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क्या कह रहे हो बेटा?
एक-एक दिन करके कोई महीना भर बीता। गोलू का मन कुछ उखड़ा हुआ था। उसने मास्टर जी के पास जाकर कहा, “मास्टर जी, आप मेरी महीने भर की तनखा दे दीजिए। मैं चला जाऊँगा।”
सुनकर मास्टर गिरीशमोहन शर्मा हक्के-बक्के रह गए। भीगी हुई आवाज में बोले, “यह क्या कह रहे हो बेटा?...मैंने तो तुम्हें अपने बेटे जैसा ही समझा है।”
इस पर गोलू ने साफ-साफ कहा, “मैडम को शायद मैं अच्छा नहीं लगता। वे मुझे चोर समझती हैं। ऐसे में मेरा यहाँ रहना ठीक नहीं है।” फिर गोलू ने पूरा किस्सा भी सुना दिया कि मालती मैडम के आने पर क्या-क्या बातें हुई थीं और दोनों उसे बार-बार चोर कह रही थीं।
सुनकर मास्टर जी चुप—एकदम चुप। फिर उन्होंने धीरे से कहा, “तेरी मालकिन दिल की बुरी नहीं हैं, गोलू। थोड़ी सेवा करके उनको खुश कर ले, फिर वे यह बात नहीं सोचेंगी।”
इसके बाद गोलू ने कुछ नहीं कहा। आँखें नीची करके खड़ा हो गया।
मास्टर जी ने पास आकर गोलू के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “गोलू, मेरी एक बात याद रखना। जीवन में बहुत मुश्किलें आती हैं और जिस हालत में तू है, उसमें तो और भी ज्यादा मुश्किलें आएँगी। लेकिन बहादुर आदमी वही है, जो हिम्मत से उनका सामना करे।...याद रख गोलू, मुश्किलों का सामना करके तुझे उन्हें खत्म करना है, वरना मुश्किलें तुझे खत्म कर देंगी।”
गोलू क्या कहता, चुपचाप सिर झुकाए खड़ा था। पर मास्टर जी के शब्द जैसे उसके अंदर ताकत भर रहे थे।
मास्टर जी ने फिर बड़े कोमल हाथों से उसके चेहरे को ऊपर उठाकर कहा, “मैं तो चाहता हूँ गोलू, तू इस घर में रहे। मेरा बेटा बनकर रहे। तू यहीं पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनना। फिर हम तेरी शादी करेंगे, यहीं इसी घर में। तुझे अपना बेटा बनाकर मैं करूँगा शादी। एक इज्जत की जिंदगी होगी तेरी। तुझे और किताबें मैं ला दूँगा। प्राइवेट इम्तिहान दे लेना। तू चाहे तो ऐसे ही पढ़कर एम.ए. तक कर सकता है।...तुझे कोई मुश्किल आए तो मुझसे पूछ। पर ऐसे घबराकर भागना तो ठीक नहीं।”
सुनकर गोलू की आँखें भर आईं। उसे लगा मास्टर जी तो सचमुच उसके पापा जैसे हैं, बल्कि उनसे भी बढ़कर। उनसे कहीं ज्यादा उदार।
वह सोचने लगा—अगर उसके पापा भी ऐसे होते, तो भला घर से भागने की जरूरत ही क्यों पड़ती?
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लेकिन नहीं, मैडम सरिता शर्मा के मन में संदेह का जो कीड़ा पैदा हो गया था, वह रात-दिन बढ़ता ही जा रहा था। गोलू को उनकी निगाहें हमेशा कोड़े फटकारती हुई लगतीं, ‘चोर, चोर...चोर...!’
उसे लगता, उसके पूरे शरीर पर ‘चोर...चोर...चोर’ शब्द छप गए हैं। वह चाहे भी तो खुरचकर इन्हें हटा नहीं सकता।
कभी-कभी गोलू मीठी बातें कहकर सरिता मैडम को खुश करने की कोशिश करता। इस पर वे और भी अधिक उखड़ जातीं। कहतीं, “हाँ-हाँ, मैं जानती हूँ तेरी चालाकी! मीठा ठग है तू! तेरे जैसे नौकर तो मालिक को मार-काटकर उसका सब कुछ लूट ले जाते हैं। तू क्या जाने, परिवार की ममता क्या होती है? तेरे अपने माँ-बाप, भाई-बहन होते, तब तू समझता!”
एक बार तो वह कहने को हुआ भी था, “मेरा भी परिवार है मैडम! मैं एक इज्जतदार परिवार का लड़का हूँ। मेरे पापा, मम्मी...!” पर तुरंत उसे खयाल आ गया कि ऐसा कहते ही, वह झूठा साबित हो जाएगा।
गोलू को लगता, अपना घर छोड़ने के बाद उसे एक अच्छा-सा, प्यारा-सा घर मिला था। पर मालती सक्सेना की खुर्राट बातें और खुस-फुस उसमें जहर घोलकर चली गई।
पर अब...? आगे का रास्ता?