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अपहरण - भाग ९

अभिनंदन ने इन चारों दोस्तों के समक्ष माफ़ी मांगते हुए कहा, " बेटा मैं वह पल, वह लम्हें, जो तुम्हारी बहनों ने कष्ट के अनुभव में झेलें हैं, वह वापस तो नहीं कर सकता लेकिन यह वादा अवश्य करता हूँ कि आज के बाद गाँव की हर लड़की गाँव में आज़ादी से घूम सकेगी। मेरे बेटे को उसके गुनाहों की सज़ा ज़रूर मिलेगी। बस मैं तुम सभी से माफ़ी माँगना चाहता हूँ।"

रमेश ने कहा, "अंकल आप ऐसा मत कहिए प्लीज़। अंकल हमें रंजन से कोई जाती दुश्मनी नहीं है। हमें तो केवल इतना ही चाहिए कि हमारे गाँव की सभी बहनें किसी भी तरह से खौफ़ में ना जिएं। उसके दोस्तों को भी समझा दें।"

अभिनंदन कुछ और कहे इसके बीच में ही वीर प्रताप ने रमेश से पूछा, "रमेश आख़िर वह बूढ़ी अम्मा कौन थी? जिसने मुझे फ़ोन किया और इस काम में तुम्हारा साथ दिया।"

मिताली ने कहा, " मैं भी यह जानना चाहती हूँ। मैंने तो उनसे पूछा भी था किंतु उन्होंने कुछ बताया ही नहीं।"

रमेश ने कहा, "वीर प्रताप अंकल वह मेरी दादी हैं। जिस सुबह मुझे यह युक्ति सूझी तब मैं सबसे पहले उन्हीं के पास गया और उन्हें योजना बताई। तब दादी ने कहा, बेटा इस तरह जवान लड़की को अगवा करना ठीक नहीं है। कितनी बदनामी होगी उसकी और तुम सब भी मुश्किल में फँस जाओगे। भले ही तुम्हारी मंशा ग़लत नहीं है लेकिन यदि मैं तुम्हारे साथ रहूँगी तो मिताली और तुम सब के लिए ही यह ठीक रहेगा इसलिए उन्होंने हमारा साथ दिया।"  

मिताली ने पूछा, "…और वह झोपड़ी "

तब रमेश ने कहा, " वह तो हमने ही झाड़ियों के बीच बनाई थी।"

घर में आँसू बहाता रंजन हिम्मत जुटा रहा था कि वह मिताली का सामना कर सके। कुछ ही देर में वह अपने चारों दोस्तों के साथ वीर प्रताप के घर पहुँच गया। अभिनंदन ने उसे देखते ही कहा, "तुम्हें अपना बेटा कहने में मुझे शर्म आ रही है, क्यों आए हो यहाँ?"  

"पापा मुझे माफ़ कर दीजिए। हम आप सभी से माफ़ी माँगने आए हैं। हमसे बहुत बड़ी ग़लती हुई है। हम हर तरह की सज़ा भुगतने के लिए तैयार हैं।"

वह पाँचों घुटनों के बल बैठ कर दोनों हाथ जोड़कर माफ़ी माँग रहे थे। उसी बीच रंजन की आँखें मिताली से जा मिलीं जिसकी आँखें रो-रोकर लाल हो चुकी थीं मानो उसकी आँखों में सचमुच खून उतर आया हो और वह खून के आँसू रो रही हो। उसकी आँखों में रंजन को नफ़रत साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थी। जिसे रंजन महसूस कर रहा था और यह सज़ा उसे सबसे बड़ी सज़ा लग रही थी। जिन आँखों में उसके लिए केवल प्यार ही प्यार होता था उन आँखों में नफ़रत देखकर उसका सीना छलनी हो रहा था।

मिताली सोच रही थी कि काश उसका भाई भी उन चारों की तरह होता, उनके साथ वह पांचवाँ होता। रंजन की आँखें मिताली के समक्ष मानो गिड़गिड़ा रही थीं कि मुझे माफ़ कर दो लेकिन मिताली ने अपनी आँखें दूसरी तरफ फेर लीं। 

उसने कहा, "भैया यह तो मेरी क़िस्मत अच्छी थी जो यह लड़के इतने शरीफ़ हैं, स्त्री की इज़्जत करना जानते हैं। यदि आपकी तरह होते तो आज मैं किसी को मुँह दिखाने के काबिल नहीं होती। शायद मैं यह दुनिया ही छोड़ कर चली जाती। मैं तुम्हें कभी माफ़ नहीं करूंगी।" 

इसके बाद अभिनंदन अपने घर लौट गए। रंजन भी घर तो पहुँच गया किंतु अब घर में उसे वह मान सम्मान, प्यार नहीं मिल रहा था जो बचपन से आज तक मिलता आया था ।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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