अपहरण - भाग ४   Ratna Pandey द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अपहरण - भाग ४  

रमेश ने समझाते हुए कहा, "अशोक हम कोई गुंडे नहीं हैं। हमारे लिए हर लड़की, हर नारी, इज़्जत की पात्र है। हम उसे अगवा ज़रूर करेंगे लेकिन कुछ और नहीं। हम उसके साथ बहुत ही इज़्जत से पेश आएँगे, जैसे हमें आना भी चाहिए। हम उसे अपनी बहनों की परेशानी और उसके भाई की हरकतों के विषय में बताएंगे। एक नारी होने के कारण वह हमारी बहनों, गाँव की सारी लड़कियों की तकलीफ़ ज़रूर समझेगी और हमारा बचाव भी करेगी।" 

"रमेश तुझे लगता है, यह सब इतना आसान है?" 

"अपनी बहनों की रक्षा के लिए, उनकी सलामती के लिए, यदि यह काम कठिन चुनौती भरा हो तो भी हमें करना चाहिए। बोलो क्या बोलते हो?"

"हम सब तैयार हैं।"

"ठीक है फिर अब उस मौके की तलाश में रहो जब वह घर से अकेली निकले और ज़्यादा कोई उसके आसपास ना हो। अपने-अपने चेहरे को नकाब से ढक लेना। मेरा एक दोस्त है शहर में, मैं उसकी कार मांग लूँगा। नंबर प्लेट को हम निकाल देंगे ताकि किसी को कार के बारे में कुछ भी पता ना चल पाए।"

दो दिन के इंतज़ार के बाद शाम को छः बजे अशोक का फ़ोन आया, "हेलो रमेश सुन, रंजन की बहन मिताली अभी-अभी अपने घर से निकली है। उसके घर के आगे जो पतली गली है, वहाँ से हम उसे उठा सकते हैं।" 

"ठीक है हम तीनों वहां पहुँच रहे हैं, तू नुक्कड़ पर हमें मिल। तेरे लिए भी मैं नकाब रख लूँगा।"

"ठीक है।"

रमेश ने कार तैयार रखी थी। वह मयंक और राहुल के साथ निकला और नुक्कड़ से उसने अशोक को भी बिठा लिया। जैसे ही मिताली गली से बाहर निकली, वैसे ही कार का दरवाज़ा खोलकर उसे राहुल ने कार में खींच लिया। वह कुछ भी करे, शोर मचाए, कुछ समझ पाए, तब तक राहुल ने उसका मुँह दबा दिया ताकि वह शोर ना मचा सके। मिताली बहुत घबरा गई थी, वह पूरी शक्ति से पूरा जोर लगा कर छूटने की कोशिश कर रही थी। कार तेज़ गति पकड़ चुकी थी। तभी मयंक ने काले रुमाल से उसकी आँखों पर पट्टी बाँध दी। मयंक और राहुल ने मिलकर उसे नियंत्रण में लिया और उसके मुँह पर भी कपड़ा बाँध दिया।

इस समय उसे संभालना बहुत मुश्किल पड़ रहा था। एक नारी अपनी रक्षा के लिए, जितनी शक्ति लगा सकती है, उतनी पूरी शक्ति लगाकर मिताली अपनी रक्षा करने की कोशिश कर रही थी। सब शांत थे, गाड़ी अपनी रफ़्तार से दौड़ रही थी। लगभग डेढ़ घंटे के बाद कार एक जंगल जैसे स्थान पर रुक गई, जहाँ एक छोटी सी झोपड़ी बनी हुई थी। मिताली काफी थक गई थी, वह रो रही थी, गिड़गिड़ा रही थी लेकिन अभी तक किसी ने उसे कुछ भी नहीं कहा था। ऐसे माहौल में वह कहते भी क्या और वह सुनती भी क्या, इसलिए उन्होंने धैर्य से काम लिया। 

उधर गाँव में दो घंटे तक मिताली के घर ना पहुँचने की वज़ह से हड़कंप मच गया। बिजली की रफ़्तार से पूरे गांव में यह ख़बर फैल गई। पूरे गाँव में उसकी ढूँढाई शुरू हो गई लेकिन हर कोशिश नाकाम हो रही थी हाथ में कुछ नहीं आ रहा था। अब तक फिरौती के लिए कोई फ़ोन भी नहीं आया था, वह सब किसी के फ़ोन का इंतज़ार कर रहे थे ताकि उस ज़गह का अंदाज़ा लगाया जा सके।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः