Andhera Kona - 12 books and stories free download online pdf in Hindi अंधेरा कोना - 12 - मौत का सफर (3) 2.2k 5.1k 2 मैं करन, मैं मुंबई मे मेरे माता पिता के साथ रहता हूं, मेरे पिता गवर्नमेंट स्कूल में टीचर है और मेरी माँ हाऊस वाइफ l मैं मुंबई की एक कोलेज से Aeronautical Engineering मे M. Tech कर रहा हू l उन दिनों छुट्टियों मे मैं मेरे गाँव गया हुआ था, जहा मेरा बाकी का परिवार रहता था, मेरे बाकी के परिवार में दादा दादी और चाचा चाची और मेरा कझीन भाई है l मेरी छुट्टियां पूरी होने वाली थी इसलिए मुजे अब मुंबई जाना था, मैं गुरुवार शाम को निकलने वाला था, मेरी दादी ने मेरे लिए पराठे बनाए थे और मेरी चाची ने सब्जी बनाई थी, मुजे बचपन से मेरे दादी के हाथ के पराठे बहुत पसंद है इसलिए उन्होंने अच्छा खासा खाना दिया था l दरअसल मेरा परिवार बहुत बड़ा था, मेरे दादाजी के बड़े भाइयो और उनके परिवार को मिलने के बाद मैं वहां से निकला था l रात को 9.30 बजे की ट्रेन थी,रास्ते मे मैंने देखा कि हमारे गांव मे एक और रेल्वे स्टेशन है जिसका बोर्ड मुजे रास्ते में दिखा, मुजे खयाल आया कि दादा या चाचा ने इस स्टेशन के बारे में कभी बताया नहीं l वो स्टेशन गांव के अंत में था, मैं स्टेशन गया, वहां बिल्कुल सन्नाटा था सिर्फ 7-9 लोग ही थे उधर लेकिन ये बहुत ही अजीब लोग थे, एक शख्स ने गर्मी मे स्वेटर पहन रखा था, एक शख्स छाता खोलकर खड़ा था l मैंने 130 rs देकर टिकट लिया और ट्रेन वही पर खड़ी थी तो मैं चढ़ गया क्युकी मुजे खाना भी खाना था सीट ढूंढ़कर मैं बैठा और मैंने टिफिन खोला और खाने लगा l खाना खाने के बाद मुजे नींद आ रही थी इसलिए मुजे सोना था, मैं उस बर्थ पर लेटकर सोने की कोशिश करने लगा, लेकिन मुजे नींद नहीं आई, उस डब्बे मे अबतक मेरे सिवा और कोई मुसाफिर नहीं था मैं खड़ा होकर दूसरे डब्बे मे गया उधर कुछ लोग थे l 10.00 बजे का वक़्त था ट्रेन अब चलना शुरू हुई थी, ट्रेन ने स्टेशन छोड़ दिया था और अब दौड़ने लगी थी, मैं दरवाजे पर खड़ा होकर सब देख रहा था l अचानक मैंने देखा कि ट्रेन ने मोड़ लिया और उस आगे के मोड़ पर पटरी पर 40-50 जितने लोग सोए थे सुसाइड करने के लिए और ट्रेन रुक भी नहीं रही थी, मैं भागकर अंदर गया और चेन खिंचने लगा लेकिन ट्रेन रुकी ही नहीं, और उन जिंदा लोगों के उपर से ट्रेन पास हो गई l मेरे पसीने छूट गए मैं पीछे देख रहा था वो लोगों की लाश के टुकड़े कर ट्रेन आगे बढ़ गई थी l आगे एक. स्टेशन यहा ट्रेन रुकी वहां मैंने देखा कि कुछ लोग झगड़ा कर रहे थे, अचानक से वहां कई सारे लोग आ गए और उनके हाथ मे पेट्रोल से भरी बोतलें थी, उन्होंने वो बोतलें हमारी ट्रेन पर फेंकी और आग लगा दी, 2-3 डब्बे जलने लगे, कुछ लोगों की बोतल मे तेजाब था वो लोग मेरे डब्बे की ओर आ रहे थे उन्होंने मेरे उपर तेजाब फेंका, मेरा चेहरे पर जलन होने लगी l ये सब इतनी जल्दी हो गया कि मुजे भागने का मौका तक नहीं मिला, मैंने अब पुलिस और एम्बुलेंस का नंबर डायल किया लेकिन उन्हें नंबर नहीं लगा l ट्रेन फिर से