मैं बेटी हूँ बोझ नहीं Sushmita Gupta द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मैं बेटी हूँ बोझ नहीं

ये कहानी एक लक्ष्मी नाम की लड़की की है
 
यह सब मैं इसलिए कह रही हूँ क्योंकि ऐसा मैं फील करती हूँ। एक लड़की थी जब उसका जन्म होने वाला था तब उसके दादा दादी और घर के रिश्तेदार जश्न की तैयारी कर रहे थे क्योंकि उन्हें लगता था कि लड़का होगा पर ऐसा नहीं था, लड़की हुई। जब लोगों ने उसे देखा और जिस नाम से उसे पुकारा वो था – “कुलक्ष्मी”

अपशगुनी नाम सुनने में अजीब लग रहा है ना लेकिन वो लड़की मुस्कुरा रही थी अपना नया नाम सुनकर, सोच रही थी कि किसी जन्नत में आ गयी हूँ मैं। लेकिन लोग मुझे छू भी नहीं रहे हैं ऐसा लगता है मानो मुझे कोई बीमारी है। जो जश्न मनाने आये थे वो भी चले गए। मुझे लोग मारना चाह रहे थे सोच रहे थे, लड़की हूँ और बदनामी के सिवा दे भी क्या सकती हूँ।


केवल एक इंसान जो मेरा पूरा साथ दे रहा था, वो थी मेरी माँ। जिसने मुझे दुनिया की नजरों से बहुत दूर भेज दिया, दुनिया की नज़रों में तो मैं मर चुकी थी लेकिन मैं तो अनाथालय में थी। मेरा भरा पूरा परिवार था लेकिन फिर भी मैं अनाथालय में थी कितना अजीब है ना।

ऐसा कोई दिन नहीं जाता था जब मेरी माँ मुझसे मिलने ना आती हो और मुझे दूध ना पिलाती हो। मेरी पूरी देख रेख करती थी मेरी माँ और परिवार वालों से झूठ बोलती थी कि मैं अपने सहेली से मिलने जा रही हूँ। हर रोज माँ नए बहाने बनाती थी।

 

एक दिन मुझे तेज बुखार हो गया और उस दिन माँ पूरे दिन मेरे साथ रही और मुझे सुलाकर ही वापस घर गयी। पापा ने पूछा कि इतनी देर कैसे हो गयी तो वो बोलीं कि मेरी सहेली की तबियत खराब थी और मैं उसकी मदद करा रही थी। पापा ने गुस्से में उस दिन मम्मी की पिटाई भी की। माँ दर्द सह रही थी लेकिन फिर भी मुझे छिपा रही थी उसे लगता था कि मैं तो बच्ची हूँ, मैं क्या समझूँगी लेकिन ऐसा नहीं था मैं सब समझती थी।

मैंने भी सोच लिया कि सब जानकार रहूंगी। मैं मैडम के पास गयी और बहुत रिक्वेस्ट करने पर उन्होंने मुझे सब कुछ बता दिया। यह सब सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया, मैंने तभी सोच लिया कि कुछ अलग करके दिखाना है।

कुछ बड़ी हुई तो मैंने बॉक्सिंग क्लब ज्वाइन कर लिया। जब 18 साल की हुई तो मुझे स्टेट चैम्पियन का ख़िताब मिला। दो महीने बाद मेरा एक पाकिस्तान की लड़की ने नेशनल मैच था। जब मिडिया मेरा इंटरव्यू लेने आयी तो मेरी माँ का फोन आया और वो बेचारी बोलीं कि बेटी, अपने कृप्या परिवार की बुराई मत करना। मुझे तो हंसी आ रही थी कि मेरी माँ आज भी अपने परिवार को बचा रही थी। मैंने इंटरव्यू दिया और पूरी जनता ने टीवी पर वो इंटरव्यू सुना। शाम को माँ ने बताया कि टीवी देखते हुए पापा बोल रहे थे कि वाह क्या लड़की है, कितना नाम रौशन कर रही है अपने माता पिता और परिवार का।

वो लोग तो मुझे छोड़कर चले गए थे यह कहकर कि मैं कुलक्ष्मी हूँ। आज वो लोग मेरे से मिलना चाहते थे और मेरे साथ फोटो खींचना चाहते थे लेकिन आज भी वो मेरी पहचान से अनजान थे कि मैं कौन हूँ।

ठीक दो महीने बाद, नेशनल चैम्पियनशिप का मैच हुआ और वो सभी मुझे देखने आये थे। बहुत सारे लोग मैच देखने आये थे और सभी बोल रहे थे – “you can do it” लेकिन मेरी नजरें उस भीड़ में अपने परिवार को तलाश रही थीं। दूर भीड़ में मुझे मेरा परिवार नजर आया उनको देखते ही मेरे अंदर गुस्सा भर गया और सारा गुस्सा मैंने अपने प्रतिद्वंदी पर निकाल दिया और वो नेशनल ख़िताब अपने नाम कर लिया।

फिर क्या, सभी मुझमें interested हो गए, लोग मुझसे मेरे परिवार के बारे में पूछने लगे। बहुत मजबूर होकर मैंने बताया कि मैं वो लड़की हूँ जिसे 20 साल पहले मार दिया गया था जिसे सबसे पहला नाम “कुलक्ष्मी” दिया गया था। मेरे पूरे परिवार की आँखें नम हो चुकी थीं।

तभी दूर भीड़ में से भागकर कोई मेरे पास आया और मुझे बेटी कहकर पुकारा, ये सब मानो मेरे लिए कोई सपने जैसा था, जो बचपन का प्यार मैंने खो दिया था, वो अचानक ही मुझे मिल गया और उसने मुझे गले लगाकर सभी से कहा – “यह मेरी बेटी है” जिसने मुझे पिता बनने का हक़ दिलाया। सभी लोग मेरे से माफ़ी मांग रहे थे।

 

जब मैंने जन्म लिया तब मैं केवल एक लड़की थी
लेकिन आज मैं एक बेटी हूँ,
अब मैं अपने आँगन की तुलसी बन चुकी हूँ,
अपने घर की मुस्कान बन चुकी हूँ
मैं बेटी बन चुकी हूँ……

यह कहानी थी मुझ कुलक्ष्मी की जिसने मुझे अपने घर की लक्ष्मी बनाया….. और मेरी माँ इस कहानी की सबसे महत्वपूर्ण पात्र थी।

होती नहीं बेटियां हर किसी की चाह में
जहाँ ना सोचा हो पहुँच जाती हैं उस राह में
जिसने उन्हें पैदा होते ही मार दिया हो
समझो उसने अपनी बदल रही किस्मत को ठुकरा दिया………


This Very Motivational Women Empowerment Story in Submitted by – Sushmita Gupta

दोस्तों बिल्कुल सही बात कही है रचना जी ने कि बेटी हूँ बोझ नहीं, आज के समाज में सभी लोगों को इस हकीकत को अपनाना होगा तभी महिला सशक्तिकरण का सपना पूरा होगा। आपको ये कहानी कैसी लगी और आप इसके बारे में क्या कहना चाहते हैं

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