अपहरण - अंतिम भाग Ratna Pandey द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अपहरण - अंतिम भाग

धीरे-धीरे समय व्यतीत होता रहा। रंजन में बहुत बदलाव आ गया। वह अब पहले जैसा बिल्कुल नहीं रहा। इस बात को तीन माह गुज़र गए। दो दिनों के बाद रक्षा बंधन का त्यौहार था। हर वर्ष रक्षा बंधन के एक दिन पहले मिताली हाथों में मेहंदी लगाती। अपने लिए नए कपड़े खरीद कर लाती और अपने भाई के लिए राखी, मिठाई खरीद कर लाती थी। लेकिन इस वर्ष वह घर से बाहर तक नहीं निकली।

आज शाम हो गई रंजन सोच रहा था क्या मिताली उसे राखी नहीं बाँधेगी? उसे इतनी बड़ी सज़ा देगी? आज रंजन को पिछले तीन माह का सीने में छुपा कर रखा हुआ वह दर्द अपने अंदर समेट कर रखना असंभव सा लग रहा था। शाम को अपना कमरा बंद करके रंजन ख़ूब रोया। उसके सिसकने की आवाज़ मिताली के कानों तक भी आ रही थी। फिर भी मिताली का मन नहीं पिघला। अपना दर्द आँसुओं में बहा कर रंजन उठा, बाज़ार गया और मिताली के लिए कपड़े, मिठाई और राखी सब लेकर आया। 

रात को वह मिताली के कमरे में गया। अपने भाई को आता देख मिताली ने जानबूझकर आँखें बंद कर लीं। मिताली के सर पर हाथ फिराते हुए उसकी आँख के आँसू मिताली की बंद आँखों की पलकों पर गिर पड़े। मिताली भी इस दर्द को अपने सीने में छिपाए हुए थी कि कल राखी है और वह अपने भाई को राखी बाँधने  के लिए तैयार नहीं है। लेकिन मिताली की पलकों पर गिरा हुआ आँसू उसके दिल पर दस्तक दे गया। उसका मन कहने लगा माफ़ कर दे अपने भाई को। माना ग़लती माफ़ी के काबिल नहीं लेकिन उसे अपनी ग़लती का एहसास हो रहा है। वह पश्चाताप कर रहा है।  नाराज़ी इतनी भी नहीं दिखाना चाहिए कि सामने वाला टूट जाए और कोई ग़लत कदम उठा ले। इतना सोचते ही मिताली ने आँखें खोलीं और उठ कर बैठ गई। उसके उठते ही रंजन उसके गले लग कर फफक-फफक कर रो पड़ा।

रोते-रोते ही उसने कहा, "मिताली बहना माफ़ कर दे मुझे। मुझसे ग़लती तो हुई है लेकिन अब ना कभी कोई ग़लती होगी और ना ही मैं अपने सामने किसी भी लड़की का अपमान होने दूँगा। यह मैं तुझे वचन देता हूँ कि मैं सिर्फ़ तेरी ही रक्षा नहीं, गाँव की हर लड़की की रक्षा करूँगा। यह मेरा अपनी बहन से वादा है।" 

मिताली भी उसके गले लग कर रो रही थी। यह मिलन था दो भाई-बहनों का, तभी उनके माता-पिता भी वहाँ आ गए। यह दृश्य इतना संवेदनशील, इतना दर्द भरा, प्यार भरा था कि उनकी आँखों से भी जल धारा बह निकली।

तभी मिताली की नज़र पास में रखे हुए नए कपड़े और राखी पर पड़ी। उसने पूछा, "भैया इतनी सारी राखी किसके लिए हैं?"

तब रंजन ने कहा, "मिताली यह राखियाँ उनके लिए हैं, जिन्हें मैंने कष्ट पहुँचाया है। अब उनसे राखी बँधवा कर मैं उन्हें भी उनकी रक्षा का वचन दूँगा। क्या तुम मेरी मदद करोगी?" 

"क्यों नहीं भैया?"

दूसरे दिन पुराने मुखिया अभिनंदन जी के घर धूमधाम से राखी का त्यौहार मनाया गया। आज रंजन का पूरा हाथ राखियों से भरा हुआ था।

मिताली ने कहा, "भैया सुबह का भूला अगर शाम को घर वापस लौट आए और वादा कर ले कि अब वह राह से कभी नहीं भटकेगा तो वह पूरे परिवार के लिए बहुत ही ख़ुशी के पल होते हैं।"

उसके बाद चंदनपुर में फिर से वही पुरानी ख़ुशियाँ लौट आईं, जो कहीं खो गई थीं।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

समाप्त