षों के बाद चैन से सो पाऊँगा,उस दिन के बाद मैं कभी चैन से सो नहीं पाया,साजिद बोला।।
ओह...तो अब आगें क्या सोचा है आपने,मेहरून्निसा ने पूछा....
बस अब तो इश्क़ का इजहार करके किसी को अपना बनाना है अगर उसे मंजूर हुआ तो...साजिद बोला...
आप इजहार तो कीजिए शायद वो भी आपके इन्तजार में हो,मेहरून्निसा बोली।।
तब साजिद फर्श पर बैठ गया और उसने एक अँगूठी निकाली और पीछे खड़े म्यूजिशियन्स से इशारा करके म्यूजिक बजाने को कहा और फिर मेहरून्निसा से बोला....
क्या आप मेरी जिन्दगी में शामिल होना चाहेगीं?मैं आपसे बेइन्तहां मौहब्बत करता हूँ और आपसे निकाह करना चाहता हूँ....
साजिद के ऐसे इजहार-ए-मौहब्बत पर मेहरून्निसा की आँखें भर आईं और वो साजिद के गले लगकर बोली.....
मुझे भी आपसे मौहब्बत है...
और फिर उस दिन दोनों के बीच इश़्क का इजहार हो गया......

समाप्त......
सरोज वर्मा...