तड़प इश्क की - 16 Miss Thinker द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तड़प इश्क की - 16

अब आगे.............

एकांक्षी उस पंख को देखकर काफी परेशान हो जाती और फिर इधर उधर नजर घुमाते हुए देखने लगती है फिर तभी खिड़की के पास पहुंचकर झांकती फिर वहां से बालकनी में जाकर खड़ी हो जाती है और चारों तरफ देखने लगती है बालकनी से झांकते हुए उसे सुनसान सड़कों के अलावा कुछ नहीं दिखाई देता , , तेज तेज चली रही हवा बार बार एकांक्षी को छू कर चली जाती , , करीब रात के ग्यारह बज चुके थे और एकांक्षी अब भी बैचेन निगाहों से बाहर देखते हुए सुनसान राहों को देख रही थी उसकी आंखों से नींद जैसे कोसों दूर हो चुकी थी बस वो किसी के आने का इंतजार कर रही थी.....

एकांक्षी थोड़ी देर बाद ही वापस अपने रूम मे आकर बालकनी का डोर बंद करके अपने बेड पर आकर लेट जाती है , , उधर अधिराज एकांक्षी को किस करने के बाद अपने पक्षिलोक में चला गया था जोकि थोड़ी ही देर बाद वापस लौट आता है और आकर एकांक्षी के रुम की विंडो पर बैठ जाता है....

उसकी नज़र एकांक्षी पर पड़ती है जो कि बहुत गहरी नींद में सो चुकी थी , जिससे अधिराज तुरंत अंदर आकर अपने रूप में आ जाता है......

अधिराज एकांक्षी के चेहरे को देखकर मुस्कुराते हुए उसके पास बैठकर उसे प्यार से निहारते हुए कहता है....." तुम्हें हमें बहुत सुरक्षित रखना पड़ेगा , अभी हमें चैन था क्योंकि प्रक्षिरोध तुम्हारे पुर्नजन्म से अनजान था किंतु बहुत जल्द उसे तुम्हारे आने की सुचना मिली जाएगी , , हम चाह कर भी उस मणि को तुमसे दूर नहीं कर सकते बस तुम अब जल्दी से हमारे प्रेम को स्वीकार कर लो , उसके बाद हम तुम्हें किसी को भी हाथ नहीं लगाने देंगे , , , तुम सिर्फ अधिराज की हो एकांक्षी , , कल की सुबह हम तुम्हारे जीवन में दस्तक देंगे , बस तुम इस दिव्य जल को पी लो फिर हम तुम्हें छू सकते हैं , हम तुम्हें यूं सिर्फ रात में ही नहीं पाना चाहते हर पल तुम्हें पाना चाहते हैं , ,

अधिराज उस छोटी सी बोतल से वो पानी एकांक्षी को पिलाने लगता है , , दिव्य जल को पीने के बाद एकांक्षी के दिल से एक सफेद रोशनी निकलती है और वो रोशनी धीरे धीरे एक बौने का रूप ले लेती है......

अधिराज उसे देखकर तुरंत हाथ जोड़कर उसे प्रणाम करते हुए कहता है...." प्रेषक जी ! हम भावी पक्षिलोक के राजा अधिराज आपको प्रणाम करते हैं , , !

" पक्षिराज आखिर आप इन तक पहुंच ही गए..." उस प्रेषक ने कहा....

" प्रेषक जी ! हम अब अपनी प्रेमिका की सुरक्षा कर सकते हैं किंतु प्रेषक जी हमें एक बात समझ नहीं आई....जब आप इनकी सुरक्षा कर रहे थे तो उसने इन्हें छूने का दुस्साहस कैसे किया...."

" हमने इनकी सुरक्षा की है किन्तु आपके स्पर्श से हमें आभास हो चुका था आप इन्हें बचाने के लिए यहां मौजूद हैं , ,, जब आप इनकी सुरक्षा करेंगे , तब हम इनकी शक्तियों को को उजागर नहीं होने दे सकते ...."

