रात के लगभग बारह बजने वाले थे जब पुलिस की जीप ने सुजानपुर गाँव की सीमा में प्रवेश किया था।
गाँव के बाहर गाड़ी खड़ी करके दरोगा विजय दोनों सिपाहियों के साथ बिरजू के पीछे पीछे चल पड़ा।
चौधरी रामलाल वैसे ही बाहर खटिये पर बैठे हुए थे। अन्य ग्रामीण उन्हें घेरे हुए जमीन पर ही बैठ गए थे और पुलिस अथवा बिरजू का इंतजार कर रहे थे।
चौधरी को दिलासा दिलाते दिलाते बातों का रुख नए जमाने की तरफ मुड़ गया था। बड़ी देर तक गाँववालों में आपस में नए जमाने और शहरी तौरतरीकों को लेकर बातचीत होती रही। तभी बिरजू और उसके पीछे दरोगा को आते देखकर गाँववाले खामोश हो गए और उठकर खड़े हो गए।
एक गाँववाले ने एक खटिया बिछाते हुए दरोगा से उसपर बैठने का आग्रह किया। डपटते हुए दरोगा ने अपने रुतबे का धौंस दिखाया, "चलो हटो, इतना टाइम नहीं होता हमारे पास। कहाँ है वह लड़की ?"
बिरजू ने बताया, "साहब घर में चलिए। अपने कमरे में ही है वह।"
नजदीक पड़ी एक खटिया सरकाकर उसपर बैठते हुए विजय बोला, "ज्यादा समय नहीं है हमारे पास। जल्दी से ले आओ उसको यहीं पर।"
" साहब, घर में ही चले चलिए न। उसकी हालत सही नहीं है.. और फिर यहाँ सबके सामने वह क्या बताएगी ?" बिरजू ने उसके सामने दोनों हाथ जोड़ लिए।
" स्सा.......तुम गाँव वालों के नखरे बहुत होते हैं।" एक भद्दी सी गाली मुँह से निकालते हुए वह उठ खड़ा हुआ और बोला ,"चलो, कहाँ है वह लड़की ?" अहसान करनेवाले अन्दाज थे उसके इस समय।
बिरजू के पीछे चलता हुआ वह अंदर बसंती के कमरे में पहुँचा जहाँ अभी भी पासपड़ोस की महिलाएँ उसे घेरे हुए थीं। दरवाजे के सामने पहुँचते ही विजय दहाड़ा, "चलो, सब लोग बाहर चलो। यहाँ केवल लड़की की माँ रहेगी।" कमरे के अंदर प्रवेश करते हुए उसने बिरजू को भी बाहर जाने का इशारा किया।
बिरजू सहित गाँव की अन्य सभी महिलाएँ कमरे से बाहर निकल चुकी थीं। बिरजू बाहर आकर चौधरी व अन्य गाँववालों के साथ आकर बैठ गया। तभी साथ आये हुए दोनों सिपाहियों ने बिरजू को इशारे से एक कोने में बुलाया। सिर झुकाए बिरजू डरा सहमा सा उनके सामने खड़ा हो गया। एक सिपाही ने इधर उधर देखते हुए कहा ,"वैसे तो हम लोग किसी के घर जाने के लिए तीन हजार लेते हैं लेकिन तुम गाँव वाले गरीब लग रहे हो इसलिए तुमसे कम ही लेंगे। जाओ, एक हजार रुपये लेकर आओ।"
"किसलिए साहब ? हम पैसा क्यों दें ?" बिरजू ने सवाल किया।
" देख, ज्यादा होशियारी न कर। अब ये फैसला आने तक तुझे हमेशा हमारी जरूरत पड़ेगी और अगर तूने हमें खुश रखा तो हम भी तेरा काम ईमानदारी से करेंगे। वैसे भी तुझसे कोई ज्यादा नहीं माँगा है। देना है तो ले आ जल्दी से रकम नहीं तो समझ ले .....ये गाड़ी पानी से नहीं चलती।" उसे प्यार से समझाते हुए उस सिपाही ने आखिर में अपने अंदाज में धमकी दे ही दी।
तभी दूसरे सिपाही ने उसे कंधे से पकड़कर प्यार से समझाते हुए कहा ,"यार, तेरे से बहुत कम ही माँगा है। अभी साहब बाहर आ जाएंगे तो पता है न वो अपने हिसाब से चार्ज करेंगे। अभी ये जितना कह रहा है देकर अपना गला छुड़ा लो। कहीं ऐसा न हो कि हमको तो एक हजार नहीं दिए और साहब ने पाँच हजार वसूल कर लिए। पैसे हम लोग कैसे वसूल करते हैं ये तो तुम लोग जानते ही होंगे।"