चलने लगी, मेरे चेहरे पर तेजाब कम प़डा था लेकिन मुजे जलन हो रही थी आखिरकार है तो तेजाब ही!! ट्रेन से उतर भी नहीं सकता था, क्युकी कोई स्टेशन भी अब तो नहीं आ रहा था, मुजे रोना आ रहा था कि कहां मैं फस गया इस ट्रेन में, दादाजी ने मना किया था कि गाँव से बाहर- दूर मत जाना, मेरी ही गलती थी कि मैं उस स्टेशन गया, मुजे पक्का भरोसा हो गया था कि ये एक हॉन्टेड ट्रेन है l मेरा मन भटक रहा था, मुजे ट्रेन में से कूद जाने के खयाल आ रहे थे l मैं बैठकर ये सब सोचे जा रहा था कि अचानक एक बहोत ही बड़ा धमाका हुआ, वो एक बॉम्ब ब्लास्ट था जिसमें मेरे शरीर के साथ पूरी ट्रेन उड़ गई, मेरी लाश तक नहीं मिल पाई किसी को एसी हालत हो गई थी, ये सब रात के वक़्त हुआ था l अब आपको लग रहा होगा कि कहानी खत्म हुई, उस बॉम्ब ब्लास्ट मे मेरी मौत हो गई है और आपसे मेरी यानी करन की भटकती आत्मा बात कर रही है लेकिन ऐसा नहीं है मैं अभी मरा नहीं हू, बॉम्ब ब्लास्ट भी हुआ था और मेरे उपर तेजाब भी गिरा था लेकिन मैं मरा नहीं हू, आगे सुनिए ; अब वक़्त है सुबह का, मेरे गांव का वही स्टेशन और वही ट्रेन और वही डब्बा जिसमें मैं पूरी रात सोया था l मेरी आंखे खुली और मैंने खुदको उसी डब्बे मे जिंदा पाया, मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, मैं जल्दी से समान लेकर, भागकर ट्रेन से बाहर निकला वो ट्रेन मेरे उसी गांव के स्टेशन पर रुकी हुई थी जहा से मैं बैठा था, और ये स्टेशन अब काफी अलग था, यहा कोई भी इंसान नहीं था अरे इंसान तो क्या परिंदा भी नहीं था इधर, यहा की दीवारें आधी गिरी हुई थी, दरवाजे को कीड़ों ने खा लिया था, मैं सोच रहा था कि अगर ये सपना था तो फिर मैंने टिकट कहा से ली? और वो कौन था जिससे मैंने टिकट ली l मैं टिकट बारी पे गया तो उधर कोई नहीं था, अचानक एक अफसर जैसे दिखने वाले शख्स की नजर मेरे पर पडी, वो रेल्वे का कोई ऑफिसर था मेरे पास आकार मुजे कहने लगा, ऑफिसर : तुम कौन हो? यहां क्या कर रहे थे? मैं : जी, मैं - मैं!!... ऑफिसर : मैं क्या? यहा गैरकानूनी काम तो नहीं कर रहे हों ना? जल्दी बताओ l मैं : जी नहीं.. मेरे साथ.. ऑफिसर : पहले यहा से बाहर निकलो, चलो, स्टेशन पर रुकना खतरे से खाली नहीं है l हम दोनों बाहर गए और मैंने उसे सारी बात बताई, ये सुनकर उन्होंने कहा, ऑफिसर : ओह!! बहुत बुरा हुआ तुम्हारे साथ, लेकिन अच्छा हुआ कि तुम बच गए क्युकी ये पूरा स्टेशन ही हॉन्टेड है, 1947 की साल मे भारत - पाकिस्तान के पार्टिशन के दौरान इस स्टेशन और इस ट्रेन मे कई हादसे हुए जैसे कि तेजाब का हमला, लोगों का ट्रेन के नीचे आ कर सुसाइड करना, बम विस्फोट तब से ये स्टेशन हॉन्टेड प्लेस है l यहा कोई आता जाता नहीं है और ना ही यहा कोई ट्रेन रुकती है और ना ही यहा से गुज़रती है l तुम्हें ये स्टेशन कहा दिखा? मैं : मैंने बोर्ड देखा था l ऑफिसर : हम्म, यही गलती कर दी तुमने, उस बोर्ड वाले रास्ते पर जाना ही नहीं चाहिए था तुम्हें l मैं इस स्टेशन मे दिन मे निगरानी के लिए आता हू, मैं चेक करता हू कि इस बंद