अधिराज आगे कहता है...." प्रेषक जी ! हम अपनी प्रेमिका के समक्ष आ जाएंगे , कल इससे इन्हें तो कोई नुक़सान नहीं पहुंचेगा...."

प्रेषक मुस्कुराते हुए कहता है....." पक्षिराज आप भुल रहे जीवंतमणि रक्षिका ने अपने अंतिम चरण में क्या प्रतिज्ञा की थी....."

" नहीं प्रेषक जी हमें ज्ञात है.... वैदेही हमारे स्वांग को न जान पाई और उन्होंने अपने प्राण हम पर न्योछावर कर दिया..अब हम अपने इस खोये हुए प्रेम को दोबारा हासिल करना चाहते हैं...."

प्रेषक उसे समझाते हुए कहता है....." पक्षिराज एक बात स्मरण रखियेगा आप इन्हें बल पूर्वक कुछ भी स्मरण नहीं करा सकते अन्यथा इनके अंदर इनकी उत्तेजना जीवंतमणि जागृत कर देगी , जिससे इनके अस्तित्व पर को खतरा हो जाएगा..."

" हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे...."

" ठीक है आप अब इनको स्मरण करा सकते हैं , , " इतना कहकर वो बौना वापस से एकांक्षी के अंदर समा जाता है और अधिराज वहीं सिरहाने बैठकर उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर कहता है...." एकांक्षी हमें आज्ञा मिल चुकी है बस अब हमारे और आपके मिलन की राह में कोई नहीं आ सकता ....." अधिराज एकांक्षी के हाथ को चूमकर , फिर धीरे से उसके माथे पर किस करता हुआ वहां से चला जाता है.....

सूरज की लालिमा फैलने लगी थी और सब तरफ पक्षियों की चहचहाहट से वातावरण गूंज उठा था , अधिराज वापस एकांक्षी के रूम में आता है , और एकांक्षी के कानों के कानों के पास आकर धीरे से कहता है....." वैदेही , उठ जाइए हम आपस मिलने आए हैं...." और फिर एक प्यारी सी किस उसके गालों पर करता है... जिससे एकांक्षी सिहर जाती है और चौंकते हुए उठती है...

" कौन है...?...कौन हो तुम सामने क्यूं नहीं आते...?..." एकांक्षी परेशान सी इधर उधर देखने लगती है, , फिर अपने गाल पर हाथ रखती है तो उसे एहसास होता है, ये कोई सपना नहीं था जरूर कोई उसके आसपास था .....

एकांक्षी तुरंत उठकर बालकनी की तरफ जाती है , , जहां उसे ग्रील पर उस छोटी चिड़िया के अलावा कोई नहीं दिखता , ,

एक गहरी सांस लेते हुए वो वापस अंदर आती है तो उसका ध्यान अपने सिरहाने रखें उस पंख पर जाता है जो कि कल रात को उसे मिला था , , ,

एकांक्षी उस पंख को उठाकर गौर से देखते हुए कहती हैं...." मुझे ये पंख कुछ अजीब सा लग रहा है...." एकांक्षी उस पंख को बिल्कुल गौर से देख ही रही थी तभी सावित्री जी की आवाज सुनकर एकांक्षी हड़बड़ा जाती है और वो पंख उसके आंखों को छू जाता है ....

उस पंख के एकांक्षी की आंखों को छूते ही उसके सामने अचानक अंधेरा छा जाता है, , और कुछ फ्लैशबैक होने लगता है , , एकांक्षी अपने आप संभाले में नाकामयाब होने लगती है और अपने सिर को पकड़कर वहीं गिरने लगती है.......




.............to be continued........

एकांक्षी के शरीर में समाए उस बौने का क्या राज है...?..

क्यूं अधिराज को उससे परमिशन लेनी पड़ी...?..

एकांक्षी का उस पंख को आंखों से लगने से ऐसा क्या दिखने लगा....?....

इन सब सवालों के जवाब जानने के लिए जुड़े रहिए कहानी से.....