विदेश में अपना देस Arun Singla द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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विदेश में अपना देस

“दीदी में मरना चाहती हूँ “ फातिमा ने दुखी हो कर कहा.


फातिमा की उम्र लगभग 42 साल कद 5.5 रंग गेहुआ, चोडा माथा, भूरी आँखे, तीखी नाक शरीर भरा भरा था. वह बंगलादेश भारत के 4,156 किलोमीटर लम्बे, दुनिया के पांचवे सबसे लम्बे बॉर्डर से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पत्निताला शहर के पास एक छोटे से गाँव में रहती थी, और आठ बहन-भाइयों में सबसे बड़ी थी, 14-15 वर्ष की अवस्था में उसका अब्दुल से निकाह हो गया.


क्योंकि गाँव में रोजगार के अवसर ना के बराबर थे, वे रोजगार की तलाश में गाँव से पत्निताला आ गये थे. पत्निताला बंगलादेश के नागोन जिले का एक उपजिला था, जिसकी आबादी लगभग दो लाख से उपर थी, उन्होंने कताबरी मजार के पास रहना शुरू कर दिया. शुरू में दोनो मजदूरी करते थे व् गुजारा बड़े आराम से चल जाता था. परन्तु जब तीन वर्षों में तीन नये प्राणी अल्लाह की देन के रूप में घर में आ गये तो भूखा मरने की नोबत आ गई.

एक दिन अचानक अब्दुल को उसके गावं का पुराना दोस्त सरफराज मिल गया तो अब्दुल उसके ठाट बाठ देख कर दंग रह गया था. पूछने पर उसने बताया की वह, आजकल भारत की राजधानी दिल्ली में रहता है, और मजे कर रहा है. वहां उसका चाय का ठेला खूब चल रहा है, हर रोज हजार- पांच सो की कमाई हो जाती है.

"अरे वहां तो रुपया उड़ रहा है, बस पकड़ने वाला चाहिए"-सरफराज ने ढींग हांकी. काम की कोई कमी नही, बस करने वाला चाहिए, मेहनताना भी भरपूर मिलता है. अब्दुल को यह बात जम गई, यहाँ तो हर रोज सो दो सो के भी लाले पड़े रहते हैं, हजार की तो बात ही छोडो. जुगाड़ करके वह भी दिल्ली आ गया.

यहाँ अब्दुल दिहाड़ी पर रिक्शा चलाने लगा और फातिमा को घरों का काम मिल गया, क्योंकि वह खाना बनाने में निपुण थी तो धीरे धीरे साफ़ सफाई का काम छोड़ कर घरों में केवल खाना बनाने का कम करने लग गई, इसमें कमाई भी अच्छी होती थी व् इज्जत भी थी. और अब पिछले दस वर्ष से यहीं थी, बड़ी लडकी 15 साल की छोटी लडकी 10 व् लड़का 11 वर्ष का था. बड़ी लडकी अब उसका घरों में हाथ बटाती थी, दोनों छोटे बच्चों को उसने सरकारी स्कूल में डाल दिया था.
अपनी झुग्गी डाल ली थ. सब कुछ मजे से चल रहा था, कुछ दिनों से बस्ती में छुट भईया नेता आने शुरू हो गये थे. नेता जी कुछ को डरा कर कुछ को बहका कर बस्ती के सभी लोगों, पुरषों महिलाओं, बुजर्गों, जवानों यहाँ तक की छोटे बच्चो को भी अपने साथ ले जाते, वे लोग सारा दिन सड़क रोक कर बेठे रहते, और नारेबाजी करते रहते.

फातिमा जो घरों में काम करती थी, सभी उसे बहुत मान देते थे, उन्होंने फातिमा को बताया की ऐसा कुछ नही है, परन्तु अब्दुल जो अब काम काज छोड़ कर नेता के पीछे लगा रहता था, और फातिमा को डराता था की अगर वो नेता के साथ नही जायेंगा तो हम सब लोगों को जेल में डाल दिया जाएगा. कल की ही बात है की मोहल्ले में पुलिस आई थी, और दस पंद्रह लोगो को पकड़ कर ले गई थी, उनमे से अब्दुल भी एक था.

फातिमा के हाथ पैर फूल गये थे, प्रदेश में उनका कोन था , वह सोच रही थी, सब कुछ इतना बढिया चल रहा था के अचानक ये क्या हो गया. फतिमा का दिल रोता था बच्चे अभी छोटे थे, उनका क्या होगा. क्या जेल में जाना पड़ेगा . उसका काम में दिल ना लगता था, चिंता उसे मारे जा रही थी. वह बीमार रहने लगी थी, काम से छुटियाँ करने लगी थी. रमा दीदी का बार बार फ़ोन आ रहा था, की वो काम पर क्यों नही आ रही. पहले तो उसने फ़ोन नही उठाया, पर जब मोबाइल बजता ही रहा तो उसने मोबाइल का हरा बटन दबाया.
“फातिमा तू क्या चाहती है“ उधर से आवाज आयी
“दीदी में मरना चाहती हूँ“ फातिमा ने दुखी हो कर कहा.