अगले दिन सारे न्यूज चैनल शहर में फैली दहशत को और फैलाने का काम कर रहे थे। वो येन-केन-प्रकारेण अपनी टी.आर.पी. बढा़ने में लगे थे। सब समाचारों में उस गुमनाम बेरहम कातिल की चर्चा जोरों पर थी। बोट में जो सामान मिला था वो साफ-साफ इंगित कर रहा था कि ये कोई बहुत बड़े ड्रगलोर्ड का माल है। इतने बड़े गैंगस्टर के आदमियों को इतनी बेरहमी से किसने काट डाला, इसके कयास लगाए जा रहे थे। शहर के लोगों में भी कौतुहल का माहौल बन गया था।
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निशा को काम करते-करते बहुत देर हो गयी थी। वो बीच-बीच में राहुल को फोन भी कर रही थी पर वो कॉल उठा नहीं रहा था। निशा को चिंता हो रही थी वो पियूष को कोस भी रही थी साथ-साथ। चिंता जब बर्दाश्त से बाहर होने लगी तो उसने 'जो होगा देखा जायेगा' के सिद्धांत पर घर जाने की सोची। रात काफी गहरा गयी थी। निशा वैसे भी डरपोक थी, ऊपर से रात का अँधेरा, सड़कें सुनसान, अंदर से रोवांशी हो रही थी। पता नहीं घर पहुंँचेगी भी या नहीं। बुरे-बुरे विचार मन में आ रहे थे। इधर राहुल की चिंता, इधर खुद के घर पहुँचने की चिंता। आजकल वक्त भी कितना ख़राब चल रहा है। लड़कियां वैसे भी सुरक्षित कभी थी ही नहीं। उसके पर्स में रखे चाकू पर उसकी पकड़ मजबूत हो गयी। चलाने की हिम्मत तो उसमें थी नहीं पर अगर उसकी मान मर्यादा को कोई खतरा हुआ तो वो अपनी जान तो दे ही देगी।
विचार मन से जा न रहे थे और रास्ता था कि लम्बा ही होता जा रहा था। अचानक निशा की घबराहट छूमंतर हो गयी उसकी जगह अचरज ने ले ली 'इतनी रात को ये पियूष छुप छुपकर कम्बल ओढ़े कहाँ जा रहा है। हाँ, उसे पहचान ने में कोई गलती नहीं हुई, वो वही खडूस था। अजीब पागल आदमी है इतनी गर्मी में कौन कम्बल ओढ़ता है। क्या करूँ पीछा करूँ?? पर राहुल अकेला है फोन भी नहीं उठा रहा.....देखूं तो सही कि ये कहाँ जा रहा है??
पियूष चलते चलते बार-बार सावधानी भी रख रहा था कि कोई उसे देख तो नहीं रहा। उसकी हरकतें संदिग्ध थी। निशा भी उसका पूरी सावधानी से पीछा कर रही थी। उसे ये भी याद न रहा कि रात गहराई हुई है और सड़क सुनसान है, ऊपर से उसका भाई बीमार है और अकेला भी..
चलते-चलते वो लोग समुन्द्र किनारे आ गए। अचानक पियूष ने कपडे़ उतारे (पेन्ट छोड़कर) और पानी में कूद गया। उसको काफी देर हुई तो निशा को अचानक याद आया कि अब उसे घर जाना चाहिए, वैसे भी अब उसका घर एकदम पास आ गया था। वो खुद पर हंसी कि वो चलते-चलते कब घर के पास आ गयी उसे पता ही न चला।
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सुबह लंच बॉक्स तैयार करते हुए उसका ध्यान न्यूज पर गया तो उसके हाथ से बॉक्स छूट गया। उसमें बताया जा रहा था कि कैसे किसी ने समुंद्री किनारे पर एक आदमी को काट डाला था और उस से पहले बोट में भी कइयों को बेरहमी से काटा गया था। बोट वालों को डॉक्टर्स के अनुसार मरे हुए अपेक्षाकृत अधिक समय हुआ था। उनको किसी बड़े फल वाले धारदार हथियार से एक ही वार में काटा गया था। बोट के अंदर गोलियां भी चली थी। वहांँ पड़ी गन्स के अनुसार वहां 70-80 राउंड्स फायर हुए थे और काला लिजलिजा सा गाढ़ा द्रव भी मिला था, जो पता नहीं क्या था??
ओटोमेटिक हथियार होते हुए भी किसी ने ड्रग्स माफिया के लोगों को किसी धारदार हथियार से मारा था ये पुलिस को समझ में ना आ रहा था। जगह के बारे में सुनते ही निशा की बड़ी-बड़ी आँखें सिकुड़ गयी। क्यूंँकि जो वक्त और जगह बताई जा रही थी वहाँ वो थी और साथ ही था.......पियूष!!!!!!!!!
'तो क्या पियूष का इस से कोई सम्बन्ध है??? वो चोरी छुपे समुन्द्र में क्यों गया ?? निशा झुंझलाने लगी कि वो इतना क्यों सोचती रहती है?? 'पियूष जैसा औरतखोरा(womeniser) इतने लोगों को, वो भी गन्स लिए हुओं को कैसे मार सकता है? वो महज एक संयोग ही होगा। वैसे भी अगर वो इन सब में फंसी तो उसकी जॉब जाएगी जो वो अफोर्ड नहीं कर सकती।आज वैसे भी उसे फाइल कम्पलीट करने जल्दी जाना है।' ये सोचकर वो फटाफट हाथ चलाने लगी।
To be continued....