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विविधा - 36

36-चित्रकथाओं ‘कामिक्स’ के शिकंजे में फंसे बच्चे

 गर्मियां क्या आती हैं, घरों में बच्चे स्कूल और परीक्षाओं से निपट कर बिल्कुल खाली हो जाते है। खाली बच्चे दिन भर क्या करें, तो आजकल बच्चे, किशोर और यहां तक कि युवा और बुजुर्ग तक खाली समय में कामिक्स पढ़ते हें। चित्र कथाओं का आनन्द लेते हैं और समय गुजारने के लिए शुरु किया गया यह पढ़ना धीरे धीरे एक आदत, एक नशा सा बन जाता है। आजकल हर गली मोहल्ले में बच्चे को कामिक्स किराये पर देने के लिए एक आध दुकान, अवश्य खुल गई है। जो बच्चे नवीन कामिक्स नहीं खरीद सकते, वे पुरानी कामिक्स किराये पर लेकर पढ़ते है। खर्च भी कम आता है, कई बार कई बच्चे मिलकर कामिक्स किराये पर ले आते हैं और दिन भर भी मिलकर पढ़ लेते हैं। अखबारों, पत्रिकाओं में भी एक चित्र कथा अवश्य होती हैं। टी.वी. के विस्तार के बाद भी कामिक्स को पढ़ने की इच्छा बरकरार है, इसका कारण है कामिक्स में कम शब्दों में ज्यादा बात होती है। भयानक, जासूसी, डरावनी, फेन्टेसी, विलेन आदि की चित्र कथाओं के तो कहने ही क्या लाखों की संख्या में धड़ल्ले से बिक रही है और बच्चे की पूरी पीढी को अपने शिकंजे मंे कस चुकी है। क्या आप जानते हैं कि एक पूरी पीढ़ी को बरबाद करने की कोशिश है ये कामिक्स।

 हम शैतान हैं, खूनी दानव, जादूगर कोबरा, महाबली सुपर ब्याय आदि ऐसे शीर्पक है जो कामिक्स की दुनिया में छाये हुए हैं। आदर्शवादी, स्तरीय धार्मिक, पौराणिक या जीवनी वाली कामिक्स बच्चे-नहीं पढ़ना चाहते। वे तो फंतासी की, कल्पना वाली, डरावनी रहस्य रामांच से भरपूर कामिक्स पढ़ पढ़ कर अपना समय व्यतीत करना चाहते हैं। अपने आस पास नजर दोड़ाइये, यदि बच्चे दूरदर्शन नहीं देख रहे हैं तो निश्चित ही कामिक्स पढ़ रहे हैं, क्योकि अब पारम्परिक खेलों में उनका मन नहीं रमता है। प्रकाशकों के क्या कहने, रोज नई चित्रकथाओं को लेकर व्यावसायिक होड़ के साथ प्रकाशक बाजार में छा रहे हैं। वे जानते हैं कि वे बच्चों के भविप्य को बिगाड़ रहे हैं, मगर पैसा कमाने की अंधी दोड़ में शामिल होकर रेस जीतने की इच्छा किसे नहीं होती है। अब हमारे बच्चे, अंध विश्वास, अतिमानवों के कारनामें, हिंसा, मारपीट और अश्लीलता सीख रहे हैं। और यह सब चित्रकथाओं के माध्यम से हो रहा है। कुछ बच्चों से बात करने पर स्पप्ट हो जाता है कि वे कामिक्स केवल मनोरंजन और समय गुजारने के लिए पढ़ रहे हैं, मगर धीरे धीरे उनके बाल मन पर, कच्चे और अविकसित दिमाग पर हिंसा, बलात्कार, मारपीट, रहस्य, रोमांच, डरावनी स्थितियों का स्पप्ट और स्थायी चित्रण हो जाता हे। कुछ बच्चे सपनों में ये डरावने चित्र देखते हैं और डर जाते है। कुछ बच्चों के मन मस्तिप्क पर स्थायी रुप से कामिक्स का प्रभाव हो जाता हे। प्रकाश्क सस्ती और घटिया रचनाओं को श्रेप्ठ कागज व विभिन्न रंगों में खूब सूरत ढंग से छाप कर बेच रहे हैं ताकि अधिक से अधिक पैसा बटोरा जा सके। चित्रकथाओं के कथानकों को यदि देखा जाये तो उनमें ज्यादा कल्पना के सहारे ऐसी उडा़ने भरी जाती है, जो बाल मन को प्रभावित करें। उसके सपनों को रंगीन बनाकर उसे यथार्थ की जिन्दगी से बहुत दूर ले जायें। कहानी में संदेश नहीं होता और यदि होता है तो बच्चे उसे पेड़ नहीं पाते हैं। कामक्सि हिन्दी में सबसे ज्यादा बिक रहे हैं और अंग्रेजी के मुकाबले सस्ते भी हैं, कामिक्स के कारण बाल पत्रिकाओं का भविप्य अन्धकार मय हो गया है। कुछ पत्रिकाएं तो बन्द हो गयी है। वास्तव में कामिक्स की शुरुआत भारत में 1980 के आस पास हुई। उस समय पौराणिक व आदर्शवादी चरित्रों को आधार बनाकर कामिक्स बाजार में आये, मगर शीघ्र ही इन्द्रजाल कामिक्स जादूगर मैड्ेक्स व अन्य पत्र आये और छा गये। उत्तेजक चरित्रों के कारण आदर्शवादी चित्र- कथाएं बन्द हो गयी हैं। लेकिन कामिक्स के क्षेत्र में हास्य व्यंग्य को आधार बनाकर भी कामिक्स आये और चले। बच्चों को लुभाने हेतु चित्रकथाओं के प्रकाशक कई प्रकार के ईनाम, लालच, लोभ भी दे रहे हैं और बच्चे ही नहीं अभिभावक भी इसमें फंस रहे हैं। एक मध्यमवर्गीय गृहणी के अनुसार-‘बच्चों को कामिक्स दे दो बस वे दिन भर चुपचाप कमरे में बैठ कर पढ़ते रहते हैं, तंग नहीं करते। नही ंतो ये गरमी के दिन बच्चे दिन भर उधम मचाते हैं।’ 

