कॉन्डम और प्रेम के हालात बिट्टू श्री दार्शनिक द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कॉन्डम और प्रेम के हालात

"कॉन्डम" स्कूल जाते बच्चे से ले कर के आज की पीढ़ी के हर बूढ़े लोग तक इस शब्द को जानते है।
यह शब्द उस वस्तु के लिए उपयोग किया गया है जो की एक पतले से प्लास्टिक रबर के बने गुब्बारे जैसा है। जिसे यौन संबंध बनाते वक्त स्त्री अथवा पुरुष के लिंग को जरा सा ढकने के लिए उपयोग में लाया जाता है। सिर्फ दो ही कारण से की कोई अनावश्यक गर्भ न रह जाए और यौन संबंधी बीमारी न हो। जी हां बिलकुल सही... सेक्स के वक्त उपयोग होता है ये।

हां यह बिल्कुल सच्ची और अच्छी बात है।

जरा खुद पर गौर करो, क्या आप कॉन्डम की चर्चा अपने घर में आसानी से कर पाते है ? यह तो अच्छी वस्तु है, उपयोगी है और ना ही करोड़ों रूपिए खर्च होते है। एसा क्यों? सिर्फ इसी लिए की इसका उपयोग सेक्स के लिए होता है? क्या आपके मम्मी पापा ने सेक्स नहीं किया !? क्या नाना - नानी ने नहीं किया होगा !? क्या दादा - दादी इंसान नहीं!? बड़े भाई और भाभी है तो क्या उन्होने सदा सेक्स न करने का व्रत लिया है?! एसा तो कोई नहीं। जहां तक मेने देखा और समझा है सेक्स में पीड़ा कदाचित ही होती है और लोग आनंद का अनुभव अधिक करते है। यह सच बात है तो सेक्स और कॉन्डम से घृणा क्यूं?

आज के समाज में अधिकतर युवाओं के अफैर होते है। यूं कह लो की प्रेम प्रकरण। अब सीधी सी बात है किसी भी युवक युवती के प्रेम संबंध में सेक्स का होना आवश्यक है। यह प्रेम की आधी नीव है। किंतु समाज में उसे नव युवाओं के लिए मान्यता नहीं दी जाती। यही वजह है जो नव युवा अपने स्कूल की पढ़ाई को काम में ला कर मेडिकल स्टोर से कॉन्डम का उपयोग करता है और अपनी प्रेमिका से सेक्स का आनंद प्राप्त करता है। यह बात प्रेमिकाओं को भी लागू होती है।
यह अच्छी बात है कि यह युवा लोग कॉन्डम का उपयोग कर के अनावश्यक गर्भधारण से बचते है। क्यूं की इस समय उनके पास न तो उतना धन होता है की संतान और परिवार का पालन पोषण करे और न ही संतान को संभालने की समज होती है। किंतु सेक्स की चाह हर किसी को एक बार तो जकड़ ही लेती है। फिर चाहे स्वयं नारायण ही क्यों न हो। यह तो फिर भी युवावस्था में प्रवेश कर रहा मनुष्य है। उनका सेक्स के प्रति आकर्षित होना सामान्य है।
यदि ऐसा नहीं होता है तो यह चिंता का विषय है। सैक्स के प्रति आकर्षित न होने वाला मनुष्य प्रेम स्पर्श नहीं समज पाता न ही अन्य को सांत्वना दे पाता है। एसा मनुष्य केवल बाहरी वस्तुओ के पीछे अंधा लोभी होता है अथवा समलैंगिक सेक्स (जो की विकृत है) में रुचि लेता है।

खैर आज के समय में कोई भी प्रेमी प्रेमिका सेक्स के पहले कॉन्डम का खयाल करते है। आज तो यह मान्यता हो गई है की कॉन्डम के बगैर सेक्स किया ही नहीं जा सकता।
किंतु दिक्कत यह होती है की समाज के लोग उनके प्रेम को मान्यता नहीं देते। उन्हे तिरस्कृत करते है। जेसे की बेटे की कोई प्रेमिका है तो मां - बाप उस प्रेमिका के विषय में अपशब्द बोलते रहते है। अपने ही बेटे को सबके समक्ष अपमानित करते नहीं थकते। उस पर भरोसा नहीं करते। किंतु यह नहीं समजते की वह भी मनुष्य है और किसी पिता की कोई लाडली बेटी भी है। युवावस्था में ऐसा प्रेम होना स्वाभाविक है और आवश्यक भी। यदि नहीं होता तो बुढ़ापे की उमर जब सन्यास लेने का समय निकट आए तब प्रेम रचाए तो बालकी पर जबरदस्ती किया हुआ बलात्कार जैसा अनुभव होगा।
ऐसे में युवाओं को पीड़ा देती हुई उस सेक्स की भूख को शांत करने के लिए और समाज में बिना कोई दिक्कत रहने के लिए वे कॉन्डम का छूट से उपयोग करते है।