पडे स्टेशन मे कोई गैरकानूनी काम तो नहीं हो रहे हैं और सिर्फ देखकर ही चला जाता हूँ l वे मुजे स्टेशन से आगे तक छोड़ने आए, उनका आभार मानकर मैं उधर से सीधे मेरे दादा के घर वापस लौट गया, घरवाले मुजे देखकर चौंक उठे, उन्हें मैंने सारी बात बताई l वे सब घबरा गए, उसी दिन रात को मुजे मेरे चाचा हमारे गांव के मुख्य या यू कहू कि असली स्टेशन छोड़ने आए l मुजे अब तक एक बात दिमाग में चल रही थी कि अगर स्टेशन हॉन्टेड था तो वो 130 rs गए कहा? स्टेशन मे ये सब सोचते हुए मैं आगे जा रहा था कि मेरे सामने से आते हुए एक शख्स से मे टकरा गया, वो टकराकर आगे चला गया, मैं : ओ भाई, जरा देखकर - मेरा वाक्य अधूरा ही रह गया, मैंने मुड़कर देखा तो वहा कोई नहीं था, मैंने ट्रेन पकडी, ट्रेन मे कई मुसाफिर थे सीट पर जैसे ही मैं बैठा की मेरी जेब में कुछ सिक्कों की आवाज आई, मैंने कोई पैसे शर्ट की जेब में नहीं रखे थे, मैंने देखा तो वो 130 rs थे!!! ‹ पिछला प्रकरणअंधेरा कोना - 11 - साये का साया › अगला प्रकरणअंधेरा कोना - 13 - ऑफिस की लिफ्ट Download Our App अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ फॉलो उपन्यास Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ द्वारा हिंदी डरावनी कहानी कुल प्रकरण : 20 शेयर करे आपको पसंद आएंगी अंधेरा कोना - 1 द्वारा Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ अंधेरा कोना - 2 - अनजान मुसाफिर द्वारा Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ अंधेरा कोना - 3 - आखिरी साहस द्वारा Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ अंधेरा कोना - 4 - अनोखा प्रेम द्वारा Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ अंधेरा कोना - 5 - अंधेरी मौत द्वारा Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ अंधेरा कोना - 6 - अजीब घर द्वारा Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ अंधेरा कोना - 7 - भाड़े का घर द्वारा Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ अंधेरा कोना - 8 - भूतीया कॉन्फ्रेंस (सपने 2) द्वारा Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ अंधेरा कोना - 9 - डरावनी लाइंस - 19 in 1 द्वारा Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ अंधेरा कोना - 10 - अनंत का रास्ता द्वारा Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ NEW REALESED Love Stories पागल - भाग 25 कामिनी त्रिवेदी Love Stories द मिस्ड कॉल - 5 vinayak sharma Horror Stories द्रोहकाल जाग उठा शैतान - 35 Jaydeep Jhomte Moral Stories उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti Adventure Stories एक गाँव की कहानी दिनेश कुमार कीर Moral Stories हरसिंगार Bharati babbar Fiction Stories अमावस्या में खिला चाँद - 2 Lajpat Rai Garg Love Stories मेरे हमदम मेरे दोस्त - भाग 2 Kripa Dhaani Fiction Stories तू ही है आशिकी - भाग 2 Vijay Sanga Classic Stories अभागा... - अध्याय 1 Akassh Yadav Dev