 कामिक्स में भी फिल्मों की तरह ही खलनायक अर्थात् बुरे आदमी की आदतों को सीखने की कोशिश कर रहे हैं। कामिक्स पढ़ने के बाद बच्चा फंतासी की दुनिया में सो जाता है, वो बार बार खलनायक की जगह अपने को रखकर कल्पना की उड़ाने भरता है। वह स्वयं को सुपर ब्याव समझने लगता है। लेकिन क्या बच्चों को चित्र कथाओं से दूर रखा जा सकता है। शायद नहीं क्योंकि आपका बच्चा स्वयं निर्णय ले लेता है। तथा टी.वी., वीडियो, खेल शायद ज्यादा मंहगे हैं और आसानी से उपलब्ध नहीं है। बच्चों को किराये पर सस्ते कामिक्स मिल जाते हैं, और वे इन्हें पढ़ने लग जाते है। बच्चों को अगर अच्छी पुस्तकें सस्ते मूल्य पर उपलब्ध हो तो शायद बच्चे कामिक्स के बजाय बाल साहित्य पढ़े। मगर बच्चों के मनोविज्ञान को समझ कर अच्छी और उपयोगी पुस्तकों का प्रकाशन और उन्हें कम मूल्य पर बच्चों को उपलब्ध कराना आसान काम नहीं है। 

 चिल्डन बुक टस्ट, सहमत व अन्य संस्थाओं के प्रयास उंट के मुंह में जीरे के समान है। बच्चों तक बाल साहित्य की पंहुच नहीं है। 

प्रकाशकों, लेखकों, बाल साहित्य संस्थाओं, सामाजिक संस्थाओं और अभिभावकों सबको मिलकर अपने बच्चों को चित्र कथाओं के रहस्य लोक से निकालने के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे। आपका बच्चा समाज में स्वयं को उपेखित महसूस करता है। वो स्वयं की पहचान के लिए कामिक्स के पात्र के साथ अपना तादात्म्य स्थापित करता है। सरकार, बाल साहित्य और वीडियो को मिलकर बच्चों को पहचान देने की काशिश करनी चाहिए। यदि कामिक्स स्वस्थ, मनोरंजन, हास-परिहास से पूर्ण हो तो ठीक है। यदि आदर्श और बड़ों की जीवनी पर आधारित कामिक्स है तो भी ठीक है, मगर डरावने, खौफनाक, हिंसात्मक प्रवृति के कामिक्स से बच्चों को बचाने के लिए गंभीर प्रयासों की आवश्यकता है। बच्चे अपनी बचत तक को हल्के कामिक्स खरीदने में जाया कर देते हैं। उन्हें रोका जाना चाहिए। सच पूछा जाये तो कामिक्स का नशा अफीम की तरह है और यदि इस वृत्ति को रोकने के प्रयास नहीं हुए तो शायद परिणाम गंभीर होंगे। यह नशा नशीली दवाओं के नशे की तरह ही हमारी एक पूरी पीढ़ी को लील जायेगा। आज कामिक्स के बजाये अच्छे बाल साहित्य की ज्यादा आवश्यकता है। अभिीभावकों को बच्चों को कामिक्स देते समय उसके स्तर की तरफ ध्यान देना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि कामिक्स पढ़ते पढ़ते बच्चा स्वयं को कामिक्स के हीरो की तरह समझ बैठे और उसके बाल मन पर गलत मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़े। 

चित्र कथाओं के प्रकाशकों, लेखकों के भी दायित्व है, वे करोड़ से अरबपति बने मगर एक पूरी पीढ़ी के संस्कारों को भी सुधारे। चित्रकथाएं विदेशो से भारत आई है, वहां एक एक चित्र पच्चीसों अखबारों में एक साथ छप कर बाजार पर छा जाती है। भारत में भी पुस्तकार चित्रकथाओं का बड़ा जोर है और आवश्यकता इस बात की है कि बच्चों तक सही चित्रकथा सही ढंग से प्रस्तुत की जायें ताकि बच्चों को शुद्ध मानसिक भोजन मिल सके। 

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