बिरजू भले ही तेज तर्रार युवक था जिसे काफी कुछ समझ थी। कुछ कायदे कानून भी उसे पता थे लेकिन उन सिपाहियों की बात सुनकर उस ठंडे मौसम में भी उसके जिस्म के समस्त रोमछिद्रों ने एक साथ पसीने का उत्सर्जन कर दिया था।
पसीने की बूंदें स्पष्ट चमक रही थीं उस अँधेरे में भी। उसके दिमाग ने उसे समझाया 'जो भी है अब केस तो इन लोगों के ही हाथों में है और नीति यही कहती है कि जिनसे काम लेना हो उन्हें नाराज नहीं करना चाहिए। वैसे भी एक हजार कोई बहुत बड़ी रकम नहीं जिसके बारे में इतना सोचना पड़े। माँ से लेकर सिपाही को पैसे दे देने में ही भलाई है।' सोचकर वह माँ से पैसे लेने के लिए घर में घुसा।
ठीक यही समय था जब दरोगा विजय बसंती के कमरे से बाहर आ रहा था। बिरजू को अपने पीछे आने का इशारा करके वह बाहर आ गया और खटिये पर विराजमान होते हुए चेहरे पर निराशा के भाव लाते हुए बोला, "कितना प्रयास हमने किया कि लड़की उनमें से किसी एक का भी हुलिया बता दे कि वह कैसे थे, मसलन कैसे दिखते थे ? काले थे या गोरे ? जिस्म कैसा था ? बाल कैसे थे ? आदि आदि .....लेकिन ये लड़की तो कुछ बता ही नहीं रही है। अब जब तक ये उन लड़का लोगन के बारे में कुछ नहीं बताती हम किसके खिलाफ कार्रवाई करेंगे ? क्या कार्रवाई करेंगे ? अब पुलिस कोई जादूगर तो होती नहीं कि मंतर पढ़ा और पलक झपकते ही मुजरिम के गिरेबान तक पहुँच गए।"
कहने के बाद कुछ देर के लिए वह रुका। तभी एक किशोर हाथों में एक लोटा और कुछ गिलास लिए बाहर आया। गिलास दरोगा विजय की तरफ बढ़ाते हुए उसने बड़े अदब से उससे पूछा, "साहब चाय लीजियेगा न ?"
उसने गिलास थामते हुए कहा, "हाँ, ठंडी बढ़ रही है ऐसे में चाय बहुत अच्छा लगेगा।"
उस किशोर ने उसकी गिलास चाय से भर दिया और खाली गिलास लेकर दोनों सिपाहियों की तरफ बढ़ गया जो कुछ हटकर खड़े थे।
चाय की चुस्कियां लेते हुए दरोगा ने चौधरी से मुखातिब होकर अपना प्रवचन जारी रखा, "चाचा, आप चिंता न करो। वो दरिंदे बचकर नहीं जा सकते। हम अपनी जान लड़ा देंगे। पूरी कोशिश करेंगे। बस आप हमारा ख्याल रखना ....!"
कहने के बाद उठते हुए वह बोला जैसे अनायास उसे कुछ याद आ गया हो ,"और हाँ, सुबह लड़की को लेकर थाने आ जाना। वहाँ उसका अँगूठा लगाकर हम एक कागज देंगे। ले जाकर सरकारी अस्पताल से लड़की का चेकअप करवा लेना। तभी न अपना केस मजबूत बनेगा ? अब हम लोग जाना चाहेंगे। जरा उन दरिंदों की भी खोजखबर लें। आप चिंता नहीं करना वो कहीं भी हों हम उन्हें खोज निकालेंगे।" कहकर वह जाने को उद्यत हुआ कि तभी वह युवा आगे बढ़ा जो बिरजू के साथ थाने के अंदर गया था, "साहब, एक काम तो रह ही गया। आप कहे थे कि मौके पर जाकर हमको मुआयना करना होगा , लेकिन आप तो मौके पर गए ही नहीं।"
नागवारी के भाव उभर आये थे दरोगा विजय के चेहरे पर। सख्त स्वर में बोला, "कह तो तुम सही रहे हो बाबू लेकिन ये बताओ, कि दरोगा हम हैं कि तुम ? तुम नहीं हो न ? तो ई अपना ज्ञान अपने पास रखो, समझे ?"
और सिपाहियों से मुखातिब होते हुए बोला, "चलिए मिसरा जी, यादव जी।"
"जी साहब !" कहते हुए दोनों सिपाही दरोगा विजय के पीछे बढ़ गए।
इस बीच बिरजू घर में जाकर अपनी माँ से एक हजार रुपये माँग लाया था।
एकांत पाकर उसने सिपाही को चुपके से वह रुपये थमा दिए थे। उन्हें जीप के पास छोड़कर घर वापस आते हुए बिरजू के मन में यह इत्मीनान था कि अब उसकी बहन को इंसाफ अवश्य मिलेगा।
क्रमशः