यह वास्तविकता को आज की पीढ़ी के मां - बाप केवल इतना देखते है की इसने उसकी इज्जत लूट ली। क्या इज्जत रह गई अब हमारी। वास्तविकता यह है की एसा चिल्ला कर बोलने से सबको पता लगता है की यह घटना हुई है। और मां बाप उस दूसरे घर के लड़के / लड़की के परिवार के साथ अपने आपसी बैर के कारण भी युवाओं के प्रेम को स्वीकृति नहीं देते।
सेक्स में स्पर्श एक महत्व का किरदार अदा करता है। अब कोई अनजान व्यक्ति के स्पर्श को कोई क्यूं स्वीकृति दे?! किसी अनजान व्यक्ति के साथ कोई अपना पूर्ण जीवन क्यूं व्यतीत करे ? इस वजह से प्रेम, सेक्स और संपूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए युवा ऐसे व्यक्ति को स्वभावत: चुनता है जिसका नजरिया और व्यक्तित्व उसे स्वीकार भी है, पसंद भी है, अनुकूल भी है और भविष्य में उसे उसकी जरूरत भी है। अधिकतर यह सबकुछ जानने और समज ने के लिए किसी भी युवा को प्रथम आकर्षण और फिर उसी आकर्षण की नीव पर कुछ महीनो और अथवा साल का समय लगता है।
यह तो सरल सी बात लगती है, जब किसी प्रेमिका को छोड़ कर अन्य स्त्री से विवाह और सेक्स की बात आए। एक साल में एक स्त्री प्रेमिका बन गई, उसे भूल जाओ दूसरे एक साल में किसी अनजान स्त्री के साथ रहोगे वह भी प्रेमिका बन जाएगी।
यह ठीक वैसी बात है जेसे...
पिछले पांच साल इन मां - बाप के साथ रहे हो तो अब और पांच साल किसी और के साथ रह लोगे तो वे भी मां - बाप बन लगेंगे।
यह उचित भी है। कर सकते है। किंतु यह प्रक्रिया किसी प्रेमी - प्रेमिका और संतान के मन पर कुछ ऐसा प्रभाव देता है जो उसके लिए अनिच्छनीय होता है। जिससे वह डिप्रेशन, सदा दुखी रहना अथवा चिंतित रहना, निर्णय लेने में असामर्थ्यता जेसे परिणामों को भोगता है।

आज यदि कोई युवा विवाह के पूर्व ही कॉन्डम का उपयोग कर ले तो उसे हवसखोर इंसान की तरह देखा जाता है। समाज में लोग यह भी सोचते है की शादी से पहले "कॉन्डम" बोलना भी पाप है। जेसे किसी हवसखोर दरिंदे ने कोई गंदी गाली दे दी हो।

अगर इन सब से बचना ही है तो कई सारी बातो को समाज से निकाल फेंकना होगा और समाज के बड़े बुजुर्गो को कई सारी बातो का खयाल भी रखना होगा, जेसे की...

१. बच्चे सच्चाई को समझ पाने की क्षमता रखते है। बस उन्हे पता लगने तक की देर है।
२. युवावर्ग मूर्ख नहीं है उन्हे मूर्ख समझा जाता है।
३. किसी भी नव युवा को नवयुवती से प्रेम हो सकता है। इस समय उन्हे सलाह के बजाय सहायता और अपनेपन की अवश्यकता होती है।
४. नवयुवान में भावनाए होती हैं इसका सीधा सा उदाहरण है की वो किसी अनजान स्त्री से प्रेम करता है।
५. नवयुवान भरोसे के लायक है इसका सीधा प्रमाण है की कोई अनजान स्त्री उससे प्रेम करती है। उस पर भरोसा करती है।
६. शादी के लिए पुरुष के पास उचित धन होना आवश्यक है ऐसा जरूरी नहीं, क्योंकि प्रेम धन राशि से जन्म नही लेता।
७. यदि नवयुवाओ (प्रेमियों) के पास उचित धन राशि नहीं है तो दोनों के मां - बाप का कर्तव्य है की प्रेमियों के जीवन निर्वाह के लिए उनकी आमदनी बढ़ाने में उनकी सहायता करे। ज़िम्मेदारी निभाने में उनका मार्गदर्शन करे। न की एक दूसरे को दोषी केसे साबित करे उसके पैंतरे ढूंढे।
८. प्रेमी - प्रेमिका तभी सारी बात बिना हिचकिचाहट बताएंगे जब उनके साथ उनके प्रेम का स्वीकार और सम्मान भी होगा। इसके लिए समाज के बुजुर्ग वर्ग और मां - बाप के वर्ग में शामिल लोगों से शुरुआत करनी होगी।
९. समाज के बड़े लोगों को यह समझना होगा की प्रेम कभी दान - दक्षिणा अथवा भीख में नहीं मिलता, ना ही कमाया जाता है।
१०. नई पीढ़ी की नई सोच होती है और नई सोच से नया कर्म। नए कर्म से नया परिवर्तन होता है और परिवर्तन से ही विकास होता है।
११. कुदरती क्रिया करने में कोई घृणा नहीं होनी चाहिए।
१२. नई पीढ़ी की सोच, स्वतंत्रता, पालन, उनका प्रेम और उनकी शांति किसी समाज के बुजुर्गों के चुस्त नियमो से अधिक मूल्यवान होते है। तभी तो किसी संतान को जन्म दिया जाता है।


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