एक था ठुनठुनिया - 16 Prakash Manu द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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एक था ठुनठुनिया - 16

16

खजाना बोल पड़ा

एक बार की बात, ठुनठुनिया रात में गहरी नींद सो रहा था। तभी माँ की आवाज आई, “ठुनठुनिया, ओ ठुनठुनिया! लगता है, अपनी छत पर चोर आ गए हैं।”

सुनते ही ठुनठुनिया चौंका। झट उसकी नींद खुल गई। उसने ध्यान से छत से आ रही आवाजों को सुना। उसे अब कोई संदेह न रहा कि छत पर चोर ही हैं। घर में और तो कुछ सामान न था। हाँ, पर माँ के बरसों पुराने सोने के गहने तो थे। चोर उन्हीं को चुराने आए थे।

अब क्या किया जाए? ठुनठुनिया ने झट अपना दिमाग लगाया तो तरीका सूझ गया। उसने पहले धीरे से बुदबुदाकर कुछ कहा, जैसे मंत्र पढ़ रहा हो। फिर जोर से चिल्लाकर बोला, “माँ, ओ माँ, कल जो घर के आँगन की खुदाई से अंदर सोने का घड़ा निकला था, उसे तुमने ठीक से सँभालकर तो रख दिया न? देखो, अच्छी तरह याद कर लो। आजकल समय कुछ ठीक नहीं चल रहा। पता नहीं, कब घर में चोर आ जाएँ और...!”

गोमती की समझ में कुछ न आया, कौन-सा गड़ा हुआ खजाना? कौन-सा सोने का घड़ा?...उसे भला कहाँ छिपाकर रखना था? यह ठुनठुनिया को अचानक जाने क्या हुआ कि अजीब बहकी-बहकी बातें कर रहा है...!

पर ठुनठुनिया ने हाथ के इशारे से माँ को चुप रहने के लिए कहा और खुद ही उसी तरह जोर से बोला, “अच्छा माँ, अच्छा...! मैं समझ गया। अच्छी तरह समझ गया माँ! तूने उसे घर के बाहर वाले कुएँ में डाल दिया है। ठीक किया, बिल्कुल ठीक किया! वहाँ तक तो कोई चोर पहुँच ही नहीं सकता। कोई सोच भी नहीं सकता कि हमारे कुएँ के अंदर इतना बड़ा खजाना छिपा है, इतना बड़ा खजाना कि किसी आदमी को मिल जाए तो उसकी सात पीढ़ियाँ तर जाएँ...!”

ठुनठुनिया इतनी जोर से बोल रहा था कि चोरों को खूब अच्छी तरह से सुनाई दे गया। चोरों ने सुना तो सोचा, ‘अब तो कुएँ पर ही धावा बोलना चाहिए। रातोरात खजाना लेकर चंपत हो जाएँगे, किसी को पता भी नहीं चलेगा।’

बस, थोड़ी ही देर में एक-एक कर तीनों चोर कुएँ में कूद गए। तीनों बार कुएँ से ‘धप्प...!’ की जोर की आवाज आई।

आवाज सुनते ही ठुनठुनिया अपनी माँ के साथ कुएँ के पास आ पहुँचा। उसके हाथ में लंबा-सा बाँस था। बोला, “माँ-माँ, मैं जरा देख लूँ कि हमारा खजाना अंदर सुरक्षित तो है न?”

माँ बोली, “रहने दे ठुनठुनिया। इतनी जल्दी क्या है, सुबह देख लेना।”

ठुनठुनिया ने कहा, “नहीं माँ, आजकल चोरों का कोई ठिकाना नहीं है। पता नहीं, कब किधर से आ धमकें। इसलिए अपनी चीज की अच्छी तरह खोज-खबर लेते रहना चाहिए।”

उसने बाँस को दो-तीन बार कुएँ के अंदर जोर-जोर से पटका। हर बार अंदर से कराहने की आवाज आती। गोमती बोली, “रहने दे बेटा, रहने दे! देख, कुआँ भी तुझसे रो-रोकर यही कह रहा है।...क्यों उसे परेशान कर रहा है?”

ठुनठुनिया थोड़ी देर के लिए रुका। फिर बोला, “माँ...माँ, खजाने का तो कुछ पता ही नहीं चल रहा। मैं जरा पास से भारी-भारी पत्थर लाकर फेंकता हूँ। खजाने पर बजेंगे तो जोर से टन्न की आवाज होगी। बस, मैं समझ जाऊँगा कि हमारा खजाना सुरक्षित है।”

“न...न...नहीं! ऐसा मत करना...मत करना।” ठुनठुनिया की बात पूरी होते ही कुएँ के भीतर से कराहती हुई आवाज सुनाई दी।

इस पर ठुनठुनिया जोर से चिल्लाकर बोला, “अरे माँ, यह क्या! यह तो अपना खजाना बोल पड़ा। अरे वाह-वाह, अपना खजाना बोल पड़ा!”

ठुनठुनिया की जोर की आवाज सुनकर आसपास के घरों में भी जगार हो गई। खजाने की बात पता चलते ही लोग उत्सुकता से भरकर दौड़े-दौड़े वहाँ आ गए। सब अचरज से भरकर बोले, “क्या बात है रे ठुनठुनिया?”

“कुछ खास नहीं!” ठुनठुनिया हाथ लहराकर बोला, “असल में इस कुएँ में हमने एक सोने का घड़ा और उसमें बड़ा भारी खजाना छिपा दिया था। आज वह खजाना अपने आप बोल पड़ा। अरे वाह, खजाना भी बोल पड़ा।...सचमुच ऐसा करिश्मा तो आज जीवन में पहली बार देखा! आप लोग भी देखिएगा, अभी मैं इस कुएँ में मोटे-मोटे पत्थर डालता हूँ तो खजाना कैसे बोलता है...!”

“न...न...न! मत डालो...कुएँ में पत्थर मत डालो ठुनठुनिया!” कुएँ से फिर वही कराहती हुई सी आवाज आई।

सुनकर ठुनठुनिया बड़े जोर से हँसा। बोला, “देखो भाई, देखो! खजाना बोला...खजाना वाकई बोल पड़ा!”

अब तक कुएँ के आसपास भारी भीड़ जमा हो गई थी। “कौन-सा खजाना, ठुनठुनिया? क्या चक्कर है भई? कहीं तुम कोई विचित्र नाटक तो नहीं कर रहे हो?” लोग आ-आकर पूछ रहे थे।

“तुम खुद ही झाँककर देख लो न...!” ठुनठुनिया हँसकर बोला, “तुम्हें खजाने की सूरत नजर आएगी।”

लोगों ने कुएँ में झाँककर देखा तो उन्हें एक-दो नहीं, पूरे तीन चोर दिखाई पड़े। वे हाथ जोड़कर कह रहे थे, “हमें मत मारिए...हमें बाहर निकालिए। अब हम कभी चोरी नहीं करेंगे।”

“मगर ये चोर कुएँ में घुसे कैसे?” लोगों ने पूछा तो ठुनठुनिया ने मजे में पूरी कहानी सुना दी। सुनते ही सब लोग हँसते-हँसते लोटपोट हो गए।

फिर उन चोरों को वहाँ मौजूद लोगों ने ही रस्सी डालकर बाहर निकाला। वे सभी से माफी माँगकर चले गए। लोग भी ठुनठुनिया के कमाल के दिमाग की तारीफ करते हुए अपने-अपने घरों में चले गए।

ठुनठुनिया माँ के साथ घर आया। और माँ कुछ कहती, इससे पहले ही वह चारपाई पर पड़कर खर्राटे भरने लगा।